क यादगार टेलीविज़न विज्ञापन में कहा गया, “जब ई. एफ. हटन बोलते हैं, लोग सुनते हैं।” हर्ब वेंडर लुग्ट के बारे में मैं ऐसा ही महसूस करता हूं।

अब अस्सी और नब्बे के बीच की अपनी आयु में, हर्ब हमारे लिए जानकारी और प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत रहें हैं । धर्मग्रंथ के एक विचारशील छात्र और कई चर्चों के प्रेमी पादरी के रूप में, हर्ब ने यह याद रखने की अदभुत क्षमता के साथ कि उसने कब और कहाँ कुछ महत्वपूर्ण पढ़ा है, बहुत अधिक और व्यापक रूप से पढ़ा है।

हर्ब एक ईमानदार व्यक्ति भी हैं। इसलिए जब वह, हमारे वरिष्ठ शोध संपादक (सीनियर रिसर्च एडीटर) के रूप में, अपने स्वयं के आत्मिक संदेह और दूसरों के संदेह के बारे में अगले पृष्ठों में लिखते हैं, तो मैं सुनने के लिए तैयार हूं।

    मार्टिन आर. डी हान II

 

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मे रे कुछ मसीही मित्र मुझसे कहते हैं कि उन्हें अपने विश्वास के बारे में कभी संदेह नहीं होता।

मैं ऐसा नहीं कह सकता। मेरा यह मानना मेरे जानने वाले कुछ लोगों को आश्चर्यचकित कर सकता है। मैं एक आशावादी व्यक्ति हूं और निराश या नकारात्मक होना मेरा स्वभाव नहीं है। फिर भी मैं अक्सर अपने विश्वास के बारे में संदेह से जूझता रहा हूं।

ये शंकाएँ बचपन से ही हैं। मुझे याद है कि मैं अभी भी बाइबल के पुराने नियम की कुछ कहानियों से परेशान हो जाता हूं। मैं उस परमेश्वर की भलाई पर कैसे विश्वास कर सकता हूं जिसने इस्राएलियों को सभी कनानियों, यहां तक कि छोटे बच्चों और शिशुओं को मारने का आदेश दिया था ? मुझे भजन संहिता के कुछ अंशों के बारे में बेचैनी महसूस हुई क्योंकि वे बहुत बदला लेने वाले प्रतीत होते थे। भजन 137:9 ने उन लोगों को भी आशीर्वाद दिया जिन्होंने शत्रु के शिशुओं का वध किया!

महामंदी के दौरान एक किशोर के रूप में, मैं समाजवादी लेखन की ओर आकर्षित हुआ, जिसने मुझे आश्चर्यचकित कर दिया कि परमेश्वर जीवन के घोर अन्याय के बारे में इतने बेपरवाह कैसे लग सकते हैं। मैं उन डायनासोरों की तस्वीरों से भी परेशान था जिनके बारे में कहा जाता है कि वे लाखों साल पहले रहते थे। इससे मेरे मन में सृष्टि के उत्पत्ति कर पुस्तक में दिये गये वर्णन के बारे में प्रश्न उठे।

समय ने मेरे संदेहों का अंत नहीं किया है। जब मैं किसी अस्पताल में बुरी तरह से विकृत (डिफौर्म) और असाध्य रूप से बीमार (टरमीनली) बच्चों, या बुजुर्गों को वर्षों से गहरे दर्द में या उनकी मानसिक क्षमताओं के बिना रहते हुए देखता हूं तब भी यह मेरे मन में परेशान करने वाले प्रश्न लाता है। और कभी–कभी मैं तब भी थोड़ा परेशान हो जाता हूं जब कोई नई पुरातत्व( पुरानी चीजों के बारे में) खोज पुराने नियम के इतिहास का खंडन करती प्रतीत होती है।

मुझे यह भी संदेह है, जो मेरी अपनी अपूर्णता के प्रति मेरी जागरूकता से निकले हैं। मैं 70 से अधिक वर्षों से यीशु में विश्वास करता हूँ फिर भी मैं अभी भी उस तरह का व्यक्ति बनने से बहुत दूर हूँ जैसा मैं जानता हूँ कि मुझे होना चाहिए और वास्तव में मैं बनना चाहता हूँ! मैं अब भी उन विचारों पर ध्यान क्यों देता हूं जिनसे मुझे नफरत है ? मैं अब भी इतना आत्मकेंद्रित (स्वार्थी) क्यों हूँ? मैं अपने अंदर ऐसी चीजें देखता हूं जो दूसरे नहीं देखते लेकिन मैं जानता हूं कि परमेश्वर देखता है। मैं जो देखता हूं वह मुझे पसंद नहीं है, और मुझे यकीन है कि परमेश्वर को भी पसंद नहीं है।

समय ने मेरे संदेहों का अंत नहीं किया है।

इन परेशान करने वाले सवालों के बावजूद, मैंने वर्षों से परमेश्वर के साथ शांति से रहना सीखा है। मैंने पाया है कि जब मैं उसके प्रति ईमानदार होता हूं तो वह मेरी शंकाओं से निपटने में मेरी मदद करता है। हालाँकि कई प्रश्ननों के उत्तर मुझे नहीं मिले हैं पर मैं जानता हूँ कि उसने मेरे पापों को क्षमा कर दिया है और वह मुझे अपने में से एक के रूप में देखता है।

मैं नहीं चाहता कि आप यह सोचें कि मेरे संदेह जितने हैं उससे भी कहीं अधिक बड़े हैं। मैं जो करता हूं उस पर विश्वास करने के मेरे पास कई कारण हैं, और मुझे भी एहसास है कि मेरा सीमित दिमाग अनंत परमेश्वर और हमेशा कायम रहने वाले अनंत काल के बारे में सच्चाई का केवल एक छोटा सा अंश ही समझ सकता है।

यह बिल्कुल सच है कि हमारा विश्वास केवल तर्क पर निर्भर नहीं है। बाइबल के अनुसार, परमेश्वर जो चाहता है कि हम उसे जानें, वह हमें उस पर भरोसा करने में मदद करने को तैयार है। यह वह आश्वासन है जिसका वादा यीशु ने उन लोगों से किया था जो अपने हृदय से उसकी बात मानते थे। उन लोगों से बात करते हुए जिनके पास पहले से ही उस पर विश्वास करने के कई कारण थे, उन्होंने कहा:

“जिस के पास मेरी आज्ञा है, और वह उन्हें मानता है, वही मुझ से प्रेम रखता है, और जो मुझ से प्रेम रखता है, उस से मेरा पिता प्रेम रखेगा, और मैं उस से प्रेम रखूंगा, और अपने आप को उस पर प्रगट करूंगा।” (यूहन्ना 14:21)।

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गले पन्नों में, मैं आपको अपने संदेहों के बारे में और मैंने उनसे निपटने के तरीके के बारे में बताने के अलावा और भी बहुत कुछ करना चाहता हूँ। मैं आपको उन लोगों की कहानियाँ भी बताना चाहता हूँ जिन्हें मैं जानता हूँ। मैंने पाया है कि चूँकि मैं अपने संघर्षों के प्रति ईमानदार रहा हूँ इसलिए मैं दूसरों की मदद करने में भी सक्षम रहा हूँ। प्रत्येक मामले में, गोपनीयता की रक्षा के लिए नाम और कुछ विवरण बदल दिए गए हैं। और कुछ उदाहरणों में, कई घटनाओं को एक संयुक्त चित्र में जोड़ दिया गया है।

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नीलेश एक उत्साही मसीही था, वे जहां भी जाता था वहां सब कुछ स्वत हो जाता था। लेकिन कई बार उसने अपने दोस्तों को निराश किया जब वह प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में विफल रहा और जो उसने नहीं किया उसके लिए वह दूसरों को दोषी ठहराता था। मैं इस व्यवहार से हैरान था जब तक कि एक दिन उसने मुझे बताया कि ये असफलताएँ भावनात्मक उलझनों के कारण उत्पन्न हुईं। उसके दोस्तों ने उसे इतनी आंतरिक उथल पुथल में डाल दिया कि उसे हर उस चीज़ पर संदेह होने लगा जिस पर उसने विश्वास करने का दावा किया था। इन समयों के दौरान वह किसी तरह अपना काम करने में कामयाब रहा और सार्वजनिक रूप से उनके चेहरे पर खुशी दिखी। लेकिन उसकी पत्नी जानती थी कि वह वास्तव में कैसा महसूस कर रहा था। उन्होंने कहा कि वह परमेश्वर में विश्वास करना चाहते थे और एक अच्छे मसीही बनना चाहते थे लेकिन उन्हें अपने अनुभव में बाइबल सच नहीं लगी। उन्होंने कहा कि यदि उनकी पत्नी और परिवार के प्रति उनका प्यार नहीं होता तो वह मसीही बनने की कोशिश करना छोड़ देते। उसने सोचा कि वह परमेश्वर या चर्च से कोई लेना देना रखे बिना अधिक खुश रहेगा।

नीलेश ने जो कुछ भी कहा उससे मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ। मुझे पता था कि वह सच कह रहा था जब उसने कहा कि वह परमेश्वर में विश्वास करना चाहता है और एक अच्छा मसीही बनना चाहता है। इसलिए मैं मसीह के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को छोडने के बारे में उसके भावना से भरे कुछ बयानों को नजरअंदाज कर सकता हूं। और क्योंकि वे अपनी भावनाओं से नियंत्रित हो रहे हैं, वे केवल विश्वास के कारणों के बारे में जानकारी पर प्रतिक्रिया नहीं देंगे। उन्हें यह आश्वासन देना कि उनके संदेह का समय बीत जाएगा, कुछ मायने रख सकता है, लेकिन यह उन्हें बार-बार संकट और पुनर्प्राप्ति के चक्र से नहीं रोकेगा।

जब लोग तनाव में होते हैं, तो वे अक्सर ऐसी बातें कहते हैं जिनका वास्तव में उनका मतलब नहीं होता।

