हम जीवन की घटनाओं पर प्रभाव का जो स्तर रखते हैं, 1975 में एलेन लैंगर के अध्ययन का शीर्षक द इल्यूजन ऑफ़ कन्ट्रोल(The Illusion of Control)  ने इसकी जांच की l उसने पाया कि अधिकतर स्थितियों में हम अपने नियंत्रण की स्थिति को वास्तविक से अधिक समझते हैं l इस अध्ययन ने यह भी दर्शाया कि किस प्रकार वास्तविकता लगभग हमेशा हमारे भ्रम को टुकड़े-टुकड़े कर देता है l

अध्ययन के प्रकाशित होने के बाद से एलेन लैंगर के निष्कर्ष दूसरों के प्रयोगों द्वारा समर्थित है l हालाँकि, उसके द्वारा उल्लेख करने से पूर्व याकूब ने बहुत पहले इस तथ्य को पहचान लिया था l याकूब 4 में, उसने लिखा, “तुम जो यह कहते हूँ, ‘आज या कल हम किसी और नगर में जाकर वहां एक वर्ष बिताएंगे, और व्यापार करके लाभ कमाएंगे l’ और यह नहीं जानते कि कल क्या होगा l सुन तो लो, तुम्हारा जीवन है ही क्या? तुम तो भाफ के समान हो, जो थोड़ी देर दिखाई देती है फिर लोप हो जाती है” (पद.13-14) l

उसके बाद याकूब पूर्ण नियंत्रण रखने वाले की ओर इशारा करते हुए इस भ्रम का इलाज बताता है : “इसके विपरीत तुम्हें यह कहना चाहिए, ‘यदि प्रभु चाहे तो हम जीवित रहेंगे, और यह या वह काम भी करेंगे” (पद.15) l इन कुछ एक पदों में, याकूब मानवीय स्थिति और उसका उपचार दोनों को ही मूल असफलता कहता है l

हम यह जान सकें कि हमारी नियति हमारे हाथों में नहीं हैं l क्योंकि परमेश्वर अपने नियंत्रण में सब कुछ रखा है, हम उसकी योजनाओं पर भरोसा कर सकते हैं!