विश्वास बनाए रखना हमेशा आसान नहीं होता, विशेषरूप से उस समय जब जीवन वैसा नहीं चल रहा हो जैसा हम चाहते हैं। यहाँ कुछ विशेष रूप से चुनी गई भक्ति-परक श्रृंखलाएँ दी गई हैं जो आपको विश्वास में चलने में आपकी सहायता करेंगी — चाहे आप किसी व्यक्तिगत क्षति से गुजर रहे हों, या आपके मन में अब भी कुछ अनुत्तरित प्रश्न हों, या कुछ ऐसी प्रतिज्ञाएँ हो जो अब तक पूरी नहीं हुईं हैं, या फिर आप बस परमेश्वर के साथ और भी निकटता में आते हुए विश्वास में चलने की इच्छा रखते हों, तो ये लेख आपको प्रोत्साहित करेंगे कि आपके विश्वास को शक्तिशाली नहीं, बस सच्चा होना चाहिए।
जैसे-जैसे आप आगे पढ़ते हैं, हमारी प्रार्थना है कि आप अपने विश्वास को बढ़ता हुआ देखेंगे और इसे दृढ़ बनाने के लिए परमेश्वर में सामर्थ्य पाएंगे।

 

अटूट विश्वास

जब डॉक्टरों ने उनके पहले जन्मे बेटे को ऑटिज्म से पीड़ित पाया, तो डायऐन  और उनके पति को जीवन भर मानसिक विकास से जु़ड़ी एक बीमारी  से विकलांग बच्चे की देखभाल करने का दुख हुआ। अपनी पुस्तक अनब्रोकन फेथ में, वह अपने प्यारे बेटे के भविष्य के लिए अपने सपनों और अपेक्षाओं को समायोजित करने के लिए संघर्ष करने की बात स्वीकार करती है। फिर भी इस दर्दनाक प्रक्रिया के माध्यम से, उन्होंने सीखा कि परमेश्वर उनके क्रोध, संदेह और भय को संभाल सकते हैं। अब, जब उनका बेटा वयस्क हो गया है, तो डायऐन  अपने अनुभवों का उपयोग विशेष जरूरतों वाले बच्चों के माता-पिता को प्रोत्साहित करने के लिए करती है। वह दूसरों को परमेश्वर  की अटूट प्रतिज्ञाओं, असीम सामर्थ्य और प्रेमपूर्ण विश्वसनीयता के बारे में बताती है। वह लोगों को आश्वस्त करती है कि जब हम किसी सपने, किसी उम्मीद, किसी रास्ते या जीवन के किसी दौर की मृत्यु का अनुभव करते हैं, तो वह हमें शोक करने की अनुमति देता है।

यशायाह 26 में, भविष्यवक्ता घोषणा करता है कि परमेश्वर के लोग हमेशा के लिए परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं, “यहोवा पर सदा भरोसा रख, क्योंकि प्रभु यहोवा सनातन चट्टान है” (पद 4)। वह हर परिस्थिति में हमें अलौकिक शांति के साथ बनाए रखने में सक्षम है  “हे यहोवा, तू हमारे लिये शान्ति ठहराएगा”(पद 12)। उसके अपरिवर्तनीय चरित्र पर ध्यान केन्द्रित करना और मुश्किल समय में उसे पुकारना हमारी आशा को पुनर्जीवित करता है ( पद 15)।

जब हम किसी नुकसान, निराशा या कठिन परिस्थिति का सामना करते हैं, तो परमेश्वर हमें उसके साथ ईमानदार होने के लिए आमंत्रित करता है। वह हमारी हमेशा बदलती भावनाओं और हमारे सवालों को संभाल सकता है। वह हमारे साथ रहता है और स्थायी आशा के साथ हमारी आत्माओं को आनंदित करता है। यहां तक कि जब हमें लगता है कि हमारा जीवन बिखर रहा है, तब भी परमेश्वर हमारे विश्वास को अटूट बना सकता है।

— सोचिल डिक्सन

 

