सल कटाई का समय इनाम (प्रतिफल) का समय है। अनगिनत घंटे काम, पसीना, लगातार पानी देना, खतरों के खिलाफ मेहनत से रखवाली, और यहां तक कि नाखूनों के नीचे की गंदगी भी, तब सार्थक हो जाती है जब हमारे बाग, बगीचे, और अंगूर के बाग अपनी फसल पैदा करते हैं।

हमारे बगीचों में पौधों का जीवनचक्र संतोषजनक और सुखद परिणाम सुनिश्चित करता है।लेकिन हमारे मसीही जीवन में विकास शायद ही कभी उतना भरोसेमंद होता है और अनुमान के मुताबिक नहीं होता जितना हमारे पेड़ों पर लगने वाले फल या हमारे बगीचों में उगने वाली सब्जियां होती हैं । दुख देने वाले काम और परिपक्वता (समझदारी) पैदा करने की कोशिश में बिताए घंटों के बावजूद, हम अक्सर केवल मामूली परिणाम या विफलता का ही अनुभव करते हैं।

पौलुस की आत्मा के फल के बारे में कल्पना स्पष्टता और प्रबलता के साथ मसीही परिपक्वता का वर्णन करती है जो हमें उन मीठे रसीले फलों की फसल काटने के लिए प्रेरित करती है। लेकिन यह हमेशा पहुंच से बाहर क्यों लगता है ? हम कितनी भी कोशिश कर लें, हम कभी भी उस धैर्य को प्राप्त नहीं कर पाते जिसकी हम अपेक्षा करते हैं या वह शांति जिसे हम इतनी बेकरारी से चाहते हैं हमें नहीं मिलती।

अगर हमारा प्रयास समस्या है तो क्या होगा? आगे आने वाले पृष्ठों में डॉ कॉन कैंपबेल हमें आत्मा के फल पर एक नया अवलोकन प्रदान करते हैं और हमें यह समझने में मदद करते हैं कि इसे उगाने के लिए कौन जिम्मेदार है। हम आशा करते हैं कि ये विचार आपको मसीह के समान होने की खोज करने में प्रोत्साहित करेंगे।

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कुछ साल पहले, जब मेरे बच्चे छोटे थे, तब मैं उन्हें ऑस्ट्रेलिया के एक संगीत कार्यक्रम में ले गया जिसमें ऑस्ट्रेलिया के बच्चों के पसंदीदा मनोरंजनकर्ता और देश के प्रसिद्ध संगीतकार कॉलिन बुकानन थे। जब हम अंदर जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे,तब मैंने पास खड़ी एक माँ को अपने शिकायत करने वाले छोटे बेटे को प्रोत्साहित करते हुए सुना, “जॉनी, याद रखो धैर्य आत्मा का फल है।”

मुझे याद है कि यह सुनकर मुझे कितना अजीब लग रहा था। मुझे यह सुनने की इतनी आदत थी, कि धैर्य एक नैतिक गुण है, पर यह कहना कि धैर्य आत्मा का फल है, किसी तरह गलत था। मैं जितना अधिक उस वाक्यांश के बारे में सोचता मुझे उतनी ही बेचैनी महसूस होती थी। उस महिला के बयान से नहीं, जो कि सच है, लेकिन मेरी अपनी प्रतिक्रिया से। मैं एक चुनौती महसूस करने लगा था क्योंकि उसके शब्द मेरी तुलना में अधिक ईश्वरीय सोच को दर्शाते थे।

जबकि नैतिक गुण में कुछ भी गलत नहीं है, पर यह आत्मा के फल के समान नहीं है। किसी में भी गुण या अनेक गुण हो सकते हैं। वे आमतौर पर अपने आप ही बनते हैं। एक “गुणी व्यक्ति“ वह है जिसने खुद को धैर्यवान या बहादुर या उदार होने के लिए अनुशासित किया है। दूसरी ओर, “आत्मा का फल” का अर्थ कुछ अलग है। सबसे स्पष्ट शायद यह है कि यह आत्मा का फल है, हमारा नहीं। कितना भी दृढ़ संकल्प या अनुशासन हो आत्मा का फल तैयार नहीं होता। और क्योंकि यह आत्मा का फल है, यह एक फसल है, जिसे केवल वे ही प्राप्त कर सकते हैं जिनके पास परमेश्वर का आत्मा है।

अपने बच्चों के साथ वहाँ खड़े होकर, मुझे आश्चर्य हुआ कि जब मैं उन्हें शांत करने की कोशिश कर रहा था तो मैंने यह क्यों नहीं कहा कि“ धैर्य आत्मा का फल है।” अतीत में मैंने शायद उन्हें धैर्य रखने या आत्म–संयम रखने के लिए कहा होगा लेकिन मैं आत्मिक दृष्टि से नहीं सोच रहा था। तो, मुझे उस दिन कुछ याद आया: मुझे पवित्रशास्त्र के वचनों को अपने पालन–पोषण करने के तरीके को प्रभावित करने देना चाहिये था।

मैं प्रोत्साहन के उस छोटे से क्षण के लिए आभारी हूं। लेकिन जितना अधिक मैंने इसके बारे में सोचा है, उतना ही अधिक मैं यह जानने के लिये उत्सुक होता हूं कि क्या इस तरह आत्मा के फल को “लागू करना” सही है। बेशक, अपने बच्चों को ईश्वरीय व्यवहार और नज़रिये में प्रोत्साहित करना उचित है। और उन्हें यह याद दिलाना अच्छा है कि बाइबल क्या कहती है। बेशक, हमारे बच्चों को पता होना चाहिए कि पवित्रशास्त्र हमारे नज़रिये और व्यवहार का मार्गदर्शन करता है। तो फिर “धैर्य आत्मा का फल है”, यह कहकर किसी को प्रोत्साहित करने में समस्या क्या है?

यह समस्या थोड़ी स्पष्ट हो जाती है जब हम यह महसूस करते हैं कि जब पौलुस ने गलातियों 5:22–23 में आत्मा के फल की सूचि दी थी तो उसका इरादा इसे निर्देशों का एक समूह बनाने का नहीं था। इसका उद्देश्य वास्तव में बिल्कुल अलग है लेकिन फिर भी हमारे जीने के तरीके के लिये इसका एक अर्थ है।

पौलुस क्या कह रहा है, इसका अंदाजा लगाने के लिए, एक लक्ष्य की कल्पना करने से मदद मिल सकती है। गलातियों 5 से छोटी शुरुआत करके और बड़े दायरों की ओर बढ़ते हुए–कि कैसे आत्मा का फल गलातियों के पूरे पत्र के संदेश और उद्देश्य से जुड़ता है, और कैसे आत्मा के फल का महत्व बाइबिल में प्रकट की गई परमेश्वर की योजना को प्रकाशित करता है,हम बेहतर ढंग से समझ सकते हैं कि पौलुस आत्मा के फल के बारे में क्या कह रहा है। मेरी आशा और प्रार्थना है कि जब हम मसीह में परमेश्वर के अद्भुत प्रेम पर और हमारे जीवन में आत्मा की शक्ति पर आश्चर्य करना बंद कर देगें तो आत्मा हमारे दिलों को प्रोत्साहित करेगा । आइए अब गलातियों 5 को देखें।

“आत्मा का फल” और “शरीर के कार्य।”

