पने चारों ओर देखो। आप क्या देखते हैं? आप किसे देखते हैं? जब यीशु इस संसार में था तब उसने लोगों को वैसे देखा जैसे वे थे, और उनकी सबसे बड़ी जरूरत के समय उन तक पहुंचा— शारीरिक और भावनात्मक मुद्दों से लेकर उनके गहरे से गहरे आत्मिक मुद्दों तक, यीशु ने दूसरों की ज़रूरतों को पूरा किया। यीशु ने कहा कि वह दूसरों की सेवा करने के लिए आया था।

यीशु की तरह सेवा करने के अवसर हमारे चारों ओर हैं और आवश्यकतायें इतनी अधिक होती है कि उनसे परेशान महसूस करना और दोषी महसूस करना कि हम और अधिक नहीं कर पा रहे हैं बहुत आसान होता है। लेकिन सेवा जिम्मेदारियों के बारे में नहीं है। दूसरों की सेवा करना, उन्हें देखने और उन्हें महत्व देने के बारे में है। हम कहाँ से शुरू करें? स्वयं यीशु, और अच्छे सामरी का दृष्टांत, सही सवाल पूछने में हमारी मदद करता है ताकि हम जहां सेवा कर सकते हैं वहां सेवा कर सकें, और जो हमारे पास है उससे हम कैसे करें।

जे आर हडबर्ग

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मेरे बगल वाली सीट से आती हुई भुने मुर्गे की महक मेरे ट्रक में भर गई। मेरे मुंह में पानी आ रहा था। घर पहुंच कर रसदार मांस खाने के लिए इंतजार करना कठिन हो रहा था। मेरे पूरे परिवार को कॉस्टको का भुना हुआ चिकन बहुत पसंद है। मेरे काम से घर के रास्ते के बीच में था(कॉस्टको रास्ते से बाहर भी नहीं है); वहां रुककर भुना मुर्गा खरीदना हमारे पसंदीदा रात्रिभोज के लिये बहुत शीघ्र और आसान होता था।

वह स्टॉपलाइट (घूमने वाली रोशनी) पर हाथ में साइन बोर्ड लिए खड़ा था जिस पर तीन सरल शब्द लिखे थे: भूखा, कृपया मदद कीजिए।

मैं ट्रक में बैठा था और बत्ती हरी होने के लिए इन्तज़ार कर रहा था। आंखें सीधे आगे देख रही हैं। उसे मुर्गा, या कोई भी अन्य किराने का सामान जो मेरे ट्रक में था देने का विचार मेरे दिमाग में आया । गाडी की खिड़की को नीचे करके सीट पर रखे मुर्गे को उसे देना आसान होता। मैं और दस मिनट में जाकर दूसरा मुर्गा ला सकता था।

बत्ती हरी हो गई; मैंने गाड़ी आगे बढ़ाई, मैं चला गया।

दुर्भाग्य से, यह एक सच्ची कहानी है। मुझे इसे लिखने में थोड़ी शर्मिंदगी है। लेकिन मैं इस उम्मीद में लिखता हूं कि आप बाकी पढ़ लें ओर जानें कि मैं दूसरों की सेवा करने में कैसे संघर्ष करता हूं। यह उतना आसान नहीं है जितना मैं चाहता हूं। लेकिन मैं सीख रहा हूं। उस दिन मुझे एक बहुत कठोर सीख मिली। मेरे पास मदद करने की क्षमता है। कभी भी मुझे ऐसी प्रत्यक्ष स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा जहां कोई जरूरत थी और मेरे पास उसे पूरा करने के लिए सही चीज भी थी; लेकिन मैंने फिर भी मदद न करना चुना।

मैंने उस दिन के बारे में बहुत सोचा है। पवित्र आत्मा ने उन कुछ पलों का दो तरह से उपयोग किया है : प्रोत्साहन और दृढ़ विश्वास। सेवा करने के विषय पर विचार करते समय आत्मा का कार्य महत्वपूर्ण होता है। केवल दोषी महसूस करना आसान हो सकता है (और अपराध बोध की एक निश्चित मात्रा उचित हो सकती है), लेकिन केवल अपराधबोध–या बहुत अधिक अपराधबोध– देने और सेवा करने के लिए सबसे अच्छी प्रेरणा नहीं है। पवित्र आत्मा के कार्य और चलन पर भरोसा करने से हमें उचित रूप से प्रतिक्रिया करने और अपनी सेवा को उचित तरीके से देखने में मदद मिलेगी।

अच्छे (दयालु) सामरी का मार्ग  ♥

अच्छे (दयालु) सामरी के यीशु के प्रसिद्ध दृष्टांत में (लूका 10:25–37), वह हमारे आसपास के लोगों की जरूरतों को पूरा करने में हमारी जिम्मेदारियों को समझाता है। लेकिन यीशु जो कहते हैं उसमें एक दिलचस्प संकेत है।

कहानी एक व्यवस्थापक से शुरू होती है जो यीशु से पूछता है कि उसका पड़ोसी कौन है। वह अपनी जिम्मेदारियों की सीमा को अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम करने के लिए परिभाषित करना चाहता है। यहां हमें यह समझ में आता है कि वह व्यवस्थापक, निश्चित रूप से जितना जरूरी था उससे ज्यादा कुछ नहीं करना चाहता है, और न ही अपनी प्रशंसा के लिए, वह शायद आवश्यकता से कम भी नहीं करना चाहता है, लेकिन वह निश्चित रूप से और अधिक नहीं करना चाहता है। तो इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए कि मेरा पड़ोसी कौन है, यीशु अच्छे सामरी का दृष्टांत सुनाते हैं

हम अपेक्षा करते हैं कि जिसे जरूरत है वह हमारा पड़ोसी है, जिसे हमें प्यार करना चाहिए। हमें उन जरूरतों को पूरा करना चाहिए जिन्हें हम देखते हैं क्योंकि ऐसा करने के लिये हमारे पास क्षमता और अवसर हैं। लेकिन यीशु कुछ हैरान करने वाली बात कहते हैं। ज़रूरतमंद पड़ोसी की पहचान करने के बजाय, वह व्यवस्थापक से उस व्यक्ति की पहचान करने के लिए कहता है जिसने पड़ोसी की तरह काम किया (लूका 10:36) ।