यह समझना कि परमेश्‍वर ने अपने डरपोक और शक्की सेवक एलिय्याह (1 राजा 19) के साथ किस प्रकार व्यवहार किया, ऐसी स्थितियों में सहायक हो सकता है। परमेश्वर ने उन शारीरिक और मनोवैज्ञानिक कारणों को समझा, जिन्होंने एलिय्याह के तर्करहित (बेकार के) ईज़ेबेल के प्रति भय में योगदान दिया। कर्मेल पर्वत के अनुभव (1 राजा 18) के बाद, भविष्यवक्ता भावनात्मक रूप से थक गया था और शारीरिक रूप से थक गया था। इसके अलावा, उन्होंने निस्संदेह उम्मीद की थी कि पर्वत पर परमेश्वर की शक्ति का शानदार प्रदर्शन उनके लिए आदर्श बन जाएगा। भविष्यवक्ता को आराम, भोजन और निर्देश की आवश्यकता थी। इसलिए परमेश्वर ने यह सुनिश्चित किया कि वह सोए और खाए (19:5-9)। फिर उसने भविष्यवक्ता के इस विचार को सुधारा कि वह हमेशा अपने अलौकिक हस्तक्षेप की उम्मीद कर सकता है। परमेश्वर ने एलिय्याह को दिखाया कि वह आम तौर पर अपनी शक्ति के शानदार प्रदर्शन के बजाय “कोमल फुसफुसाहट” के माध्यम से काम करता है। इसके बाद, परमेश्वर ने अपने सेवक को दो राजाओं और उत्तराधिकारियों का अभिषेक करने का आदेश दिया, जिनके माध्यम से वह अपने उद्देश्यों को पूरा करेगा।

नीलेश जैसे व्यक्तित्व वाले मसीहियों को एलिय्याह के साथ परमेश्वर के व्यवहार से सीखने की जरूरत है। सबसे पहले, उन्हें अपनी भावनात्मक और शारीरिक सीमाओं के बारे में जागरूक होना चाहिए। उन्हें इस बारे में वास्तविक (सच्चा) होना चाहिए कि वे कितना सहन कर सकते हैं। दूसरा, उन्हें अपनी अपेक्षाओं में बदलाव करना होगा। वे हमेशा यह नहीं देखेंगे कि परमेश्वर आगे आएगा और उन्हें शानदार परिणाम देगा। तीसरा, उन्हें परमेश्वर के संसाधनों की बहुतायता को पहचानना चाहिए। वह हममें से किसी को भी अपनी सीमा से परे धकेले बिना अपना काम कर सकता है ।

इन बातों का नीलेश पर बहुत प्रभाव पड़ा । वह इस बारे में अधिक सावधान था कि उसने कौन सी नौकरियाँ स्वीकार कीं, अपनी अपेक्षाओं को सुधारा, और जिन चीज़ों से वह जुड़ा था उनमें से कुछ को करने के लिए दूसरों पर भरोसा किया। वह अभी भी कभी-कभी उदास हो जाता है, और उसके पुराने संदेह कभी-कभी फिर से प्रकट हो जाते हैं – लेकिन उस हद तक कभी नहीं, जितना पहले थे। वह खुद को आश्वस्त करता है कि बुरा समय खत्म हो जाएगा और वह अपनी पत्नी को दुखी किए बिना या किसी काम को छोड़े बिना और गुस्से में दूसरों को दोष दिए बिना अपने संदेह और डर को दूर कर सकता है।

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रोहित नाम के एक व्यक्ति ने, मुझसे मिलने के लिए 100 मील से अधिक की यात्रा की क्योंकि उसे अपने उद्धार पर संदेह था और उसने अपने पादरी को बताने की हिम्मत नहीं की। उसने बार-बार अपने पादरी को यह कहते सुना था कि सभी विश्वासी अपनी इच्छा को पवित्र आत्मा को समर्पित करके अटल और सफल मसीही जीवन जी सकते हैं । चर्च में साथी विश्वासियों ने इस शिक्षा की पुष्टि की। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि उन्हें परमेश्वर के प्रति समर्पण के जीवन में आत्मिक संतुष्टि मिली है। उन्होंने कहा कि उन्हें पता चल गया है कि “जाने देना और परमेश्वर को आने देना” ही इसका उत्तर था। ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें आत्मिकता का एक ऐसा स्तर मिल गया है जिसने उन्हें पिछले संघर्षों से ऊपर उठा दिया है।

रोहित उनके दावों की पहचान नहीं कर सका। हालाँकि वह किसी भी निंदनीय व्यवहार में नहीं फँसा था, फिर भी वह गलत विचारों और इच्छाओं से जूझता रहा। “जाने दो और परमेश्वर को आने दो” के उनके प्रयासों ने कुछ स्थितियों में झूठ बोलने, अवैध यौन संबंध के बारे में कल्पना करने, अपने से अधिक सफल और प्रतिभाशाली लोगों से ईर्ष्या करने और और यहां तक कि उन लोगों के प्रति घृणा महसूस करना जिन्होंने उसके साथ अन्याय किया था, इच्छा को खत्म नहीं किया था।

इसके अलावा, उसे निराशा की भावना भी महसूस हुई क्योंकि वह उस तरह का व्यक्ति नहीं बन पा रहा था जैसा वह बनना चाहता था। उसने अपने पादरी और साथी चर्च के सदस्यों को जो कहते सुना था, उससे उसने निष्कर्ष निकाला था कि उसे ये संघर्ष नहीं करना पड़ेगा यदि वह केवल पवित्र आत्मा के सामने झुक जाए, सभी आत्म-प्रयासों को अलग रख दे, और मसीह को उसके द्वारा अपना जीवन जीने की अनुमति दे। उसने खुद को ईश्वर के प्रति समर्पित करने के लिए सभी सही शब्द कहे थे और आत्मा से भरपूर आस्तिक बनने के लिए वह सब कुछ किया जो वह करना जानता था। फिर भी उसके पादरी और मित्र जिस संघर्ष-मुक्त जीवन की बात करते थे, वह उसके लिए नहीं हुआ था। उसे अपने विश्वास की वास्तविकता पर संदेह होने लगा था।

मैंने रोहित से कहा कि उसका डर काफी हद तक भ्रामक धर्मशास्त्र का परिणाम था। उसे मसीही जीवन के बारे में एकतरफा दृष्टिकोण सिखाया गया था। पवित्र आत्मा के प्रति सचेत समर्पण की आवश्यकता पर जोर देने में उसका पादरी सही था। हमें पवित्र आत्मा की ओर देखना चाहिए कि वह हमें सही इच्छाएँ दे और हमारे भीतर उस सद्गुण को विकसित करे जिसे गलातियों 5:22-23 में “आत्मा का फल” कहा गया है – प्रेम, आनंद, शांति, धैर्य, दया, अच्छाई, विश्वासयोग्यता, नम्रता , और आत्मसंयम ।

यह भी सच है कि यीशु के साथ हमारे मेल के माध्यम से हम पाप के लिए मर गए हैं और रोमियों 6:1-4 में सिखाए गए अनुसार नए जीवन की ओर बढ़ गए हैं। मसीह के साथ हमारे मेल के माध्यम से हमारे पास पहले से ही स्वर्गीय क्षेत्रों के सभी आत्मिक धन में हिस्सा है (इफिसियों 2:6-7)।

लेकिन (गलातियों 5:16-21, रोमियों 7:14-25,) और कई अन्य अनुच्छेद यह स्पष्ट करते हैं कि जब तक हम अपने वर्तमान शरीर में रहते हैं तब तक हमें अपने स्वयं के शरीर के आत्म-केंद्रित झुकाव के साथ एक आंतरिक लड़ाई जारी रहेगी।

पवित्रशास्त्र की बेहतर समझ से, रोहित को एहसास हुआ कि आत्मिक परिपक्वता निरंतर आंतरिक संघर्ष की उपस्थिति में विकसित होती है। परमेश्वर की आत्मा के प्रति समर्पण गलत इरादों और बुरे विचारों के साथ लड़ाई के बीच होता है।

इस तथ्य से बचने का कोई रास्ता नहीं है कि आत्मिक विकास उन शरीरों में होता है जो पाप के प्रति अपनी प्रवृत्ति कभी नहीं खोते हैं।

हम प्रेरित पौलुस के जीवन में चल रही इस प्रक्रिया को देख सकते हैं। वह एक परिवर्तित व्यक्ति का उदाहरण था जिसने दिखाया कि परमेश्वर की आत्मा के द्वारा जीने का क्या मतलब है। लेकिन रोमियों को लिखे अपने पत्र में, उन्होंने एक चल रहे आंतरिक संघर्ष का वर्णन किया जिसे वह उन लोगों की तुलना में कहीं बेहतर जानते थे जिन्होंने केवल उनकी बाहरी उपस्थिति और कार्यों को देखा था (रोमियों 7:18-25)।

रोहित अब देखता है कि वह जो बनना चाहता है उसके लिए उसका अपना संघर्ष किसी भी तरह से उसके उद्धार पर संदेह करने का कारण नहीं है। इसके बजाय, वह अपनी पहचान पौलुस से करता है, जिसने एक अन्य पत्र में लिखा, “यह मतलब नहीं, कि मैं पा चुका हूं, या सिद्ध हो चुका हूं: पर उस पदार्थ को पकड़ने के लिये दौड़ा चला जाता हूं, जिस के लिये मसीह यीशु ने मुझे पकड़ा था।” (फिलि. 3:12)।

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जयकरन, एक युवा पति और पिता, की अपने चर्च में अच्छी प्रतिष्ठा थी, लेकिन उन्होंने युवा लोगों के कार्यक्रम में पढ़ाने के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। इस बात ने उसे परेशान किया होगा, क्योंकि उसे मुझे इसका कारण बताने की आवश्यकता महसूस हुई। उन्होंने कहा कि उनकी जिंदगी वैसी नहीं है जैसी दिखती है; उसकी और उसकी पत्नी की आपस में नहीं बन रही थी । वह शायद ही कभी बाइबल पढ़ता था और प्रार्थना करता था। उसे तरह-तरह के संदेह होने लगे थे। कभी-कभी उन्हें बाइबिल की सत्यता पर संदेह होता था। उसे आश्चर्य होता था कि क्या वह सच्चा आस्तिक है । उसने कबूल किया कि उसके संदेह उसे दुखी कर रहे थे ।