जब हम आत्मा के फल के बारे में पढ़ते हैं, तो हम अक्सर केवल दो पदों पर ही ध्यान देते हैं। जबकि ये महान पद हैं, यदि हम केवल उन पर ही ध्यान केंद्रित करते हैं तो हम उनके अर्थ और महत्व की एक विकृत (बिगड़ी हुई) तस्वीर प्राप्त करते हैं। हमें गलातियों 5:22—23 में सूचीबद्ध आत्मा के फल के बारे में पढ़ने की जरूरत है। वह लक्ष्य का केन्द्र है।

आत्मा का फल, शरीर के कार्यों के विरोध में निर्धारित किया गया है, जिसे 5:19–21 में सूचीबद्ध किया गया है|

शरीर के काम तो स्पष्ट हैं: व्यभिचार, अशुद्धता, लुचपन, मूर्तिपूजा और जादू टोना, घृणा, कलह, ईर्ष्या, क्रोध, स्वार्थी विरोध, महत्वाकांक्षा, मतभेद, फूट, मतवालापन, भोग विलास, और इस तरह के और और काम हैं इनके विषय में मैं तुम्हें चेतावनी देता हूं, जैसा मैंने पहले किया था कि ऐसे काम करने वाले परमेश्वर के राज्य के वारिस नहीं होंगे।

परन्तु आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, मेल, सहनशीलता, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता और संयम है। ऐसे ऐसे कामोंके विरोध में कोई व्यवस्था नहीं है।

दृष्टिकोण और लक्षणों की वे सूचियाँ अधिक भिन्न नहीं हो सकती हैं। वे लगभग एक दूसरे के विपरीत हैं। लेकिन नकारात्मक और सकारात्मकता को इस तरह साथ साथ रखना जो सामान्य लेखन की एक तकनीक है, जिसे गलातियों का लेखक पौलुस समय समय पर उपयोग करता है उदाहरण के लिए, इफिसियों 4:25–32। नकारात्मक और सकारात्मक को एक दूसरे के बगल में सूचीबद्ध करना उनके अर्थ को उजागर करता है। काले रंग की पृष्ठभूमि के मुकाबले सफेद रंग सबसे चमकीला दिखता है। आत्मा का फल शरीर के कामों के बिल्कुल विपरीत है। अंतर है रात और दिन का।

जब पौलुस शरीर के बारे में बात करता है, तो वह इन मछलियों और आत्म केंद्रित इच्छाओं का उल्लेख कर रहा है जो हमें पाप करने के प्रेरित करते हैं । इसे मुख्य रूप से किसी भी ऐसी चीज़ के रूप में समझा जा सकता है जो परमेश्वर के कार्यों और चरित्र के विपरीत है।

इन सूचियों की तुलना करने, इन लक्षणों वाले लोगों की कल्पना करने पर, यह स्पष्ट हो जाता है कि दूसरी सूची दोनों में से बेहतर है। ये वे विशेषताएं हैं जो हम चाहते हैं। लेकिन व्यक्तिगत लक्षणों के बीच का अंतर इन दो सूचियों के बीच सबसे महत्वपूर्ण अंतर नहीं है। इस अंतर का मुख्य बिन्दु विशेषताओं के विभिन्न स्रोत हैं।

आत्मा का फल शरीर के कामों के बिल्कुल विपरीत है।

पहली सूची शरीर के कामों की है। यह सूची शरीर की शक्ति के परिणामों का एक समूह है। शरीर, उन विशेषताओं का संचालन करने का बल और उत्पत्ति(आरम्भ) है। जब शरीर काम करता है, तो यह परिणाम होता है। पौलुस कहता है कि शरीर अपने काम करने में अच्छा है, इसके काम स्पष्ट हैं । यदि कोई पिकासो से परिचित है, तो उसके काम का पता लगाना आसान है। यह इतना अलग है कि इसे किसी और के काम समझने की गलती करना मुश्किल है। तो, शरीर के कामों को भी आसानी से पहचाना जा सकता है।

उसी प्रकार, आत्मा का फल आत्मा द्वारा उत्पन्न होता है। फल किसी चीज से उगता है–एक पेड़ या बेल से; और फल की वृद्धि पूरी तरह से उसके स्रोत द्वारा संचालित होती है। एक सेब के पेड़ की शाखा से एक नया उगता हुआ सेब अलग कर दें, तो यह और नहीं बढ़ेगा। सेब के लिए, पेड़ पोषक तत्वों का आवश्यक स्रोत है। इसी तरह, आत्मा का फल पूरी तरह से उसके स्रोत—पवित्र आत्मा पर निर्भर है। जिस प्रकार पद 19–21 में कार्य शरीर से आते हैं, वैसे ही फल आत्मा द्वारा उगाया जाता है।

आत्मा के फल के बारे में समझने वाली पहली महत्वपूर्ण बात यह है कि यह आत्मा का फल है।

आत्मा के फल के बारे में समझने वाली पहली महत्वपूर्ण बात यह है कि यह आत्मा का फल है। इन प्रसिद्ध पदों का हमारे जीने के तरीके पर गहरा प्रभाव पड़ता है, लेकिन यह फल किसका है? वे आत्मा के हैं। हमें समझना चाहिए कि ये विशेषताएँ त्रिएक के तीसरे व्यक्ति द्वारा उत्पन्न की गई हैं। वह एजेंट(मुख्य कार्य करने वाला ), स्रोत, और शक्ति है जो फल उगाता है। और उसकी शक्ति, शरीर की शक्ति के विपरीत है, वे हमारे कार्यों और दृष्टिकोण के दो प्रतिस्पर्धी (मुकाबला करने वाले) स्रोत हैं।

आत्मा का फल सांकेतिक(बताने वाला है), आदेशात्मक नहीं।

सांकेतिक और आदेशात्मक असाधारण शब्द हैं, जिसका सीधा मतलब है कि जिस तरह से चीजें हैं उनका अवलोकन (सांकेतिक) और कुछ करने के लिए आदेश या निर्देश (आदेशात्मक) के बीच का अंतर। पिछली बात को ध्यान में रखते हुए कि यह आत्मा का फल है, यह समझ में आता है। इसके महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। इसका अर्थ है कि आत्मा का फल एक कार्य सूची नहीं है। इन पदों के कुछ अर्थ हैं, कि हम कैसे जीते हैं (हम इसे करेंगे) लेकिन पौलुस यह नहीं कहते हैं,“इस तरह से,और उस तरह से जियो”, इससे पहले कि वह आत्मा के फल को सूचीबद्ध करे। आत्मा से फल बढ़ता है। यह हमारी कड़ी मेहनत या अनुशासन का परिणाम नहीं है, और जब हमें लगता है कि हम इसे कर चुके हैं तो यह जांचने के लिए एक सूची नहीं है। यह उन चीजों की याद दिलाने के लिए हमारी दीवार पर लगाने की सूची भी नहीं है जिन पर हमें काम करने की आवश्यकता है। यह आदेशों की सूची नहीं है कि हमें आज्ञाओं का पालन करना है। यह संकेतकों की एक सूची है—यह वैसे ही है जैसे चीजें हैं।

अगर गलातियों 5: 22– 23 आज्ञाओं की एक सूची होती तो यह कुछ इस तरह होती:

