बॉबी की अचानक मृत्यु ने मुझे मृत्यु की कठोर सच्चाई और जीवन की अल्पता याद दिलायी l मेरे बचपन की सहेली केवल चौबीस वर्ष की थी जब बर्फीले सड़क पर एक दुखद दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गयी l एक बिगड़े परिवार में उसका पालन-पोषण हुआ, अभी हाल ही में वह उन्नति करती हुयी दिखाई दे रही थी l यीशु में एक नयी विश्वासिनी, उसका जीवन इतना जल्दी कैसे समाप्त हो सकता था?

कभी-कभी जीवन बहुत ही छोटा और दुःख भरा दिखाई देता है l भजन 39 में भजनकार दाऊद अपने दुःख पर विलाप करते हुए पुकारता है : “हे यहोवा, ऐसा कर कि मेरा अंत मुझे मालूम हो जाए, और यह भी कि मेरी आयु के दिन कितने हैं; जिससे मैं जान लूँ कि मैं कैसा अनित्य हूँ! देख, तू ने मेरी आयु बालिश्त भर की रखी है, और मेरी अवस्था तेरी दृष्टि में कुछ है ही नहीं l सचमुच सब मनुष्य कैसे भी स्थिर क्यों न हों तौभी व्यर्थ ठहरे हैं” (पद.4-5) l जीवन छोटा है l यदि हम एक सौ वर्ष भी जीवित रहें, हमारा पृथ्वी पर का जीवन समस्त समय में मात्र एक बूंद है l

और फिर भी, दाऊद के साथ, हम कह सकते हैं, “मेरी आशा तो [प्रभु की] ओर लगी है” (पद. 7) l हम भरोसा कर सकते हैं कि हमारे जीवनों में सार्थकता है l यद्यपि हमारा शरीर क्षीण होता जाता है, विश्वासी होने के कारण हमें भरोसा है कि हमारा “भीतरी मनुष्यत्व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है” – और एक दिन हम उसके साथ अनंत जीवन का आनंद उठाएंगे (2 कुरिन्थियों 4:16-5:1) l हमें यह ज्ञात है क्योंकि परमेश्वर ने “हमें बयाने में आत्मा . . . दिया है”! (5:5) l