ऐसा लगता है कि हमारी जिम्मेदारी के बाहरी किनारों को परिभाषित करने के बजाय, यीशु यह सुझाव देना चाहता था कि जो बात मायने रखती है वह यह है कि हम किस तरह के व्यक्ति हैं । क्या हम अपने मिलने वालों से पड़ोसियों की तरह व्यवहार कर रहे हैं। दृष्टान्त में, नायक अनपेक्षित होता है जबकि अपेक्षित नायक खलनायक न होने पर भी उदासीन हो जाते हैं। मुद्दा यह नहीं है कि हम लोगों को अपनी उदारता का पात्र समझते हैं, बल्कि यह कि हम उस तरह के लोग बनें जो हमेशा उदार होते हैं।

एक सामरी को नायक (लोगों के एक समूह से जिसे यहूदी बहुत नापसंद करते थे) बनाकर, यीशु व्यवस्थापक को मजबूर कर रहा था कि वह खुद को पड़ोसी से प्यार करने वाले व्यक्ति के रूप में नहीं, बल्कि ज़रूरतमंद के रूप में देखे। चुनौती स्पष्ट और प्रभावशाली थी, क्योंकि कोई भी स्वाभिमानी यहूदी एक सामरी से संबंध नहीं रख सकता; वह अपनी प्रतिक्रिया में “सामरी” भी नहीं कह सकता था, बस वह “जिसने उस पर दया की थी” कह सकता था। यीशु कहानी में दो बातें बता रहा था कि हम जरूरतों को कैसे पूरा करते हैं, और यह भी कि हम लोगों को कैसे देखते हैं। हमारा पड़ोसी कौन है इसकी कोई सीमा नहीं है। इसके बजाय, हमें पड़ोसियों की तरह काम करना है।

दूसरों की जरूरतों को पूरा करने पर बाइबिल 

पवित्रशास्त्र में कई जगाहों पर दूसरों की आवश्यकताओं को पूरा करने में हमारी जिम्मेदारियों को सीधे तौर पर बताया गया है। इन कुछ अंशों पर विचार करें :

व्यवस्थाविवरण 15:7–8 कहता है “जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उसके किसी शहर के भीतर यदि तेरे भाइयों में से कोई तेरे पास द्ररिद्र हो, तो अपने उस दरिद्र भाई के लिये न तो अपना हृदय कठोर करना, और न अपनी मुट्ठी कड़ी करना, जिस वस्तु की घटी उसको हो, उसका जितना प्रयोजन हो उतना अवश्य अपना हाथ ढीला करके उसको उधार देना।” और पद 11 में लिखा है, “तेरे देश में दरिद्र तो सदा पाए जाएंगे, इसलिये मैं तुझे यह आज्ञा देता हूं कि तू अपने देश में अपने दीन दरिद्र भाइयों को अपना हाथ ढीला करके अवश्य दान देना।”

मुद्दा यह नहीं है
कि हम लोगों
को अपनी
उदारता का
पात्र पाते हैं,
बल्कि यह है
कि हम उस
तरह के लोग
बन जाते हैं
जो हमेशा उदार
होते हैं।

और लूका 14:12–14 में यीशु कहता है, “फिर जिसने उसे आमन्त्रित किया था, वह उससे बोला, ‘जब कभी तू कोई दिन या रात का भोज दे तो अपने मित्रों, भाई बंधों, संबधियों या धनवान पड़ोसियों को मत बुला क्योंकि कहीं ऐसा न हो कि वे तुझे भी नेवता दें और इस प्रकार तेरा बदला हो जाये। बल्कि जब तू कोई भोज दे तो दीन दुखियों, अपाहिजों, लँगड़ों और अंधों को बुला। तब तू धन्य होगा क्योंकि उनके पास तुझे वापस लौटाने को कुछ नहीं है। इसका प्रतिफल तुझे धर्मी लोगों के जी उठने पर मिलेगा।”

याकूब हर किसी को लिखता है कि शुद्ध और निर्मल भक्ति यह है कि अनाथों और विधवाओं के क्लेश में उनकी सुधि लें (1:27) और वह विश्वास की वास्तविकता और मूल्य की समानता के लिये भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति का उपयोग करता है: “यदि तुम में से कोई उनसे कहता है कुशल से जाओ, गर्म रहो और तृप्त रहो, लेकिन जो वस्तुएँ देह के लिये आवश्यक हैं वह उन्हें न दे तो क्या लाभ? वैसे ही विश्वास भी यदि कर्म सहित न हो तो अपने आप में मरा हुआ है” (2:16–17)।

यीशु के पूरे जीवन और सेवकाई के बारे में यह कुछ भी नहीं कहता है, जहाँ उन्होंने लगभग हर किसी की शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा किया, जिसका उन्होंने सामना किया— कुएँ पर महिला (यूहन्ना 4),अंधे आदमी की चंगाई (यूहन्ना 9), याईर की मृत बेटी को जीवित करना (मरकुस 5:21–43), 5000 को भोजन खिलाना (मत्ती 14:13–21), और जक्कई का उद्धार (लूका 19:1–10) कुछ ही उदाहरण हैं।

दूसरों की जरूरतों को पूरा करना अपने आप में एक नेक परिणाम है। लेकिन जब हम उद्देश्य की बात करते हैं, तो हमारा मतलब केवल अंतिम परिणाम से ही नहीं होता, हम प्रेरणा की भी बात करते हैं। दूसरों की ज़रूरतों का खयाल रखने के लिए क्या बात हमें प्रेरित करती है?

