मालिनी ने अपने पोते को 1943 के बंगाल अकाल के दौरान बड़े होने के बारे में बताया। उसके गरीब परिवार को खाने के लिए सिर्फ चावल दलिया था, और अधिकांश समय वे भूखे ही रहें। उसके पिता शायद ही कभी कुछ मछलियां घर लाते जो वह  रात के खाने के लिए पकड़ते थे, और उसकी माँ कहती “मुझे वह मछली का सिर देना। मुझे सिर्फ वही खाना है। वह सबसे अच्छा टुकड़ा है।” वर्षों बाद मालिनी ने एहसास किया की मछली के सिर में शायद ही कोई मांस था, उसकी माँ वास्तव में उसे नहीं खाती थी। वह सिर्फ दिखावा करती थी कि  वह स्वादिष्ट था ताकि हम बच्चों को खाने के लिए ज्यादा मिलता और हम उसके बारे में चिंता नहीं करते।

कल जब हम मातृत्व दिवस मनाये, तो हम भी हमारे माँ के  प्रेम और निष्ठा की कहानियों को याद करें। हम परमेश्वर को उनके लिए धन्यवाद दे और उनके जैसे और अधिक प्यार करने का प्रयास करें।

पौलुस ने “जिस तरह माता अपने बालकों का पालन–पोषण करती है” (1 थिस्सलुनीकियों 2:7)  उस तरह थिस्सलुनीकियों की कलीसिया की सेवा की। उसने उससे अत्याधिक प्रेम किया उन्हें यीशु के बारे में बताने और अपने जीवन को उनके साथ बाँटने के लिए कठोर विरोधियों से लड़ा (पद 2:8)। “हम ने इसलिये रात दिन काम धन्धा करते हुए तुम में परमेश्वर का सुसमाचार प्रचार किया कि तुम में से किसी पर भार न हों।” (पद 9)। बिल्कुल माँ की तरह।

कुछ ही माँ के प्यार का विरोध कर सकते हैं, पौलुस ने कहा कि उसके प्रयास “बिना परिणाम के नहीं थे” (पद् 1) । दूसरे प्रतिक्रिया कैसे करते हैं हम उसे नियंत्रित नहीं कर सकते, पर हम एच्छिक रूप से दिन प्रति दिन उनकी सेवा करना चुन सकते हैं । माँ को इस पर गर्व होगा, और हमारे स्वर्गीय पिता को भी होगा।