जब मदर टेरेसा को शान्ति नोबेल पुरस्कार मिला तो यह आश्चर्य की बात नहीं थी l जैसे अपेक्षित था, उन्होंने “भूखों के नाम पर, वंचित, बेघर, दृष्टिहीन, कुष्ठ रोगियों, और जो अनचाहा महसूस करते हैं, जिनसे कोई प्यार नहीं करता, समस्त समाज में जिनकी कोई देखभाल नहीं करता” के नाम पर यह पुरस्कार प्राप्त किया l अपने जवानी के अधिकाँश समय में उन्होंने ऐसे ही लोगों की सेवा की l

परिस्थितियों की परवाह किये बिना, यीशु ने हाशिए पर जीनेवालों की देखभाल करने और उससे प्यार करने का नमूना दर्शाया l आराधनालय के अगुओं के विपरीत, जो बीमारों से अधिक सब्त के दिन के नियम का आदर करते थे (लूका 13:14), जब यीशु ने मंदिर में एक बीमार महिला को देखा, तो वह दया से द्रवित हो गया l उसने शारीरिक कमजोरी से परे परमेश्वर की सुन्दर रचना देखी जो बंधन में थी l उसने उसे अपने पास बुलाया और कहा कि वह ठीक हो गयी है l तब उसने “उस पर हाथ रखे, और वह तुरंत सीधी हो गयी और परमेश्वर की बड़ाई करने लगी” (पद.13) l उसे छूकर, उसने आराधनालय के अगुओं को परेशान किया क्योंकि वह सब्त था l सब्त के प्रभु, यीशु ने, (लूका 6:5) दया करके उस महिला को ठीक करने के लिए चुना – एक ऐसी महिला जिसने लगभग दो दशकों तक कष्ट और अपमान का सामना किया l

मुझे आश्चर्य है कि हम कितनी बार किसी को अपनी अनुकम्पा के योग्य नहीं देखते हैं l या शायद हमने अस्वीकृति का अनुभव किया है क्योंकि शायद हमने किसी और के मानक को पूरा नहीं किया हो l हम उस धार्मिक कुलीन वर्ग की तरह नहीं हो सकते जो साथी मनुष्यों की तुलना में नियमों की अधिक परवाह करते थे l इसके बजाय, यीशु के उदाहरण का अनुसरण करें और दूसरों के साथ दया प्रेम और सम्मान के साथ व्यवहार करें l