कार्ल, कैंसर से जूझ रहे थे और उन्हें फेफड़े का डबल प्रत्यारेहण (lung transplant) की जरूरत थी। उसने प्रभु से नए फेफड़े मांगे लेकिन ऐसा करना अजीब लगा। उसने कबूल किया कि प्रार्थना करना एक अजीब बात है, क्योंकि “किसी को मरना होगा ताकि मैं जी सकूं।”

कार्ल की दुविधा पवित्रशास्त्र के एक बुनियादी सत्य पर प्रकाश डालती है : परमेश्वर जीवन को लाने के लिए मृत्यु का उपयोग करता है। हम इसे निर्गमन की कहानी में देखते हैं। गुलामी में जन्मे, इस्राएली मिस्रियों के सतावकारी हाथों के अधीन हो गए। फिरौन अपनी पकड़ को तब तक नहीं छोड़ता जब तक कि परमेश्वर ने इसे व्यक्तिगत नहीं बना देता। प्रत्येक ज्येष्ठ पुत्र मर जाता जब तक कि परिवार एक बेदाग मेमने को नहीं मारता और उसका लहू अपने दरवाजे की चौखट पर नहीं डालता (निर्गमन 12:6-7)।

आज हम और आप पाप के बंधन में पैदा हुए हैं। शैतान हम पर अपनी पकड़ तब तक नहीं छोड़ता जब तक कि परमेश्वर  इसे व्यक्तिगत नहीं बना देता, अपने सिद्ध पुत्र को क्रूस की लहू से लथपथ भुजाओं पर बलिदान करने तक l 

यीशु हमें वहाँ उसके साथ जुड़ने के लिए बुलाते हैं। पौलुस ने समझाया, “मैं मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया हूं, और अब मैं जीवित न रहा, पर मसीह मुझ में जीवित है” (गलातियों 2:20)। जब हम अपने विश्वास को परमेश्वर के बेदाग मेमने में रखते हैं, तो हम प्रतिदिन उसके साथ मरने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं—अपने पाप के लिए मरते हुए ताकि हम उसके साथ नए जीवन में जी सकें (रोमियों 6:4-5)। हर बार जब हम पाप की बेड़ियों को ना कहते हैं और मसीह की स्वतंत्रता के लिए हाँ कहते हैं तो हम इस विश्वास को व्यक्त करते हैं। जब हम यीशु के साथ मरते हैं तो हम उससे अधिक जीवित कभी नहीं होते।