गर्मी का शुरूआती मौसम तरोताजगी वाला था, और यात्रा में मेरी पत्नी से बेहतर सहयोगी और कोई नहीं हो सकता था l लेकिन उन क्षणों की मनोहरता जल्द ही त्रासदी में बदल सकती थी यदि वह लाल और सफ़ेद चेतवानी संकेत नहीं होता जिसने मुझे सूचित किया कि मैं गलत दिशा में आगे बढ़ रहा था l क्योंकि मैंने अपनी गाड़ी पूरी रीति से मोड़ी नही थी, मैंने तुरंत “प्रवेश निषेध” का संकेत देखा जो मानों मुझे घूर रहा था l मैंने जल्दी से सुनियोजित कर लिया, परन्तु हानि के विषय सोच कर डरता हूँ जो मेरे कारण मेरी पत्नी की, मुझे, और दूसरों को होती यदि मैं उस संकेत को नज़रंदाज़ कर देता जिसने मुझे याद दिलाया कि मैं गलत मार्ग पर जा रहा था l

याकूब के समापन शब्द सुधार के महत्व पर जोर देते हैं l हममें से किसको हमारी चिंता करने वाले उन लोगों के द्वारा हमें उन पथों या कार्यों से, उन निर्णयों या इच्छाओं से “फेर लाने” की ज़रूरत नहीं पड़ी होगी जो हमें हानि पहुंचा सकती थीं? कौन जानता है कि खुद को या मित्रों को क्या नुक्सान हो सकता था, यदि किसी ने सही समय पर हिम्मत नहीं की होती l

याकूब इन शब्दों के साथ हितकर सुधार के मूल्य पर जोर देता हैं “जो कोई किसी भटके हुए पापी को फेर लाएगा, वह एक प्राण को मृत्यु से बचाएगा” (5:20) l सुधार ईश्वर की दया की अभिव्यक्ति है l दूसरों के कल्याण के लिए हमारा प्यार और चिंता हमें उन तरीकों से बात करने और कार्य करने के लिए मजबूर करे जो वह “उस (व्यक्ति) को फेर [लाने]” (पद.19) में उपयोग कर सकता है l