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Articles by डेविड मैकेसलैंड

एक विशालदर्शी दृश्य

यूएस के प्रथम अफ्रीकी-अमरीकी राष्ट्रपति के अधिष्ठापन के टेलिविज़न कवरेज के दौरान कैमरे ने लगभग दो लाख लोगों की बड़ी भीड़ का एक विशालदर्शी दृश्य प्रस्तुत किया, जो इस ऐतिहासिक घटना के गवाह बनने के लिए एकत्र हुए थे। सीबीएस के समाचार प्रवक्ता बॉब स्किफर ने कहा, “इस शो के सितारे को बहुत बड़ी मात्रा में शूट किया गया है।” इतनी बड़ी भीड़ को और कुछ शूट नहीं कर सकता था, जो लिंकन मेमोरियल से कैपिटल तक फैली हुई थी।  

पवित्रशास्त्र हमें इससे भी बड़ी भीड़ की एक झलक प्रदान करता है, जो यीशु में विश्वास के द्वारा एक की गई है: “तुम एक चुना हुआ वंश, और राज-पदधारी याजकों का समाज, और पवित्र लोग, और (परमेश्‍वर की) निज प्रजा हो, इसलिये कि जिसने तुम्हें अन्धकार में से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है, उसके गुण प्रगट करो” (1 पतरस 2:9)।

यह बहुत कम गौरवान्वित लोगों की तस्वीर नहीं, अपितु बचाए गए अनेकों की है जो “हर एक कुल और भाषा और लोग और जाति में से” हैं (प्रकाशितवाक्य 5:9)। आज हम सम्पूर्ण पृथ्वी पर बिखरे हुए हैं, जहाँ अनेक लोग अकेला अनुभव करते हैं और यीशु के साथ सम्बन्ध के कारण दुःख उठाते हैं। परन्तु परमेश्वर के वचन के लैंसों के द्वारा हम विश्वास में अपने भाइयों और बहनों की एक बड़ी तस्वीर को देखते हैं, जो उसका आदर करने के लिए एकसाथ खड़े हैं जिसने हमें छुड़ाया है और अपना निजभाग किया है।

आओ हम उसकी स्तुति में एकसाथ मिल जाएँ जो हमें अन्धकार से ज्योति में ले का आया! 

उस पर विचार करें

लन्दन में ऑस्वाल्ड चैम्बर्स के बाइबल ट्रेनिंग कॉलेज (1911-15) के वर्षों के दौरान, वे अक्सर अपने व्याख्यानों के मध्य विद्यार्थियों को बातों से चौंका देते थे l एक युवती ने समझाया कि क्योंकि अगले भोजन के समय चर्चा रखी गयी थी, अक्सर चैम्बर पर प्रश्नों और आपत्तियों की बमबारी की जाती थी l उसने याद किया कि ऑस्वाल्ड सरल मुस्कराहट के साथ कहते, “बस इसे अभी छोड़ दें; यह आपके पास बाद में लौटेगा l” उसने उन्हें उन मुद्दों पर सोचने और परमेश्वर को अपनी सच्चाई प्रगट करने की अनुमति देने को कहा l

ध्यान केन्द्रित करना और उसके विषय गहराई से विचार करना ही सोचना है l बैतलहम में यीशु के जन्म की घटनाओं के बाद, स्वर्गदूतों और चावाहों की उपस्थिति के बाद जो  उद्धारकर्ता को देखने आए थे, “मरियम ने सब बातें मन में रखकर सोचती रही” (लूका 2:19) l नया नियम का विद्वान डब्ल्यू. ई. वाइन कहता है कि “सोचने” का अर्थ है “एक साथ फेंक देना, वार्तालाप करना, विचार करने के लिए एक वस्तु को दूसरे के साथ रखना” (Expository Dictionary of New Testament Words) l

जब हम समझने का प्रयास करते हैं कि हमारे जीवनों में क्या हो रहा है, हमारे पास मरियम का अद्भुत उदाहरण है कि परमेश्वर और उसकी बुद्धि को खोजने का क्या अर्थ होता है l

जब हम, उसकी तरह, अपने जीवनों में परमेश्वर का मार्गदर्शन स्वीकार करते हैं, हमारे पास सजोने और अपने मन में विचार करने के लिए उसके प्रेमी मार्गदर्शन की बहुत सी नयी बातें होती हैं l

