“पिताजी ! आप कहाँ हैं?”

मैं अपने घर के उपमार्ग पर अपनी गाड़ी ले जा रहा था जब घबरायी हुयी मेरी बेटी ने, मुझे मोबाइल फोन पर बुलाया l मुझे उसे खेलने का अभ्यास करवाने के लिए 6.00 बजे तक घर पर होना ज़रूरी था; और मैं समय पर पहुँच गया l हालाँकि, मेरी बेटी की आवाज़ ने उसके भरोसे की कमी को जता दिया l पिछली बात पर ध्यान देते हुए, मैंने प्रतुत्तर दिया : “मैं यहाँ हूँ l तुम मुझ पर भरोसा क्यों नहीं करती हो?”

परन्तु जैसे ही मैंने उन शब्दों को बोला, मैंने सोचा, कितनी बार मेरा स्वर्गिक पिता मुझसे यह पूछ सकता है? तनावपूर्ण क्षणों में, मैं भी अधीर होता हूँ l मैं भी भरोसा करने में संघर्ष करता हूँ, कि परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरी करेगा l इसलिए मैं पुकारता हूँ : “पिता, आप कहाँ हैं?”

तनाव और अनिश्चितता के मध्य, मैं कभी-कभी परमेश्वर की उपस्थिति, या यहाँ तक कि मेरे लिए उसकी अच्छाई और उद्देश्यों पर संदेह करता हूँ l इस्राएलियों ने भी किया l व्यवस्थाविवरण 31 में, वे प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करने की तयारी कर रहे थे, जानते हुए कि उनका अगुआ मूसा पीछे रह जाएगा l मूसा ने परमेश्वर के लोगों से यह बोलकर उनको  पुनः आश्वस्त करने की कोशिश की, “तेरे आगे आगे चलने वाला यहोवा है; वह तेरे संग राहेगा, और न तो तुझे धोखा देगा और न छोड़ देगा; इसलिए मत डर और तेरा मन कच्चा न हो” (पद.8) l

यह प्रतिज्ञा – कि परमेश्वर सदा हमारे साथ है – आज भी हमारे विश्वास की आधारशिला है (देखें मत्ती 1:23; इब्रानियों 13:5) l वास्तव में, प्रकाशितवाक्य 21:3 इन शब्दों के साथ समाप्त होता है : “देख, परमेश्वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है, वह उनके साथ डेरा करेगा l”

परमेश्वर कहाँ है? वह यहां पर है, अभी, ठीक हमारे साथ – हमेशा हमारी प्रार्थना सुनने के लिये तैयार l