मेरी पहली नौकरी एक फास्टफूड रेस्टोरेंट में थी l शनिवार की शाम को, एक व्यक्ति मेरे लिए इंतज़ार करते हुए मुझसे पूछता था कि मैं काम से कब छुट्टी पाऊँगी l इससे मैं असहज महसूस करती थी l विलम्ब होने पर वह चिप्स आर्डर करता था, फिर कोई पेय, ताकि होटल का प्रबंधक उस से बाहर जाने को न कह दे l यद्यपि मेरा घर निकट ही था, फिर भी मैं कुछ पार्किंग स्थलों से और एक रेतीले मैदान से होकर निकलने से डरती थी l आख़िरकार, मध्यरात्रि में, मैंने ऑफिस के अन्दर जाकर फ़ोन किया l

और जिस व्यक्ति ने फोन का उत्तर दिया वह थे मेरे पिता, जिन्होंने बिना दोबारा सोचे अपने गरम बिस्तर से उठकर पांच मिनट के अंतराल में मुझे घर ले जाने आ गए l

उस रात मेरे पिता का आकर मेरी मदद करने की निश्चयता मुझे भजन 91 में वर्णित आश्वासन की याद दिलाता है l हमारे भ्रमित, भयभीत अथवा ज़रूरत में होने पर हमारे स्वर्गिक पिता हमेशा हमारे साथ रहते हैं l वे कहते हैं : “जब वह मुझ को पुकारेंगे, तब मैं उनकी सुनूँगा” (भजन 91:15) l वह केवल एक स्थान  नहीं है जहाँ हम सुरक्षा के लिए जाते हैं l वह हमारा आश्रय है (पद.1) l वह हमारा गढ़ है जिस पर हम भरोसा कर सकते हैं (पद.2) l

भय, खतरा, अथवा अनिश्चितता में, हम परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर भरोसा कर सकते हैं कि जब हम उसे पुकारेंगे, वह हमारी सुनकर हमारी परेशानियों में हमारे साथ रहेगा (पद.14-15) l परमेश्वर हमारा सुरक्षित स्थान है l