छुड़ाने वाला परमेश्वर
एक प्रवचन चित्रण के हिस्से के रूप में, मैं उस खूबसूरत पेंटिंग की ओर चल पड़ा जिसे एक कलाकार मंच पर बना रहा था।और मैंने उसके बीच में एक काली लकीर बना दी। पूरी कलीसिया डर से हैरान हो गई। कलाकार बस खड़ी रही और देखती रही कि मैंने उसके द्वारा बनाई गई चीज़ों को बिगाड़ दिया है। फिर, उसने एक नए ब्रश को चुना और प्यार से खराब हुई पेंटिंग को कला के उत्कृष्ट काम में बदल दिया।
उसका पुनर्स्थापना (पहले जैसे बना देने) का कार्य मुझे उस कार्य की याद दिलाता है जिसे परमेश्वर हमारे जीवन में कर सकता है जब हम गडबडी करते हैं। भविष्यद्वक्ता यशायाह ने इस्राएल के लोगों को उनके आत्मिक अंधेपन और बहरेपन के लिए फटकार लगाई (यशायाह 42:18–19); लेकिन फिर उसने परमेश्वर के छुटकारे और पाप से मुक्ति की आशा की घोषणा की, “मत डर, क्योंकि मैं ने तुझे छुड़ा लिया है” (43:1)| वह हमारे लिए भी ऐसा ही कर सकता है हमारे पाप करने के बाद भी यदि हम अपने पापों को अंगीकार करते हैं और परमेश्वर की ओर फिरते हैं, तो वह हमें क्षमा करता है और पुनर्स्थापित करता है (5–7; 1 यूहन्ना 1:9 देखें)। हम गंदगी से सुंदरता को बाहर नहीं ला सकते, लेकिन यीशु कर सकते हैं। सुसमाचार का शुभ समाचार यह है कि उसने अपने लहू के द्वारा हमें छुड़ाया है। प्रकाशितवाक्य की पुस्तक हमें आश्वासन देती है कि अंत में, मसीह हमारे आँसू पोंछ डालेगा, पहली बातें मिटा देगा, और सब कुछ नया बना देगा (प्रकाशितवाक्य 21:4–5)।
हमारे पास अपनी कहानी के बारे में एक सीमित दृष्टि है। परन्तु परमेश्वर जो हमें “नाम से” जानता है (यशायाह 43:1), हमारे जीवन को हमारी कल्पना से भी अधिक सुंदर बना देगा। यदि आपको यीशु में विश्वास के द्वारा छुड़ाया गया है, तो आपकी कहानी का उस चित्र की तरह एक शानदार अंत है।
सही यीशु
जैसे ही पुस्तक क्लब के नेता ने उस उपन्यास का सारांश दिया जिस पर समूह चर्चा करने वाला था, कमरे का शोर एक आरामदायक चुप्पी में बदल गया। मेरे दोस्त जोन ने ध्यान से सुना लेकिन साजिश को नहीं पहचाना। अंत में, उसने महसूस किया कि उसने एक गैर.फिक्शन (कथायें जो काल्पनिक न हो) किताब पढ़ी थी जिसका शीर्षक अन्य लोगों द्वारा पढ़े गए फिक्शन (काल्पनिक कथा) के काम के समान था। हालाँकि उसे “गलत” किताब पढ़ने में मज़ा आया, लेकिन वह अपने दोस्तों में शामिल नहीं हो सकी क्योंकि उन्होंने “सही” किताब पर चर्चा करी।
प्रेरित पौलुस नहीं चाहता था कि यीशु में कुरिन्थ के विश्वासी एक गलत यीशु पर विश्वास करें। उसने बताया कि झूठे शिक्षक कलीसिया में घुस आये थे और लोगों को एक अलग यीशु के बारे में बता रहे रहै थे और उन्होंने उस झूठ को सह लिया था (2 कुरिन्थियों 11:3–4)।
पौलुस ने इन नकली शिक्षकों के विधर्म की निंदा की। हालाँकि, कलीसिया को लिखे अपने पहले पत्र में, उन्होंने पवित्रशास्त्र के यीशु के बारे में सच्चाई की समीक्षा की थी। यही यीशु मसीहा था जो “हमारे पापों के लिए मरा —तीसरे दिन जी उठा था —और फिर बारहों को दिखाई दिया” और अंत में स्वयं पौलुस को (1 कुरिन्थियों 15:3–8)। यह यीशु मरियम नाम की एक कुँवारी के द्वारा पृथ्वी पर आया था और उसका नाम इम्मानुएल (परमेश्वर हमारे साथ) रखा गया था, ताकि उसकी दिव्य प्रकृति की पुष्टि की जा सके मत्ती (1:20–23)।
क्या यह उस यीशु की तरह लगता है जिसे आप जानते हैं? उसके बारे में बाइबल में लिखे गए सत्य को समझना और स्वीकार करना हमें विश्वास दिलाता है कि हम उस आत्मिक मार्ग पर हैं जो स्वर्ग की ओर ले जाता है।
जयवन्त से बढ़कर
जब मेरे पति ने हमारे बेटे की लिटिल लीग बेसबॉल टीम को कोचिंग दीए तो उन्होंने खिलाड़ियों को साल के अंत की पार्टी के साथ पुरस्कृत किया और उनमें हुये सुधार को स्वीकार किया। हमारे सबसे युवा खिलाड़ियों में से एक डस्टिन ने कार्यक्रम के दौरान मुझसे संपर्क किया “क्या आज हमने मैच नहीं हारे?” मैंने बोला “हाँ,लेकिन हमें अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए आप पर गर्व है।”
“मुझे पता है”, उसने कहा। “लेकिन हम हार गए। सही?”
