एक संगीत समारोह में उपस्थिति के दौरान, मेरा मन एक कष्टकर बात की ओर मेरा  ध्यान अपनी ओर करना चाहा l धन्यवाद हो, वह विकर्षण थोड़े समय का था जब एक खूबसूरत गीत के शब्द मेरे व्यक्तित्व के अन्दर प्रवेश करने लगा l पुरुषों का कैपेला  समूह गा रहा था “मेरी आत्मा शांत रह l” शब्दों को सुनते समय आँसू बहने लगे और जब मैं परमेश्वर के सुखदायक शांति पर विचार करने लगा l

मेरी आत्मा शांत रह : प्रभु निकट है तेरे! दुःख दर्द का क्रूस सह धीरज से तू; आज्ञा और प्रबन्ध छोड़ परमेश्वर पर; हर बदलाव में रहेगा वह खरा l

जब यीशु मन न फिरने वाले नगरों को अस्वीकार कर रहा था जहाँ उसने अधिकाधिक आश्चर्यकर्म किये थे (मत्ती 11:20-24), फिर भी उसके निकट आनेवालों के लिए सहानुभूति के शब्द थे l उसने कहा, “हे सब परिश्रम करनेवालों और बोझ से दबे हुए लोगों, मेरे पास आओ … मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूँ : और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे” (पद. 28-29) l

यह कथन चौंकानेवाला है! उसको अस्वीकार करनेवालों से ये सशक्त शब्द कहने के शीघ्र बाद उसने शांति की चाहत रखनेवालों को अपने निकट आने का नेवता दिया l यीशु ही हमारे व्याकुल, श्रमित आत्माओं को तसल्ली दे सकता है l