जब मैंने थोड़ी जांच-पड़ताल की, तो उसने स्वीकार किया कि वह और उसकी पत्नी कुछ ऐसा कर रहे थे जिसके बारे में उसे पता था कि वह गलत था। यह सोचकर कि वे अपने यौन जीवन को फिर से नया करके अपनी शादी में मदद कर सकते हैं, उन्होंने अश्लील वीडियो देखना शुरू कर दिया था। उसे स्पष्ट रूप से शर्म महसूस हुई जब उसने अपनी कहानी सुनाई और स्वीकार किया कि मरने और फैसले के लिए परमेश्वर के सामने खड़े होने के विचार ने उसे भयभीत कर दिया था।

यह पता लगाना कठिन नहीं था कि उसके साथ क्या हुआ था। उन्होंने और उनकी पत्नी ने धीरे-धीरे अपनी आत्मिक संवेदनशीलता खो दी थी। बार-बार अपने विवेक की उपेक्षा करने के कारण, वे अब उस आंतरिक गवाही को नहीं सुन सकते थे जिसके बारे में पौलुस ने रोमियों 8:16 में कहा था,

आत्मा स्वयं हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है कि हम परमेश्वर की संतान हैं।

शंकाओं और भय से परेशान मसीही अपना आत्मिक तापमान लेने के लिए अच्छा करेंगे । हम सभी आसानी से अपने और अपनी संस्कृति में गलत के प्रति कम संवेदनशील हो सकते हैं। यदि हम अपने मन और हृदय को नियमित रूप से नवीनीकृत नहीं कर रहे हैं, तो हमें अपनी संस्कृति के आत्मिक तापमान को अपने हृदय को ठंडा करने की अनुमति दे सकते हैं।

मसीह और उनके प्रेरितों ने हमें अपनी संस्कृति से हटना नहीं सिखाया। यीशु ने “कर वसूलने वालों और पापियों” से मित्रता करके अपने समय के धार्मिक लोगों को चौंका दिया। लेकिन इस प्रक्रिया में, उन्होंने अपने पिता के प्रति अपनी विशिष्ट बुलाहट और रिश्ते को नज़रअंदाज़ नहीं किया। वह इसके पाप में शामिल होने के लिए दुनिया में नहीं था। वह उन लोगों के बचाव के लिए दुनिया में था जो अपना रास्ता खो चुके थे।

यदि हम लगातार अपने उद्देश्यों और ईश्वर की आत्मा के साथ अपने संबंधों की जाँच नहीं कर रहे हैं, तो हम संवेदनशीलता की उस बारीक धार को खो देंगे जो हमें याद दिलाती है कि हम ईश्वर की संतान हैं जिन्हें हमारी पीढ़ी के लिए मसीह के प्रतिनिधि बनने के लिए बुलाया गया है।

आत्मिक समझौते और खतरे से सावधान रहने के लिए, हमें अपने चरवाहे के करीब रहने की जरूरत है।

चुनौती आसान नहीं है. यीशु हमें भेड़ों के रूप में भेड़ियों के बीच भेजता है। आत्मिक समझौते और खतरे से सावधान रहने के लिए, हमें अपने चरवाहे के करीब रहने की जरूरत है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सेना में सेवा करते समय मुझे यह सच्चाई पता चली। मैं एक मजबूत मसीही घर में पला-बढ़ा था, कम उम्र में ही खुद को मसीह के प्रति समर्पित कर दिया था, मसीही स्कूलों में गया था, और एक छोटे खाने के स्टोर में विश्वासियों के साथ काम किया था। जब मैं सेवा में गया तो मैं पाप के खतरों से भलीभांति परिचित था। मुझमें परमेश्वर के प्रति भय और उस पर निर्भरता की भावना थी।

आप अच्छी तरह कल्पना कर सकते हैं कि बैरक में मेरी पहली रात एक परेशान करने वाला अनुभव थी। मैं अश्लील और अभद्र भाषा के लिए तैयार नहीं था। इसलिए मैंने लोगों को यह बताने की कोशिश की कि मैं इस तरह की बातचीत में सहज नहीं हूं। निःसंदेह उन्होंने मुझे हँसाने की कोशिश की, लेकिन बाद में कई लोगों ने स्वीकार किया कि वे जानते थे कि मैं सही था।

हालाँकि, समय के साथ, मैं प्रभु के साथ अपने निजी समय के बारे में कम सावधान हो गया। धीरे-धीरे मैं बदलने लगा. मैंने अश्लीलता, अपवित्रता और यौन विजय के बारे में डींगें हांकने पर शायद ही ध्यान दिया हो। धीरे-धीरे परमेश्वर मुझे और अधिक दूर लगने लगा, और मैंने उस विश्वास पर संदेह करना शुरू कर दिया जिसे मैंने सबसे महत्वपूर्ण माना था। फिर भी अनैतिक जीवन में पड़ने के विचार ने मुझे इतना भयभीत कर दिया कि मुझे अपराध स्वीकार करने और परमेश्वर से मदद की गुहार लगाने पर मजबूर होना पड़ा। मैं नियमित रूप से अपनी बाइबल पढ़ने और प्रार्थना करने लगा।

मैं कई बार इस चक्र से गुज़रा और सीखा कि पाप के प्रति मेरी संवेदनशीलता और आश्वासन परमेश्वर के साथ मेरे दिन-प्रतिदिन चलने की गुणवत्ता के सीधे अनुपात में थे।

“हमारे परमेश्वर और पिता के निकट शुद्ध और निर्मल भक्ति यह है” , में आवश्यक चीज़ों में से एक है “अपने आप को संसार से निष्कलंक रखना” (याकूब 1:27)। और . . . “संसार से मित्राता करनी परमेश्वर से बैर करना है” (4:4)। जो विश्वासी पाप के प्रति इतने असंवेदनशील हो जाते हैं कि वे नियमित रूप से अनैतिक गतिविधियों में संलग्न हो सकते हैं पवित्र आत्मा की शान्ति देने वाली गवाही सुनने की उम्मीद नहीं कर सकते। क्योंकि वे परमेश्वर के साथ संगति में नहीं चल रहे हैं, उनमें संभवतः संदेह, भय और एक असहज जागरूकता होगी कि उनके और परमेश्वर के बीच चीजें ठीक नहीं हैं।

दुर्भाग्य से, जो ने मेरी अपील अनसुनी कर दी । उनका और उनकी पत्नी का तलाक हो गया, जिससे उनके छोटे बच्चों को नुकसान पहुंचा। उनकी आत्मिक असंवेदनशीलता उन्हें महंगी पड़ी है। आखिरी बार मैंने सुना कि उनमें से कोई भी उस शांति और आनंद का अनुभव नहीं कर रहा था जो मसीही जीवन का हिस्सा होना चाहिए। मेरा उनसे संपर्क टूट गया है और मैं केवल यही आशा कर सकता हूं कि वे प्रभु के प्रति अपनी आत्मिक संवेदनशीलता पुनः प्राप्त कर लेंगे।

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गॉडविन, एक उत्कृष्ट कॉलेज छात्र, ने यीशु को अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार किया था और वह किसी भी तरह से विद्रोही नहीं था। लेकिन चर्च की गतिविधियों में उनकी रुचि कम होने लगी, जिसमें वह हमेशा सक्रिय रहे थे। उसके मसीही माता-पिता बुद्धिमान थे – ऐसे माता-पिता जिस पर एक संघर्ष करने वाला किशोर भरोसा कर सकता है। उसे डांटने के बजाय, उन्होंने उससे पूछा कि क्या वह अपने बदले हुए रवैये के बारे में बताना चाहेगा। गॉडविन ने उनसे कहा कि वह अब उन मतों पर कायम नहीं रह सकता जो उसे सिखाई गई थीं। एक कॉलेज टीचर ने उसे यकीन दिला दिया था कि यीशु ने अधिकतर वे बातें कभी नहीं कहीं सुसमाचारों में जिसका श्रेय उन्हें दिया गया है, और यह कि उसके पुनरुत्थान का विवरण मनगढ़ंत था।

गॉडविन के माता-पिता ने अपने पासबान से परामर्श किया, जिन्होंने सुझाव दिया कि वह और गॉडविन एक नई किताब के माध्यम से काम करें जिसे उन्होंने अभी-अभी पढ़ा है: ली स्ट्रोबेल द्वारा लिखित द केस फॉर क्राइस्ट। येल लॉ स्कूल से कानून में मास्टर ऑफ स्टडीज की डिग्री के साथ , लेखक एक पुरस्कार विजेता पत्रकार हैं । उनके अपने शब्दों में, वह “अपवित्र, शराबी, स्वयं में मगन और अनैतिक तरह का जीवन जी रहे थे” (पृष्ठ 268) और एक धार्मिक संशयवादी थे, जब उनकी पत्नी 1979 में मसीही बन गईं। पत्नी में आए बदलाव को देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ कि क्या वह ठीक थीं । इस बात ने उन्हें नए नियम की सत्यता के सबूतों की गहन जांच करने के लिए प्रेरित किया जो “600 से अधिक दिनों और अनगिनत घंटों तक चली ” (पृष्ठ 267)। वह कहते हैं कि उसने 8 नवंबर, 1981 को क्या किया था:

मैंने सच्चे दिल और साफ शब्दों में बोले गई प्रार्थना में परमेश्वर से बात की, अपने गलत कामों को स्वीकार किया और उनसे पीछे हट गया, और यीशु के माध्यम से क्षमा और अनन्त जीवन का उपहार प्राप्त किया। मैंने उनसे कहा कि उनकी मदद से मैं आगे से उनका और उनके तरीकों का अनुसरण करना चाहता हूं।

मसीही धर्म के दावे वैध (सच्चे) हैं या नहीं यह देखने के लिए स्ट्रोबेल ने 13 प्रसिद्ध और सम्मानित विद्वानों का साक्षात्कार लिया। नए नियम के संदेश को अस्वीकार करने वाले और संदेह करने वाले लोगों के दावों पर उनके उत्तरों का सारांश निम्नलिखित है।

1. क्या हम आश्वस्त हो सकते हैं कि नए नियम की पुस्तकें सच्ची थी, और रिकार्ड़ सही थे जो पहली शताब्दी में उन लेखकों द्वारा लिखी गई थीं जिनके लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया गया है?

