अपनी पुस्तक, द कॉल, में ओस गिन्नेस उस क्षण का वर्णन करते हैं जब विंस्टन चर्चिल, दक्षिणी फ्रांस में अपने मित्रों के साथ छुट्टियों में, एक ठंडी रात खुद को गर्म करने के लिए आग के पास बैठ गए l आग को एक टक देखते हुए, पूर्व प्रधान मंत्री ने चीड़ के लट्ठो को “चटचटाहट, फुसफुसाहट, और खड़खड़ाहट की आवाज़ के साथ जलते हुए देखा l अचानक, उनकी परिचित आवाज़ में गर्जन थी, ‘मैं जानता हूँ लकड़ी के लट्ठे क्यों खड़खड़ाते हैं l भस्म होना क्या होता है मैं जानता हूँ l’”

कठिनाइयाँ, निराशा, ख़तरे, विपत्ति, और हमारी अपनी गलतियों के परिणाम सब हमें भस्म होने की तरह अहसास कराते हैं l परिस्थियां धीरे-धीरे हमारे हृदयों से आनंद और शांति छीन लेती हैं l जब दाऊद ने अपने ही पापी चुनावों के परिणाम को खुद पर पूरी तरह हावी होते देखा, उसने लिखा, “जब मैं चुप रहा तब दिन भर कराहते कराहते मेरी हड्डियां पिघल गईं . . . और मेरी तरावट धूपकाल की सी झुर्राहत बनती गयी” (भजन 32:3-4) l

ऐसे कठिन समय में, आप सहायता के लिए किस और मुड़ते हैं? पौलुस, जिसके अनुभव सेवकाई के बोझ और टूटेपन से भरे हुए थे, ने लिखा, “हम चारों ओर से क्लेश तो भोगते हैं, पर संकट में नहीं पड़ते; निरुपाय तो हैं, पर निराश नहीं होते; सताए तो जाते हैं, पर त्यागे नहीं जाते; गिराए तो जाते हैं, पर नष्ट नहीं होते” (2 कुरिन्थियों 4:8-9) l

यह किस तरह कार्य करता है? जब हम यीशु में विश्राम करते हैं, हमारा अच्छा चरवाहा मेरे जी में जी ले आता है (भजन 23:3) और हमारी यात्रा के अगले कदम के लिए हमें सामर्थ्य देता है l वह यात्रा के हर चरण में हमारा सहचर बनने की प्रतिज्ञा करता है (इब्रानियों 13:5) l