यीशु और सेवा का कारण  ♥

फिलिप्पियों में हम पढ़ते हैं कि यीशु ने हमारे बीच रहने के लिए क्या त्याग दिया: “जिसने परमेश्वर के स्वभाव में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने लाभ की वस्तु न समझा वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया और दास का स्वरूप धारण करके मनुष्य की समानता में हो गया।” (फिलिप्पियों 2: 6–7) ।

मनुष्य बनने के लिए यीशु ने क्या त्याग दिया इसकी खोज में हमारे पास यहां जितना समय और स्थान है उससे कहीं अधिक समय और स्थान लगता है। लेकिन हम इन आयतों से बिना वाद विवाद किये जो निष्कर्ष निकाल सकते हैं वह यह है कि जो उचित रूप से यीशु का था उसे लेने और दूसरों की भलाई के लिए उसे त्यागने के लिए तैयार था। यीशु के पास मानवता की निराशाजनक जरूरत के लिए सब कुछ त्यागने की इच्छा थी। और यह महत्वपूर्ण बात है कि केवल यीशु के मानव बनने के बारे में यह पौलुस का एक धार्मिक कथन नहीं है। दूसरों की जरूरतों पर विचार करने का क्या मतलब है इसके लिये पौलुस यीशु को एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं । पौलुस देहधारण को एक नमूने के रूप में दिखाता है कि कैसे दूसरे के लिए कुछ त्यागना होता है।

देहधारण को सरलता से इस प्रकार से परिभाषित किया गया है: अनन्त परमेश्वर, यीशु मसीह के रूप में मनुष्य बन गया।.

जब हम यीशु और उसके मनुष्य बनने और उसके सेवा का जीवन जीने को देखते हैं, तो उसमें हमें एक स्पष्ट तस्वीर मिल जाती है कि दूसरों की सेवा करना कैसा दिखता है। हम जानते हैं कि उसके ऐसा करने का कारण “बहुतों को छुड़ाना” और “खोए हुओं को बचाना”था। फिलिप्पियों का यह अनुच्छेद हमें शायद मसीह की प्रेरणा का एक बड़ा दृष्टिकोण देता है

“और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को दीन किया और यहां तक आज्ञाकारी रहा कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली । इसलिए परमेश्वर ने उसे अति महान भी किया और उसे वह नाम दिया जो हर नाम से श्रेष्ठ है, कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और पृथ्वी के नीचे है वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।” (फिलिप्पियों 2:8–11)

इन कीमती पदों में हम पढ़ते हैं कि क्रूस पर अपनी मृत्यु के द्वारा यीशु ने जो किया वह कैसे पूरा किया। हमें उस मृत्यु के परिणाम के बारे में भी बताया गया है– प्रत्येक जीभ अंगीकार कर रही है कि यीशु मसीह ही प्रभु है। लेकिन इन पदों के अंतिम वाक्यांश में हमें अंतिम (खास) कारण की एक झलक देखने को मिलती है। यीशु ने जो कुछ किया उसे त्यागने का कारण, मानवता के उद्धार का उस बलिदान के लायक होने का कारण, और यीशु को प्रभु घोषित करने वाले लोगों का “ऐसा क्या” का कारण । पिता परमेश्वर की महिमा।

मानवता की सेवा करने में यीशु की प्रेरणा परमेश्वर की महिमा करना था। दूसरों की सेवा करने और अपने आसपास के लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए यह हमारी प्रेरणा भी हो सकती है। ऐसा लग सकता है कि लोग जरूरी नहीं हैं, या कम से कम परमेश्वर की महिमा से कम जरूरी हैं। आइए इस विचार के बारे में खोजबीन करें। यह पूछना अच्छा है कि यह कैसे परमेश्वर की महिमा ला सकता है।

फिलिप्पियों के इस अंश से हम देख सकते हैं कि केवल सेवा का कार्य ही महत्वपूर्ण नहीं है। इस अनुच्छेद का तर्क बताता है कि पूरी प्रक्रिया –सेवा और परिणाम– परमेश्वएर को महिमा देती है।

निस्संदेह सेवा के कार्यों से परमेश्वर की महिमा होती है! जब हम प्रेम के कार्य से दूसरों की ज़रूरतों को पूरा करते हैं, तो हम एक दूसरे के प्रति इस तरह कार्य कर रहे होते हैं जो उनके सृष्टिकर्ता की नज़रों में उनकी गरिमा और मूल्य का सम्मान करता है। लेकिन जब हम दूसरों की जरूरतों को इसलिये पूरा करते हैं ताकि वे भी फलने-फूलने की स्थिति में हों हमारे सृष्टिकर्ता और उद्धारकर्ता परमेश्वर की योजनाओं और इच्छाओं के अनुसार जीने के लिए तो इससे भी परमेश्वर की महिमा होती है।

यह तब होता है जब हम उस तरह से जीते हैं जिस तरह से परमेश्वर ने हमसे चाहा था और जब हम दूसरों को भी ऐसा करने में मदद करते हैं तो परमेश्वर सबसे अधिक महिमावान होते हैं। जब हम अपने लिए और दूसरों के लिए अपने निर्माता के रचनात्मक इरादों का सम्मान करते हुये समुदाय और न्याय के परमेश्वर–इच्छित सांचे में रहते हैं, तब हम घोषणा करते हैं कि परमेश्वर की योजना सर्वोत्तम है, और हमारे लिए उसकी इच्छाएँ हमारे अच्छे के लिए हैं।

हम पाप द्वारा खंड़ित संसार में रहते हैं। वह पापमय संसार उन आवश्यकताओं का मूल है जिनका हम प्रतिदिन सामना करते हैं। पाप ही हमारी स्वयं की कमी और दूसरों की कमी का मूल और कारण है। पाप ही है जो हमें दूसरों की सेवा करने का अवसर देता है। यीशु ने सेवा के अंतिम कार्य में आवश्यकताओं के मूल कारण का समाधान करने के लिए बहुत कुछ त्याग दिया और सहन किया। पाप के प्रभाव हमें दूसरों की सेवा करने का अवसर प्रदान करते हैं, उन्हें उस सम्पूर्णता में वापस लाने के लिए जिसे परमेश्वर चाहता है कि उसकी सृष्टि अनुभव करे। रिश्ते जो परमेश्वर की इच्छा के अनुसार कार्य करते हैं परमेश्वर को बहुत महिमा देते हैं।

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सूची बनाना 

यदि यीशु परमेश्वर के बराबर होते हुये भी अपना पद छोड़ने को तैयार था, तो हमारे पास क्या है जो हम छोड़ सकते हैं?