तुम एक दूसरे से प्रेम करो, आनन्द करो, परमेश्वर और एक दूसरे के साथ मेल रखो, और एक दूसरे के साथ सब्र रखो। तुम्हे दयालु और अच्छा बनना है और विश्वास रखना है, तुम्हें विनम्र होने और आत्म–नियंत्रण का अभ्यास करने की आवश्यकता है।

आइए ईमानदार रहें, इन पदों को पढ़ने में नहीं, लेकिन इस बात में कि हममें से कितने लोग इन्हें समझते हैं और लागू करते हैं। लेकिन पाठ यह नहीं कहता है, है ना ? सूची आदेशात्मक के बजाय सांकेतिक है, यह हमें बताता है कि क्या है। पौलुस लिखता है आत्मा का फल – – । बस यही तरीका है। जहां आत्मा है, वहां ये फल उगते हैं।

गलत मत समझिये। यह जरूरी नहीं कि सभी विश्वासी इन सभी विशेषताओं को प्रदर्शित करें। भलेे ही मसीहियों में ईश्वर की आत्मा रहती है, इसका मतलब यह नहीं है कि हर कोई जिसके पास आत्मा है वह हमेशा प्यार करने वाला, हर्षित, धैर्यवान रहेगा। मेरा कहने का मतलब यह है कि ये बातें आत्मा का फल हैं, वे उसी की ओर से बहते हैं, और वही उन्हें उत्पन्न करता है। इसलिए जब वे मसीह के अनुयायी में उपस्थित होते हैं तो यह इस बात का प्रमाण है कि आत्मा उसमें है। पवित्र आत्मा मेरे जीवन में शांति का फल, आप में आनंद और धैर्य का फल और आपके पड़ोसी में विश्वास और प्रेम के फल को विकसित करना चुन सकता है। वे उसके फल हैं, वह जैसा उचित समझता है उन्हें उगाता है– विश्वासी, कलीसिया और परमेश्वर के राज्य के लाभ के लिए।

सूची परिपूर्ण नहीं है।

एक और कारण है कि हमें गलातियों 5:22–23 को एक करने के लिये सूची के रूप में उपयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह आत्मा के फल की एक परिपूर्ण सूची नहीं हो सकती है, और कुछ अन्य चरित्र गुणों को छोड़कर इन लक्षणों का पालन करना एक गलती होगी । कुछ लोगों के लिए यह एक नया विचार हो सकता है। आइए इस संभावना का पता लगाने के लिए कुछ समय लें।

बाइबिल में कई स्थानों पर विभिन्न चरित्र गुणों का उल्लेख किया गया है। उदाहरण के लिए मत्ती 5 में पहाड़ी उपदेश (बी एटीट्यूड्स) गलतियों 5 में सूची की तुलना में एक अलग सूची है। और यीशु के पास निश्चित रूप से इस पाठ में सूचीबद्ध गुणों की तुलना में अधिक महान गुण थे– उदाहरण के लिये दया।

नकारात्मक सूची को फिर से देखें गलातियों 5:19–21 में शरीर के कार्य। यह निश्चित रूप से एक संपूर्ण सूची की तरह नहीं लगता है, है ना? इसमें कोई संदेह नहीं कि इसमें बहुत कुछ शामिल है। लेकिन इसमें हत्या शामिल नहीं है। क्या ऐसा नहीं लगता कि हत्या को शरीर के काम के रूप में वर्णित किया जा सकता है? और वह सिर्फ एक ही चीज है जो सूचीबद्ध नहीं है। और भी बहुत सी चीजें हैं। मुझे यकीन है कि कई अन्य सकारात्मक गुणों को सही रूप से आत्मा का फल कहा जा सकता है, जैसे उदारता, आतिथ्य और विनम्रता कुछ हैं।

इस तरह की सूचियाँ संपूर्ण होने के लिए नहीं हैं और हमें उन चीज़ों के बारे में बहुत अधिक नहीं पढ़ना चाहिए जिन्हें वे छोड़ सकते हैं|

इस तरह की सूचियों पर विचार करना और आश्चर्य करना आसान है, यदि और भी बातें हैं, तो पौलुस ने उन्हें शामिल क्यों नहीं किया ? उदारता, आतिथ्य और विनम्रता का उल्लेख क्यों नहीं ? मुझे लगता है कि इस तरह का सवाल एक बन्द रास्ते की ओर ले जाता है। यह बात नहीं है यदि हम इसके बारे में सोचने में बहुत अधिक समय लगाते हैं, तो हम उस मुख्य बात को भूल जाते हैं जिसके बारे में बताया जा रहा है। इस तरह की सूचियाँ संपूर्ण होने के लिए नहीं हैं और हमें उन चीज़ों के बारे में बहुत अधिक नहीं पढ़ना चाहिए जिन्हें वे छोड़ सकते हैं। इसके बजाय गुण और अवगुण सूचियों का उद्देश्य सामान्य विशेषताओं का एक संक्षिप्त विवरण प्रदान करना है। वे केवल मुख्य बातों के माध्यम से विचार देते हैं। इन सूचियों से हमें शरीर के कामों और आत्मा के फल का सार मिलता है, हमें विस्तृत विवरण नहीं मिलता है।

क्या सभी विश्वासियों को सभी फल समान मात्रा में मिलेंगे ?

यह मान लेना आम बात है कि आत्मा के फल की सूची बताती है कि प्रत्येक मसीही को समान रूप से कैसा दिखना चाहिए। या, इसे दूसरे तरीके से कहें तो, हम यह उम्मीद नहीं कर सकते हैं कि आत्मा से भरे विश्वासी में दया या आत्म–संयम की कमी हो । यदि सभी विश्वासियों में एक ही आत्मा है, तो निश्चित रूप से वह प्रत्येक में एक सा ही फल उत्पन्न करेगा, ठीक है ना?

लेकिन क्या ऐसा सोचना सही है ? यह पद वर्णनात्मक है। यह विश्वासियों के जीवन में उत्पन्न होने वाले कुछ फलों के बारे में बताता है। लेकिन कुछ विश्वासी दूसरों की तुलना में अधिक खुश हो सकते हैं, कुछ दूसरों की तुलना में अधिक विनम्र होंगे, कुछ के पास दूसरों की तुलना में अधिक आत्म–नियंत्रण होगा। इस प्रकार आत्मा के फल को आत्मा के वरदानों के समानांतर समझा जा सकता है। 1 कुरिन्थियों 12:4–11 में पौलुस स्पष्ट रूप से कहता है कि अलग अलग लोगों को अलग अलग वरदान दिए जाते हैं। जैसा वह पवित्र आत्मा तय करता है, वैसा ही हर एक को वरदान देता है। यह वही आत्मा है जो प्रत्येक विश्वासी में रहता है, और फिर भी सभी के पास आत्मा के समान वरदान नहीं होते हैं।

हम उसी तरह आत्मा के फल के बारे में सोच सकते थे। हम में से प्रत्येक में एक ही आत्मा है और फिर भी अलग अलग तरीकों से हम में अलग अलग फल पैदा करेगा। इसका मतलब यह है कि कोई व्यक्ति जो अतिथियों का सत्कार करने वाला और उदार है, लेकिन शायद उसके आनंद वाले विभाग में थोड़ी कमी है, वह आत्मा के फल को उतना ही प्रदर्शित करता है जितना कि वह जो आनंद जानता है, लेकिन उसमें अतिथियों का सत्कार करने का अभाव है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक आदर्श संसार में, हम सभी आत्मा के सभी फलों को समान मात्रा में प्रदर्शित करेंगे–अधिकतम तक! लेकिन ऐसा नहीं है।

