जब मैं अपने अंग्रेज मंगेतर से विवाह करके ग्रेट ब्रिटन में रहने लगी, मैंने सोचा यह विदेश में पंच-वर्षीय रोमांच होगा l मैंने कभी नहीं सोचा कि मैं लगभग बीस वर्षों से यहाँ लगातार रहूँगी, या कभी-कभी इस अहसास के साथ कि मैंने अपने परिवार और मित्र, कार्य, और समस्त परिचित बातों को अलविदा कही थी l किन्तु जीवन के पुराने तरीके छोड़कर, मैंने एक बेहतर जीवन पाया है l

यीशु ने अपने शिष्यों से प्रतिज्ञा की कि जीवन पाने का उल्टा उपहार है, जब हम खोकर पाते हैं l जब उसने बारह शिष्यों को सुसमाचार सुनाने हेतु भेजा, उसने उनसे उसे अपने माता या पिता, बेटा या बेटी से अधिक प्रेम करने को कहा (मत्ती 10:37) l उसके शब्द एक ऐसी संस्कृति में कही गई जहाँ परिवार समाज की आधारशिला थी और अत्यधिक महत्वपूर्ण l किन्तु उसकी प्रतिज्ञा थी कि वे उसके लिए अपना जीवन खोकर, उसे प्राप्त करेंगे (पद.39) l

मसीह में खुद को पाने के लिए हमें विदेश नहीं जाना पड़ेगा l सेवा और समर्पण द्वारा-जैसे शिष्य परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाने हेतु तैयार थे-हम प्रभु को देने से अधिक प्रभु के उदार प्रेम के कारण अधिक प्राप्त करते हैं l अवश्य ही वह हमसे प्रेम करता है चाहे हम जितनी भी उसकी सेवा करें, किन्तु दूसरों के लिए अपने को समर्पित करके हम संतोष, अर्थ, और तृप्ति पातें हैं l