यह एक अलंकारिक (लोगों को प्रभावित करने वाला) प्रश्न नहीं है। एक वास्तविक सूची हमें अच्छी सेवा देने में बहुत मदद कर सकती है। यह जानना कि हमारे पास क्या है और हम क्या दे सकते हैं, हमारी संपत्ति के बारे में एक हितकर दृष्टिकोण विकसित करने में और उन खास तरीकों की पहचान करने में भी हमारी मदद करते हैं जिससे हम दूसरों की मदद कर सकते हैं । कुछ समय लें, और अपने जीवन में चारों ओर देखें। आपके पास जो चीजें हैं उनकी एक सूची बनाएं। फिर सूची में उन चीजों की पहचान करने का तरीका खोजें जिन्हें आप छोड़ने में सक्षम और इच्छुक हैं। यह बहुत कुछ प्रकट करने (आंखें खोलने) वाला प्रयोग हो सकता है। आपके पास जो चीजें हैं उनकी सूची देखकर, और उनकी तुलना उन चीजों से करना जिन्हें आप छोड़ना चाहते हैं, आपको मतभेदों से लड़ने की अनुमति देगा। आप कुछ चीज़ों को छोड़ने में असमर्थ क्यों हैं या उन्हें छोड़ना क्यों नहीं चाहते हैं? यीशु के उदाहरण को ध्यान में रखते हुए, शायद ऐसा बहुत कुछ नहीं है जिसे दूसरों की सेवा में उपयोग करने के लिए अलग नहीं किया जाना चाहिए।

आत्मा को आपको
बदलने (प्रेरित करने)
की अनुमति दें और
जहां वह आपकी
अगुवाई कर रहा है,
उसके प्रति संवेदनशील
होने का प्रयास करें।

यह सूची संपत्ति के लिए नहीं रखी जानी चाहिए। इसमें हमारे कैलेंडर का निरीक्षण भी शामिल होना चाहिए, यह देखने के लिए कि हमारा समय कहां उपलब्ध हो सकता है(या उपलब्ध कराया जा सकता है)। हमें अपने बजट को भी ईमानदारी से देखना चाहिये क्योंकि यह बजट को फिर से बनाने का एक अवसर हो सकता है। आपके पास ऐसा कौन सा गुण है जो किसी और की सेवा के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है?

जब आप ये सूचियाँ बनाते हैं तो प्रार्थना करें। इन चीज़ों को परमेश्वर की ओर से मिलने वाली आशीषों और दूसरों के लिए संभावित आशीषों के रूप में देखने में आत्मा से अपनी मदद करने के लिए कहें। आत्मा को आपको बदलने (प्रेरित करने) की अनुमति दें और जहां वह आपकी अगुवाई कर रहा है, उसके प्रति संवेदनशील होने का प्रयास करें।

इन में से कुछ भी नया नही है। हम सभी को अपने संसाधनों को इस तरह से देखने की चुनौती दी गई है कि हम दूसरों की जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें छोड़ सकें, इस बारे में व्यापक रूप से सोच सकें कि हम क्या दे सकते हैं या क्या छोड़ सकते हैं। आराधनालय में उस महिला का अनुसरण करते हुए हमें प्रोत्साहित किया गया है कि “देते रहें जब तक दुख न हो”, जिसने जो कुछ उसके पास था (अपनी सारी जीविका) दे दी (मरकुस 12:41–44)। या मकिदुनिया की कलीसिया में उन विश्वासियों का अनुकरण करने के लिए जिन्होंने स्वयं गरीब होने पर भी देने के अवसर की विनती करी (2 कुरिन्थियों 8:1–7। हम सभी जानते हैं कि हमें अपने धन से परे, अपने संसाधनों को उन चीजों के रूप में देखना चाहिए जिनका उपयोग दूसरों की सेवा करने या उन्हें देने के लिए किया जा सकता है।

यह दिलचस्प है कि पौलुस ने कुरिन्थ की कलीसिया में विश्वासियों को देने की आज्ञा नहीं दी। बल्कि, उन्होंने मकिदुनिया के अधिक गरीब लोगों के मसीह–सम्मान देने वाले उदाहरण के रूप में बताया कि कैसे देना है।

लेकिन हमारी अपनी जरूरतों को देखने के लिए लौटने की प्रवृत्ति ऐसी याद दिलाने वाली बातों को आवश्यक और सहायक बनाती है।

अपनी तैयार सूची से हम देने और सेवा करने के अवसरों का पता लगा सकते हैं। तो आइये ईमानदार रहें, जरूरतें अंतहीन लगती हैं और पास और दूर के अवसर इसमें शामिल हो सकते हैं। मदद करना; स्वच्छ पानी उपलब्ध कराना; आधुनिक गुलामी से लोगों को बचाना; शिक्षा, वस्त्र, आश्रय, भोजन प्रदान करना, अपने चर्च में किसी कक्षा को पढ़ाना, अकेले/घरों में बन्द लोगों से मिलना— हम उन सभी तरीकों को सूचीबद्ध नहीं कर सकते हैं जिनके द्वारा हम दूसरों की सेवा करने के लिए अपने संसाधनों का उपयोग कर सकते हैं। हमारी सूची हमें यह योजना बनाने की अनुमति देती है कि हम उन चीज़ों का उपयोग कैसे कर सकते हैं जिनसे परमेश्वर ने हमें आशीषित किया है ताकि हम दूसरों को आशीषित कर सकें। लेकिन जब हम एक अनियोजित आवश्यकता का सामना करते हैं तब क्या होता है?