शायद आत्मा के फल के बारे में, आत्मा के वरदानों की तरह, अधिक संयुक्त शब्दों में सोचा जाना चाहिए। जबकि किसी एक व्यक्ति के पास आत्मा के सभी वरदान नहीं होंगे पर निश्चित रूप से उसके पास चर्च पूरी तरह से होगा। शायद हमें आत्मा के फल के बारे में ऐसा ही सोचना चाहिए। मुझे यकीन है कि यदि सभी नहीं, पर अधिकांश कलिसियायें आत्मा के सभी फलों को सामूहिक रूप से प्रदर्शित करती हैं। पौलुस शायद यही समझा रहा था। आख़िरकार वह गलातिया की कलीसिया को लिख रहा था। बहुत बार हम बाइबल को बहुत ज्यादा व्यक्तिगत रूप से पढ़ते हैं, जो हमें इस मामले में यह सोचने के लिए प्रेरित करता है कि प्रत्येक व्यक्ति को आत्मा के सभी फल दिखाने चाहिए। लेकिन पौलुस अधिक संयुक्त शब्दों में सोच रहा होगा। हो सकता है कि वह विश्वासियों के एक समूह का चित्रण कर रहा हो, जो गलातियों 5:22–23 में सूचीबद्ध विशेषताओं को एक साथ प्रदर्शित करते हैं।

आत्मा का फल क्या है?

हमने पिछले कुछ समय तक इस पर विचार किया है कि आत्मा का फल क्या नहीं है। अब यह विचार करने का समय है कि आत्मा का फल क्या है। गलातियों 5:22–23 में सूचीबद्ध फलों का सबसे सरल विवरण यह है कि वे विशेषताएँ हैं। ध्यान दें कि वे योग्यताएँ नहीं हैं; यद्यपि आत्मा के कई वरदानों में योग्यताएँ शामिल हैं। वे करने वाले शब्द नहीं हैं। वे अस्तित्व में होने के शब्द हैं। कोई विनम्र है, कोई प्रेम करने वाला है, कोई आत्म नियंत्रित है। और फिर भी, जबकि यह सच है, अस्तित्व में होना हमेशा करने की ओर ले जाता है। यह एक तरीका है जिससे हम कैसे कार्य करते हैं, आत्मा का फल परस्पर एक दूसरे को काटता है।

यदि कोई विनम्र है, तो वह सभ्य आचरण और व्यवहार से स्पष्ट होगा। अगर कोई प्रेम करने वाला है, तो उसे प्यार के कामों में व्यक्त किया जाएगा। यदि कोई आत्मसंयमी है तो उसे आत्मसंयम होने में प्रदर्शित किया जाएगा। शायद यह एक थोड़ा सा अंतर है, लेकिन यह महत्वपूर्ण है। अस्तित्व में होना करने की ओर ले जाता है। आत्मा केवल कुछ व्यवहारों को बदलने में रुचि नहीं रखता है—कुछ को जोड़ने और दूसरों को हटाने में; वह यह बदलने में रुचि रखता है कि हम लोग कौन हैं। और बदले हुए लोग बदली हुई चीजें करते हैं। लेकिन इससे पहले आंतरिक परिवर्तन आना होगा। परमेश्वर नहीं चाहते कि हम ऐसे रोबोट (यंत्र मानव) बनें जो हमेशा सही काम करते हैं लेकिन जिनका चरित्र रोबोट की तरह हो । परमेश्वर हमारे दिलों को देखता है।

कुछ ऐसा जिसे अनदेखा करना आसान है, वह यह है कि सूची में लिखें गये अधिकांश फल संबंधपरक हैं। प्रेम, शांति, धैर्य, दया, भलाई, विश्वास और नम्रता ये सब दूसरों से संबंधित हैं। अगर दूसरों के प्रति न दिखाया जाये तो प्रेम क्या है? मैं कह सकता हूं कि मुझे जैज़ संगीत पसंद है, जो स्पष्ट रूप से एक व्यक्ति नहीं है। यहां इस तरह के प्रेम की बात नहीं हो रही है। यह प्रेम आपसी संबंधों का है– दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच ।

शांति एक शांतिपूर्ण ध्यान की अवस्था में होने के बारे में नहीं है जिसमें कुछ भी हमें निराश नहीं करता है। शांति या शालोम की बाइबिल की धारणा– दो या दो से अधिक पक्षों के बीच अच्छे संबंधों की अवस्था है।

धैर्य और दया स्पष्ट रूप से संबंधपरक हैं। धैर्य मुख्य रूप से संबंधपरक है क्योंकि इसका संबंध दूसरों के सहने योग्य धैर्य से है। दयालुता का संबंध दूसरों की देखभाल करने और उनकी ज़रूरतों को पूरा करने से है।

जबकि अच्छाई कम स्पष्ट रूप से संबंधपरक हो सकती है, सच्ची अच्छाई का प्रदर्शन रिश्तों में किया जाता है। हम खुद को एक “अच्छे इंसान” के रूप में मान सकते हैं, लेकिन अगर हम हमेशा दूसरों के प्रति मतलबी या क्रोधित होते हैं, तो हमारी “अच्छाई” कमजोर होती है।

वफादारी हमेशा संबंधपरक होती है। इसमें किसी के प्रति वफादारी और प्रतिबद्धता शामिल है। बाइबल में विश्वासयोग्यता कभी भी निराकार नहीं होती, जैसे नियमों के प्रति आज्ञाकारी होना। इसके बजाय, विश्वासयोग्यता हमेशा परमेश्वर के साथ हमारे संबंध के बारे में होती है। यदि हम उसके प्रति विश्वासयोग्य हैं, तो हम उसकी आज्ञाओं का पालन करेंगे। लेकिन बात केवल नियमों का पालन करना ही नहीं है, आज्ञाकारिता विश्वासयोग्यता की अभिव्यक्ति है।

विनम्रता संबंधपरक है। अन्य लोगों के साथ हमारा आपसी व्यवहार विनम्रता को प्रदर्शित करता है। हम खुद को विनम्र समझ सकते हैं क्योंकि हम शांतिवादी हैं, और एक मक्खी तक को चोट नहीं पहुंचाएंगे और हमेशा नाजुक चीजों के लिये सतर्क रहते हैं। परन्तु यदि हम लोगों के साथ कठोर व्यवहार करते हैं, तो हमारी विनम्रता आत्मा का फल नहीं है।

केवल दो विशेषताएं जो स्पष्ट रूप से संबंधपरक नहीं हैं, वे हैं आनंद और आत्म.नियंत्रण। ये इस अर्थ में अधिक आंतरिक प्रतीत होते हैं कि ये आवश्यक रूप से अन्य लोगों के साथ संबंध में व्यक्त नहीं की जाती हैं। हम अपने आस पास किसी और के बिना भी आनंद प्राप्त कर सकते हैं। हम अकेले में आत्म नियंत्रण दिखा सकते हैं। लेकिन इन विशेषताओं में भी संबंधपरक अनुप्रयोग लागू होता हैं। हमारी खुशी दूसरों के साथ साझा की जा सकती है। और आत्म नियंत्रण में अक्सर दूसरों की गरिमा का सम्मान करना और उनकी भलाई में बाधा न डालना होता है।

एक दूसरे के साथ हमारे संबंधों के लिये आत्मा के फल का महत्वपूर्ण अर्थ है। यह मसीह यीशु में ईश्वरीय जीवन का सबसे मुख्य मुद्दा है; हम सभी को एक दूसरे के साथ अपने हर तरह के व्यवहार में प्यार, धैर्य और दया दिखाते हुए मिल जुल कर रहने की जरूरत है ।

तो, हम इसके बारे में क्या करें?