मैने सिर हिलाकर सहमति दी।
“तो मैं एक विजेता की तरह क्यों महसूस करता हूँ?” डस्टिन ने पूछा।
मुस्कुराते हुए मैंने कहा, “क्योंकि तुम विजेता हो।”
डस्टिन ने सोचा था कि एक गेम हारने का मतलब है कि वह तब भी असफल रहा जब उसने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। यीशु में विश्वासियों के रूप में हमारी लड़ाई खेल के मैदान तक ही सीमित नहीं है। फिर भी, जीवन के कठिन समय को हमारे मूल्य के प्रतिबिंब के रूप में देखना अक्सर लुभावना होता है।
प्रेरित पौलुस ने हमारे वर्तमान दुखों और परमेश्वर की सन्तान के रूप में हमारी भविष्य की महिमा के बीच संबंध की पुष्टि की। हमारे लिए अपने आप को दे देने के बाद, यीशु पाप के साथ हमारी चल रही लड़ाई के दौरान हमारी ओर से काम करना जारी रखता है और हमें उसकी समानता में बदल देता है (रोमियों 8:31–32)। यद्यपि हम सभी कठिनाई और उत्पीड़न का अनुभव करेंगे, परमेश्वर का अटूट प्रेम हमें बनें रहने में मदद करता है(पद 33–.34)। उसकी सन्तान के रूप में, हमें अपने मूल्य को परिभाषित करने के लिए संघर्षों को अनुमति देने के लिए प्रलोभित हो सकते हैं, फिर भी हमारी अंतिम जीत निश्चित है। हम रास्ते में ठोकर खा सकते हैं, लेकिन हम हमेशा जयवन्त से बढ़कर रहेंगे (पद 35–39)।
आप कौन हैं, प्रभु?
सोलह साल की उम्र में, लुइस रोड्रिग्ज कोकीन बेचने के आरोप में पहले ही जेल में बंद था। लेकिन अब, हत्या के प्रयास के आरोप में गिरफ्तार वह फिर से जेल में था–आजीवन कारावास की सजा के बारे में सोच रहा था। परन्तु परमेश्वर ने उसकी दोषी परिस्थितियों में उससे बात की। सलाखों के पीछे, युवा लुइस ने अपने जीवन के शुरुआती वर्षों को याद किया जब उसकी मां उसे विश्वासपूर्वक चर्च ले गई थी। अब उसे लगा कि ईश्वर अपने दिल को छू रहा है। लुइस ने अंततः अपने पापों का पश्चाताप किया और यीशु के पास आए।
प्रेरितों के काम की पुस्तक में हम शाऊल नाम के एक जोशीले यहूदी व्यक्ति से मिलते हैं, जिसे पौलुस भी कहा जाता था। वह यीशु में विश्वासियों पर गंभीर हमले और घात करने का दोषी था (प्रेरितों के काम 91)। इस बात के प्रमाण हैं कि वह एक प्रकार का गिरोह का नेता था, और स्तिफनुस (7:58) की हत्या के समय भीड़ का एक हिस्सा था। परन्तु परमेश्वर ने शाऊल की दोषी परिस्थितियों में भी बात की। दमिश्क की ओर जाने वाले मार्ग पर शाऊल एक ज्योति के चमकने से अन्धा हो गया, और यीशु ने उस से कहा, “तू मुझे क्यों सताता है?” (9:4)। शाऊल ने पूछा, “हे प्रभु तू कौन है?” (पद 5) और वही उसके नए जीवन की शुरुआत थी। वह यीशु के पास आ गया।
लुइस रोड्रिगेज ने अपनी सज़ा का समय पूरा किया लेकिन अंततः उसे कारावास अवकाश दिया गया। तब से, उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका और मध्य अमेरिका में जेल सेवकाई के लिए अपना जीवन समर्पित करते हुए परमेश्वर की सेवा की है। परमेश्वर हम में से सबसे बुरे को छुड़ाने में माहिर हैं। वह हमारे दिलों को छूता है और हमारे अपराध–बोध से भरे जीवन में बोलता है। शायद अब समय है कि हम अपने पापों का पश्चाताप करें और यीशु के पास आएं।