इस जवाब से “हां” ही गूंज रहा है! सबसे पहले, (वर्तमान) जीवित मैनयुस्क्रिप्ट (हाथ से लिखी) की संख्या आश्चर्यजनक है: युनानी भाषा में लिखी 5,664 मैनयुस्क्रिप्ट (हाथ से लिखी) और अन्य भाषाओं में 16,000-18,000, उनमें से कुछ 130 ईस्वी पूर्व की हैं (प्रिंसटन के डॉ. ब्रूस मेट्ज़गर के अनुसार)। इसकी तुलना वर्तमान विद्वानों द्वारा प्रामाणिक मानी गई प्राचीन मैनयुस्क्रिप्ट की मौजूदा प्रतियों से करें: सीज़र के “गैलिक वॉर्स” की 10 प्रतियां; थ्यूसीडाइड्स और हेरोडिटस के प्रत्येक अत्यधिक मूल्यवान इतिहास की 8 प्रतियां। सभी 900 वर्ष के हैं जो मूल से हटा दिया गये।

डेनवर सेमिनरी में न्यू टेस्टामेंट के प्रोफेसर डॉ. क्रेग ब्लॉमबर्ग का कहना है कि भले ही हम अविश्वासी विद्वानों की डेटिंग को स्वीकार करते हैं, नए टेस्टामेंट के अधिकांश दस्तावेज़ मसीह के पुनरुत्थान के 40 वर्ष से भी कम समय के बाद से प्रचलन में थे, जो किसी भी झूठे दावे का खंडन करने के लिए उन दुश्मनों के समय में थे जो यीशु के समकालीन थे।

2. क्या हम आश्वस्त हो सकते हैं कि मूल हस्तलिखित मैनयुस्क्रिप्ट का विषय विश्वसनीय रूप से संरक्षित किया गया है?

यहाँ फिर से उत्तर “हाँ” है। संशयवादी अक्सर घोषणा करते हैं कि हमारे पास मौजूद नए नियम की मैनयुस्क्रिप्ट प्रतियों में 180,000 से अधिक फेरबदल (विविधताएँ) हैं और इसलिए वास्तविक मूल विषय का निर्धारण करना असंभव है। तथ्य यह है कि इनमें से लगभग 400 विविधताओं को छोड़कर बाकी सभी में शब्द विन्यास (स्पेलिंग) सम्बन्धी मामूली बातें शामिल हैं (जैसे कि इगंलिश आनर्स की तुलना में अमेरीकन आनर्स)। और 400 अवसरों में से जहां एक अनुच्छेद का भाव शामिल है, कोई भी इस प्रकार का नहीं है कि एक भी बुनियादी मसीही सिद्धांत मुद्दे पर हो।

प्रसिद्ध डॉ. मेट्ज़गर के अनुसार, हजारों मैनयुस्क्रिप्ट की बहुत मेहनत से की गई तुलना ने विद्वानों को निर्णायक रूप से यह निर्धारित करने में सक्षम बनाया है कि आज हमारे पास जो लेख है उस पर ऐतिहासिक और सैद्धांतिक रूप से पूरी तरह से भरोसा किया जा सकता है।

आज हमारे पास जो बाइबल है उस पर ऐतिहासिक और सैद्धान्तिक दोनों ही दृष्टियों से पूर्ण विश्वास किया जा सकता है।

3. क्या यीशु के जीवन, मृत्यु और पुनरुत्थान की कोई धर्मनिरपेक्ष पुष्टि है?

प्राचीन इतिहास में एक प्रमुख अधिकारी के रूप में मान्यता प्राप्त, डॉ एडविन एम यामूची, कहते हैं कि हालाँकि हमारे पास बहुत अधिक पक्के सबूत नहीं हैं, फिर भी हमारे पास पर्याप्त हैं। ग्रीक और रोमन विद्वानों ने शायद ही कभी, चर्च के इतिहास के प्रारंभिक वर्षों के दौरान मसीह के अनुयायियों का वर्णन किया हो क्योंकि वे इस आंदोलन को एक महत्वहीन यहूदी मत के रूप में देखते थे।

हालाँकि हमारे पास मसीहियों के कई मौजूदा धर्मनिरपेक्ष संदर्भ हैं, जो पहली शताब्दी के अंत के आधे और दूसरी शताब्दी की शुरुआत के समय से हैं। यहूदी इतिहासकार जोसेफस, याकूब, जिसे वह “यीशु का भाई” कहता है, के मुकदमे और फांसी के बारे में बताता है, (द एंटिक्विटीज़, 20.200)। वह यीशु को “एक बुद्धिमान व्यक्ति” के रूप में भी संदर्भित करता है, जिसे क्रूस पर चढ़ाया गया था, उसके बड़ी संख्या में अनुयायी थे जो उसे मसीहा घोषित करने में लगे रहे (एंटीक्विटीज़, 18.63-64)।

115 ई. में रोमन इतिहासकार टैसीटस (एनल्स 15.44) और ई. 111 में रोमन गवर्नर प्लिनी द यंगर (पत्र 10.96) दोनों स्पष्ट रूप से यीशु का उल्लेख करते हैं। प्लिनी ने यहां तक कहा कि उनके अनुयायी यीशु की स्तुति करते थे “मानो वह कोई खुदा (देवता) हों।”

4. पुरातत्व (प्राचीन वस्तुओं का अध्ययन) और नए नियम के बारे में क्या?

डॉ. जॉन मैकरे, जिन्हें धर्मनिरपेक्ष मीडिया द्वारा उनकी प्राचीन वस्तुओं का अध्ययन की विशेषज्ञता के लिए बुलाया गया है, का कहना है कि हालांकि पुरातत्व यह साबित नहीं कर सकता है कि न्यू टेस्टामेंट एक प्रेरित दस्तावेज़ है, लेकिन यह इसकी विश्वसनीयता के मामले को मजबूत करता है।

उदाहरण के लिए, कुछ इतिहासकारों ने कहा कि वे साबित कर सकते हैं कि लूका गलत था जब उसने लगभग 27 ईस्वी (लूका 3:1) में एबिलीन में लिसानियास को एक चौथाई के राजा (टेट्रार्क) के रूप में नामित किया था और प्रेरित 17:6 में शहर के अधिकारियों को पॉलिटार्क (जीके) के रूप में संदर्भित किया था। हालाँकि, पुरातात्विक साक्ष्य सामने आए, जिससे पता चला कि लूका सही था।

आलोचकों ने कहा कि यूहन्ना 5:1-15 में बेतहसदा कुण्ड को पांच ओसारे (स्तंभों) से घिरा हुआ बताना गलत था। लेकिन तालाब की अब खुदाई हो चुकी है, और बाइबल सही थी – यह पाँच ढके हुए बरामदों से घिरा हुआ था।

पुरातत्व ने बार-बार नए नियम की पुष्टि की है। साक्ष्यों ने कभी भी बाइबिल के किसी कथन को गलत साबित नहीं किया है।

5. क्या यीशु ने, और केवल यीशु ने, पुराने नियम की भविष्यवाणी को सही ढ़ंग से पूरा किया?

किसी को पुराने नियम की मसीहा संबंधी कई भविष्यवाणियों में से केवल पांच को पढ़ने की जरूरत है यह देखने के लिए कि वे यीशु मसीह और केवल उसी की ओर इशारा करते हैं।

मीका 5:2 भविष्यवाणी करता है कि “उसका निकलना प्राचीनकाल से, वरन अनादि काल से होता आया है।” (शाब्दिक अनुवाद) बेतलेहम से निकलेगा – वह स्थान जहां यीशु का जन्म हुआ था।

दानिय्येल 9:25-26 “यरूशलेम को पुनर्स्थापित करने और बनाने” के आदेश के 69 सप्ताह (483 वर्ष) बाद मसीहा के आने की भविष्यवाणी करता है — 458 ईसा पूर्व में क्षयर्षका एक आदेश- 26 ई. में यीशु द्वारा अपनी सार्वजनिक सेवकाई शुरू करने से 483 वर्ष पहले।

यशायाह 7:14 घोषणा करता है कि जिसे “इम्मानुएल” कहा जाएगा वह “कुंवारी” से पैदा होगा।

जब क्रूस पर चढ़ाया जाना अज्ञात था तब लिखा गया भजन 22, हमारे प्रभु के क्रूस पर चढ़़ाये जाने को रेखा चित्र द्वारा चित्रित करता है, जिसमें दर्शकों के ताने और मसीह के अकेलेपन की पुकार भी शामिल है।

यशायाह 52:13-53:12 पूरे सूली पर चढ़ने के परिदृश्य को चित्रित करता है, हमें बताता है कि वह जिसका “रूप बिगड़ा हुआ था” उसके दुश्मनों के दुर्व्यवहार से और ” जो हमारे अधर्मों के लिए कुचला गया” वह “बहुतेरों को धर्मी ठहराएगा” और सम्मानित किया जाएगा क्योंकि “इस कारण मैं उसे महान लोगों के संग भाग दूंगा” क्योंकि “उसने अपना प्राण मृत्यु के लिये उण्डेल दिया, वह अपराधियों के संग गिना गया ।”

यीशु के अलावा कोई भी व्यक्ति इन भविष्यवाणियों पर दूर-दूर तक फिट नहीं बैठता। कोई भी व्यक्ति जो ईमानदारी से सत्य की खोज कर रहा है, उसे इस तथ्य के महत्व पर सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिए।

6. क्या यीशु सचमुच मरे थे और पुनरुत्थान के द्वारा मृत्यु पर विजय प्राप्त की?

