मैं अपने कमरे के कोने में छोटे नीले रंग के सोफ़े पर बैठ कर उसे सांस लेते देखती थी। वह एक समय पर जीने का और एक ही समय पर मरने का प्रयत्न कर रहा था। वैज्ञानिक कहते हैं वैवाहिक जोड़ो की सांस लेने की और हृदय की गति कुछ समय के बाद परस्पर मिलने लगती है। अन्य लोग इस बात को नहीं समझ सकते हैं, पर मैं और आप जानते हैं कि यह सत्य है। अंत में जब श्वास लेने और छोड़ने में बहुत देर तक रुकावट नहीं हुई—और जब और सांस नहीं बची, प्रतीक्षा की घड़ी समाप्त हो चुकी थी— तुम्हारा हृदय धड़कना बंद हो चुका था, और सांस नहीं ले पा रहे थे। हाँ केवल मैं। यदि तुम वहाँ नहीं होते, यदि मैं और मेरा पति दोनों एक दूसरे से कई मील दूर होते —हम उसे महसूस कर सकते थे।
अप्रैल माह में दोपहर में वर्षा हो रही थी, मेरे पति की सांस बहुत रुक कर आ रही थी, और मेरे 22 वर्षीय पति ने अपनी अंतिम सांस ली—और मैंने उन्हें अंतिम विदाई दी। अभी मैं अपनी सांस रोक कर बैठी हूँ, कई वर्षों बाद, जब मैं लिख रही हूँ और याद करती हूँ, और मैं इस बात पर आश्चर्य कर रही हूँ कि क्या परिस्थितियाँ मुझे इस पृष्ठ तक ले कर आई हैं।मैं आपको देख रही हूँ; ऐसा लग रहा है कि आप भी अपनी सांस रोके हुए हैं। हम दोनों यहाँ पर एक ही कारण से हैं। आपके पति ने अंतिम श्वास ली, और आपकी श्वास तेज़ी से चल रही है। थाम कर रखें। सर्वव्यापी परमेश्वर की आत्मा, स्वर्ग और पृथ्वी के रचने वाले, इस जीवन, श्वास, मृत्यु और प्रत्येक स्थिति के संचालन में उपस्थित है।परमेश्वर की श्वास, उसकी उंडलती हुई आत्मा सदैव आपके साथ है। आप फिर से अपनी श्वास अंदर बाहर कर सकते हैं—सदैव अपनी श्वास को आप बिना किसी विषम धार दर्द के थाम कर रख सकते हैं। आप अपनी सांस थाम कर रख सकते हैं, और जी सकते हैं, क्योंकि आपका परमेश्वर जीवतों का परमेश्वर है।
- क्यों इतना दर्द पंहुचता है
- अज्ञात
- स्थिर
- धातुमल
- याद करना
- पुनर्स्थापना (पुन:स्थापना)
- अलविदा में अच्छाई
- उपसंहार : कार्यभार
““दोपहर होने पर सारे देश में अँधियारा छा गया—तब यीशु ने बड़े शब्द से चिल्लाकर प्राण छोड़ दिये। और मंदिर का पर्दा ऊपर से नीचे तक फटकर दो टुकड़े हो गया।” – मरकुस 15:33,37,38
कुछ लोग इस बात को इस प्रकार से वर्णन करते हैं जैसे कि उनका शरीर छिन्न भिन्न हो गया है। कुछ कहते हैं कि वे सांस नहीं ले सकते हैं, और कुछ कहते हैं कि उनका रक्त बहना नहीं रुका । आपको मालूम है कि उनका ऐसा कहने का क्या अर्थ है, क्योंकि उनका प्रिय उन्हें छोड़ कर जा चुका होता है। वह बिस्तर जो कभी किसी खराब दिन पर आप दोनों को बहुत छोटा लगता था,और अच्छे दिन पर अत्यंत आरामदेह लगा था,अब वह समुद्र की तरह विशाल और खाई के समान गहरा लगता है।
आपका पति यहाँ पर नहीं है, और आपको अपना हृदय नीरस स्थान लगता है। आपने कभी पहले इसे नहीं समझा था, पर अब आप समझते हैं। आपके लिए इस धरती पर “अँधियारा” है।
यीशु मसीह के द्वारा ली गई अंतिम श्वास उद्देश्यपूर्ण, और स्वतन्त्रता पूर्वक मृत्यु के अनुभव का इच्छापूर्वक समर्पण था। पर इस क्षण आपको यह मज़ाक लग रहा होगा श्वास लेने के लिए अपना सर्वोत्तम प्रयास करना—मृत्यु विजय नहीं पा सकी। वह प्रेम जो उस दिन तितर बितर हो गया, यह वही प्रेम था जिस पर उद्धार की नयी वाचा की आपके और मेरे लिए मुहर लगाई गई थी।यद्यपि वाचा का वह बन्ध जो आप और आपके पति के बीच में था वह दो भागों में बंट चुका है। उनकी मृत्यु आपकी इंद्रियों को सुन्न कर देती है और सारे समय प्रज्ज्वलित रहती है।
