हाल ही में मेरा बेटा जेफ़ एक “बेघर मिथ्याभास(homeless simulation)” में भाग लिया l वह अपने शहर के सड़कों पर, खुले आसमान के नीचे जमाव बिंदु से कम तापमान में तीन दिन और दो रात गुज़ारे l वह भोजन, पैसा, या आश्रय के बिना अपनी बुनियादी ज़रूरतों के लिए अनजान लोगों की दया पर आश्रित रहा l उनमें से एक दिन उसका भोजन केवल एक सैंडविच था, जो एक व्यक्ति उसे लाकर दिया था जिसने उसे एक फ़ास्ट-फ़ूड रेस्टोरेंट में बासी भोजन मांगते हुए सुना था l  

जेफ़ ने बाद में मुझसे कहा कि यह सबसे कठिन काम था जो उसने कभी किया हो, फिर भी इस बात ने दूसरों के प्रति उसके दृष्टिकोण को गहराई से प्रभावित किया था l उसने अपने मिथ्याभास(simulation) के बाद एक दिन बेघर लोगों को खोजकर सरल तरीकों से उनकी सहायता की जिन्होनें उसके सड़क पर रहते समय उसपर दया दिखाई थी l उनको यह जानकार आश्चर्य हुआ कि वह बेघर नहीं था और उन्होंने उनकी नज़रों से जीवन को देखने के लिए उसको धन्यवाद दिये l

मेरे बेटे का अनुभव यीशु के शब्दों की याद दिलाता है : “मैं नंगा था, और तुमने मुझे कपड़े पहिनाए; मैं बीमार था, और तुमने मेरी सुधि ली, मैं बंदीगृह में था, और तुम मुझसे मिलने आए . . . तुमने जो मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे ही साथ किया” (मत्ती 25:36, 40) l चाहे हम प्रोत्साहन का एक शब्द बोलें या एक थैला किराने का सामान दें, परमेश्वर हमें प्रेम से दूसरों की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए बुलाता है l दूसरों के प्रति हमारी दयालुता उसके प्रति दयालुता है l