जिम उन समस्याओं के विषय व्यग्रतापूर्वक साझा कर रहा था जो वह अपने कार्य समूह के साथ सामना कर रहा था : विभाजन, आलोचनात्मक व्यवहार, और ग़लतफ़हमियाँ l एक घंटे तक धीरज से उसकी चिंताओं को सुनने के बाद, मैंने सलाह दिया, “आओ हम यीशु से पूछें कि इस तरह की स्थिति में वह क्या किया होता l” हम पांच मिनट शांति से बैठे रहे l उसके बाद कुछ आश्चर्यजनक हुआ l हम दोनों ने परमेश्वर की शांति को एक कम्बल की नाईं हमें ढकते हुए महसूस किया l हमने और अधिक आराम महसूस किया जब हम उसकी उपस्थिति और मार्गदर्शन को अनुभव किया, और हमने खुद को वापस उन कठिनाईयों में उतरने हेतु निश्चित पाया l

यीशु के एक शिष्य, पतरस, को परमेश्वर की तस्सलीबख्श उपस्थिति की ज़रूरत थी l एक रात वह और अन्य शिष्य नाव से गलील की झील पार कर रहे थे जब एक प्रचंड आँधी उठी l अचानक, यीशु जल पर चलते हुए दिखायी दिया! स्वाभाविक रूप से, यह शिष्यों के लिए आश्चर्य था l उसने उनको आश्वास्त किया : “ढाढ़स बांधो! मैं हूँ, डरो मत!” (मत्ती 14:27) l पतरस ने जल्दबाजी में यीशु से पूछा कि क्या वह भी उसके साथ चल सकता है l वह नाव से उतरकर यीशु की ओर पानी पर चलने लगा l परन्तु खतरनाक और मानवीय असंभव परिस्थिति जिसमें वह था से अवगत होकर, शीघ्र ही फोकस खो दिया, और डूबने लगा l वह चिल्लाया, “हे प्रभु, मुझे बचा!” और यीशु ने प्रेमपूर्वक उसे बचा लिया (पद.30-31) l

पतरस की तरह, हम भी सीख सकते हैं कि परमेश्वर का पुत्र, यीशु, जीवन की आँधियों में भी हमारे साथ है!