पल में जरूरतों को पूरा करना 

आइए यीशु के अच्छे सामरी के दृष्टांत पर वापस जाएं।

कहानी में एक सामरी व्यक्ति एक अन्य व्यक्ति से मिलता है जिस पर हमला किया गया, पीटा गया और जिसे मरा हुआ समझ कर छोड़ दिया गया है। सामरी के कामों में हम संसाधनों की सभी चार श्रेणियों को एक ही समय पर उपयोग करते हुए देखते हैं – समय,संपत्ति, कौशल और पैसा।

सामरी घायल व्यक्ति की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने एजेंडे (कार्यसूची) को अलग रखता है। “परन्तु एक सामरी यात्रा करता हुआ वहां आया, और उसे देखकर उस पर तरस खाया। वह उसके पास गया” (लूका 10:33–34)। सामरी का उस सड़क पर यात्रा करने का एक कारण था। वह कहीं जा रहा था।

उसकी मंज़िल जो भी हो, और उसकी यात्रा का कोई भी कारण हो, वह प्रतीक्षा कर सकता था। उसने अपना समय किसी जरूरतमंद की सेवा के लिए दिया।

अपनी संपत्ति और कौशल को लेकर, सामरी ने आदमी के घावों की देखभाल की: “और उसके घावों पर तेल और दाखरस डालकर पट्टियां बान्धी। तब वह उस मनुष्य को अपने गदहे पर चढ़ाकर सराय में ले गया, और उसकी सेवा टहल की” (पद 34)। सामरी तेल और दाखरस क्यों ले जा रहा था और उसे आदमी के घावों पर पट्टी करने के लिए कपड़ा कहाँ से मिला ? यह विचार करने के लिए मज़ेदार सवाल हैं(हालाँकि यह एक दृष्टांत है और बहुत अधिक जानकारी के लिये ऐसे प्रश्नों को नहीं पूछना चाहिए)। लेकिन यीशु जो विवरण देता है उसमें जो बात वह बता रहा था उसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। सामरी ने अपनी इच्छा से उस व्यक्ति की देखभाल के लिए अपनी संपत्ति का उपयोग किया। यह तो निश्चित था कि सामरी ने किसी अन्य उद्देश्य के लिए तेल और दाखरस का उपयोग करने की योजना बनाई थी। शायद वह खुद गधे पर सवार था। और जबकि वह उपचार डॉक्टर द्वारा दिया गया उपचार नहीं हो सकता था, या वह पट्टियां कीटाणुओं से मुक्त नहीं होगी,पर सामरी ने उस व्यक्ति की सहायता करने के लिए जो कुछ ज्ञान और कौशल उसके पास था उसका उपयोग किया। अंत में हम सीखते हैं कि उसके कामों ने उसकी जान बचाई।

लेकिन उसके घावों पर पट्टी बांधना सामरी की उदारता का अंत नहीं था। उसने उसकी देखभाल को जारी रखने का भी प्रबन्ध किया । “अगले दिन उसने दो दीनार निकाले और सरायवाले को दिए। उसने कहा, ‘इसकी सेवा करना, और जब मैं लौटूंगा,तो जो कुछ तेरा और लगेगा वह मैं तुझे लौटने पर भर दूंगा” (पद 35)। सामरी ने अपनी जेब से वह सब कुछ दिया जिसकी न केवल उस समय के लिए आवश्यकता थी, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए भी कि उस मनुष्य का भविष्य भी अधिक सुरक्षित हो। अब मान लें कि सामरी एक व्यापारी था, और तेल, दाखमधु और कपड़ा उसका माल था। दयालुता के इस कार्य की कीमत तेजी से बढ़ती है क्योंकि न केवल वह अपने पैसे का उपयोग आदमी की देखभाल के लिए करता है, लेकिन वह उन वस्तुओं को बेचने से होने वाली आय को भी खो देता है। उसे एक व्यापारी के रूप में सोचना आवश्यक नहीं है, किसी भी तरह से सामरी को घायल आदमी की देखभाल करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली चीजों को फिर से भरना था । करुणा के इस काम की उसे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी।

चाहे हम सेवा करने की योजना बना रहे हों या इस समय किसी अप्रत्याशित आवश्यकता का सामना कर रहे हों, अपने आप से यह पूछना कि हमारे पास क्या है जो हम दे सकते हैं, दूसरों की ज़रूरतों को अच्छी तरह से पूरा करने में हमारी मदद करता है।

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“पिताजी, जीवित रहने के लिए केवल भोजन, पानी और रहने के लिये एक स्थान की आवश्यकता है, है ना?” पीछे की सीट से यह प्रश्न बिना किसी तैयारी के अचानक पूछा गया था और उसे सुनकर मैं मुस्कुरा दिया। “हाँ,तकनीकी रूप से आपको बस इतना ही चाहिए। लेकिन मुझे खुशी है कि हमारे पास कुछ और चीजें भी हैं। क्या तुम खुश नहीं हो?” हम मेक्सिको में एक परिवार से मिलने के बाद अभी लौटे थे। उनसे मुलाकात के दौरान, हमें कुछ दर्शनीय स्थलों को देखने और कुछ सेनोट में तैरने का अवसर मिला।

सेनोट सिंकहोल या गुफाएं हैं जो साफ, ताजे पानी से भर जाती हैं। मेक्सिको में, वे आमतौर पर सुंदर नीले रंग के होते हैं; और पीने या तैरने के लिए उपयुक्त होते हैं।

इन खूबसूरत गहरे पानी वाले कुओं तक जाने का रास्ता अक्सर मायन शहरों से होकर गुजरता है। जैसे–जैसे हम आगे बढ़ते गए हमने कुछ सुंदर निर्माण वाले भवन देखे और कुछ ऐसे जो शायद ही रहने के योग्य हों। इन शहरों के कुछ घरों की चर्चा ने जीवित रहने की आवश्यकताओं के प्रारंभिक दावे को प्रेरित किया। सड़क के किनारे घर थे जो कहीं से भी मिले सामान से या कहीं से निकाले गए, सामान से बने थे। न बिजली, न बहता पानी, खिड़कियों में न कांच और न ही परदे – 104 डिग्री की गर्मी में एक वातानुकूलित वैन में ड्राइविंग करते हुए मुझे यह सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि उन जगहों को घर कहने वालों के लिए जीवन कितना कठिन होगा। मेरे बेटों के लिए यह एक सदमा था कि लोग इस तरह भी रहते थे।

