मसीही कहते हैं कि वे एक ईश्वर में विश्वास करते हैं; जो कि एकमेव परमेश्वर है। परंतु वह तीन व्यक्तित्व भी हैं: पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा। यह बहुत उलझन में डाल देने वाली बात है।

इसलिये तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो ~ मत्ती 28:19

त्रियेक परमेश्वर को समझने की कोशिश करना बहुत पेचीदा है, हमें आश्चर्य होगा कि क्या यह वास्तव में इतना महत्वपूर्ण है। त्रियेक से वास्तव में परमेश्वर के साथ हमारे सम्बन्ध में क्या फर्क पड़ता है? क्या यह वास्तव में मायने रखता है कि क्या हम आध्यात्मिकता के इस कठिन अंश के बारे में सोचे?

हमें यीशु के शब्दों को याद करने की आवश्यकता है जब उसने अपने पुनरुत्थान के बाद अपने शिष्यों को “सब जातियों के लोगों को चेला बनाने” के लिए भेजा था। उसने उन्हें ऐसा करने के लिए कहा “उन्हें पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा देना” (मत्ती 28:19)।

यीशु के लिए, चेले बनाना केवल दूसरों को परमेश्वर या केवल खुद के व्यक्तित्व की अवधारणा से परिचित कराना नहीं है। यह महत्वपूर्ण है कि हम जानें, और दूसरों को बताएं कि वास्तव में परमेश्वर कौन है; वह तीन अलग लेकिन एक व्यक्तित्व हैं। यह सिर्फ जानकारी या दिलचस्प सामान्य ज्ञान नहीं है। परमेश्वर के तीन व्यक्तित्व हमारे लिए उतने ही आवश्यक है जितने उसके लोग।

परमेश्वर के व्यक्तित्व कौन हैं?

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परमेश्वर के तीन व्यक्तित्व

कुछ मसीही परमेश्वर के तीन-एकत्व को समझने की कोशिश करते है जैसे परमेश्वर खुद को तीन अलग रूप से हमारे बीच में ‘प्रकट’ करते है। कभी वे स्वयं को पिता के रूप में, कभी पुत्र के रूप में, और कभी आत्मा के रूप में प्रकट करते हैं। दूसरे यह बताने की कोशिश करते हैं कि परमेश्वर एक अंडे की तरह है… एक अंडे में तीन मुख्य भाग होते हैं (ज़र्दी (अंडे का पीला भाग), सफेदी और छिलका(कवच)। फिर भी यह एक अंडा ही है। लेकिन परमेश्वर व्यक्तित्व को नहीं बदलता है, और वह एक अंडे की तरह नहीं है। बाइबल परमेश्वर को “एक” के रूप में वर्णित करती है जो तीन व्यक्तित्व हैं। लेकिन उनके संबंध और एकता का मतलब है कि उनके पास एक विशेष ‘एकता’ है, जो उन्हें एक साथ, एकमेव परमेश्वर बनाती है। आइए इस बात को पिता, पुत्र और आत्मा को तीन चरणों में देखें।

“सो तुम इस रीति से प्रार्थना किया करो; “हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में हैं; तेरा नाम पवित्र माना जाए।”
~ मत्ती 6:9

परमेश्वर पिता: जब यीशु ने अपने शिष्यों को प्रार्थना करना सिखाया, तो उसने कहा कि उन्हें “हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में हैं” ऐसे संबोधन देकर परमेश्वर पिता से बात करनी है (मत्ती 6:9)। हमें यह भी बताया गया है कि मसीही वास्तव में पिता की संतान हैं: “देखो पिता ने हम से कैसा प्रेम किया है, कि हम परमेश्वर की सन्तान कहलाएँ!” (1 यूहन्‍ना 3:1)।

स्वर्ग में हमारा पिता हमारे साथ, अपने बनाए गए लोगों के साथ एक व्यक्तिगत, पारिवारिक संबंध रखना चाहता है, । हालाँकि, बाइबल में यह स्पष्ट है कि हम पिता को उसके पुत्र, यीशु को जाने बिना नहीं जान सकते।