सूची के तुरंत बाद, पौलुस कहता है,“जो मसीह यीशु के हैं, उन्होंने शरीर को उसकी लालसाओं और अभिलाषाओं समेत क्रूस पर चढ़ा दिया है” (गलतियों 5:24)। यह पद 5:19–21 की दोष सूची से संबंधित है। ध्यान दें कि पौलुस यह नहीं कहता, “ये काम मत करो।” इसके बजाय, वह सोचने के गहरे तरीके के लिये अनुरोध करता है। वह एक आत्मिक वास्तविकता के लिये अनुरोध करता है। यदि हम मसीह यीशु के हैं, तो हमने शरीर को सूली पर चढ़ा दिया है। याद रखें कि दोष सूची को देह के कामों के रूप में पेश किया जाता है। देह वह शक्ति है जो ऐसी प्रथाओं को उत्पन्न करती है।

परन्तु 5:24 में पौलुस कहता है कि शरीर को क्रूस पर चढ़ाया गया है। इसे मसीह के साथ मार दिया गया है। क्योंकि हम मसीह यीशु के हैं, हम उसकी मृत्यु में उसके साथ एक हैं। आत्मिक रूप से, हम मसीह के साथ मर चुके हैं । हम अब शरीर की शक्ति के अधीन नहीं हैं। यह कुछ व्यवहारों से बचने के लिए एक साधारण आदेश से कहीं अधिक है। एक सुधारवादी पूर्ण परिवर्तन हो गया है और हम अब देह के क्षेत्र में नहीं हैं, जो इसके जुनून (वासना) और इच्छाओं के गुलाम हैं। अब हम आत्मा के क्षेत्र में हैं।

परन्तु 5:24 में पौलुस कहता है कि शरीर को क्रूस पर चढ़ाया गया है। इसे मसीह के साथ मार दिया गया है। क्योंकि हम मसीह यीशु के हैं, हम उसकी मृत्यु में उसके साथ एक हैं। आत्मिक रूप से, हम मसीह के साथ मर चुके हैं । हम अब शरीर की शक्ति के अधीन नहीं हैं। यह कुछ व्यवहारों से बचने के लिए एक साधारण आदेश से कहीं अधिक है। एक सुधारवादी पूर्ण परिवर्तन हो गया है और हम अब देह के क्षेत्र में नहीं हैं, जो इसके जुनून (वासना) और इच्छाओं के गुलाम हैं। अब हम आत्मा के क्षेत्र में हैं।

निम्नलिखित पद में, पौलुस कहते हैं, “जब हम आत्मा के द्वारा जीवित हैं तो हम आत्मा के अनुसार चलें” 5:25। हम आत्मा के द्वारा जीते हैं। अब हम देह के द्वारा नहीं जीते; मसीही जीवन में आत्मा की शक्ति है। हम उसके अधिकार और नियंत्रण में हैं। और यदि हम आत्मा के द्वारा जीते हैं, तो हमें आत्मा के पीछे चलना है। आत्मा का अनुसरण करना, या आत्मा के साथ मिलकर चलने का अर्थ है कि हम अपने जीवन को उस तरह से जीते हैं जो उसके अनुरूप है। हम सीखते हैं कि आत्मा हमें कैसा बनाना चाहता है, और हम वैसा ही बनना चाहते हैं। हम अपनी इच्छा को पवित्र आत्मा की इच्छा के साथ मिलाते हैं। हम उसके साथ एक होते हैं। अंततः, इसका अर्थ है कि हम आत्मा के फल के द्वारा चिन्हित किए जाने की इच्छा करेंगे। हम प्रेममय, हर्षित, शांतिपूर्ण, धैर्यवान, दयालु, अच्छे, विश्वासयोग्य, विनम्र और आत्म नियंत्रित होना चाहेंगे।

आत्मा का अनुसरण करने के लिए, या आत्मा के साथ मिलकर चलने का अर्थ है कि हमें अपने जीवन को उस तरह से जीना है जो उसके अनुरूप है।

लेकिन यह आत्मा के फल को एक कार्य सूची के रूप में मानने से अलग कैसे है ? मैंने पहले ही तर्क दिया है कि यह संकेतकों की एक सूची है, आदेश नहीं है, और यह निश्चित रूप से सच है। परन्तु आदेश पद 25 में आता है, हमें आत्मा के साथ चलना या उसका अनुसरण करना है। यह फल को आदेश मानने से अलग है, क्योंकि हमें अपनी इच्छाओं को त्रिएक के तीसरे व्यक्ति के साथ मिलाना है। हमें उसके साथ सहयोग करना है। यदि हम ऐसा करते हैं, तो वह हम में अपना फल उत्पन्न करेगा। यदि हम ऐसा नहीं करते हैं, तो हम नासमझ अपरिपक्व विश्वासी बने रहेंगे, जो आत्मिक से शारीरिक अधिक दिखते हैं।

इसका मतलब यह है कि आत्मा हमें समझदार परिपक्व, ईश्वरीय विश्वासी बनने के लिए जबरदस्ती नहीं करता है, जो वह चाहता है कि हम बनें। मुझे लगता है कि अगर वह चाहता तो वह ऐसा कर सकता था लेकिन आम तौर पर परमेश्वर माइक्रोवेव की तरह काम नहीं करना चुनते हैं, लेकिन धीमी गति से पकाने वाले ओवन की तरह अधिक काम करते हैं। जब आत्मा हमें धीरे–धीरे “पकाती” है, तो हमारा काम ओवन में ही रहना है। हम खुद खाना नहीं पका सकते, लेकिन हम परमेश्वर को खाना पकाने की अनुमति दे सकते हैं।

आत्मा के साथ कदम मिलाकर चलने का क्या अर्थ है? इसे अधिक गहराई से समझने के लिए हमें पूरी तरह से गलातियों के बारे में थोड़ा और गहराई से सोचने की आवश्यकता है। तो चलिये अब हम यह करेगें।

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गलातियों में आत्मा

पौलुस गलातियों को पत्र लिखता है क्योंकि वहाँ के मसीही एक भिन्न सुसमाचार पर विश्वास करने लगे थे। वे यह सोचने लगे थे कि अन्यजातियाँ मसीही (जो यहूदी नहीं थे) को वास्तव में मसीही होने के लिए यहूदी रीति–रिवाजों का पालन करना चाहिए। पौलुस ने उन्हें यह याद दिलाने के लिए लिखा कि व्यवस्था के काम नहीं केवल यीशु मसीह में विश्वास ने उन्हें बचाया है।

