क्या तुम मजाक(कर) रहे हो? मुझे पहले ही देर हो गई थी। परन्तु मेरे सामने रोड पर लगे दोनों संकेत मुझे मेरी आशाओं को कम करने का निर्देश दे रहे थे: ये बता रहे थे “देरी हो सकती है। यातायात धीमा हो रहा था।

मुझे हँसी आ गई। मैं चीज़ों को मेरी समय-सारणी के अनुसार होने की आशा करता हूँ; परन्तु मैं सड़क-निर्माण की ओर ध्यान नहीं देता।

आत्मिक स्तर पर हम में से कुछ लोग उन समस्याओं के लिए योजना बनाते हैं, जो हमारे जीवन की रफ़्तार को धीमा कर देती हैं या हमारे जीवन की दिशा को बदल देती हैं। फिर भी, यदि मैं इसके बारे में सोचता हूँ, तो मैं उन अनेक समयों को याद कर सकता हूँ जब परिस्थितियों ने-छोटे या बड़े रूप में-मेरी दिशा को बदल दिया। देरियाँ होती हैं।

सुलेमान ने आगे एक संकेत नहीं देखा “देरी हो सकती है।” परन्तु नीतिवचन 16 में वह परमेश्वर की उपलब्ध होने वाले मार्गदर्शन के साथ हमारी योजनाओं की तुलना करता है। पद 1 का सन्देश कुछ इस प्रकार से है: “मनुष्य बड़ी-बड़ी योजनाएँ बनाता है, परन्तु अन्तिम निर्णय परमेश्वर का ही होता है।” सुलेमान इसी विचार को पद 9 में फिर से बताता है, जिसमें वह यह भी सम्मिलित करता है कि यद्यपि हम “अपने जाने वाले मार्ग की योजनाएँ बनाते हैं…परमेश्वर हमारे कदमों को निर्धारित करता है।” अन्य शब्दों में, हमारे पास तो मात्र विचार होते हैं कि क्या हो सकता है, परन्तु कई बार परमेश्वर का हमारे लिए दूसरा मार्ग होता है।

मैं आत्मिक सत्य के इस मार्ग से कैसे भटक जाता हूँ? मैं योजनाएँ बनाता हूँ, और कईबार उनसे पूछना भूल जाता हूँ कि उनकी योजनाएँ क्या हैं? मैं परेशान हो जाता हूँ जब बीच में बाधाएँ आती हैं।

परन्तु चिन्ता करने के स्थान पर हम, जैसा सुलेमान सिखाता है, इस बात पर भरोसा रख सकते हैं कि परमेश्वर कदम-दर-कदम हमारा मार्गदर्शन करता है, जब हम प्रार्थना के साथ उन्हें खोजते हैं, उनकी अगुवाई की प्रतीक्षा करते हैं और-हाँ-उन्हें लगातार हमारा मार्गदर्शन करने देते हैं।