परमेश्वर पुत्र: यीशु 2,000 साल पहले इस पृथ्वी पर आये थे यह दावा करते हुए कि “मैं और मेरा पिता एक हैं” (यूहन्‍ना 10:30) और “यदि तुम ने मुझे जाना होता, तो मेरे पिता को भी जानते” (यूहन्‍ना14:7)। यह एक पति के कहने से बढ़कर है, “मेरी पत्नी और मैं एक हैं।” यीशु कह रहा है कि वह उतना ही परमेश्वर है जितना कि पिता।

मैं और मेरा पिता एक हैं” ~ यूहन्‍ना 10:30

वह कह रहा है कि यदि हम उसे जानते हैं, तो हम पिता को भी जानते हैं। वे एक ही परमेश्वर हैं, लेकिन अलग-अलग व्यक्तित्व हैं।

यीशु की मृत्यु, पुनरुत्थान और पिता के पास स्वर्गारोहण से पहले, उसने एक “सहायक” भेजने का वादा किया था जो हमारे साथ सर्वदा रहेगा। (यूहन्‍ना 14:16) जिस तरह पिता के साथ हमारा रिश्ता यीशु पर निर्भर करता है, उसी तरह यीशु के साथ हमारा रिश्ता पवित्र आत्मा, “सहायक” पर निर्भर करता है।

परमेश्वर आत्मा: कभी-कभी पवित्र आत्मा को एक ‘शक्ति’ या ऊर्जा के रूप में गलत समझा जाता है। तो इसे बिजली से जोड़ा जाता है। जैसे वे कोई बिजली हो हालाँकि, यीशु यह स्पष्ट करते हैं कि पवित्र आत्मा एक व्यक्ति है। मसीही वे लोग हैं, जिन्होंने यीशु पर विश्वास करके उन्हें परमेश्वर के साथ नया जीवन देने के लिए, हमेशा के लिए पवित्र आत्मा प्राप्त किया है। पवित्र आत्मा हमारी अगुवाई और मार्गदर्शन करता है (रोमियों 8:14), हमें सिखाता है कि परमेश्वर कौन है और उसने हमें किसलिए बनायाहै । (यूहन्‍ना 14:26; 16:12-15)

“परन्तु सहायक अर्थात् पवित्र आत्मा जिसे पिता मेरे नाम से भेजेगा, वह तुम्हें सब बातें सिखाएगा, और जो कुछ मैं ने तुम से कहा है, वह सब तुम्हें स्मरण कराएगा।”
~ यूहन्‍ना 14:26

यीशु ने यह भी कहा कि पवित्र आत्मा संसार को पाप और धार्मिकता और न्याय के विषय में निरुत्तर करेगा। (यूहन्‍ना 16:8) परमेश्वर आज दुनिया में कार्यरत है जो लोगों को उसे ठुकराने (“पाप”) की सच्चाई और गंभीरता को दिखा रहा है, वास्तविकता यह है कि यीशु हमें परमेश्वर (“धार्मिकता”) के साथ एक नया, पुन: स्थापित जीवन प्रदान करता है और यीशु को अस्वीकार करते रहने का परिणाम “न्याय” है।

परमेश्वर चाहता है कि हम उसे जानें और फिर से उसके हो जाएं। और परमेश्वर के तीनों व्यक्तित्व इस कार्य में एक हैं। पिता ने पुत्र को हमारे पाप के लिए मरने और हमें नया जीवन देने के लिए भेजा; पुत्र ने आत्मा को हमें यह समझाने भेजा कि परमेश्वर ने हमारे लिए क्या किया है और हमें उस पर भरोसा करते रहना है।

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परमेश्वर की एकता

बाइबिल स्पष्ट है कि पिता परमेश्वर है, पुत्र परमेश्वर है और आत्मा परमेश्वर है। प्रत्येक जन की एक अलग व्यक्तित्व और भूमिका होती है। हम उनके बीच अंतर कर सकते हैं, लेकिन हम उन्हें अलग नहीं कर सकते। वे एक परमेश्वर हैं। प्रत्येक जन दूसरों के साथ पूर्ण एकता में कार्य करता है और रहता है। वास्तव में, तीनों व्यक्तित्व हर वह कार्य में शामिल होते हैं जो परमेश्वर करता है।

