हाल के वर्षों में, एक फोटोग्राफर ने एक किसान की दिल दहला देने वाली तस्वीर ली जिसमें वह उदास और अकेले अपने बर्बाद, सूखे खेत में बैठा था l सूखा और फसल खराब होने के मद्देनज़र किसानों और उनके परिवारों की हताश दुर्दशा से लोगों को अवगत कराने के लिए इस तस्वीर को कई प्रथम पन्नों पर छापा गया था l 

विलापगीत की पुस्तक निराशा की एक और तस्वीर प्रस्तुत करती है – यरूशलेम के विनाश के परिणामस्वरूप यहूदा की l इससे पूर्व कि नबूकदनेस्सर की सेना शहर में घुसकर उसको बर्बाद करती, लोग भुखमरी के कारण पीड़ित थे एक घेराबंदी के लिए धन्यवाद (2 राजा 24:10-11) l यद्यपि उनका कष्ट वर्षों तक परमेश्वर की अवज्ञा का परिणाम था, लेकिन विलापगीत के लेखक ने अपने लोगों की ओर से परमेश्वर को पुकारा (विलापगीत 2:11-12) l 

जबकि भजन 107 का लेखक भी इस्राएल के इतिहास में एक निराशाजनक समय का वर्णन करता है (जंगल में इस्राएल के भटकने के दौरान, पद.4-5), केंद्र-बिंदु कठिन समय में उठाए गए कदम की ओर खिसक जाता है : “तब उन्होंने संकट में यहोवा की दोहाई दी” (पद.6) l और क्या ही अद्भुत परिणाम : “और उसने उनको सकेती से छुड़ाया l”

निराशा में हैं? चुप न रहें l परमेश्वर को पुकारें l वह सुनता है और आपकी आशा को बहाल करने के लिए इंतज़ार करता है l हालांकि वह हमेशा हमें कठिन परिस्थितियों से बाहर नहीं निकालता, लेकिन वह हमेशा हमारे साथ रहने की प्रतिज्ञा करता है l