“खाल और हड्डी, खाल और हड्डी,” उस लड़के ने उपहास किया l “छड़ी,” एक अन्य ने उसके साथ स्वर मिलाया l जवाब में मैं भी बोल सकती थी “छड़ी और पत्थर से मेरी हड्डी टूट सकती है, किन्तु शब्दों से मुझे चोट कभी नहीं लगेगी l” परन्तु छोटी लड़की होते हुए भी, मैं जानती थी कि लोकप्रिय कविता सच नहीं थी l कठोर, विचारहीन शब्दों से चोट ज़रूर लगी – कभी-कभी बहुत अधिक, ये ऐसे घाव छोड़ गए जो बहुत गहरे थे और पत्थर या छड़ी की चोट से कहीं अधिक समय तक रहनेवाले घाव l

हन्ना विचारहीन शब्दों के डंक को ज़रूर जानती थी l उसका पति, एल्काना, उसे प्यार करता था परन्तु वह संतानहीन थी, जबकि उसकी दूसरी पत्नी, पनिन्ना, के पास अनेक बच्चे थे l  एक ऐसी संस्कृति में जहाँ स्त्री का महत्त्व संतान होने पर आधारित था, पनिन्ना संतानहीन हन्ना को अत्यंत चिढ़ाकर” उसकी पीड़ा को और कष्टप्रद बना देती थी l वह उसे कुढ़ाती रही जबतक कि हन्ना रो नहीं दी और भोजन न कर सकी (1 शमूएल 1:6-7) l

और एल्काना शायद अच्छा ही सोचता था, परन्तु उसका विचारहीन उत्तर, “हे हन्ना, तू क्यों रोटी है? . . . क्या तेरे लिए मैं दस बेटों से भी अच्छा नहीं हूँ” (पद.8) फिर भी कष्टदायक था l

हन्ना के समान, हममें से अनेक कष्टकर शब्दों का परिणाम सहते रहते हैं l और हममें से कुछ एक अपने ही शब्दों द्वारा घोर प्रहार करके और दूसरों को चोट पहुंचाकर कदाचित अपने ही घावों के प्रति प्रतिकार किये हैं l परन्तु हम सब सामर्थ्य और चंगाई के लिए अपने प्रेमी और दयालु परमेश्वर की पास जा सकते हैं (भजन 27:5, 12-14) l वह प्रेम और अनुग्रहकारी शब्द बोलकर प्यार सहित हमारे लिए आनंदित होता है l