मेरे पिता एक अच्छे पिता थे, और, अधिकतर सभी बातों में, मैं आज्ञाकारी पुत्र था l किन्तु मैंने अपने पिता को एक बात से वंचित रखा जो मैं दे सकता था यानी अपने आप को l
वे एक शांत व्यक्ति थे; मैं भी बराबर से शांत था l परस्पर बिना बातचीत किये हुए हम अक्सर घंटों तक साथ- साथ काम करते थे l वे कभी नहीं पूछते थे; मैंने उनको अपनी गहरी इच्छाएँ और महत्वकांक्षाएँ, अपनी आशाएं और भय कभी नहीं बताए l
समय रहते हुए मैंने अपनी चुप्पी तोड़ी l शायद मेरे बड़े बेटे के जन्म के बाद मुझे अनुभूति हुयी, या जब, एक-एक करके, मेरे पुत्र इस संसार में खो गए l अब मेरी चाहत है काश मैं अपने पिता के लिए उनके बेटा समान होता l
मैं उन सारी बातों के विषय सोचता हूँ जो मैं उन्हें बता सकता था l और सब बातें जो वह  मुझे बता सकते थे l उन्हें दफनाने के समय मैं उनके शव पेटी के निकट खड़ा होकर, अपनी भावनाओं को समझने में संघर्ष कर रहा था l “अब बहुत देर हो चुकी है, हैं न?” मेरी पत्नी धीमे से बोली l “बिलकुल,” मैंने कहा l
मेरा सुख इस तथ्य में है कि हम स्वर्ग में बातों को ठीक कर लेंगे, क्योंकि क्या वह स्थान नहीं जहां हर एक आँसू पोछा जाएगा? (प्रकाशितवाक्य 21:4) l
यीशु में विश्वासियों के लिए, मृत्यु स्नेह का अंत नहीं है किन्तु अनंत अस्तित्व का आरम्भ जहां कोई भी ग़लतफ़हमी नहीं होगी; सम्बन्ध ठीक हो जाएंगे और प्रेम हमेशा बढ़ता जाएगा l वहाँ पर, पुत्रों का मन माता-पिता की ओर और माता-पिता का मन पुत्रों की ओर फिरेगा (मलाकी 4:6) l