यह सत्य है कि यीशु वास्तव में मरे थे । रोमी फाँसी देने वाले विशेषज्ञ थे। इसके अलावा, भाले के घाव से रक्त और पानी का मिश्रण मृत्यु का एक निश्चित संकेत था।

लोग गलत धार्मिक विश्वास के लिए पीड़ित होंगे और मरेंगे, लेकिन उस चीज़ के लिए नहीं जिसे वे जानते हैं कि झूठ है।

यीशु जी उठे और मृत्यु पर विजेता के रूप में अपने शिष्यों के सामने प्रकट हुए, यह तथ्य उनके अनुयायियों में अचानक परिवर्तन के लिए एकमात्र सच्चा स्पष्टीकरण है। लोग गलत धार्मिक विश्वास के लिए पीड़ित होंगे और मरेंगे, लेकिन उस चीज़ के लिए नहीं जिसे वे जानते हैं कि झूठ है।

गॉडविन, जिस कॉलेज छात्र का मैंने पहले उल्लेख किया था, संतुष्ट मन के साथ पासबान के साथ अपने अध्ययन सत्र से बाहर आया था। जब मसीही धर्म की बात आती है, जितना अधिक हम जानेंगे कि बाइबल क्या कहती है और हम उसके संदेश पर विश्वास क्यों कर सकते हैं, हम उतने ही बेहतर होंगे ।

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अनीश, जो मसीही नहीं था, तब टूट गया जब उसे पता चला कि जिस लड़की से वह शादी करने की उम्मीद कर रहा था वह उससे बेवफा थी। एक बार चोट खाने के बाद, उन्होंने किसी भी महिला के चरित्र पर अधिक ध्यान से विचार करने का निर्णय लिया जिससे वह शादी करने पर भी विचार करेगा।

चरित्र में उनकी रुचि अंततः उन्हें मसीही धर्म की ओर ले गई। उन्होंने एक लड़की के लिए चर्च जाना शुरू किया, और कुछ हफ्तों के बाद उन्होंने मसीह में अपना व्यक्तिगत विश्वास रखने का फैसला किया। अंततः उन्होंने उस मसीही लड़की से शादी कर ली और उसके साथ चर्च जाना जारी रखा। एक दिन उसने सुझाव दिया कि वे चढ़ावे के लिए पैसे अलग रखें। अनीश ने असहमति जताई और कहा कि वह चर्च में इतना शामिल नहीं होना चाहता। धीरे-धीरे रविवार को करने के लिए उसे अन्य चीजें मिल गईं।

अनीश ने बाद में मुझे बताया कि वह उस समय विश्वासी था, लेकिन उसे इस बात पर गंभीर संदेह था कि क्या वह अपने जीवन में परमेश्वर पर भरोसा कर सकता है। उन्होंने कहा कि उनके मन में मरने के बारे में घृणित विचार थे और उन्हें अपने जीवन में परमेश्वर की उपस्थिति का कोई एहसास नहीं था।

समय के साथ अनीश बहुत अधिक झगलाडू (अप्रिय) हो गया और उसके साथ रहना कठिन हो गया। फिर, उन्होंने विशेष बैठकों की एक श्रृंखला के लिए अपनी पत्नी के साथ चर्च जाने की सहमति दी और इससे सभी को बहुत हैरानी हुई । सभा में वक्ता ने स्पष्ट रूप से बताया कि मसीह का अनुसरण करने का क्या मतलब है। सभा के बादए अनीश पासबान द्वारा कही गई कुछ बातों की आलोचना करने लगा और सामान्य से भी अधिक अजीब लग रहा था। लेकिन वह अगली शाम वापस लौटे और सार्वजनिक रूप से मसीह के अनुयायी के रूप में जीने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। इससे उनकी पत्नी बहुत खुश थी।

यह एक बहुत बड़ा बदलाव था! उसके कई डर और संदेह दूर होते दिखे। अपने नये विश्वास में वह एक बेहतर पति और पिता, एक अधिक सुखद (हँसमुख) व्यक्ति और चर्च के लिए एक उदार आर्थिक योगदान देने वाले बन गये। कुछ साल बाद ही वह गंभीर दिल के दौरे से विकलांग हो गए, लेकिन उन्होंने अपनी इस परीक्षा को बहुत अच्छी तरह से (शालीनता से) संभाला। वह केवल पचास वर्ष के थे जब उन्हें पता चला कि उनकी मृत्यु निकट थी, लेकिन वे निराश नहीं हुए। उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें कुछ और साल जीने की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें मरने का कोई डर नहीं था और शिकायत करने का कोई कारण नहीं था।

किस बात ने अनीश को संदेह से भरे व्यक्ति से ऐसे व्यक्ति में बदल दिया जो बाद में कठिन परिस्थितियों का सामना अच्छी तरह से और परमेश्वर में विश्वास के साथ करने में सक्षम हो गया? उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें आंतरिक शांति तब मिली जब उन्होंने शिष्यत्व के बारे में यीशु द्वारा कही गई बातों को गंभीरता से लेना शुरू किया:

“यदि कोई मेरे पास आए, और अपने पिता और माता और पत्नी और लड़केबालों और भाइयों और बहिनों बरन अपने प्राण को भी अप्रिय न जाने, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता।” (लूका 14:26)।

जिन लोगों से यीशु ने ये शब्द कहे थे, उन्होंने समझा कि रिश्तेदारों और स्वयं के जीवन से “नफरत” करने का मतलब यीशु के प्रति समर्पण को बाकी सभी से आगे रखना है।

मसीह को अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करने के अनीश के पहले किये गये निर्णय ने उसे परमेश्वर के साथ पारिवारिक रिश्ते में ला दिया था। लेकिन जब उसने अपने विश्वास पर अमल करने के लिए निर्णायक रूप से कार्य किया, तब ही उसे पूरे दिल से किए गए विश्वास के लाभों का अनुभव होना शुरू हुआ।

जो अनीश के बारे में सच था वह हमारे बारे में भी सच है। परमेश्वर किस हद तक हमारे साथ घनिष्ठ संबंध में प्रवेश करेगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम किस हद तक अपने आप को उसके प्रति समर्पित करते हैं।

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एक व्यक्ति ने मुझे उस लेख पर अपनी असहमति व्यक्त करने के लिए बुलाया, जिसमें मैंने लिखा था कि जब लोग अकेले रहना चुनते हैं तो उन्हें कितनी कीमत चुकानी पड़ती है। उन्होंने स्वीकार किया कि वह खुद अकेले हैं लेकिन उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उन्होंने जीवन का यह तरीका नहीं चुना। शारीरिक समस्याओं के साथ पैदा होने के कारण उनके लिए उन गतिविधियों में भाग लेना असंभव हो गया था जिनका आनंद स्वस्थ बच्चे लेते हैं, उनके माता-पिता उन्हें अयोग्य (बेकार) मानते थे और अन्य बच्चे उनका मजाक उड़ाते थे।

हाई स्कूल से स्नातक होने के बाद, उन्हें नौकरी मिल गई लेकिन फिर भी उनका कोई दोस्त नहीं था। उन्होने चर्च जाना शुरू किया और वहां कोशिश करी और ईमानदारी से मसीह में विश्वास जताया, लेकिन किसी ने भी उनमें व्यक्तिगत रुचि नहीं ली। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि परमेश्वर भी उन्हें नहीं चाहते।

इस कारण उन्होने बहुत अधिक आत्मिक अस्वीकृति को महसूस किया, इसलिये उन्होंने जीवन के एक ऐसे तरीके में आनंद खोजने की कोशिश की जिसका उन्हें बाद में पछतावा हुआ। वह जानता था कि वह परमेश्वर और मसीही मित्र चाहता है। जिन तरीकों के बारे में वह जानता था कि वे गलत हैं, उनसे मुड़ने के बाद, उसने फिर से चर्च में जाना शुरू कर दिया। लेकिन वह आत्मिक अस्वीकृति के डर से छुटकारा नहीं पा सका। चर्च में वापस आने के बाद भी उसे यह डर सताता रहा कि परमेश्वर उससे प्यार नहीं करते।

कई लंबी टेलीफोन बातचीत के माध्यम से, मैंने उसे आश्वस्त करने की कोशिश की कि उसकी शारीरिक समस्याएं परमेश्वर के प्रेम या चिंता की कमी को नहीं दर्शाती हैं। मैंने उन्हें आश्वस्त करने के लिए परमेश्वर के वचन का उपयोग किया कि परमेश्वर उनकी निराशा को साझा करते हैं, कि वह उन लोगों को जवाबदेह ठहराएंगे जिन्होंने उनके साथ दुर्व्यवहार किया, और वह उनसे उतना ही प्यार करते हैं जितना वह अपने सभी बच्चों से करते हैं। मैंने उसे इस पर विश्वास करने, और उन लोगों के लिए प्यार और प्रार्थना करके जिन्हें वह अपना दुश्मन मानता था अपना विश्वास दिखाने के लिए चुनौती दी । मैने उन्हें बताया कि यह मत्ती 5:43-45 के प्रति एक आज्ञाकारी प्रतिक्रिया होगी। लेकिन उन्होंने गुस्से में जवाब दिया, “ मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा। मुझे उन लोगों से नफरत करने का अधिकार है जिन्होंने मेरी जिंदगी को इतना दुखित बना दिया है।”

मैने कुछ समय से उससे नहीं सुना है उसने मुझसे कोई बात नहीं करी और मुझे पूरा यकीन है कि वह अभी भी संदेह से ग्रस्त है और उसे यकीन है कि परमेश्वर भी उससे प्यार नहीं करता है।

जो लोग खुद को नकारात्मक अर्थों में “अलग” के रूप में देखते हैं, उन्हें अक्सर यह विश्वास करने में कठिनाई होती है कि परमेश्वर उनसे प्यार करते हैं। स्कूल में अक्सर उन्हें अस्वीकार किया जाता है और हीन महसूस कराया जाता है। जब उन्हें बताया जाता है कि परमेश्वर उनसे प्यार करते हैं, तो वे इस पर संदेह करते हैं। वे ऐसे प्रश्न पूछते हैं जो मेरी बेटी कैथी के समान हैं, जिसका मस्तिष्क जन्म के समय क्षतिग्रस्त था, उसने मुझसे पूछा, “अगर परमेश्वर मुझसे उतना ही प्यार करते हैं जितना दूसरों से, तो उन्होंने ऐसा क्यों किया? मुझे दूसरों से ‘अलग’ क्यों बनाया ?”