ड्राइव का वह समय मेरे बेटों के साथ एक खास और अच्छी बातचीत का समय था। हम इस बारे में बात कर पाये कि हम यह न सोचे कि कुछ बुरा सिर्फ इसलिए है कि वह अलग है, कि अलग–अलग जगहों के लोग अलग–अलग तरह से रहते, बोलते और काम करते हैं। यह बात उन्हें हमसे कम, या बुरा या दयनीय, या खतरनाक नहीं बनाती है; केवल अलग बनाती है। हम भी उनके लिए अलग होंगे।

हमने इस तथ्य के बारे में भी बात की, कि कुछ ऐसे लोग हो सकते हैं जिन्हें मदद की ज़रूरत है, और यह कि हमें ऐसे लोगों को खोजने के लिए दूर–दराज के स्थानों की यात्रा करने की ज़रूरत नहीं है जिनके पास जीवित रहने के लिए आवश्यक सब कुछ नहीं है। हमने इस बारे में बात की, कि अन्य लोगों के साथ हमारा संबंध क्या हो सकता है, जिनके पास उतना नहीं हो सकता जितना हमारे पास है, या जिनके पास काफी है।

जरूरतों को देखना 

सभी परिस्थितियाँ उतनी प्रत्यक्ष नहीं होती हैं जितनी कि भले सामरी के दृष्टांत में ‘आधा मरा व्यक्ति’ । सामरी के लिए यह एक तरह से आसान था। उसकी केवल एक ही आवश्यकता थी, और वह बहुत साफ थी।

यीशु ने बिना किसी कारण के ही परमेश्वर के साथ अपनी समानता को नहीं छोड़ा था। उनका बलिदान पूरी मानवता की भलाई के लिए था। कई मौकों पर यीशु स्पष्ट रूप से बताते हैं कि वह क्यों आए। इस बातचीत के लिए मत्ती 20:26–28 विशेष रूप से दिल को छूने वाला है — “जो कोई तुम में बड़ा होना चाहता है, वह तुम्हारा सेवक बने, और जो तुम में प्रधान होना चाहे, वह तुम्हारा दास बने–जैसे मनुष्य का पुत्र– वह इसलिये नहीं आया कि उसकी सेवा टहल की जाये परन्तु इसलिये आया कि आप सेवा टहल करे और बहुतों की छुड़ौती के लिये अपना प्राण दे।” यीशु कहते हैं कि वह मानवता की सेवा करने और उनके लिये अपने प्राण देने के लिये आया ( वह एक इन्सान बना, परमेश्वर के बराबर होने का अधिकार छोड़ दिया।) यीशु यही बात दूसरी जगह पर भी कहते हैं।

जब यह चर्चा की गई कि वह जक्कई नाम के एक चुंगी लेने वाले के साथ कैसे खा सकता है, क्योंकि चुंगी लेने वालों को सबसे बुरे पापियों में माना जाता है, तो यीशु ने अपने मिशन के उद्देश्य की घोषणा का जवाब दिया — “मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को ढूंढ़ने और उनका उद्धार करने आया है” (लूका 19:10)।

ऐसे कई सही कारण और संगठन हैं जहाँ आप दान कर सकते हैं और जिनके साथ आप भागीदारी और सेवा कर सकते हैं। जरूरत समस्या नहीं है, समस्या यह तय करना है कि आपको कहां मदद करनी चाहिए।

इसका उद्देश्य आपको यह बताना नहीं है कि आपको वास्तव में क्या देना चाहिए और किसे देना चाहिए। लेकिन उम्मीद है कि यह आपके लिए उपलब्ध विकल्पों द्वारा सोचने में आपकी मदद करेगा ताकि आप इसके बारे में जानकार और बुद्धिमान विकल्प बना सकें कि अपना समय, कौशल, संसाधन और पैसा कहां खर्च करें।

स्थानीय और विश्वव्यापी आवश्यकताएं 

हमारे घर में कुछ बातों पर चर्चाएँ हो रही हैं, उनमें से एक इस गलत बात के बारे में है कि जिन लोगों को ज़रूरत है वे ज़्यादातर दूसरी जगहों पर हैं। एक कठिन और खतरनाक धारणा है कि अवसर के देश संयुक्त राज्य अमेरिका में कोई वास्तविक आवश्यकता नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य स्थानों की यह धारणा “अन्य”के बारे में कुछ गलत विचारों को जन्म दे सकती है। जब हम सोचते हैं कि अन्य स्थान जरूरतमंद हैं, तो यह बात हमें यह सोचने के लिए प्रेरित कर सकती है कि अन्य स्थान अमेरिका से भी बदतर हैं और यदि आप अमेरिका में जरूरतमंद हैं तो आपने पर्याप्त प्रयास नहीं किया है। और अगर आपने किया है (या अगर आपने कुछ गलत विकल्प चुने हैं), तो आप मदद के लायक नहीं हैं।

सच्चाई यह है कि हर जगह जरूरतमंद लोग हैं। आवश्यकता भौगोलिक या व्यवसायिक औद्योगिक रूप से सीमाबद्ध नहीं है। मदद करने के लिए हमारे चारों ओर अवसर हैं। उनमें से कुछ अवसर जरूरतमंद व्यक्ति द्वारा किए गए विकल्पों द्वारा बनाए जाते हैं, और कुछ ज़रूरतें उनकी अपनी गलती के कारण नहीं होती हैं। हमारा काम यह तय करना नहीं है कि आवश्यकता का कारण माननीय है या नहीं, बल्कि हमारा काम जरूरत को पूरा करने में मदद करना है, कहीं भी और जिसके साथ भी यह होती है। संगठनों के साथ साझेदारी करने में सक्षम होने की आशीष यह है कि हम उन लोगों की मदद कर सकते हैं जो दूर दराज़ हैं।

