आयरिश कवि ऑस्कर वाइल्ड ने कहा, “जब मैं जवान था मैं सोचता था कि पैसा जीवन में सबसे महत्वपूर्ण वस्तु थी; अब जब कि मैं बूढ़ा हो गया हूँ मैं जानता हूँ कि वह है l” उसकी टिप्पणी मज़ाक बन गयी, वह छियालीस वर्ष की उम्र तक जीवित रहा, इसलिए वास्तव में वह “बूढ़ा” हुआ ही नहीं l वाइल्ड ने पूरी तरह समझ लिया कि जीवन पैसे के विषय नहीं है l

पैसा अस्थायी है; वह आता है और वह चला जाता है l इसलिए जीवन अवश्य ही पैसे से और जो पैसा खरीद सकता है से अधिक होगा l यीशु ने अपनी पीढ़ी के लोगों – धनी और निर्धन दोनों ही को –एक पुनः जांची हुए उपयोगिता पद्धति के प्रति चुनौती दी l लूका 12:15 में यीशु ने कहा, “चौकस रहो, और हर प्रकार के लोभ से अपने आप को बचाए रखो; क्योंकि किसी का जीवन उसकी संपत्ति की बहुतायत से नहीं होता l” हमारी संस्कृति में, जहाँ और अधिक और नया और बेहतर की ओर स्थायी ध्यान है, संतोष के लिए और पैसा और सम्पति के विषय हमारा दृष्टिकोण क्या है, दोनों ही के लिए कुछ कहा जाना चाहिए l

यीशु से मुलाकात करके, एक जवान धनी व्यक्ति उदास होकर चला गया क्योंकि उसके पास बहुत अधिक सम्पति थी जिसे वह छोड़ना नहीं चाहता था (देखें लूका 18:18-25), परन्तु कर अधिकारी जक्कई अधिकाधिक सम्पति/पैसा त्याग दिया जिसे उसने इकठ्ठा करने में अपना जीवन लगाया था (लूका 19:8) l मसीह के हृदय को गले से लगाना ही अंतर है l उसके अनुग्रह में, हम अपने अधिकार में की वस्तुओं के प्रति एक स्वस्थ दृष्टिकोण रख सकते हैं – ताकि वे हम पर नियंत्रण करनेवाली वस्तुएँ न बन जाएँ l