हे मेरे पिता, यदि हो सके तो यह कटोरा मुझ से टल जाए, तौभी जैसा मैं चाहता हूँ वैसा  नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो l मत्ती 26:39
मैंने दन्त चिकित्सक के क्लिनिक में पिता के हृदय के विषय किसी गंभीर पाठ की अपेक्षा नहीं की थी-किन्तु मुझे एक मिल गयी l मैं अपने दस वर्षीय बेटे के साथ वहां था l उसके मूंह में दूध के एक दांत की जगह जो अभी टूटा नहीं थे स्थायी दांत निकल रहा था l दूध के दांत को हटना ही था l और कोई तरीका नहीं था l
मेरा बेटा रोते हुए मुझसे आग्रह करने लगा : “पापा, कोई और तरीका नहीं है क्या? क्या हम ठहर नहीं सकते? पापा, कृपया, मैं इस दांत को निकलवाना नहीं चाहता हूँ!” मुझे दुःख हुआ, किन्तु मैंने उससे कहा, “बेटा, इसे निकालना ही होगा l मुझे दुःख है l और कोई रास्ता नहीं है l” मैंने उसके हाथ को पकड़ लिया जब वह छटपटा रहा था और परेशान हो रहा था, और  दांत के डॉक्टर ने उसकी सख्त दाढ़ को निकाल दिया l उस समय मेरे आँखों में भी आँसू थे l मैं उसके दर्द को ले नहीं सकता था; उसके लिए मेरी उपस्थिति ही सबसे अच्छी बात थी l
उस क्षण, मैंने याद किया गतसमनी के बगीचे में यीशु को, वह अपने पिता से कोई और मार्ग बताने के लिए प्रार्थना कर रहा था l अपने पुत्र को ऐसी पीड़ा में देखकर पिता का हृदय किस तरह टूटा होगा! किन्तु अपने लोगों की सेवा करने के लिए और कोई मार्ग नहीं था l
हमारे जीवनों में, हम भी कभी-कभी अपरिहार्य किन्तु पीड़ादायक क्षणों का सामना करते हैं-जैसे मेरे बेटे ने सहा l किन्तु उसकी आत्मा के द्वारा हमारे लिए यीशु के कार्य के कारण, हमारे सबसे अंधकारमय क्षणों में भी हमारा प्रेमी पिता हमेशा हमारे साथ उपस्थित रहता है (मत्ती 28:20) l