मैंने उसे आश्वासन दिया कि मुझे विश्वास नहीं है कि परमेश्वर उसके दुर्भाग्य का कारण बना (भले ही उसने अपने कारणों से इसकी अनुमति दी हो)। मैंने निष्कर्ष निकाला है कि जन्म से होने वाली कई दुर्घटनाएँ और अन्य असामान्यताएँ इसलिए होती हैं क्योंकि हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जो प्राकृतिक परिणाम के नियमों से नष्ट हो चुकी है और पीड़ित है।

जो लोग खुद को नकारात्मक अर्थों में “अलग” के रूप में देखते हैं, उन्हें अक्सर यह विश्वास करने में कठिनाई होती है कि परमेश्वर उनसे प्यार करते हैं।

मुझे विश्वास है कि परमेश्वर सीधे तौर पर जन्म दोष, विरासत में मिली खामियाँ, अपंग करने वाली बीमारियाँ, या दुर्बल करने वाली दुर्घटनाएँ पैदा नहीं करता है। इसके बजाय, मेरा मानना ​​है कि वह अपने आत्मिक शत्रु और पाप के विरासत में मिले परिणामों को हम सभी के जीवन को अलग-अलग तरीकों से छूने की अनुमति देता है। उदाहरण के लिए, मसीही घर में पैदा हुआ एक बच्चा, लेकिन जिसे मधुमेह के लिये आनुवंशिक प्रवृत्ति है, हो सकता है कि उसे इस बीमारी के विकसित होने की वही संख्यात्मक संभावना है जो नास्तिकों के परिवार में जन्मे किसी व्यक्ति में होती है।

ऐसा लग सकता है कि ऐसा प्राकृतिक नियम अशांत दुनिया में परमेश्वर की उपस्थिति और भागीदारी को खारिज कर देगा। लेकिन बाइबल यह स्पष्ट करती है कि ईश्वर दुनिया पर अंतिम नियंत्रण रखता है, भले ही वह कभी भी बुराई का स्रोत नहीं है। वह हमारे साथ हमारी दुर्दशा में मौजूद रहता है। वह हमारे दुःख में दुःखी होता है। कई व्यक्तिगत तरीकों से वह अपने दुखी लोगों के बोझ को साझा करता है। (यशायाह 63:9; लूका. 19:41-44; यूह. 11:37 देखें।) उन लोगों के लिए जो उस पर भरोसा करते हैं, वह हमें बेहतर इंसान बनाने के लिए हमारे दर्द का उपयोग करने के लिए मौजूद है (रोमियों 5:1-5) और हमारी सबसे संकटपूर्ण परिस्थितियों से अच्छाई लाने के लिए (रोमियों 8:28)।

जो लोग “अलग” हैं उन्हें यह जानने और विश्वास करने की आवश्यकता है कि उनका दुख दर्द यह नहीं दर्शाता है कि परमेश्वर उन्हें किसी और से कम प्यार करते हैं। उन्हें इस पर विश्वास करने में मदद करने के लिए, उन्हें मसीही समुदाय द्वारा प्यार और स्वीकृति की आवश्यकता है। वे सबसे अच्छी प्रतिक्रिया तब देते हैं जब उन्हें दया के प्रदर्शन या अत्यधिक लाड़-प्यार के बिना स्वीकार कर लिया जाता है। जब उन्हें दूसरों के बराबर, उनके समान ही उत्तरदायी ठहराया जाता है तो वे सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं। वे भी पापी हैं जिन्हें यीशु पर भरोसा रखना चाहिए और उन्हें अपने पापों और कमजोरियों से निपटना चाहिए। कड़वाहट, आत्म-दया और क्षमा न करने वाले रवैये पर काबू पाने के लिए उन्हें पवित्रशास्त्र से चुनौती दी जानी चाहिए।

निराश लोगों की मदद करने की कोशिश करते समय, उनका ध्यान उन लोगों की ओर आकर्षित करना शायद बुद्धिमानी नहीं है जिन्होंने अपनी दुर्बल करने वाली समस्याओं पर काबू पा लिया है। इससे वे अपने आप को दोषी मान सकते हैं और उन्हें नाराज़गी महसूस हो सकती है। मैंने करीब से देखा है और मैं जानता हूं कि “अलग” होना एक कठिन परीक्षा है। लेकिन मैं यह भी जानता हूं कि जो लोग खुद को “अलग” देखते हैं, वे मसीही समुदाय के प्यार करने वाले, देखभाल करने वाले और मूल्यवान सदस्य बन सकते हैं।

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मैं कभी-कभी ऐसे लोगों से मिलता हूं जो जीवन की भयानक पीड़ा और अन्याय से इतने परेशान हैं कि वे कहते हैं कि वे ऐसे परमेश्वर में विश्वास नहीं कर सकते जो अच्छा और सर्वशक्तिमान दोनों है। लेकिन आम तौर पर, कुछ ही लोग बुराई की समस्या के बारे में तब तक गहराई से चिंतित रहते हैं जब तक कि उनके साथ कुछ बुरा न हो जाए।

एक युवा पति और पिता ने मुझसे पूछा, “ परमेश्वर ने मेरी पत्नी को क्यों मरने दिया? वह एक अद्भुत पत्नी और माँ, एक ईमानदार मसीही और कई लोगों की एक वफादार दोस्त थीं। क्या वह उसके कैंसर को नहीं रोक सकता था? या इसे ठीक नहीं कर सकता था ? क्या उसे मेरी और हमारे बच्चों की परवाह नहीं है जिन्हें उसकी बहुत ज़रूरत थी?”

परमेश्वर बच्चों को विकृतियों के साथ पैदा होने, किशोरों को दुर्घटनाओं में मरने , या असाध्य रूप से बीमार लोगों को उद्देश्यहीन दर्द में पीड़ित होने की अनुमति कैसे दे सकता है?

जब कोई बच्चा विकृति के साथ पैदा होता है, जब एक छोटा बच्चा मर जाता है, जब किसी दुर्घटना में एक किशोर की मौत हो जाती है, या जब कोई असाध्य रोगी प्रियजन बार-बार बिना किसी उद्देश्य के दर्द सहता है, तब भी इस तरह के प्रश्न दुखी दिलों से निकलते हैं।

हममें से जो लोग दुख के समय मदद करने की कोशिश करते हैं तो हम अपने उत्तर यथासंभव सरल रखना पसंद करते हैं, लेकिन कभी-कभी हमें कुछ दार्शनिक (तर्क सम्बन्धी) मुद्दों से निपटना पड़ता है – चाहे हम बौद्धिक (बुद्धिमान) रूप से परेशान या भावनात्मक रूप से परेशान लोगों की मदद करने की कोशिश करें । हर जगह सभी लोग पीड़ित हैं और मरते क्यों हैं ? हम इस तथ्य को कैसे समझ सकते हैं कि मनुष्य महान बुद्धिमत्ता और अद्भुत बड़प्पन दिखा सकते हैं , और फिर भी इतना आत्मकेन्द्रित और क्रूर होता है कि हर जगह युद्ध, यातना, बलात्कार, पारिवारिक दुर्व्यवहार और शर्मनाक सामाजिक अन्याय मौजूद हैं ?

गैर- मसीही प्रतिक्रियाएँ  कुछ प्रकृतिवादी (प्राकृतिक) वैज्ञानिक हमें बताते हैं कि हमारी दुनिया में हर तरह की बुराई मौजूद है क्योंकि संसार और इसमें मौजूद हर चीज एक अंध विकास परक प्रक्रिया का उत्पाद है। उनका मानना है कि हमारी दुनिया में काम करने वाली भौतिक शक्तियां किसी भी नैतिक या आत्मिक चीजों से रहित हैं। इसलिए हिंसा और दर्द, यहाँ तक कि जीवन का भी कोई अर्थ या उद्देश्य नहीं है। वे अनिच्छा से स्वीकार करते हैं कि ऐसा प्रतीत होता है कि संसार को मानव जीवन के लिए बनाया गया है (कुछ लोग इसे मानवशास्त्रीय सिद्धांत कहते हैं)। लेकिन वे एक बनानेवाले और क़ानून देने वाले की संभावना पर विचार करने से इनकार करते हैं।

कई मामलों में, प्रकृतिवादियों का रोजमर्रा का जीवन उन बातों का खंडन करता है जिन पर वे विश्वास करते हैं। दिव्य मन या आत्मा के अस्तित्व से उनका इनकार तार्किक रूप से मांग करता है कि वे स्वयं को रासायनिक रूप से क्रमादेशित और पूर्वनिर्धारित प्राणियों से अधिक कुछ नहीं मानते हैं। कई उदाहरणों में, प्रकृतिवादियों का रोजमर्रा का जीवन उनकी कही बातों का खंडन करता है जिसमें वे विश्वास करते हैं। दिव्य मन या आत्मा के अस्तित्व से उनका इनकार तार्किक रूप से मांग करता है कि वे खुद को रासायनिक रूप से योजना बद्ध तरीके से बनाया हुआ और पूर्वनिर्धारित प्राणियों से ज्यादा कुछ नहीं समझते हैं । फिर भी वे अपने विचार व्यक्त करते हैं, अपने दृष्टिकोण के लिए बहस करते हैं, और हर दिन नैतिक विकल्प चुनते हैं।

अन्य लोग प्रकृतिवाद को स्वीकार नहीं कर सकते और उन्होंने उच्च शक्ति में विश्वास का विकल्प चुना है जो बाइबल में वर्णित शक्ति से कम है। देवताओं का मानना है कि ईश्वर सभी चीजों का मूल डिजाइनर और निर्माता है लेकिन काम शुरू करने के बाद जो कुछ हुआ उससे उसका कोई लेना-देना नहीं है।

फिर भी अन्य लोग व्यक्तिगत परमेश्वर में विश्वास की पुष्टि करते हैं, लेकिन उसके सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान के बाइबिल सम्बन्धी चित्रण को स्वीकार नहीं करते हैं। वे उसे अच्छा और हमारे साथ जुड़े हुए देखते हैं, लेकिन वे उसे बुरे के बारे में कुछ भी करने में असमर्थ मानते हैं। जो चीजें घटित होती हैं. रब्बी कुशनर की पुस्तक ‘अच्छे लोगों के साथ बुरी बातें क्यों होती हैं’ इस विचार को स्पष्ट रूप से व्यक्त करती है कि यदि ईश्वर पूरी तरह से अच्छा और सर्वशक्तिमान होता तो वह दुनिया को वैसा नहीं होने देता जैसा वह है। लेकिन ऐसा कहना कई नई समस्याओं को जन्म देना है, न कि सबसे कम बात तो यह है कि यह पवित्रशास्त्र की शिक्षा के विपरीत है।