शारीरिक, भावनात्मक और आत्मिक ज़रूरतें 

विचार करने योग्य प्रश्न यह है कि वह क्या है जिससे आपका दिल टूटता है? यह सोचना ज्यादती नहीं है कि कोई भी उचित आवश्यकता परमेश्वर के हृदय को तोड़ देती है। परमेश्वर ने हमें कमी के लिए नहीं बनाया है और न ही वह चाहते हैं कि हम कमी में जिएं। लेकिन पाप से टूटे हुए हमारे संसार में, आवश्यकताएँ जीवन में बहुत अधिक विभिन्नताओं में पाई जा सकती हैं।

प्रार्थनापूर्वक इस बात को समझें । जब आप आत्मा को अपने हृदय को कोमल करने और अपने चारों ओर की दुनिया की जरूरतों को देखने की अनुमति देते हैं, तो उनमें से कुछ आपके मन और हृदय में अधिक प्रमुख हो सकते हैं।

लोगों को आधुनिक समय की गुलामी से मुक्त करने में मदद करने के लिए हम अंतर्राष्ट्रीय न्याय मिशन के साथ काम कर सकते हैं। हम वाईक्लिफ के साथ बाइबल का अनुवाद करने में मदद कर सकते हैं, या दुनिया भर में बाइबिल वितरित करने के लिए गिदोन इंटरनेशनल के साथ साझेदारी कर सकते हैं। हम हैबिटेट फॉर ह्यूमैनिटी के साथ काम कर सकते हैं ताकि उन लोगों के लिए किफायती घर बना सकें जिनके पास घर नहीं हैं। हमारा परिवार बच्चों को स्पानसर (आर्थिक मदद) करने के लिए कम्पैशन इंटरनेशनल के साथ काम कर रहा है। हम एक स्थानीय नर्सिंग होम में जा सकते हैं और उन बुजुर्गों के साथ समय बिता सकते हैं जिनसे मिलने के लिये काफी लोग नहीं जाते हैं। या भोजनदेने वाले स्थानीय बेघर आश्रय के साथ काम कर सकते हैं। शायद आप अपने क्षेत्र में युवाओं के लिए एक बोझ महसूस करते हैं, इसलिए आप एक खेल टीम को प्रशिक्षित करने के लिए स्वेच्छा से काम करें, या आप एक साप्ताहिक बाइबल अध्ययन में अपने चर्च में युवा लोगों के एक छोटे समूह का नेतृत्व करने में मदद करें।

आपकी अपनी कलीसिया उन तरीकों की खोज शुरू करने के लिए एक अच्छी जगह हो सकती है जिनसे आप सेवा कर सकते हैं। निस्संदेह आपके चर्च में अपना समय और अपने गुण देने के अवसर हैं। आप यह पूछें कि मदद की जरूरत कहां है। समुदाय में आंतरिक जरूरतों से लेकर आउटरीच (समुदाय से बाहर के) कार्यक्रमों तक सेवा करने के लिए स्थानों की सूची और पूरी की जाने वाली ज़रूरतें की सूची संभवतः लंबी हैं।

ऐसे स्थान हैं जहां हमारे लिए कुछ काम किया गया है। जरूरतें और उन जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रक्रियाओं की पहचान पहले ही की जा चुकी है और उन्हें शुरू कर दिया गया है। इन क्षेत्रों में काम करने वाले संगठनों को अपने मिशन को पूरा करने के लिए बस लोगों और संसाधनों के समर्थन की आवश्यकता होती है। लेकिन कभी–कभी ऐसी ज़रूरतें होती हैं जिन्हें पहचानने के लिए हमें अपनी ओर से थोड़े और काम करने की ज़रूरत होती है।

अपने पड़ोस को देखें 

अपने खुद के जीवन और स्थानों को देखते हुए, हम सेवा के किन अवसरों की पहचान कर सकते हैं? उदाहरण के लिए, मेरे पास सेमनेरी (पादरियों की शिक्षा संस्था) में मेरे समय की कई पुस्तकें हैं। उन्हें देने के विचार से ही मेरे दिल को दुख होता है। लेकिन मुझे याद है कि सेमनेरी में जाते समय उन्हें खरीदने में मुझे कितनी मुश्किल हुई थी, मुझे याद है कि मुझे कक्षा, या अपने रिसर्च के काम, और संदर्भ के लिये आवश्यक पुस्तकों को प्राप्त करने के लिए कुछ और देना पड़ता था। वे किताबें हालाँकि मेरे लिए अभी भी कीमती हैं, शायद किसी और के लिए अधिक कीमती हैं। पुस्तक को न खरीदने से पैसा बचता है, जो किसी और जगह काम आ सकता है। अब जबकि मैं जीवन की एक अलग स्थिति में हूँ, यह विचार करने का समय है कि मैं किसी और को उन पुस्तकों से कैसे आशीषित कर सकता हूँ जो मुझे कभी बहुत उपयोगी लगीं। सच कहूं तो मैंने अभी तक उन किताबों को नहीं दिया है। मैं अभी भी किताबों से अलग होने के विचार से जूझ रहा हूँ। लेकिन एक विचार अब मेरे दिमाग में है, और मैं सही तरीके से निश्चित हूं कि जब तक यह काम पूरा नहीं हो जाता, मैं इसे नहीं छोडूगा ।

सेवा करने और देने के लिए स्थान ढूँढ़ना मुश्किल नहीं है। हमारे चारों ओर हर दिन ऐसे अवसर हैं। कभी–कभी यह एक स्पष्ट आवश्यकता होती है जो एक ही पल में दिखाई देती है जैसा अच्छे सामरी के दृष्टान्त में हमने देखा ।

