कंप्यूटर पर काम करते हुए एक ईमेल ने मेरा ध्यान खींच लिया जिसकी सब्जेक्ट लाइन थी: “आप एक आशीष हैं”। उत्सुकतावश मैंने ईमेल खोला जिसमें मेरी मित्र ने लिखा था कि मैं तुम्हारे  परिवार के लिए प्रार्थना कर रही हूँ।  “मैं जब जब तुम्हें स्मरण करती हूं…” (फिल्लिपियों 1:3)। और फिर उसने परमेश्वर के प्यार को दूसरों के साथ बांटने के हमारे प्रयासों की सराहना लिखी थी। अपने किचन टेबल पर रखे आशीषों के प्याले में वह हर सप्ताह किसी परिवार का चित्र रख कर उसके लिए प्रार्थना करती है।

मेरी मित्र के शब्द,  मेरे मन में वैसा आनन्द भर रहे थे जैसा फिल्लिपियों को प्रेरित पौलुस के पहली सदी के धन्यवाद नोट से मिला होगा। पौलुस ने अपने सहकर्मियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने की आदत बना ली थी। उनके पत्र ऐसे ही वाक्यांश से आरंभ होते हैं: “मैं तुम सब के लिये यीशु मसीह के द्वारा अपने परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं…” (रोमियो 1:8)।

पहली सदी में, पौलुस ने अपने सह-कार्यकर्ताओं को एक प्रार्थनापूर्ण धन्यवाद-नोट के साथ आशीषित किया, इक्कीसवीं शताब्दी में, मेरी मित्र ने एक आशीष के प्याले का उपयोग मेरे दिन में आनन्द लाने के लिए किया। हम कैसे उन लोगों का धन्यवाद कर सकते हैं जो हमारे साथ परमेश्वर के मिशन में सेवा करते हैं।