हमारे लम्बे समय तक चर्च के साथ संगति तोड़ने के बाद, हमदोनों पति-पत्नी तीन लम्बे सालों के बाद फिर से संगति में जुड़े । परन्तु लोग हमारे साथ कैसा व्यवहार करेंगे? क्या वे फिर से हमारा स्वागत करेंगे? हमसे प्यार करेंगे? या छोड़ने के लिए हमें क्षमा करेंगे? हमें इसका उत्तर उल्लासी रविवार के सुबह मिला । जैसे ही हम चर्च के बड़े दरवाजे से अंदर गये, हम अपना नाम सुनते रहे l “पैट! डैन! आपको देखकर बहुत अच्छा लग रहा है ।” जैसे कि एक प्रसिद्ध लेखक ने बच्चों की अपनी एक किताब में लिखा था, “पाठक, इस दुखी संसार में इससे मीठा और कुछ भी नहीं कि जिस से आप प्रेम करते है वह आपका नाम पुकारे ।”

वही आश्वासन इस्राइल के लोगों के लिए सच था । हमने एक समय के लिए एक अलग चर्च चुना था, परन्तु उन्होंने परमेश्वर को अपनी पीठ दिखाई थी l फिर भी उसने उनका स्वागत किया । उसने उन्हें आश्वस्त करने के लिए यशायाह भविष्यद्वक्ता को भेजा, “मत डर, क्योंकि मैंने तुझे छुड़ा लिया है; मैंने तुझे नाम लेकर बुलाया है, तू मेरा ही है” (यशायाह 43:1) ।

इस संसार में──जहाँ हम अनदेखा, नाचीज, और अज्ञात भी महसूस कर सकते हैं──आश्वासित रहें कि परमेश्वर हम में से प्रत्येक को नाम से जनता है । “मेरी दृष्टि में तू अनमोल और प्रतिष्ठित ठहरा है” वह वादा करता है (पद.4) l “जब तू जल में होकर जाए, मैं तेरे संग संग रहूँगा और जब तू नदियों में होकर चले, तब वे तुझे न डुबा सकेंगी” (पद.2) । यह वादा सिर्फ इस्राएल के लिए नहीं है । यीशु, अपना जीवन अर्पण कर हमें छुडाया है l  वह हमारे नाम जानता है । क्यों? प्रेम में हम उसके हैं ।