मेरे पिता ने एक बार मेरे सामने स्वीकार किया, “जब तुम उम्र में बढ़ रहे थे, मैं बहुत बार घर पर नहीं होता था l”

मुझे यह याद नहीं l अपनी पूर्ण-कालिक सेवा के अलावा, वे चर्च संगीत मण्डली की अगुवाई करने, और कभी-कभी पुरुषों के चार लोगों के गायन समूह के साथ एक-दो सप्ताह के लिए बाहर जाते थे l किन्तु वे मेरे समस्त ख़ास पलों में (और अनेक छोटे पलों में) उपस्थित रहते थे l

जैसे, आठ वर्ष की आयु में, मुझे एक दोपहर स्कूल में एक छोटी भूमिका निभानी थी l सभी माताएँ आयीं, किन्तु केवल मेरे पिता l अनेक छोटे तरीकों से, उन्होंने हम बच्चों को जताया कि हम उनके लिए विशेष हैं और वे हमसे प्यार करते हैं l और उन्होंने माँ के अंतिम दिनों में कोमलता से उनकी सेवा करके स्वार्थहीन प्रेम प्रगट किया l पिता सिद्ध नहीं हैं, किन्तु उन्होंने मुझे हमेशा मेरे स्वर्गिक पिता की अच्छी झलक प्रस्तुत की है l और आदर्श रूप से, एक मसीही पिता को ऐसा ही करना चाहिए l

कभी-कभी सांसारिक पिता अपने बच्चों को निराश करते अथवा पीड़ित करते हैं l किन्तु हमारा स्वर्गिक पिता “दयालु और अनुग्रहकारी, विलम्ब से कोप करनेवाला और अति करुणामय है” (भजन 103:8) l प्रेम करनेवाले पिता अपने बच्चों को ताड़ना, सुख, निर्देश देकर, और प्रावधान करके, हमारे सिद्ध स्वर्गिक पिता का नमूना प्रस्तुत करते हैं l