जब परमेश्वर ने संसार को बनाया, तब तीनों व्यक्ति भी कार्य में एकसाथ थे । (उत्प.1:1-2; यूहन्‍ना 1:1,14) और फिर जब उसने हमें बनाया, तो उसने कहा: “आओ, हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं” (उत्प. 1:26) । और, जैसा कि हमने देखा है, तीनों व्यक्तित्व हमें परमेश्वर के पास वापस लाने के कार्य में एकजुट हैं, हमें मसीही के रूप में आगे बढ़ाते हैं, और हमें हमारे व्यवहार और चरित्र में परमेश्वर के समान बनाते हैं।

तीन व्यक्तित्व में एक परमेश्वर। यह मसीही परमेश्वर है। वह अद्भुत और कमाल है। हम उसे कभी भी पूरी तरह से नहीं समझ पाएंगे क्योंकि वह परमेश्वर है। उसकी असीम सामर्थ, प्रेम और चरित्र को समझने के लिए हमारा दिमाग बहुत छोटा हैं। लेकिन यह भी कमाल की बात है। और जैसे हम परमेश्वर को उसकी आत्मा और बाइबल के माध्यम से जानेंगे, वह हमेशा जितना हम समझ सकते हैं उससे कही बड़ा और महान होते जायेगा। वह वास्तव में परमेश्वर है!

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क्या यह महत्वपूर्ण है?

इससे क्या फर्क पड़ता है कि परमेश्वर एक व्यक्ति है या तीन? क्या यह सचमुच में हमारे जीवन को प्रभावित करने वाला है? दरअसल, परमेश्वर के तीन व्यक्तित्व बहुत मायने रखते हैं: परमेश्वर के तीन व्यक्तित्व दिखाते हैं कि वह पूरी तरह से हमारे लिए प्रतिबद्ध है: परमेश्वर के तीनों व्यक्तित्व पूरी तरह से शामिल हैं और हमें उसकी संतान बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। पौलुस इसे इस तरह समझाता है:

“हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर और पिता का धन्यवाद हो,…उस ने हमें जगत की उत्पति से पहिले उस में (यीशु) चुन लिया, कि हम उसके निकट प्रेम में पवित्र और निर्दोष हों, अपनी इच्छा की सुमति के अनुसार हमें अपने लिये पहिले से ठहराया, कि यीशु मसीह के द्वारा हम उसके लेपालक पुत्र हों,..और उसी में तुम पर भी जब तुम ने सत्य का वचन सुना, जो तुम्हारे उद्धार का सुसमाचार है, और जिस पर तुम ने विश्वास किया, प्रतिज्ञा किए हुए पवित्र आत्मा की छाप लगी, वह उसके मोल लिए हुओं के छुटकारे के लिये हमारी मीरास का बयाना है, कि उस की महिमा की स्तुति हो।” ~ इफिसियों 1:3-14 (महत्त्व /ज़ोर डाला गया)

पिता ने हमें बचाने के लिए यीशु को भेजा ताकि हम परमेश्वर की अपनी संतान बन सकें। जब हम यीशु पर विश्वास करते हैं तो हम पवित्र आत्मा के द्वारा “चिह्नित” और “मुहरबंद” हो जाते हैं जो हमारे मरने के बाद परमेश्वर के घर में हमारे एक स्थान की “हमारी विरासत” की आश्वस्ति (गारंटी) देता है।

यशायाह की भविष्यवाणी का केंद्र एल गिब्बोर (El Gibbor) है, एक शक्तिशाली परमेश्वर है जो हमारा सच्चा हीरो है। सातवीं शताब्दी ईसा पूर्व में इस भविष्यवक्ता ने जो अनुमान लगाया था, नया नियम उसकी पुष्टि करता है। क्योंकि मसीहा परमेश्वर होगा, उसके पास परमेश्वर की सामर्थ होगी- लेकिन यशायाह के लिए, अद्भुत बात यह थी कि मसीहा के पास न केवल परमेश्वर की सामर्थ होगी, बल्कि वह सामर्थ का परमेश्वर होगा! हमारी ओर से परमेश्वर का कार्य पूर्ण और सिद्ध है। क्योंकि सभी तीन व्यक्तित्व यीशु पर विश्वास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को सुरक्षित स्वर्ग में लाने की अपनी प्रतिबद्धता में एक हैं, हम महान आत्मविश्वास और निश्चितता प्राप्त कर सकते हैं।