विश्वास की छलांग

पश्चिमीअंटार्कटिका में लगभग सात सौ सम्राट पेंगुइन, जो केवल छह महीने के थे, ठंडे पानी से पचास फीट ऊपर एक ऊंची बर्फीली चट्टान के किनारे एक साथ इकट्ठे हुए। अंत में एक पेंगुइन आगे झुका और “विश्वास की छलांग” लगाई, नीचे बर्फीले पानी में गोता लगाया और तैरकर दूर चला गया। जल्द ही कई पेंगुइन ने छलांग लगा दी। युवा पेंगुइन आमतौर पर अपनी पहली तैराकी के लिए पानी में सिर्फ़ दो फीट की छलांग लगाते हैं। इस समूह की मौत को मात देने वाली छलांग कैमरे में कैद होने वाली पहली छलांग थी।

कुछ लोग कहेंगे कि उन पेंगुइन द्वारा अज्ञात में की गई बिना सोचे  समझे छलांग उसी तरह की है जैसा तब होता है जब कोई व्यक्ति उद्धार के लिए यीशु पर भरोसा करता है। हालाँकि, उस पर विश्वास इसके ठीक विपरीत है। इब्रानियों के लेखक ने कहा, “अब विश्वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय, और  अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है ” (इब्रानियों 11:1)।

 हनोक के विश्वास ने परमेश्वर को प्रसन्न किया: “विश्वास बिना उसे प्रसन्न करना अनहोना है” ( पद 6)। दुनिया ने महाप्रलय जैसी कोई घटना नहीं देखी थी, और फिर भी नूह ने “पवित्र भय में चितौनी पाकर भक्ति के साथ अपने घराने के बचाव के लिये जहाज बनाया, ” ( पद 7) क्योंकि उसने परमेश्वर पर भरोसा किया था। विश्वास के कारण अब्राहम ने परमेश्वर का अनुसरण किया “भले ही वह नहीं जानता था कि वह कहाँ जा रहा है” ( पद 8)। जब हम पहली बार यीशु पर अपना भरोसा रखते हैं, तो यह विश्वास के कारण होता है। जैसे-जैसे हम उसका अनुसरण करते रहते हैं और हमारे विश्वास की परीक्षा होती है, हम याद कर सकते हैं कि कैसे परमेश्वर ने इन लोगों के लिए काम किया। यहां तक कि जब हम नहीं जानते कि क्यों और कैसे, तब भी हम परिणाम के लिए परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं।

 — नैन्सी गेविलेन्स

 

विश्वास की परीक्षा

हमारे मन में यह विचार है कि परमेश्वर  हमें हमारे विश्वास के लिए प्रतिफल देता  है, और हो सकता है कि शुरुआती चरणों में ऐसा हो। लेकिन हमें विश्वास के ज़रिए कुछ नहीं मिलता – विश्वास हमें परमेश्वर के साथ सही रिश्ते में लाता है और उसे  काम करने का अवसर देता है। फिर भी परमेश्वर को अपने पवित्र जन के रूप में, आपको सीधे अपने साथ संपर्क में लाने के लिए, आपके अनुभव को कमज़ोर  करना पड़ता है । परमेश्वर चाहता है कि आप समझें कि यह विश्वास  का जीवन है, न कि उसके आशीषों का भावनात्मक आनंद लेने का जीवन। आपके विश्वास  के जीवन की शुरुआत बहुत संकीर्ण और गहन थी, जो थोड़े से अनुभव के इर्द-गिर्द केंद्रित थी जिसमें विश्वास जितनी ही भावनाएँ थीं, और यह प्रकाश और मिठास से भरपूर था। फिर परमेश्वर ने आपको “विश्वास से चलना” सिखाने के लिए अपने सचेत आशीषें   वापस ले लीं (2 कुरिन्थियों 5:7)। और आप अपनी उत्तेजित करने वाली गवाही के साथ सचेत आनंद के अपने दिनों की तुलना में अब उसके लिए बहुत अधिक कीमती हैं।

