दो लोगों को नशीली वस्तुओं की तस्करी में दोषी पाए जाने पर एक दशक से मृत्यु पंक्ति में रखा गया था l जेल में रहते हुए उन्होंने यीशु में परमेश्वर के प्रेम को पहचान लिया, और उनका जीवन रूपांतरित हो गया l जब फायरिंग दल का सामना करने का वक्त आया, उन्होंने प्रभु की प्रार्थना बोलते हुए और “फज़ल अजीब क्या खुशलिहान” गीत गाते हुए   जल्लादों का सामना किया l उन्होंने परमेश्वर में विश्वास करने के कारण, पवित्र आत्मा की सामर्थ्य के द्वारा असाधारण साहस के साथ मृत्यु का सामना किया l

उन्होंने अपने उद्धारकर्ता द्वारा प्रदत्त विश्वास के नमूना का अनुसरण किया l जब यीशु को अपनी निकट मृत्यु का पता चला, उसने संध्या का कुछ समय अपने मित्रों के साथ गीत गाकर बिताया l यह अद्भुत है कि वह ऐसी स्थिति में गीत गा सकता था, किन्तु उसके द्वारा गाया गया गीत और भी अद्भुत है l उस रात, यीशु और उसके मित्रों ने फसह का भोज खाया, जिसका अंत भजन 113-118 तक की भजनों की श्रृखला से होता है और जिसे हल्लेल, कहा जाता है l उस रात मृत्यु का सामना करते हुए, यीशु ने “मृत्यु की रस्सियाँ” जो उसके चारों और थीं के विषय गाया (भजन 116:3) l फिर भी उसने परमेश्वर के विश्वासयोग्य प्रेम की प्रशंसा की(117:2) और उद्धार के लिए उसको धन्यवाद दिया (118:14) l निश्चित तौर पर उसके क्रुसीकरण से पहले इन भजनों ने उसको दिलासा दिया होगा l

परमेश्वर में उसका भरोसा इतना महान था कि अपनी मृत्यु का सामना करते हुए भी अर्थात् निर्दोष की मृत्यु!-उसने परमेश्वर का प्रेम गाने का चुनाव किया l यीशु के कारण, हम भी भरोसा कर सकते हैं कि जिसका भी हम सामना करते हैं, परमेश्वर हमारे साथ है l