पौलुस प्रेरित नई वाचा के विषय में क्या कहते हैं, “क्योंकि जो काम व्यवस्था शरीर के कारण दुर्बल होकर न कर सकी, उसको परमेश्वर ने किया, अर्थात अपने ही पुत्र को पापमय शरीर की समता में, और पाप के बलिदान होने के लिए भेजकर, शरीर में पाप पर दंड की आज्ञा दी।” (रोमियों 8:3)
पर वाचा का वह प्रेम जिसका मूल्य वास्तव में चुकाया गया था, अब खोता हुआ प्रतीत होता है,और दुख के बंजर मैदान में पावित्र फल लगेंगे। यद्यपि अभी आपको यह जीवनरहित क्षितिज लगता है। क्यों : विवाह अस्थायी है: जो वास्तविकता वह दर्शाता है वह अनंत है।
जब आप अपने यादों के दर्पण में देखते हैं, आप उसमे अपने विवाह के महत्व और महिमा की झलक को देखते हैं। आपका यह दर्द उस भाग का “जब तक मृत्यु हमें अलग न करे” का अस्थायी भाग है, पर अनंत सच्चाई मृत्यु पर विजय है। इस सच्चाई को समझने के बाद आपके दुख की गहराई कम होने लगती है। मृत्यु परमेश्वर की अटल वाचा का उल्लंघन करती है। पर परमेश्वर ने मृत्यु पर विजय प्राप्त करी। “कि जब तक गेहूं का दाना भूमि में पड़कर मर नहीं जाता, वह अकेला रहता है परंतु जब मर जाता है, तो बहुत फल लाता है।” (यूहन्ना 12:24)
फिर से आप अपने विवाह को दर्पण में देखें। आपने उसे एक बहता हुआ सोता सोचा था वह एक जीवनरहित क्षितिज था, आपके सामने बहुतायत से नए जीवन की फसल खड़ी है, जो मृत्यु के अंत की कल्पना का उल्लंघन करती है।
विवाह आपस में एक दूसरे का परस्पर प्रेम में समर्पण है। विवाह वाचाओं में बंधा होता है, अर्थात “अदला बदली” विवाह में होना ही चाहिए। यद्यपि यह एक रहस्य है, एक बलिदान भी होना चाहिए—बलिदान, लहू का। इसमें आश्चर्य की बात नहीं है इसीलिए विवाह को “वेदी” कहा जाता है।
विवाह की वाचा एक रिश्ते की मुहर है—जो कि दोनों के मध्य में लहू और हृदयों की दैवीय एकता के कारण होती है। “इस कारण पुरुष अपने माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे एक तन बने रहेंगे।” (उत्पत्ति 2:24) यह इसलिए है क्योंकि परमेश्वर ने इस वाचा पर मुहर लगाई है। अर्थात इसको जब तक नहीं तोड़ा जा सकता है जब तक कि इसमें विनाशकारी जटिलता या दर्द न हो। आपने देखा कि परमेश्वर एक ऐसा गोंद है जो दो भिन्न लोगो को जोड़ता है और अद्भुत रीति से मजबूती से उनके प्रेम को एकरसता मे बांधता है। इस धरती के विवाह,यीशु और उसकी दुल्हन (कलीसिया ) की वाचा के प्रतिरूप हैं, और मृत्यु के आत्ममोह ने इसके महत्व को कम करके इस प्रतिरूप को नष्ट कर दिया है।
इस वाचा पत्र की गहराई इस बात का कारण है कि आपको अपने के खोने से बहुत आघात पंहुचता है :जो प्रभावशाली और अपरिवर्तनीय था, वह अब दो में बंट चुका है।
आपका दुख एक ऐसा अकथनीय दुख है जिसे एक पवित्र प्रत्युत्तर की आवश्यकता है। दुख या आघात शब्द का वर्णन भी नहीं किया जा सकता है। उसी प्रकार हमारे लिए यीशु का बलिदान एक ऐसा अकथनीय दर्द है, जिसका प्रत्युत्तर भी पवित्र होना चाहिए। यद्यपि शब्दों में उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है न समविष्ट किया जा सकता है। पर नियम मृत्यु ने नहीं— परमेश्वर ने बनाए हैं।
मंदिर के पर्दे के फटने के कारण जो भय उत्पन्न हुआ था, और जिसे विनाश का चिन्ह माना जा रहा था, वह अब एक विश्वासी को शांति देता है। क्योंकि जिस प्रकार से मंदिर क