यीशू मसीह के चेले बनने के बाद से, नबील कुरैशी ने अपने पाठकों को उस विश्वास के लोगों के बारे में समझाने के लिए पुस्तकें लिखी जिसे वो छोड़ आए थे। अपने सम्मान जनक शब्दों के साथ कुरैशी सर्वदा अपने लोगों के लिए अपने प्रेम का प्रदर्शन करते हैं।

उन्होंने अपनी पुस्तकों में से एक अपनी उस बहन को समर्पित की, जिसने उस समय तक यीशु को ग्रहण नहीं किया था। समर्पण संक्षिप्त परन्तु प्रभावशाली है। उन्होंने लिखा, “मैं परमेश्वर से उस दिन के लिए प्रार्थना कर रहा हूं जब हम मिलकर उनकी आराधना करेंगे।”

प्रेम ऐसा का भाव हमें रोम की कलीसिया को लिखे पौलुस के पत्र को पढ़ने से मिलता है। उसने कहा, “मुझे बड़ा शोक है…(रोमियो 9:2-3 )।

पौलुस यहूदियों से इतना प्रेम करता था यदि वे यीशु को स्वीकार कर लेते तो बदले में स्वयं   वह परमेश्वर से वंचित रहने को भी तैयार हो जाता । वह जानता था कि यीशु का त्याग करके, उसके लोग एक सच्चे परमेश्वर का इन्कार कर रहे थे। इसी बात ने उसे प्रेरित किया कि अपने पाठकों से यीशु का सुसमाचार हर किसी के साथ बाँटने की अपील करे (10:14-15)।

आज, हम प्रार्थनापूर्वक स्वयं को ऐसे प्रेम के प्रति समर्पित करें जिसमें उन लोगों के लिए दर्द हो जो हमारे निकट हैं!