मार्ग का चुनाव

मेरे पास शरद ऋतु की एक खूबसूरत तस्वीर है जिसमें कोलोराडो पहाड़ों पर एक युवा घोड़े पर बैठा हुआ सोच रहा है आगे कौन सा मार्ग चुनना है l यह मुझे रोबर्ट फ्रॉस्ट की कविता “द रोड नॉट टेकेन” (The Road Not Taken) की याद दिलाता है l उसमें फ्रॉस्ट अपने आगे दो मार्गों पर विचार करता है l दोनों लुभावने हैं, किन्तु उसे शक है वह पुनः इस स्थान पर लौटेगा, और उसे एक मार्ग चुनना होगा l फ्रॉस्ट लिखते हैं, “दो मार्ग भिन्न दिशाओं में जंगल में जाते हैं, और मैंने, हाँ मैंने उस मार्ग का चुनाव किया जिसपर कम लोग चलते हैं, और इस चुनाव ने सम्पूर्ण परिवर्तन ला दिया l”
यीशु के पहाड़ी उपदेश में (मत्ती 5-7), प्रभु ने अपने सुननेवालों से कहा, “सकेत मार्ग से प्रवेश करो, क्योंकि चौड़ा है वह फाटक और सरल है वह मार्ग जो विनाश को पहुंचता है; और बहुत से हैं जो उस से प्रवेश करते हैं l क्योंकि सकेत है वह फाटक और कठिन है वह मार्ग जो जीवन को पहुंचता है; और थोड़े हैं जो उसे पाते हैं” (7:13-14) l
जीवन की हमारी यात्रा में, किस मार्ग पर चलना है के विषय हमारे पास अनेक चुनाव होते है l बहुत से मार्ग भरोसा देनेवाले और आकर्षक होते हैं किन्तु जीवन का मार्ग केवल एक ही है l यीशु हमसे परमेश्वर के वचन के प्रति शिष्यता और आज्ञाकारिता का मार्ग चुनने को कहता है अर्थात् भीड़ की अपेक्षा उसका अनुसरण करना l
जब हम आगे के मार्ग पर विचार करते हैं, परमेश्वर हमें उसके मार्ग पर अर्थात् जीवन के मार्ग पर चलने में बुद्धिमत्ता और साहस दे l यह हमारे लिए और जिनसे हम प्रेम करते हैं उनके लिए सम्पूर्ण बदलाव लेकर आएगा l

वह हमारा नाम जानता है

जब मैं न्यू यॉर्क में नेशनल सेप्टेम्बर 11 मेमोरियल घूमने गया, मैंने जल्दी से दो कुण्डों/तालों (Twin Reflecting Pools) की तस्वीर खींच ली l इन दोनों कुण्डों के बीच, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर आक्रमण में मारे गए लगभग 3,000 लोगों के नाम ताम्बे की पट्टियों पर उकेरी हुई हैं l ध्यान से देखने पर मैंने एक नाम के ऊपर एक हाथ की तस्वीर भी देखी l अनेक लोग यहाँ आकर एक नाम को छूकर किसी को याद करते हैं जो उनका प्रिय था l

अक्सर परमेश्वर के लोगों के उससे दूर चले जाने के बावजूद भी, यशायाह नबी उनको उसके अचल प्रेम के विषय याद दिलाता है l प्रभु कहता है, “मत डर, क्योंकि मैंने तुझे छुड़ा लिया है; मैं ने तुझे नाम लेकर बुलाया है, तू मेरा ही है” (यशायाह 43:1) l

भजन 23 में दाऊद लिखता है, “चाहे मैं घोर अन्धकार से भरी हुई तराई में होकर चलूँ, तौभी हानि से न डरूँगा; क्योंकि तू मेरे साथ रहता है; . . . निश्चय भलाई और करुणा जीवन भर मेरे साथ साथ बनी रहेंगी; और मैं यहोवा के धाम में सर्वदा वास करूँगा” (पद.4 ,6) l

परमेश्वर हमें कभी नहीं भूलता है l चाहे हम कहीं भी हों या कैसी भी स्थिति में हों, वह हमारा नाम जानता है और अपने अचल प्रेम में थामे रहता है l

असीम प्रेम

एक बुद्धिमान मित्र ने मुझे सलाह दी कि "तुम हमेशा" या "तुम कभी नहीं" जैसे बोल कभी न बोलूँ विशेष रूप से परिवार के साथ। हमसे प्रेम करने वाले लोगों की आलोचना करना तथा और उनके प्रति उदासीनता का भाव रखना कितना आसान होता है। परंतु हमारे प्रति परमेश्वर का प्रेम अपरिवर्तित रहता है।

भजन संहिता 145 शब्द सभों शब्द से भरा हुआ है। " यहोवा सभों के लिये..."(पद 9)। "यहोवा अपने सभी वायदों...”। "यहोवा सब गिरते हुओं...(13,14)