मसीही प्रतिक्रियाएँ। जो लोग बाइबल पर विश्वास करते हैं वे इस विश्वास को साझा करते हैं जिस तरह से चीज़ें हैं, उससे हमारा यह विश्वास रद्द नहीं हो जाता कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान और पूर्णतः अच्छा है। लेकिन मसीही, एक ऐसी दुनिया में बुराई की समस्या के लिए अलग अलग उत्तर प्रस्तुत करते हैं जो उस परमेश्वर से आई है जो नैतिक रूप से परिपूर्ण, दयालु, अनुग्रहकारी, सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ है और जो उसके शासन के अधीन है । कुछ लोग उसके शाश्वत आदेशों पर जोर देते हैं जबकि अन्य उसके प्राणियों की स्वतंत्र इच्छा की भूमिका पर जोर देते हैं।

परमेश्वर–का–आदेश उत्तर। परमेश्वर–का–आदेश उत्तर। कुछ धर्मशास्त्री सिखाते हैं कि परमेश्व ने बुराई dks gksus का आदेश दिया और अपने शाश्वत पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम को पूरा करने के लिए og इसे lalkj में लाया। इस दृष्टिकोण से, परमेश्वर ने निर्णय लिया कि वह अपने बुनियादी नैतिक गुणों . अपने न्याय और अपने प्रेम, अपनी दया और अपने क्रोध के अभ्यास से स्वयं को गौरवान्वित करेगा – नैतिक प्राणियों का निर्माण करके जो पाप के लिए पहले से नियत थे – सभी लोगों के एक चुने हुये समूह के लिए शाश्वत उद्धार प्रदान करने के लक्ष्य के साथ। लेकिन बुराई की उत्पत्ति की यह व्याख्या परमेश्वर को पाप का रचयिता बनाती है और उसकी अच्छाई से समझौता करती है।

इसके विपरीत, बाइबल हमें सिखाती है कि परमेश्वर पवित्र है, वह जो, अपने मूल अस्तित्व में, अपने द्वारा रचित संसार की सीमाओं और अपूर्णताओं से पूर्णतया अलग है। भविष्यवक्ता हबक्कूक ने उससे कहा, “तेरी आंखें ऐसी शुद्ध हैं कि तू बुराई को देख ही नहीं सकता, और उत्पात को देखकर चुप नहीं रह सकता (1:13)। यीशु के भाई ने कहा कि परमेश्वर “क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्वर की परीक्षा हो सकती है, और न वही किसी की परीक्षा आप करता है।” (याकूब 1:13)। पवित्रशास्त्र के ये वचन और कई अन्य इस विचार का खंडन करते हैं कि ईश्वर ने पाप की इच्छा जताई और इसे दुनिया में लाया।

स्वतंत्र इच्छा का उत्तर। एक बेहतर उत्तर यह प्रतीत होता है कि जब परमेश्वर ने संसार का निर्माण किया तो उन्होंने इसमें धार्मिक प्राणियों को रखा – पहले स्वर्गदूत दूत और फिर मनुष्य – जिनमें से किसी एक को चुनने की क्षमता थी — घमंडी और आत्मकेन्द्रित होना या विनम्र और ईश्वर-केंद्रित।

पाप स्वर्गदूतों के दायरे में शुरू हुआ जब “भोर के चमकने वाले तारे” ने परमेश्वर के अधिकार के खिलाफ विद्रोह में आत्मिक प्राणियों के एक समूह का नेतृत्व किया। (स्वर्गदूतों के क्षेत्र में इस पाप का उल्लेख यशायाह 14 और यहेजकेल 28 में किया गया है। हालाँकि ये भविष्यवाणियाँ सांसारिक राजाओं की ओर निर्देशित हैं, परन्तु उनमें ऐसे तत्व शामिल हैं जो स्पष्ट रूप से इन लोगों से परे उस दुष्ट प्राणी तक जाते हैं जो उनके माध्यम से काम करता है।) “सुबह का तारा” शैतान है। परमेश्वर का अधिकार और शासन छीनने के उसके अहंकारी प्रयास के कारण स्वर्ग से पृथ्वी पर फेंक दिया गया, उसने आदम और हव्वा को अहंकार और आत्म-केंद्रितता के आगे झुकने में प्रमुख भूमिका निभाई। प्राकृतिक बुराई का परिणाम नैतिक बुराई के रूप में सामने आया।

परमेश्वर ने “भोर के पुत्र” और आदम और हव्वा द्वारा किए गए बुरे विकल्पों का आदेश नहीं दिया था । न ही उसने उन्हें गलत दिशा की ओर प्रेरित किया, उनकी पसंद स्वतंत्र रूप से तय की गई थी। वे वही करना चुन सकते थे जो सही था। और जब उन्होंने गलत चुनाव किया, तो परमेश्वर उन्हें नष्ट कर सकते थे। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया; अपने प्रेम के कारण, उसके पास पहले से ही m)kj की एक योजना थी जिसके द्वारा वह बुराई में से अच्छाई ला सकs।

हमारे समय के प्रमुख मसीही दार्शनशास्त्रियों में से एक इसे इस प्रकार कहते हैं:

एक ऐसी दुनिया जिसमें ऐसे हैं जीव जो काफी हद तक स्वतंत्र हैं (और स्वतंत्र रूप से बुरे कार्यों की तुलना में अधिक अच्छे कार्य करते हैं) उस दुनिया की तुलना में अधिक मूल्यवान है जिसमें बाकी सभी चीजें समान हैं, जिसमें बिल्कुल भी स्वतंत्र जीव नहीं हैं। अब, परमेश्वर स्वतंत्र जीवों की रचना कर सकता है, लेकिन वह उन्हें केवल वही करने के लिए प्रेरित या आदेश नहीं दे सकता जो सही है। यदि वह ऐसा करता है, तो आख़िरकार वे महत्वपूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं हैं; वे स्वतंत्र रूप से वह सही काम नहीं करते । इसलिए, उसे नैतिक बुराई करने में सक्षम जीवों का निर्माण करना होगा; और वह इन जीवों को बुराई करने की आज़ादी नहीं दे सकता और साथ ही उन्हें ऐसा करने से रोक भी नहीं सकता। दुख की बात है, कि ऐसा हुआ कि परमेश्वर द्वारा बनाए गए कुछ स्वतंत्र जीव अपनी स्वतंत्रता का अभ्यास करने में गलत निकल गये (पतित्त हो गये)। यह नैतिक बुराई का स्रोत है A सच यह है कि स्वतंत्र जीव कभी-कभी गलत हो जाते हैं, हालाँकि, यह न तो परमेश्वर के सर्वशक्तिमान होने के विरुद्ध है और न ही उसकी अच्छाई के विरुद्ध है; क्योंकि वह केवल नैतिक भलाई की संभावना को हटाकर पहले से ही नैतिक बुराई को होने से रोक सकता था( गौड़( फ्रीडम एण्ड ईवल एल्विन प्लांटिंगा, ग्रैंड रैपिड्स, एर्डमैन्स, 1977, पृष्ठ 30)।

प्राकृतिक बुराई नैतिक बुराई का परिणाम है। उत्पत्ति 3:16-19 के अनुसार, आदम और हव्वा का पाप प्रसव में दर्द, वैवाहिक तनाव, प्रकृति में विरोधी ताकतें, थका देने वाला परिश्रम और शारीरिक मृत्यु का कारण है। रोमियों 8:19-22 प्रकृति को एक जीव मान कर कहता है, कि वह आशाभरी दृष्टि से बाट जोह रही है (उस दिन की प्रतीक्षा कर रही है) जब वह विनाश के दासत्व से छुटकारा पाकर, परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्राता प्राप्त करेगी। परमेश्वर ने उसे यह सजा इसलिए दी क्योंकि पाप ने उसकी दुनिया में प्रवेश किया था, लेकिन वह दिन आ रहा है जब वह अपने “भ्रष्टाचार के बंधन” से मुक्त हो जाएगी और “परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त करेगी।” एक बच्चे को जन्म देने वाली महिला की तरह, “सारी सृष्टि अब तक कहरती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है” लेकिन आशा के साथ।

जबकि “स्वतंत्र इच्छा उत्तर” हमारे मन में उठने वाले हर प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकता है, पर यह हमें जीवन जैसा है वैसे ही उसका सामना करने में सक्षम बनाता है; बाइबिल की इस शिक्षा को त्यागे बिना कि ईश्वर सर्वशक्तिमान और असीम रूप से अच्छा है। यह इस तथ्य के लिए पर्याप्त व्याख्या प्रस्तुत करता है कि हम मनुष्य विचारशील प्राणी हैं और हममें अमूर्त (विचार या कल्‍पना मात्र में, न कि कोई भौतिक वस्‍तु) विचार की क्षमता और नैतिक विकल्प चुनने की क्षमता है।

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बहुत से संदेह करने वाले elhfg;ksa की मदद करने की कोशिश करने के बाद, मैंने निष्कर्ष निकाला है कि आत्मिक संकट का सबसे आम स्रोत वह है जिसे मैं विश्वास-संदेह द्वि उलझन कहूंगा। यह उस प्रकार का संदेह नहीं है जिसमें विश्वास करने की प्रवृत्ति का अभाव है।

उदाहरण के लिए, सुज़ैन के मामले में, यह आत्मविश्वास के दौर से लेकर निराशा के दौर तक उतार चढ़ाव का मामला था। वह एक बुजुर्ग विधवा थीं जो एक आदर्श गृहिणी और सक्रिय चर्च सदस्य थीं। उसने मुझसे निराशा के एक समय में उसके लिए प्रार्थना करने को कहा। उन्होंने कहा कि उन्होंने कभी भी अपनी समस्या किसी के सामने नहीं बताई, यहां तक कि अपने दिवंगत पति के सामने भी नहीं।

