जब मेरे पास्टर ने हमारी कक्षा से यीशु के जीवन के बारे में एक कठिन सवाल पुछा, तो मेरे हाथ खड़े हो गए। मैंने उस कहानी को हाल ही में पढ़ी थी, इसलिए मैं इसे जानता था, और मेरी इच्छा थी कि कमरे में और भी जो लोग हैं उनको भी यह मालूम हो जाए कि मैं भी जानता था। आखिरकार, मैं एक बाइबल शिक्षक हूँ। उन सब के सामने असफल होना कितना लज्जाजनक होता! अब मैं शर्मिन्दिगी के भय से लज्जा महसूस की इसलिए मैंने अपना हाथ नीचे कर लिया। क्या मैं इतना असुरक्षित हूँ?
यूहन्ना बप्तिस्मा देनेवाला हमें और बेहतर मार्ग दिखाता है। जब उसके शिष्य शिकायत करने लगे कि लोग उसे छोड़कर यीशु का अनुसरण करने लगे हैं, यूहन्ना ने कहा कि वह यह सुनकर आनंदित है। वह केवल संदेशवाहक था। “मैं मसीह नहीं, परन्तु उसके आगे भेजा गया हूँ . . . कि वह बढ़े और मैं घटू” (3:28-30)। युहन्ना ने समझ लिया था कि उसके अस्तित्व का आशय यीशु था। वह ही है “जो ऊपर से आता है” और “सर्वोत्तम है” (पद.31)। – वह दिव्य पुत्र जिसने हम सब के लिए अपने आप को दे दिया और सम्पूर्ण महिमा और प्रसिद्धि उसे प्राप्त हो।
खुद की ओर किसी भी प्रकार का ध्यानाकर्षण हमें हमारे प्रभु से ध्यान भटकाता है और चूँकि वह हमारा एकमात्र उद्धारकर्ता है और संसार के लिए एकमात्र आशा है, जो भी श्रेय हम उससे चुराते हैं वह हमें नुक्सान पहुंचाता है।