डैडी, भोजन के लिए धन्यवाद,” मैंने अपना ग्लास रेस्टोरेंट की मेज पर रखते हुए कहा l थोड़ी अवधि के लिए अलग होने के बाद, मैं कॉलेज से छुट्टी पर घर आयी थी और मुझे अजीब महसूस हुआ जब मेरे माता-पिता ने मेरे लिए भुगतान किया l मेरे पिता ने कहा, “जूली तुम्हारा स्वागत है परन्तु तुम्हें मुझको हर चीज़ के लिए हर समय धन्यवाद देने की ज़रूरत नहीं है l मैं जानता हूँ तुम अपने आप से दूर हुयी हो, परन्तु तुम अभी भी मेरी बेटी और परिवार का हिस्सा हो l” मैं मुस्कुरायी l “डैडी, धन्यवाद l”

मेरे परिवार में, मैंने अपने माता-पिता के प्यार को अर्जित करने के लिए कुछ भी नहीं किया है या उसके लिए जो वे मेरे लिए करते हैं l लेकिन मेरे पिताजी की टिप्पणी मुझे याद दिलाती है कि मैंने परमेश्वर के परिवार का हिस्सा बनने के लिए कुछ भी नहीं किया है l  

इफिसियों की पुस्तक में, पौलुस ने अपने पाठकों को बताया कि परमेश्वर ने उन्हें चुन लिया कि वे “उसके निकट प्रेम में पवित्र और निर्दोष हों” (1:4), या “उसे . . . अपने पास खड़ी करे, जिसमें न कलंक, न झुर्री [हो]” (5:25_27) l लेकिन यह केवल यीशु के द्वारा ही संभव है, जिसमें “उसके लहू के द्वारा छुटकारा, अर्थात् अपराधों की क्षमा, उसके उस अनुग्रह के धन के अनुसार मिला है” (1:7) l हमें परमेश्वर का अनुग्रह, क्षमा या उसके परिवार में प्रवेश’ को कमाने की ज़रूरत नहीं है l हम केवल उसका मुफ्त उपहार स्वीकार करते हैं l 

जब हम अपने जीवनों को यीशु को सौंप देते हैं, हम परमेश्वर की संतान बन जाते हैं, जिसका अर्थ है कि हम अनंत जीवन प्राप्त करते हैं और हम स्वर्ग में अपने लिए एक मीरास  का इंतज़ार कर रहे हैं l ऐसे अद्भुत उपहार देने के लिए परमेश्वर की प्रशंसा हो!