मैं एक विद्यार्थी के विषय सुना जो एक प्रसिद्ध सेमिनरी(बाइबल कॉलेज) में धर्मोपदेश की शिक्षा ले रहा था l वह युवा विद्यार्थी ने, जो अपने विषय अधिक अभिमानी था, अपने धर्मोपदेश को वाक्पटुता और प्रगट उत्साह के साथ प्रस्तुत किया l वह आत्म-संतुष्ट होकर बैठ गया, और प्रोफेसर उत्तर देने से पूर्व थोड़ा रुक गए l “वह तो एक प्रभावशाली धर्मोपदेश था,” उन्होंने कहा l “यह अच्छे से व्यवस्थित था और मर्मस्पर्शी भी l”

प्रोफेसर ने हम सब की एक समस्या स्पष्ट की जिससे हम कभी-कभी संघर्ष करते हैं l हम इस प्रकार बात कर सकते हैं जैसे कि हम मुख्य कर्ता हैं (उस पर बल देते हुए जो हम करते हैं, जो हम बोलते हैं) जबकि वास्तव में परमेश्वर जीवन में मुख्य कर्ता है l हम अक्सर दावे के साथ कहते हैं कि परमेश्वर किसी न किसी तरह सामान्य रूप से “प्रभारी है,” परन्तु हम इस प्रकार अभिनय करते हैं जैसे कि समस्त परिणाम हमारे ऊपर निर्भर होते हैं l

वचन दृढ़ता से कहता है कि परमेश्वर ही हमारे जीवन का वास्तविक विषय है, वास्तविक प्रभाव है l हमारे विश्वास के अनिवार्य कार्य भी – प्रभु की सामर्थ्य में (भजन 118:10-11) – “यहोवा के नाम से” संपन्न होते हैं l परमेश्वर हमारे उद्धार को सम्पादित करता है l परमेश्वर हमें बचाता है l परमेश्वर हमारी ज़रूरतों को पूरा करता है l “यह तो यहोवा की ओर से हुआ है” (पद. 23) l

इसलिए तनाव दूर हो चूका है l हमें क्षुब्ध होने, तुलना करने, बाध्यकारी ऊर्जा से कार्य करने की, या अपनी अनेक चिंताओं को पालने की ज़रूरत नहीं है l परमेश्वर नियंत्रण रखता है l हमें केवल भरोसा करने की ज़रूरत है और आज्ञाकारिता से उसकी अगुवाई का अनुसरण करना है l