कई बार हम उस विशेष क्षेत्र की पहचान कर सकते हैं जहां हम शामिल होना चाहते हैं और उन जरूरतों को पूरा करने के लिए एक योजना बना सकते हैं, जैसे यीशु ने परमेश्वर के साथ अपना स्थान त्याग कर, सेवा करके, खोए हुओं को ढूंढ़कर, और अपने प्राण देकर उद्धार की योजना को पूरा किया। अपने आप से यह पूछना ठीक है कि आप किस चीज को लेकर सबसे अधिक भावुक हैं। अलग–अलग चीजें अलग–अलग दिलों की भावनाओं को खींचती हैं। बहुत सी जरूरतें पूरी करनी हैं। अगर हम उन सभी को पूरी नहीं कर रहे हैं तो हमें दोषी महसूस करने की ज़रूरत नहीं है। उस आवश्यकता और अवसर दोनों का पता लगाएं जो आपके दिल को तोड़ दें और आपको इसमें शामिल होने का सबसे अधिक आनंद दें।

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अब एक आखिरी सवाल पूछना है। और यह वास्तव में एक ऐसा प्रश्न है जो किसी भी अन्य प्रश्नों से पहले आता है। वास्तव में यीशु की तरह सेवा करने के लिए हमें खुद से पूछना होगा– “क्या मुझे परवाह है?” यदि लोगों की सहायता करने के लिए यीशु को हमारा आदर्श बनाना है, तो लोगों को कैसे देखना है, इसके लिए भी उसे हमारा आदर्श होना चाहिए।

यह प्रश्न अच्छे सामरी के दृष्टांत के उस हिस्से की ओर संकेत करता है जिससे हमें सबसे अधिक परेशानी होनी चाहिए– याजक और लेवी। ये दो पुरुष आराधनालय और बलिदान प्रणाली में न केवल परमेश्वर के लिये लोगों का प्रतिनिधित्व करते थे; पर उससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात इस कहानी के लिए यह है कि उन्होंने लोगों के लिये परमेश्वर का प्रतिनिधित्व किया। इस विचार को मानना कितना मुश्किल हो सकता है कि ऐसी स्पष्ट और व्यक्त आवश्यकता के पास से कोई भी व्यक्ति बिना कुछ किये गुजर गया पर जब याजक और लेवी जरूरतमंद के पास से गुज़रे तो उनपर स्वयं परमेश्वर का बोझ (भारीपन) था । यह एक ऐसा चित्रण था जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की जा सकती; जिसका मतलब चौंकाने वाला था।

जब याजक और
लेवी जरूरतमंद के
पास से गुज़रे तो
उनपर स्वयं परमेश्वर
का बोझ (भारीपन) था ।
यह एक ऐसा चित्रण
था जिसकी कभी
कल्पना भी नहीं की
जा सकती।

हम सभी जानते हैं कि कुछ लोग घायल व्यक्ति के पास से गुजरकर चले गये थे। हम इस बारे में बात कर सकते हैं कि अपने पदों के लिए वे कैसे रीति रिवाजों के अनुसार शुद्ध रहने की कोशिश कर रहे थे। शायद वे डरते थे, कि अगर उन्होने उस खतरनाक जगह में बहुत अधिक समय बिताया तो उनके साथ भी ऐसा हो सकता है । या शायद उन्होंने सोचा कि वह आदमी पहले ही मर चुका था और उसके लिए कुछ भी नहीं किया जा सकता था।

स्पष्ट रूप से किसी जरूरतमंद से दूर रहने के उनके कारण चाहे जो भी हों, प्रत्येक प्रत्यक्ष कारण के पीछे एक बात है। उन्होंने बस पर्याप्त परवाह नहीं की। सहायता के लिए आगे बढ़ने के लिये उन्होने सड़क पर पड़े व्यक्ति में पर्याप्त मूल्य नहीं देखा। वह उनके समय के लायक नहीं था। वह उनके प्रयास या उनकी संपत्ति के लायक नहीं था।

कहानी का यह हिस्सा महत्वपूर्ण है क्योंकि इन धार्मिक नेताओं के कार्यों से चौंकना और यहां तक कि नाराज होना आसान है। हम यह कह देते हैं “बेशक, मुझे परवाह है! मैं किसी जरूरतमंद की पूरी मदद करूंगा।”लेकिन यीशु ने यह दिखाने के लिए इन दो पात्रों को इस कहानी में शामिल किया है कि परवाह न करना केवल संभव नहीं है, बल्कि यह भी संभावना है कि हम परवाह नहीं करेंगे। तीन में से दो जरूरतमंद व्यक्ति के पास से गुजरे और चले गये। और हम ऐसे ही कई बहाने पेश करेंगे जो कि याजक और लेवियों के रुकने के लिए सुझाए गए हैं।

यीशु की तरह लोगों की मदद करने के लिए, हमें उन्हें वैसे देखना शुरू करना होगा जैसे यीशु ने उन्हें देखा था। यीशु ने परमेश्वर के स्वरूप में सृजे गए लोगों के निहित (छिपे हुये) मूल्य को देखा और उन पर काम किया। यह उनकी विशेष पसंद या खास जीवन परिस्थितियाँ नहीं थीं जो यह निर्धारित करती थीं कि यीशु लोगों को कैसे प्रतिक्रिया दें–कम से कम नकारात्मक तरीके से तो नहीं। यीशु ने लोगों को उनकी ज़रूरत के क्षणों में देखा, भले ही वे ज़रूरतें उनके खुद के विकल्पों से बनाई गई हों, और उसे उन पर दया आई।

हम अनेक प्रकार की आवश्यकताओं से घिरे हुए हैं। क्या हम अपने आस–पास के जरूरतमंदों को उस तरह देखने के लिए तैयार हैं जिस तरह ईश्वर उन्हें देखता है? क्या हम यीशु के नेतृत्व, उनके कार्यों और उनकी शिक्षाओं का पालन करने के लिए तैयार हैं; लोगों से प्यार और करुणा के साथ मिलने के लिए चाहे वे कहीं भी हों या वे वहां कैसे पहुंचे? क्या हम इसके लिये अतिरिक्त प्रयास करेगें?

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