इस भजन में हमें एक दर्जन बार याद दिलाया गया है कि परमेश्वर का प्रेम असीम और अपक्षपाती है। और नया नियम बताता है कि इसकी सबसे बड़ी अभिव्यक्ति यीशु मसीह में दिखती है: "क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। " (यूहन्ना 3:16)

भजन संहिता 145 घोषणा करता है कि "जितने उसे पुकारते हैं, अर्थात जितने उसे सच्चाई से पुकारते हें; वह उन सभों के निकट रहता है। वह अपने डरवैयों की इच्छा पूरी करता है, ओर उनकी दोहाई सुन कर उनका उद्धार करता है। "(पद 18-19)      

हमारे लिए परमेश्वर का प्रेम सदा बना है, और कभी विफल नहीं होता!

खुल कर जीना

टेक्सास, ऑस्टिन के एक होटल में ठहरे हुए, मैंने अपने कमरे की मेज़ पर एक कार्ड देखी जिसमें लिखा था :
स्वागत है !
हमारी प्रार्थना है कि आपका यहाँ रहना सुखदायक होगा और आपकी यात्रा लाभदायक l
यहोवा आपको आशीष दे और आपकी रक्षा करे; यहोवा आप पर अपने मुख का प्रकाश चमकाए l

इस कार्ड ने मुझे इस होटल का प्रबन्ध करने वाली कंपनी के विषय और भी जानने को विवश किया l इसलिए मैंने उनकी वेबसाइट खोल कर उनकी तहज़ीब, ताकत, और मान्यताएँ को जानना चाहा l मनोहर तरिके से, वे उत्कृष्टता का अनुसरण करते हुए अपने कार्यस्थल में अपने विश्वास से जीते हैं l

उनका यह दर्शन मुझे पतरस के शब्द याद कराते हैं जो उसने एशिया माइनर में बिखरे हुए यीशु के अनुयायियों को लिखी l उसने उनको अपने समुदाय में जहां वे रहते थे मसीह में अपने विश्वास को दर्शाने के लिए उत्साहित किया l धमकियों और सताव के मध्य भी, पतरस ने उनसे अभय रहने को कहा, “पर मसीह को प्रभु जानकार अपने अपने मन में पवित्र समझो l जो कोई तुम से तुम्हारी आशा के विषय में कुछ पूछे, उसे उत्तर देने के लिए सर्वदा तैयार रहो, पर नम्रता और भय के साथ” (1 पतरस 3:15) l
मेरा एक मित्र इसे “ऐसी जीवन शैली जो निरूपण की मांग करता है” संबोधित करता है l

मौखिक अनुग्रह

कई वर्षों तक, मैंने ब्रिटिश लेखक जी. के. चेस्टरटन के लेखों का आनंद उठाया है l उसके विनोद और अंतर्दृष्टि ने मुझे मुस्कुराने और उसके बाद अधिक गंभीर चिंतन करने को विवश किया l उदहारण के लिए, वह लिखता है, “आप खाने से पहले धन्यवाद करते हैं l ठीक है l किन्तु मैं पूछता हूँ खेल और संगीत-नाटक से पहले, और संगीत-समारोह और मूक नाटक, और पुस्तक खोलने से पहले धन्यवाद, और रेखा चित्र, चित्र बनाने, तैराकी, बाड़ा लगाने, बॉक्सिंग, टहलने, खेलने, नृत्य, और स्याही के दवात में पेन डूबाने से पहले धन्यवाद क्यों नहीं l”

हमारे लिए प्रत्येक भोजन से पहले प्रभु को धन्यवाद देना अच्छा है, किन्तु उसको वहीं पर रुकना नहीं चाहिए l प्रेरित पौलुस ने हर एक क्रिया, प्रत्येक प्रयास को परमेश्वर को धन्यवाद देने के अवसर के रूप में देखा और और हमें भी उसकी महिमा के लिए उन्हें करना चाहिए l “वचन में या काम में जो कुछ भी करो सब प्रभु यीशु के नाम से करो, और उसके द्वारा परमेश्वर पिता का धन्यवाद करो” (कुलुस्सियों 3:17) l मनोरंजन, व्यवसाय, और शिक्षा वे अवसर हैं जिसके द्वारा हम प्रभु को आदर दे सकते हैं और धन्यवाद भी l

पौलुस भी कुलुस्से के विश्वासियों को इन शब्दों से उत्साहित किया, “मसीह की शांति जिसके लिए तुम एक देह होकर बुलाए भी गए हो, तुम्हारे हृदय में राज्य करे; और तुम धन्य्वादी बने रहो” (पद.15) l

प्रार्थना और धन्यवाद देने का सर्वोत्तम स्थान है कहीं भी और किसी समय, अर्थात् जब आप उसको धन्यवाद और आदर देना चाहे l