विश्वास को उसके स्वभाव के अनुसार परखा और आजमाया जाना चाहिए। और विश्वास की असली परीक्षा यह नहीं है कि हमें परमेश्वर  पर भरोसा करना मुश्किल लगता है, बल्कि यह है कि परमेश्वर का चरित्र हमारे अपने मन में विश्वसनीय साबित होना चाहिए। वास्तविकता में काम करने वाले विश्वास को निरंतर एकांत के समय का अनुभव करना चाहिए। विश्वास  की परीक्षा को कभी भी जीवन का सामान्य अनुशासन न समझें, क्योंकि जिसे हम विश्वास की परीक्षा कहते हैं, उसका एक बड़ा हिस्सा जीवित रहने का अवश्यम्भावी परिणाम है। विश्वास , जैसा कि बाइबल सिखाती है, परमेश्वर में विश्वास है जो हर उस चीज़ के खिलाफ आता है जो उसका विरोध करती है – एक विश्वास जो कहता है, “मैं परमेश्वर के प्रकृति के प्रति सच्चा रहूँगा चाहे वह कुछ भी करे।” पूरी बाइबल में आस्था की सर्वोच्च और महानतम अभिव्यक्ति है – ” चाहे वह मुझे घात करे, तौभी मैं उस पर आशा रखूंगा  ” (अय्यूब 13:15)।

से लिया गया  “माई अटमॉस्ट फॉर हिज हाईएस्ट”

 

अनदेखा

इतिहा सकारों का कहना है कि परमाणु युग की शुरुआत 16 जुलाई, 1945 को हुई थी, जब न्यू मैक्सिको के दूर के एक रेगिस्तान में पहला परमाणु हथियार विस्फोट किया गया था। लेकिन यूनानी दार्शनिक डेमोक्रिटस (लगभग 460-370 ई.पू.)  संसार के इन छोटे-छोटे निर्माण खंडों को देखने वाली किसी भी चीज़ के आविष्कार से बहुत पहले, परमाणु के अस्तित्व और शक्ति की खोज कर रहे थे । डेमोक्रिटस ने जितना देखा था, उससे कहीं ज़्यादा समझा और परमाणु सिद्धांत इसका परिणाम था।

पवित्र शास्त्र हमें बताता है कि विश्वास का सार यह है कि हम जो नहीं देख सकते उसे अपनाएँ। इब्रानियों 11:1 पुष्टि करता है, ” अब विश्वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय, और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है।” यह आश्वासन  इच्छुक या सकारात्मक सोच का परिणाम नहीं है। यह उस परमेश्वर पर भरोसा है जिसे हम नहीं देख सकते लेकिन जिसका अस्तित्व (मौजूदगी) संसार  में सबसे सच्ची वास्तविकता है। उसकी वास्तविकता उसके रचनात्मक कार्यों (भजन संहिता  19:1) में प्रदर्शित होती है और और उनके अदृश्य चरित्र और तरीकों को, उनके पुत्र, यीशु में, जो हमें पिता का प्रेम दिखाने के लिए आए थे, प्रगट  किया  है  (यूहन्ना 1:18)।

यह वह परमेश्वर है जिसमें “हम जीवित रहते हैं, चलते-फिरते हैं और स्थिर रहते हैं,” जैसा कि प्रेरित पौलुस ने कहा (प्रेरितों के काम 17:28)। इस प्रकार, “हम दृष्टि से नहीं, बल्कि विश्वास से जीते हैं” (2 कुरिन्थियों 5:7)। फिर भी हम अकेले नहीं चलते। अनदेखा परमेश्वर हर कदम पर हमारे साथ चलता है।

बिल क्राउडर

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जैसा कि आपने पढ़ा, आज परमेश्वर आपके हृदय में किस प्रकार से कार्य कर रहे हैं ताकि आप उन पर और अधिक भरोसा कर सकें?

क्या आपके जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र है जहाँ आपको अपनी शारीरिक दृष्टि के अनुसार नहीं, बल्कि विश्वास के साथ चलने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा हैं?

कोई एक ऐसा छोटा-सा विश्वास का कदम सोचें, जिसे आप उठा सकते हैं — जहाँ पवित्र आत्मा आपका मार्ग दर्शन कर सके और आपको सहारा दे सके।

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