पढ़ें: कुलुस्सियों 2:6-9

क्योंकि उसमें (मसीह) ईश्‍वरत्व की सारी परिपूर्णता सदेह वास करती है (पद. 9)

दशकों से स्कॉटलैंड के प्रति मेरा आकर्षण रहा है। शायद यह फिल्म ब्रेवहार्ट में विलियम वालेस की वीरता का चित्रण है या हाइलैंड्स के दृश्य है। शायद इसलिए की मेरे पिताजी ने एक बार स्कॉटिश कुल के बारे में बात की थी जिससे हम अपने पारिवारिक इतिहास का पता लगाते हैं। मैंने उस जगह के बारे में अक्सर सोचा है और लोगों और भूमि के बारे में कई धारणाएँ रखी हैं। हालाँकि, धारणाएँ और वास्तविकता हमेशा भिन्न होती है। यह जगह वास्तव में कैसी है यह जानने के लिए मुझे उस हरी-भरी मिट्टी पर अपने पैर रखने पड़े, भाषा की लय सुननी पड़ी और स्कॉटिश भोजन खाना पड़ा। किसी भी सत्य को जानने के लिए, हमें वास्तविकता का अनुभव करना होगा – न कि केवल पढ़ना या उसके बारे में सोचना।

इसी प्रकार, पवित्रशास्त्र इस बात पर जोर देता है कि यदि हम ईश्वर की वास्तविकता को जानना चाहते हैं, तो हमें यीशु मसीह का सामना करना होगा। ईश्वर एक अस्पष्ट, दूर की कल्पना नहीं है जो केवल धूल भरी कहानियों और भंगुर आज्ञाओं से जुड़ा है। वह वही है जो यीशु के रूप में मांस और रक्त के रूप में हमारे सामने प्रकट हुआ। ईश्वर वास्तविक है, केवल एक धार्मिक विचार नहीं, “क्योंकि उसमें(मसीह) ईश्‍वरत्व की सारी परिपूर्णता सदेह वास करती है (कुलुस्सियों 2:9)। यदि हम जानना चाहते हैं कि ईश्वर कैसा है, तो हमें यीशु की ओर देखना चाहिए। वह देहधारी परमेश्वर है।

इसलिए हम पवित्रशास्त्र में यीशु के शब्दों को सुनते हैं, और हम सुनते हैं कि ईश्वर की वाणी कैसी है। हम यीशु के कार्यों को देखते हैं, और हम देखते हैं कि ईश्वर क्या करता है। यीशु में, हम परमेश्वर का हृदय, परमेश्वर की इच्छाएँ, और परमेश्वर का रवैया समझते हैं। यीशु में, हम देखते हैं कि वह दुख या शोक में डूबे लोगों के लिए कैसे रोते हैं। (यूहन्ना 11:33-35) यीशु में, हम देखते हैं कि कैसे वह दोष लगाने के बजाय स्वागत करते हैं (8:1-11)। यीशु में, हम देखते हैं कि जब शक्तिशाली लोग अपने अधिकार का दुरुपयोग करते हैं और लालच का पीछा करते हैं तो परमेश्वर कैसे क्रोधित हो जाते हैं (मत्ती 21:12-17)। उसी(यीशु) में जड़ पकड़ते और बढ़ते जाओ (कुलुस्सियों 2:7)

वह आपके प्रति और संसार के प्रति परमेश्वर का हृदय प्रकट करता है।

—विन्न कोलियर

अतिरिक्त

यूहन्ना 8:1-11 पढ़ें और विचार करें कि यह परमेश्वर के हृदय के बारे में क्या प्रकट करता है। आपको किस बात पर आश्चर्य हुआ? आपको किस चीज़ से आराम मिलता है? आपको क्या चुनौती देता है?

अगला

आपने किस तरह से ईश्वर की अपनी छवि और यीशु के बारे में अपनी समझ के बीच अलगाव महसूस किया है? यीशु का जीवन और व्यक्तित्व परमेश्वर के प्रति आपके दृष्टिकोण को किस प्रकार नया आकार देता है?

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