क्षमा की याचना

1960 में, छः वर्ष की रूबी ब्रिड्जेस पहली अफ़्रीकी अमरीकी लड़की थी जिसको अमरीका के दक्षिणी भाग के एक पब्लिक प्राथमिक विद्यालय में दाखिला मिला जिसमें केवल श्वेत बच्चे ही पढ़ सकते थे l कई महीनों तक, शासकीय उच्च अधिकारी रूबी को स्कूल पहुंचाते थे l सड़क पर क्रोधित अभिभावक उसे श्राप देते थे, धमकाते थे और उसको अपमानजनक शब्दों से संबोधित करते थे l अन्दर कक्षा में वह सुरक्षित रहकर शिक्षिका बारबरा हेनरी से पढ़ती थी जो उसे पढ़ाने को सहमत थी, जबकि अभिभावक अपने बच्चों को रूबी के साथ पढ़ाना नहीं चाहते थे l  

बच्चों के मशहूर मनोचिकित्सक रोबर्ट कोल्स कई महीनों तक रूबी को भय और तनाव के अनुभव से निकलने में सहायता करते रहे l वे रूबी की प्रार्थना से बहुत अधिक प्रभावित थे जो वह स्कूल जाते समय और लौटते समय करती थी l “परमेश्वर, कृपया, आप उन्हें क्षमा करें क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं” (देखें लूका 23:34) l

क्रूस पर से यीशु के शब्द लोगों के घृणा और अपमान के शब्दों से ताकतवर थे l  जीवन के सबसे अधिक पीड़ादायक क्षण में, यीशु ने स्वाभाविक प्रतिउत्तर दिया जो उसने अपने शिष्यों को सिखाये थे : “अपने शत्रुओं से प्रेम रखो; जो तुम से बैर करें, उनका भला करो l जो तुम्हें श्राप दें, उनको आशीष दो; जो तुम्हारा अपमान करें, उनके लिए प्रार्थना करो l जैसा तुम्हारा पिता दयावंत है, वैसे ही तुम भी दयावंत बनो” (लूका 6:27-28, 36) l

इस प्रकार का स्वभाव केवल वहां संभव है जहाँ हम यीशु द्वारा प्राप्त सामर्थी प्रेम पर विचार करते हैं – वह प्रेम जो गहरे से गहरे घृणा से भी ताकतवर है l

रूबी ब्रिड्जेस ने हमें मार्ग दिखाया है l

लम्बा चौड़ा देश

एमी कार्माईकल (1867-1951) भारत में अनाथ लड़कियों को बचानेवाली और नया जीवन देनेवाली के रूप में जानी जाती है l इस थकानेवाले काम के मध्य उसके जीवन में ऐसे क्षण भी आए जिसे उसने “दर्शन का क्षण” कहा l अपनी पुस्तक गोल्ड बाई नाईट, में उन्होंने लिखा, “एक भीड़ भरे दिन के मध्य हमें ‘लम्बे चौड़े देश,’ की लगभग एक झलक मिल ही जाती है और हम मार्ग में शांत होकर ठहर जाते हैं l”

यशायाह नबी एक समय के विषय लिखता है जब परमेश्वर के विद्रोही लोग उसके निकट लौटेंगे l “तू अपनी आखों से राजा को उसकी शोभा सहित देखेगा; और लम्बे चौड़े देश पर दृष्टि करेगा” (यशायाह 33:17) l इस “लम्बे चौड़े देश” को देखने का अर्थ अविलम्ब वर्तमान की स्थिति से ऊपर उठकर स्वर्गिक दृष्टिकोण प्राप्त करना है l कठिन समयों में, प्रभु चाहता है कि हम अपने जीवनों को उसके दृष्टिकोण से देखकर आशा प्राप्त करें l “क्योंकि यहोवा हमारा न्यायी, यहोवा हमारा हाकिम, यहोवा हमारा राजा है, वही हमारा उद्धार करेगा” (पद.22) l

हर दिन, हम निराशा में सर झुका सकते हैं अथवा “लम्बे चौड़े देश” की ओर, उस प्रभु की ओर जो हमारा “महाप्रतापी यहोवा” है, अपनी ऑंखें उठा सकते हैं (पद.21) l

एमी कार्माईकल भारत में पचास वर्ष से भी अधिक तक अति आवश्यकतामंद जवान स्त्रियों की सहायता करती रही l उसने किस प्रकार यह किया? हर दिन वह यीशु की ओर देखती रही और उसकी देखभाल में अपने जीवन को सौंप दिया l और हम भी सौंप सकते हैं l