परमेश्वर हमें पूरी तरह से समझते हैं: परमेश्वर कोई दूर रहने वाला जीव नहीं हैं, जिस पर हम आशा लगाए हैं कि वह एक दिन हम पर ध्यान देगा। यीशु के व्यक्तित्व में, परमेश्वर जगत में आया और हमारे लिए दुख उठाया और मर गया। वह जानता है कि दुःख और दर्द से गुजरना क्या है। वह जानता है कि भूखा होना, थका होना और घृणित होना क्या होता है। जब यीशु जगत में आया (यद्यपि वह तब भी पूर्ण रूप से परमेश्वर था) परमेश्वर पूर्ण रूप से मनुष्य बन गया। हमें बताया गया है, “हमारा ऐसा महायाजक (यीशु का उल्लेख करते हुए] नहीं, जो हमारी निर्बलताओं में हमारे साथ दुखी न हो सके; बरन वह सब बातों में हमारी नाई परखा तो गया, तौभी निष्पाप निकला”(इब्रा. 4:15) ।

परमेश्वर हर उस समस्या या परेशानी को समझता है जो हम उसके सामने लाते हैं और वह हमारी चिंता करता है (1 पत. 5:7), एक दूर के अच्छे जीव के रूप में नहीं, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो उन सारी चीज़ो से गुजरा और उन्हें हरा दिया, जिन चीज़ो से हम गुजरते हैं। यीशु ने अपने चेलों से वादा किया था “संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीत लिया है।” (यूहन्‍ना 16:33)

“मैं तुझे कभी न छोडूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा।”
~ इब्रानियों 13:5

परमेश्वर हमारे जीवन में पूरी तरह से शामिल है: न केवल हम अपनी सभी परेशानियों और समस्याओं को परमेश्वर के पास ला सकते हैं, बल्कि हम उनके साथ इन सब से गुजर भी सकते हैं। उसकी आत्मा हमें मार्गदर्शन करने, नेतृत्व करने और मजबूत करने के लिए हमारे भीतर है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम कठिन समय, नौकरी छूटने, बीमारी आदि से नहीं गुजरेंगे। लेकिन जब हमें किसी भी कठिनाई का सामना करना पड़ेगा, तो हम पूरी तरह से परमेश्वर पर भरोसा करते हुए, उसके साथ सामना कर सकते हैं। उसके बच्चों को कभी भी अकेले किसी चीज़ का सामना नहीं करना पड़ता है । (इब्रा. 13:5)

यीशु परमेश्वर के साथ हमारे नए जीवन का वर्णन इस प्रकार करते हैं: “यदि कोई मुझ से प्रेम रखे, तो वह मेरे वचन को मानेगा, और मेरा पिता उस से प्रेम रखेगा, और हम उसके पास आएंगे, और उसके साथ वास करेंगे। ” (यूहन्ना 14:23)। इसका अर्थ यह है कि जब हम परमेश्वर की पवित्र आत्मा प्राप्त करते हैं, तो यह ऐसा है कि हम एक परमेश्वर पिता, पुत्र और आत्मा से जुड़ गए हैं। हम उससे अलग नहीं हो सकते हैं! और उसके साथ जुड़ने पर आत्मा का दैनिक कार्य हमें अधिक से अधिक परमेश्वर के समान बनाना है। जब हम परमेश्वर के साथ समय बिताते हैं, बाइबल पढ़ते हैं और उस पर अपने विश्वास में बढ़ते हैं, तो वह हमें और भी यीशु की तरह दिखने के लिए बदल देगा, जो परमेश्वर का सिद्ध स्वरूप है । (कुलु. 1:15, 20; गला. 5:22- 23)

परमेश्वर जानता है कि प्रेम क्या है: यीशु के सबसे घनिष्ठ मित्रों में से एक यूहन्‍ना, ने यह लिखा: “जो प्रेम नहीं रखता, वह परमेश्वर को नहीं जानता है, क्योंकि परमेश्वर प्रेम है” (1 यूहन्