जॉर्ज में एक अलग तरह की दुविधा थी — उन्होंने युवावस्था में ही स्वयं को मसीह के प्रति समर्पित कर दिया था और मसीही आचरण का एक आदर्श था, लेकिन अब अपने पचास के दशक के अंत में उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें हमेशा उस पिता की तरह महसूस होता था जिन्होंने कहा था, “बालक के पिता ने तुरन्त गिड़गिड़ाकर कहा; हे प्रभु, मैं विश्वास करता हूं, मेरे अविश्वास का उपाय कर।” (मरकुस 9:24) बाइबल पाप, यीशु मसीह, और उद्धार के बारे में जो कहती है वह उस पर विश्वास करता है -इतना कि अंदर ही अंदर वह प्रभु को प्रसन्न करना चाहता है। उन्होंने निजी और पारिवारिक भक्ति को अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया है। वह एक वफादार और सक्रिय चर्च सदस्य है। फिर भी समय-समय पर तरह-तरह के संदेह उसे परेशान करते हैं। कुछ निराशाएँ उसे प्रार्थना के महत्व पर संदेह करने पर मजबूर कर देती हैं। एक करीबी दोस्त की असामयिक मृत्यु ने , जिसके लिए उन्होंने कई प्रार्थनाएँ की थीं, उन्हें परमेश्वर की अच्छाई पर संदेह करने पर मजबूर कर दिया। वह एक भावुक व्यक्ति है और वह पूरी दुनिया में लाखों कुपोषित और प्रताड़ित लोगों के बारे में खुद को सोचने से रोक नहीं सकता, ईश्वर के अस्तित्व के बारे में क्षणिक संदेहों पर विचार किए बिना। उन्होंने अपनी शंकाएं कुछ ही लोगों से साझा की हैं। आखिरी चीज़ जो वह करना चाहेगा वह है दूसरों का विश्वास हिलाना। बार-बार आने वाले ये संदेह उसके लिए जीवन कठिन बना देते हैं।

सुज़ैन और जॉर्ज जैसे लोगों को यह समझना चाहिए कि उनका संदेह करना न तो पाप है और न ही यह संकेत है कि वे सच्चे विश्वासी नहीं हैं। जब तक हम ऐसे मस्तिष्क के साथ रहते हैं जो रासायनिक असंतुलन के अधीन है, तब तक भावनात्मक उतार-चढ़ाव आते रहेंगे जो हमें आत्मिक रूप से प्रभावित करते हैं। यदि कुछ भी हो, तो संदेह और भय से जूझना आत्मिक वास्तविकता का मजबूत प्रमाण देता है।

जब तक हम ऐसे मस्तिष्क के साथ रहते हैं जो रासायनिक असंतुलन के अधीन है, तब तक भावनात्मक उतार-चढ़ाव आते रहेंगे जो हमें आत्मिक रूप से प्रभावित करते हैं।

संदेह से जूझ रहे लोगों को 1 कुरिन्थियों 10:13 के आश्वासन को भी ध्यान में रखना चाहिए। परमेश्वर उन्हें सहने से बाहर परीक्षा में नहीं पड़ने देगा। बल्कि उनके जीवन में आने वाली हर परीक्षा के लिए उन्हें पर्याप्त अनुग्रह प्रदान करेंगे।

यदि हम बाइबिल के इस आश्वासन को को अच्छी तरह अपने मन में रख लेगें, तो हम इस बात के निरंतर भय में नहीं रहेंगे कि कल क्या हो सकता है – यहाँ तक कि मृत्यु भी। कहते हैं जब किसी ने डी. एल. मूडी से पूछा , जो उस समय अच्छे स्वास्थ्य में थे, कि क्या उन्हें मरने का अनुग्रह प्राप्त है, तो प्रचारक ने उत्तर दिया, “नहीं, लेकिन मैं अभी नहीं मर रहा हूँ।” हालाँकि, जब उनके मरने का समय आया, तो उन्हें स्पष्ट रूप से वह अनुग्रह प्राप्त हुआ। जो लोग उनकी मृत्यु से पहले उनके साथ थे, उन्होंने बताया कि वह पूरी तरह से शांति में थे, और अपने मरने के समय उन्होंने विजयी रूप से “पृथ्वी पीछे छूट रही है” और “स्वर्ग बुला रहा है” के बारे में बात की थी।

आस्था–संदेह की उलझन से परेशान लोगों के लिए यहां चार व्यावहारिक सुझाव दिए गए हैं:

1. संदेह के साथ बार-बार होने वाले मुकाबलों के लिए तैयार रहें। हम मानव शरीर (लोहू और मांस) के दोषपूर्ण प्राणी हैं जो थक जाते हैं और पाप से बिगड़ी अपनी मनोवैज्ञानिक संरचना के साथ निराशा, दर्द और दुःख का सामना करते हैं।

2. एक अच्छे जानकार ईसाई को खोजें जिसके साथ आप अपने संदेहों के बारे में बात कर सकें। उत्साहजनक बाइबिल अंशों पर चर्चा करें और एक साथ प्रार्थना करें।

हम मानव शरीर (लोहू और मांस) के दोषपूर्ण प्राणी हैं जो थक जाते हैं और पाप से बिगड़ी अपनी मनोवैज्ञानिक संरचना के साथ निराशा, दर्द और दुःख का सामना करते हैं।

3. भजन संहिता 42 को अपने और परमेश्वर के बीच संवाद के एक उदाहरण के रूप में उपयोग करें। पहचानें कि आप बदलती दुनिया में समय के प्राणी हैं, और साथ ही अनंत काल के नागरिक हैं। अपने आप से पूछें, “हे मेरे प्राण, तू क्यों गिरा जाता है? और तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है? परमेश्वर पर आशा लगाए रह; क्योंकि मैं उसके दर्शन से उद्धार पाकर फिर उसका धन्यवाद करूंगा।” (पद 5)। समय और परिवर्तन के प्राणी के रूप में, स्वीकार करें कि आप, भजनहार की तरह, उसकी ” तरंगों और लहरों ” से घिरे हुए हैं, लेकिन अनंत काल के बच्चे के रूप में अपना आभार व्यक्त करें कि परमेश्वर आपके प्रति अपना प्रेम निर्देशित करेंगे और आपको एक गीत देंगे (पद 6-8). एक सांसारिक प्राणी के रूप में, परमेश्वर को अपने अन्दर की बैचेनी के बारे में सब बताएं। लेकिन अनंत काल के लिए छुटकारा पाने वाले व्यक्ति के रूप में, अपने आप से पूछें कि आप अपनी निराश आत्मा को कैसे सही ठहरा सकते हैं (पद 11)।

इस प्रकार का संवाद आपको अपनी भावनाओं को सुलझाने और इस तथ्य को सबसे पहले अपने दिमाग में रखने में मदद करेगा कि आप अभी भी एक अशांत और बदलते ग्रह पर एक दोषपूर्ण व्यक्ति हैं, और अनुग्रह से आप, सबसे पहले, परमेश्वर की संतान और स्वर्ग के एक नागरिक हैं।

4. ध्यान रखें कि विश्वास का अर्थ उस पर भरोसा करना है जो परमेश्वर ने किया है और कहा है – अपना जीवन उसे समर्पित करने के लिए पर्याप्त है। आपके संदेह और भय के बावजूद आपकी निरंतरता (बने रहना) आपके विश्वास की वास्तविकता की गवाही देती है। अपने आप को उन लोगों से प्रभावित न होने दें जो आसान समाधान की पेशकश करते हैं। कोई जादुई सूत्र नहीं हैं, कोई विशेष रहस्य नहीं हैं जो केवल कुछ ही लोगों को ज्ञात हों। इसलिए, परमेश्वर पर भरोसा रखें और वही करते रहें जो आप जानते हैं कि सही है। अँधेरा पहले भी हटा था ,फिर से हटेगा।

 

परमेश्वर पर भरोसा रखें और वही करते रहें जो आप जानते हैं कि सही है। अँधेरा पहले भी हटा था, फिर से हटेगा ।

 

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जीवन के सभी क्षेत्रों के अपने चक्र (दौर) होते हैं। एक व्यवसाय, एक विवाह और यीशु के साथ एक रिश्ता आम तौर पर हनीमून अवधि (चिंताओं से मुक्त एक खुशहाल समय) के साथ शुरू होता है, फिर एक ऐसे समय में प्रवेश करता है जिसके दौरान जीवन की वास्तविकताएं धीरे-धीरे प्रारंभिक निर्माण की जगह ले लेती हैं। इससे अक्सर मोहभंग (मायूसी) और असंतोष का अलग अलग स्तर का समय आता है।

यही वह समय है जब महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाने चाहिए। कार्यस्थल पर — कोई व्यक्ति नौकरी छोड़ सकता है, असंतुष्ट कर्मचारी के रूप में काम करना जारी रख सकता है, या समस्याओं का सामना कर सकता है। विवाह में— कोई व्यक्ति तलाक लेकर बच सकता है, नीरस रिश्ते को जारी रख सकता है, या विवाह को सुधारने के लिए तैयार हो सकता है। मसीही जीवन में — कोई व्यक्ति हार मान सकता है, नाखुश और पराजित विश्वासी के रूप में बने रह सकता है, या कठिनाइयों में काम करने का दृढ़ संकल्प कर सकता है। पूरा चक्र पूरा करने से अक्सर कार्यस्थल में संतुष्टि का एक नया स्तर आता है, हनीमून प्रेम को पारस्परिक रूप से समझदारी के स्तर तक उठाता है, प्रेम को समृद्ध करता है, और उस उत्साहपूर्ण विश्वास को, जिसके साथ हमने शुरुआत की थी, आत्मविश्वास से भरे विश्वास में बदल देता है। पर फिर भी संघर्ष जारी रहेगा — —

जब तक हम इस पतित दुनिया में रहने वाले दोषपूर्ण लोग हैं, हम संदेहों का सामना करेंगे। लेकिन यीशु ने वादा किया – “जगत की ज्योति मैं हूं, जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अन्धकार में न चलेगा परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा।” (यूहन्ना 8:12)। अपनी मानवीय कमज़ोरियों के कारण हम कभी कभी परमेश्वर के मार्ग से भटक कर अंधकार में चले जाते हैं। लेकिन अगर हम भजन के लिखने वाले की चेतावनी पर भरोसा करें और उसका पालन करें, तो हम जल्द ही उसके रास्ते पर वापस आ जाएंगे। और फिर — अंधकार नहीं, मसीह का प्रकाश, हमारा घर होगा।

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