एस्तर की परवरिश फिलिपीन्स में एक जनजाति में हुई  जो मसीह में विश्वास के विरुद्ध था । उसने जीवन-घातक बीमारी से अपनी लड़ाई के दौरान एक चाची की प्रार्थना के बाद यीशु के द्वारा उद्धार को स्वीकार किया । आज हिंसा और यहाँ तक कि मृत्यु के जोखिम के बावजूद एस्तेर अपने स्थानीय समुदाए में बाइबल अध्ययन में अगुवाई करती है । वह यह कहते हुए आनंदित सेवा करती है, “मैं यीशु के विषय लोगों को बताना छोड़ नहीं सकती हूँ क्योंकि मैंने अपने जीवन में परमेश्वर की सामर्थ्य, प्रेम, भलाई, और विश्वासयोग्यता का अनुभव किया है ।”

विरोध की सूरत में ईश्वर की सेवा करना आज भी कई लोगों के लिए एक वास्तविकता है, जैसा कि बेबीलोन की कैद में रहनेवाले तीन युवा इस्राएली, शद्रक, मेशक, अबेदनगो के लिए था । दानिय्येल की पुस्तक में, हम सीखते हैं कि उन्होंने आसन्न मृत्यु के सामने भी राजा नबूकदनेस्सर की एक बड़ी सोने के मूरत के सामने प्रार्थना करने से इनकार कर दिया । पुरुषों ने गवाही दी कि परमेश्वर उनको बचाने में सक्षम था, लेकिन “यदि नहीं” भी बचाता है तो भी उन्होंने उसकी सेवा करने का चुनाव किया था (दानिय्येल 3:18) । जब उन्हें आग में फेंक दिया गया, परमेश्वर वास्तव में उनकी पीड़ा में उनके साथ शामिल हुआ (पद.25) । सभी के विस्मय में, वे बच गए और उनके “सिर का एक बाल भी न झुलसा” (पद.27) । 

यदि हम विश्वास के कार्य के कारण दुःख या सताव का सामना करते हैं, प्राचीन और वर्तमान उदाहरण हमें याद दिलाते हैं कि जब हम उसकी आज्ञा मानने का चुनाव करते हैं, परमेश्वर का आत्मा हमें सामर्थ्य देने और हमें थामने के लिए उपस्थित है “भले ही” चीजें हमारी उम्मीद से अलग हों ।