पौलुस ने अध्याय 3 में आत्मा का परिचय यह पूछने के द्वारा दिया कि क्या गलातियों ने मूसा के नियमों का पालन करने के द्वारा या यीशु के बारे में सुनी हुई बातों पर विश्वास करने के द्वारा आत्मा को प्राप्त किया था।

वह उन्हें याद दिलाता है कि यीशु ने उन्हें छुड़ाया ताकि वे आत्मा को प्राप्त करके धन्य हो सकें। परमेश्वर ने उन्हें गोद लिया (स्वीकार किया) और उस गोद लेने के संकेत के रूप में आत्मा को उनके दिलों में भेजा। बेटे और बेटियों के रूप में, वे स्वतंत्र हैं, गुलाम नहीं। और चूंकि वे स्वतंत्र हैं, इसलिए उन्हें फिर से अपने पहले मार्ग पर नहीं जाना नहीं चाहिए और अपने आप को फिर से गुलाम नहीं बनाना चाहिए।

यह बताना आसान है कि क्या कार्य स्वार्थी हैं या आत्मा द्वारा प्रेरित हैं|

लेकिनए पौलुस चेतावनी देते हैं, कि यह नई स्वतंत्रता का उपयोग जो परमेश्वर द्वारा हमारे अपनाने और आत्मा के आने से आती है, हमारी अपनी स्वार्थी इच्छाओं को पूरा करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। इसके बजाय, नई मिली स्वतंत्रता का उपयोग प्रेम में एक दूसरे की सेवा करने के लिए किया जाना चाहिए। आत्मा के द्वारा चलने से गलातियों को शरीर की इच्छाओं को संतुष्ट नहीं करने में मदद मिलेगी। शरीर के कार्य और आत्मा के फल दोनों स्पष्ट हैं। यह बताना आसान है कि कार्य स्वार्थी हैं या आत्मा द्वारा प्रेरित हैं। चूँकि शरीर अब उन्हें नियंत्रित नहीं करता है, इसलिए उन्हें आत्मा के द्वारा जीना चाहिए।

गलातियों का यह संक्षिप्त सार दिखाता है कि मसीही जीवन के बारे में आत्मा पौलुस की व्याख्या में कैसे सही बैठता है, और इसलिए हमें आत्मा के फल के बारे में कैसे सोचना चाहिए। आत्मा परमेश्वर के परिवार में गोद लिये जाने का चिन्ह है–वह स्वतंत्रता का चिन्ह है। आत्मा के द्वारा जीना उस समस्या का उत्तर है जिसे पौलुस ने संबोधित करने के लिए तय किया था। क्या गैर मसीहियों को यहूदी रीति–रिवाजों से जीने की ज़रूरत है? नहीं! यीशु के अनुयायियों को आत्मा के अनुसार जीना चाहिए।

गलातियों के इस भाग में पौलुस यहूदी प्रथाओं की आलोचना करने की बात नहीं कर रहा है। वह यह नहीं कहता है कि यहूदियों को अपने रीति–रिवाजों को छोड़ देना चाहिए। वह केवल इतना कह रहा है कि उन रीति–रिवाजों का पालन करना मसीह का अनुयायी होने के लिये आवश्यक नहीं है; और यह कि जातीयता की परवाह किए बिना, यीशु के अनुयायियों को आत्मा के अनुसार जीना चाहिये।

बाइबिल में गलातियां

गलातियां, परमेश्वर, और उनके जीवन के बारे में जो मसीह का अनुसरण करते हैं जो कहता है वह बाइबल के कुछ सबसे बड़े विषयों के साथ प्रतिच्छेद (काटता) करता है। अब्राहम से किए गए वादे देखें (उत्पत्ति 12:1–3) मसीह में पूरे होते हैं, क्योंकि सभी राष्ट्रों के लोग उस पर विश्वास करने के द्वारा आशीष पाते हैं। मूसा के कानून द्वारा मांगा गया न्याय मसीह के सूली पर चढ़ाए जाने में संतुष्ट है। गलातियों की पुस्तक में, व्यवस्था के अधीन जीवन आत्मा के अधीन नए जीवन के विपरीत है। यह नया जीवन बहुत पहले दिए गए एक वादे का परिणाम है। यह प्रतिज्ञा कि परमेश्वर का आत्मा उसके लोगों के भीतर वास करेगा, सबसे पहले पुराने नियम के भविष्यवक्ता यहेजकेल द्वारा दी गई।

यहेजकेल 36:27 की प्रतिज्ञा गलातियों 5 में आत्मा के फल को समझने के लिए विशेष रूप से दिलचस्प है। उस पद में प्रभु कहता है, “मैं अपनी आत्मा तुम में डालूंगा और तुम मेरी विधियों पर चलोगे और मेरे नियमों का पालन करके उसके अनुसार करोगे।” हम गलातियों की पुस्तक में पहले ही देख चुके हैं कि आत्मा की उपस्थिति नए जीवन का चिन्ह है। क्रूस पर मसीह की मृत्यु के कारण जिसने उस पर विश्वास करने के द्वारा पाप का दण्ड और हमारे छुटकारे का भुगतान किया, मसीहियों के दिलों में आत्मा की उपस्थिति यहेजकेल 36:27 के पहले भाग को पूरा करती है। लेकिन यह पद का दूसरा भाग है जो आत्मा के फल से सीधा जोड़ता है। यहोवा कहता है कि वह अपनी आत्मा तुम्हारे भीतर रखेगा और तुम्हें उसकी विधियों और नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित करेगा। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर का आत्मा परमेश्वर के लोगों को उसके अनुसार जीने में सक्षम बनाएगा।

यहेजकेल 36:27 का दूसरा भाग आत्मा के फल में पूरा होता है। आत्मा विश्वासियों के जीवन में प्रेम, आनंद, शांति, धैर्य, दया, भलाई, विश्वास, विनम्रता और संयम लाता है। और ध्यान दें कि पौलुस गलातियों 5:23 के अंत में क्या जोड़ता है, “और ऐसे कामों के विरोध में कोई व्यवस्था नहीं।” यहाँ बात यह है कि यदि आत्मा आपके जीवन में अपना फल बढ़ा रही है तो आप परमेश्वर की व्यवस्था के अनुसार जी रहे होंगे। मसीही, मूसा के व्यवस्था के अधीन नहीं हैं, लेकिन फिर भी उनका जीवन कानून में निर्धारित नैतिक मानकों पर खरा उतरेगा। लेकिन यह “कानून–पालन” करने के द्वारा या अच्छे होने के द्वारा नहीं होता है, बल्कि यह आत्मा के अनुसार चलने से होगा।

आत्मा का फल परमेश्वर की भव्य योजना का हिस्सा है जिससे कि उसके लोग उस तरीके से जीने में सक्षम हो सकें जो उसे प्रसन्न करता है–आत्मा की शक्ति से जीना। परमेश्वर के परिवार के सदस्यों के रूप में –दत्तक पुत्र और पुत्रियाँ– परमेश्वर हमें उसके समान होने के लिए,और उन विशेषताओं को वहन करने के लिए आकार देता है जो उसके अपने चरित्र से प्रवाहित होती हैं। आत्मा का फल सदियों के वादे के समापन और आशा से कम नहीं है जो यीशु के जीवन,मृत्यु और पुनरुत्थान के परिणाम के रूप में पूर्ति पाता है। आत्मा से भरे हुए लोग होना कितने सौभाग्य की बात है!

