कैलेंडर में दिसम्बर माह आने से पहले ही, हमारे उत्तरी शहर में क्रिसमस की खुशियों के बुलबुले फूटने लगते हैं l एक चिकित्सा ऑफिस अपने परिसर के पेड़ों और झाड़ियों को अलग-अलग रंगों की बत्तियों से सजा देता है, जिससे आसपास का परिदृश्य रोशन होकर लुभावना दिखाई देता है l एक और व्यवसाय अपनी इमारत को एक विशाल, असाधारण रूप से क्रिसमस के उपहारों से लिपटा हुआ दिखने के लिए सजाते हैं l क्रिसमस की भावना हर जगह दिखाई देती है – या कम से कम मौसमी व्यापार तो दिखाई देता ही है l

कुछ लोग इन भव्य प्रदर्शनों को पसंद करते हैं l दूसरों के दृष्टिकोण आलोचनात्मक होते हैं l किन्तु महत्वपूर्ण सवाल यह नहीं है कि दूसरे क्रिसमस को किस दृष्टि से देखते हैं l इसके बजाए, हममें से प्रत्येक को यह विचार करने की ज़रूरत है कि उस्तव हमारे लिए क्या अर्थ रखता है l

यीशु ने अपने जन्म से तीस वर्ष से थोड़ा अधिक समय बाद अपने शिष्यों से पूछा, “लोग मनुष्य के पुत्र को क्या कहते हैं?” (मत्ती 16:13) l उन्होंने दूसरों के प्रतिउत्तर दोहराए : यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला, एलिय्याह, और संभवतः कोई और नबी l उसके बाद यीशु ने उस प्रश्न को व्यक्तिगत बनाया : “परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो?” (पद.15) l पतरस ने उत्तर दिया, “तू जीवते परमेश्वर का पुत्र मसीह है” (पद.16) l

इस वर्ष, अनेक लोग इस विचार के बिना कि बालक कौन है, क्रिसमस मनाएंगे l जब हम उनसे बातचीत करते हैं, हम उनको इन महत्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार करने में सहायता कर सकते हैं : क्या क्रिसमस गौशाले में एक बच्चे के जन्म के विषय हृदय को आनंदित करनेवाली कहानी है? या सृष्टिकर्ता वास्तव में अपनी सृष्टि में आकर हमारे समान ही बन गया?