चार-वर्षीय आशेर का मुस्कराता चेहरा उसके पसंदीदा टोपीवाली व्यायाम-कमीज़ से झाँका l मुलायम जबड़ों वाली घड़ियाल के सिर वाली  उसकी कमीज़ मानो उसके सिर को निगलने वाली थी! उसकी माँ निराश हुई l वह एक परिवार को प्रभावित करना चाहती थी जिनसे वह हाल में नहीं मिली थी l

“अरे, हौन,” वह बोली, “इस अवसर के लिए यह ठीक नहीं है l”

“बिल्कुल है !” आशेर ख़ुशी से बोला l

“हूँ …, और वह कौन सा अवसर हो सकता है?” उसने पुछा l आशेर बोला, “तुम जानती हो l जीवन!” उसे कमीज़ पहनना होगा l

यह बच्चा सभोपदेशक 3:12 का सत्य जानता है – “मनुष्यों के लिए आनंद करने और जीवन भर भलाई करने के सिवाय, और कुछ भी अच्छा नहीं l” सभोपदेशक निराशा और अक्सर ग़लतफ़हमी उत्पन्न कर सकता है क्योंकि यह परमेश्वर की नहीं किन्तु मानवीय दृष्टिकोण है l लेखक, राजा सुलेमान, पूछता है, “काम करनेवाले को अपने परिश्रम से क्या लाभ होता है? (पद.9) l फिर भी आशा दिखती है l वह यह भी लिखता है : “और यह भी परमेश्वर का दान है कि मनुष्य खाए-पीए और अपने सब परिश्रम में सुखी रहे” (पद.13) l

हम ऐसे परमेश्वर के सेवक हैं जो आनंद हेतु हमें अच्छी वस्तुएं देता है l जो कुछ वह करता है “सदा स्थिर रहेगा” (पद. 14) l उसको पहचानकर और उसकी प्रेमी आज्ञाएँ मानने पर  वह हमारे जीवनों को उद्देश्यपूर्ण, अर्थपूर्ण, और आनंदित  बनाता है l