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हमने पता लगाया है कि आत्मा का फल क्या है (और क्या नहीं है) और यह क्यों मायने रखता है। अब हम इस पर विचार करेगें कि आत्मा का फल मसीही जीवन को कैसे आकार देता है।

जो कुछ परमेश्वर ने मसीह में हमारे लिए किया है और पवित्र आत्मा के माध्यम से करना जारी रखता है, उस पर विचार करना अद्भुत है। उसने जो कुछ किया है, उसके लिए हमारी जिम्मेदारी आसान है: आत्मा के साथ कदम मिलाकर चलें और शरीर का विरोध करें। हमें उस कार्य में सहयोग देना है जो वह कर रहा है और हम उस दिन की प्रतीक्षा कर रहे हैं जब शरीर की शक्ति पर विजय प्राप्त की जाएगी।

सबसे महत्वपूर्ण चीजों में से एक जो आत्मा करता है वह है हमें मसीह की ओर करना। इसका मतलब है कि एक तरीका जिससे हम आत्मा के साथ मिलकर चल सकते हैं, वह है यीशु पर अपनी आँखें लगाये रखना। अपने दैनिक विचारों और ध्यान को बार बार उसके पास वापस आने दें। उसे हमारे विचारों, हमारी कल्पना और हमारी इच्छाओं का केंद्र बनने दें। जब हम मसीह का अनुसरण करने, उस पर निर्भर रहने और उसके अधीन होने का चुनाव करते हैं, तो हम आत्मा के साथ कदम से कदम मिलाकर चलेंगे।

हम यह भी सोच सकते हैं कि यीशु कौन है। वह परमेश्वर पुत्र है, वह हमारा विनम्र और अनुग्रहकारी उद्धारकर्ता है, जिसने मनुष्य बनने, तिरस्कृत और ठुकराए जाने, और हमारे स्थान पर मरने के लिए पिता के साथ अपना स्थान छोड़ दिया। जब हम यीशु के चरित्र पर चिंतन करते हैं, हम न केवल बेहतर इंसान बनना सीखते हैं, हम अपने विचारों, बोली और कार्यों में उसका अनुकरण करने के लिए खिंचते हैं। यीशु दयालु और नम्र है। वह दूसरों के साथ सम्मान और करुणा से पेश आता है। वह आत्मा के फल का आदर्श है

जब हम यीशु पर विचार करते हैं, तो हमारे पास सभी चीजों के लिए उस पर अपनी निर्भरता व्यक्त करने का अवसर होता है, केवल हमारे उद्धार के लिए नहीं। वह अनन्त जीवन का स्रोत है, और वास्तव में संपूर्ण ब्रह्मांड के शासक और पालनकर्ता के रूप में सारे जीवन का है। मसीह पर हमारी प्रार्थनापूर्ण निर्भरता उसे सम्मान देती है और यह हमारे हृदयों का सही स्वभाव है। मसीह पर इस तरह के सभी विचार और उस पर हमारी निर्भरता की अभिव्यक्ति आत्मा के प्रभाव से उत्पन्न होती है।

लेकिन हम सभी इस सच्चाई को भल भांति जानते हैं कि मसीही जीवन एक संघर्ष है। जबकि आत्मा वास्तव में हमारे भीतर शक्तिशाली रूप से कार्य करता है, पवित्रशास्त्र हमें शरीर के अनुसार जीने का विरोध करने के लिए प्रेरित करता है। यह मानता है कि हम अभी भी अपने आप को देह की शक्ति के हवाले कर सकते हैं। हमें निष्क्रिय होने का विकल्प नहीं दिया जाता है। और इसलिए, पूरे मसीही जीवन में आत्मा के द्वारा जीने और अपनी स्वार्थी इच्छाओं के आगे समर्पण करने के बीच एक निरंतर तनाव बना रहता है।

यह गलातियों 5 के अंत में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।  जब पौलुस अपने पाठकों को आत्मा के साथ कदम मिलाकर चलने के लिए प्रोत्साहित करता है 5:25, तो वह इसका अनुसरण नकारात्मक रूप से करता है, “हम अभिमानी न हों, और न एक दूसरे को भड़काएँ, और डाह न करें”  5:26।

एक अच्छी दैनिक प्रार्थना ईश्वर से संघर्ष में लगे रहने की शक्ति मांगना है। केवल दो तरीके हैं जिनसे संघर्ष का संघर्ष की तरह महसूस होना बंद हो सकता है। पहला– मरना और प्रभु के साथ रहना है। दूसरा– संघर्ष को छोड़ना और शरीर के आगे झुक जाना। यही वह विकल्प है जिससे हमें बचना चाहिए! इसलिए हमें निराशा की भावनाओं से सावधान रहने की जरूरत है जो हमें लड़ाई में बने रहने के लिए रोकती हैं।

हालांकि कभी–कभी ऐसा महसूस होगा, शरीर के खिलाफ हमारी लड़ाई निराशाजनक नहीं है। इसके दो प्रमुख कारण हैं: हम अब पाप के अधिकार के अधीन नहीं हैं, और आत्मा एक जमा पूंजी है जो हमारे भविष्य की विरासत की गारंटी है। आइए बारी–बारी से इनके बारे में खोजबीन करें।

हम अब पाप के अधिकार के अधीन नहीं हैं। रोमियों 6 में पौलुस इस बिंदु को सबसे अधिक विस्तार से विकसित करता है। यदि हम मसीह के साथ मर गए हैं, तो हमें पाप से मुक्त कर दिया गया है (रोमियों 6:7)। रोमियों 6 में पाप से पौलुस का अर्थ पाप के एक शक्ति या शासक के रूप में है। वह जो बात कह रहा है वह यह है कि, मसीह के साथ मरने के द्वारा, विश्वासियों को पाप की शक्ति से मुक्त कर दिया गया है, और अब हम मसीह के अधिकार के अधीन रहते हैं। फिर भी पौलुस रोमियों से निवेदन करता है कि वे स्वयं को फिर से पाप में न डालें (6:12–13)। जबकि पाप अब हमारा स्वामी नहीं है (6:14), फिर भी पाप का पालन करते रहने का आकर्षण वास्तविक और शक्तिशाली है । लेकिन पौलुस चाहता है कि हम यह महसूस करें कि हमें हार मानने की आवश्यकता नहीं है।

हालांकि कभी–कभी ऐसा महसूस होगा, शरीर के खिलाफ हमारी लड़ाई निराशाजनक नहीं है

प्रसिद्ध वेल्श उपदेशक डी मार्टिन लॉयड जोन्स ने इस संघर्ष को अच्छी तरह से चित्रित किया। 1865 में संयुक्त राज्य अमेरिका में दासता को समाप्त करने के लिए अब्राहम लिंकन और अन्य लोगों का काम आखिरकार सफल हुआ। सभी दासों को स्वतंत्र घोषित कर दिया गया। लॉयड जोन्स कहते हैं कि, कल्पना करें आप अलबामा में एक गुलाम के रूप में पल–.बढ़े थे। एक पल आप गुलाम हो, अगले पल आप स्वतंत्र हैं—कानूनी रूप से,आधिकारिक तौर पर, और हमेशा के लिए स्वतंत्र । जबकि अब आप अपनी स्वतंत्रता प्राप्त कर सकते हैं, उस स्वतंत्रता की आपकी आंतरिक समझ को वास्तविकता तक पहुंचने में कुछ समय लग सकता है। कल्पना कीजिए कि एक दिन आप सड़क पर अपने पूर्व दास–मालिक से मिले, और वह आपको पुकारता है, “यहाँ आओ”; उस पल क्या आप गुलाम की तरह महसूस करोगे? मुझे लगता है कि शायद आप करेंगे। आपका पूरा जीवन आपने उसे अपने स्वामी के रूप में जवाब दिया है। आपने उस आवाज को मानने के लिए फिर से अपने आप को अनुकूल किया है। आपके शरीर की हर मांसपेशी और तंत्रिका उसकी आज्ञा मानने के लिए तैयार हैं।

लेकिन हकीकत यह है कि आप आजाद हैं। आप गुलाम नहीं हैं । आपके पूर्व मालिक का आप पर जरा भी अधिकार नहीं है। वह आपको नहीं बता सकता कि क्या करना है, और उसकी आज्ञा मानने के लिए आपकी कोई शर्त या बंधन नहीं है।

पाप के साथ हमारा संघर्ष ऐसा ही है। पाप ने एक बार हम पर शासन किया था, और हमारे शरीर को उसकी मांगों को मानने के लिए उसके अनुकूल किया गया था। हमने अपना पूरा जीवन इस तरह से तब तक जिया जब तक कि हमें मसीह द्वारा मुक्त नहीं किया गया। अब जबकि हम आत्मिक स्वतंत्रता को जानते हैं, तो इसे समझने में हमें कुछ समय लग सकता है। कभी–कभी, पाप पुकारता है, “यहाँ आओ” और हमारा प्रारंभिक आवेग आज्ञा पालन करना है। लेकिन मसीह में हम अब पाप के दास नहीं हैं। हमें उसकी पुकार मानने की जरूरत नहीं है। पर फिर भी हम इसके खिंचाव को महसूस करेंगे और इसकी मांगों को पूरा करने के लिए अपनी पहली प्रतिक्रिया के साथ संघर्ष भी करेंगे। यद्यपि हम स्वतंत्र हैं, फिर भी हम वह करने का चुनाव कर सकते हैं जो पाप कहता है, भले ही पाप को हमें यह बताने का कोई अधिकार नहीं है कि हमें क्या करना है।

पाप कभी-कभी हमारा ध्यान और हमारी आज्ञाकारिता की माँग करता है। हालाँकि, कभी–कभी पाप हमारे कान में फुसफुसाता है और हमें बहकाता है। “प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा में पड़कर और फंसकर परीक्षा में पड़ता है। फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनती है और पाप जब बढ़ जाता है तो मृत्यु को जन्म देता है” याकूब 1:14-15।

और इसलिए हम इस जीवन को आत्मा और हमारे पूर्व शासकों, पाप और शरीर के बीच चल रहे तनाव के साथ जीते हैं। हमें आत्मा को चुनते रहना है। हम अब मसीह के हैं और उसकी आत्मा शक्तिशाली है। आइए हम आत्मा के साथ मिलकर रहें और पाप और शरीर की जीती हुई शक्तियों की अवैध पुकार को नकारें।

आइए हम आत्मा के साथ मिलकर रहें और पाप और शरीर की जीती हुई शक्तियों की अवैध पुकार को नकारें।

शरीर के खिलाफ हमारी लड़ाई निराशाजनक न होने का दूसरा प्रमुख कारण यह है कि यह एक दिन समाप्त हो जाएगा। जैसा कि इफिसियों 1:13–14 में पौलुस कहते हैं कि आत्मा एक मुहर है जो इस तथ्य को चिह्नित करती है “कि हम मसीह के हैं जिस पर तुम ने विश्वास किया, प्रतिज्ञा किए हुए पवित्र आत्मा की छाप लगी। वह उसके मोल लिए हुओं के छुटकारे के लिये हमारी मीरास का बयाना है जब तक कि वह अंत में हमें छुड़ा नहीं लेता।” इसका अर्थ है कि आत्मा हमारे भविष्य का प्रमाण है। नए युग के संकेत के रूप में, हम जानते हैं कि आत्मा से परिपूर्ण लोग एक दिन पूरी तरह से बदल दिए जाएंगे, नए पुनर्जीवित शरीर के साथ, हमेशा के लिये, पाप से पूरी तरह मुक्त हो जाएंगे।

रोमियों 8:14–17 में पौलुस इसे इसी तरह रखता है—“इसलिये कि जितने लोग परमेश्वर के आत्मा के चलाए चलते हैं, वे ही परमेश्वर के पुत्र हैं। क्योंकि तुम को दासत्व की आत्मा नहीं मिली, कि फिर भयभीत हो; परन्तु लेपालकपन की आत्मा मिली है, जिस से हम हे अब्बा! हे पिता! कह कर पुकारते हैं।” महत्वपूर्ण पंक्ति पद 17 में है— “यदि हम उसकी संतान हैं, तो हम वारिस भी हैं, वरन परमेश्वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस, कि यदि वास्तव में हम उसके साथ दुःख उठाते हैं तो उसके साथ महिमा भी उठाते हैं।” इसलिए हम देखते हैं कि हमारे जीवन में आत्मा की उपस्थिति एक गौरवशाली भविष्य की ओर इशारा करती है—एक ऐसा भविष्य जिसमें परमेश्वर की गौरवशाली संतान के रूप में पाप, पीड़ा या शर्म नहीं होगी। शरीर और आत्मा के बीच का तनाव उस दिन तक चलता रहता है। लेकिन जब हम आत्मा के अनुसार जीना जारी रखते हैं, जब हम उसके साथ मिलकर चलने का प्रयास करते हैं, और जब हम शरीर की बुलाहट का विरोध करते हैं, तो आत्मा हम में अपना फल उत्पन्न करता रहेगा।

फसल कटाई का समय

आत्मा का फल प्रेम, आनंद, शांति, धैर्य, दया, भलाई, विश्वास, नम्रता, आत्म.संयम; और इनके साथ अन्य मसीह जैसी विशेषताएं हैं। आत्मा हम में रहता है क्योंकि मसीह में नया जीवन आ गया है, और हम शरीर, पाप और व्यवस्था की दासता से मुक्त हो गए हैं। वह नए युग का चिन्ह है और परमेश्वर के परिवार में हमारी सदस्यता की मुहर है। फल उत्पन्न करने के लिए आत्मा हम में कार्य करती है जो कि पारिवारिक समानता के अनुरूप है, जब हम यीशु पर अपनी आँखें लगाते हैं, पूरी तरह से उस पर निर्भर रहते हैं, और जीवन भर उसकी आराधना करना चाहते हैं।

जाँचने के लिए, आत्मा का फल कार्य करने की सूची नहीं है। आत्मा हम में फल पैदा करता है। मसीह धर्म नियमों का एक समूह नहीं है, न ही बाइबल अच्छे जीवन के लिए एक नियमावली है। मसीह धर्म, अपने पुत्र यीशु मसीह के द्वारा पिता परमेश्वर के साथ एक संबंध के बारे में है, जिसे पवित्र आत्मा द्वारा सशक्त किया गया है।