प्रप्रत्येक व्यक्ति प्रेम की तलाश में है l त्येक व्यक्ति प्रेम की तलाश में है l लेकिन वास्तविक प्रेम कैसा दिखता है? हमें कैसे पता चलेगा जब हमनें इसे पाया है? कुछ लोग “प्यार में होने” को एक वर्णन करने से परे भावना के रूप में सोचते हैं जिसमें हम प्रेम करते हैं और प्रेम करना छोड़ देते हैं l लेकिन बाइबल, अपने अनंत बुद्धिमत्ता में, हमें एक अधिक सार्थक और स्थायी तस्वीर देती है l

आगे के पन्नों में, पास्टर और बाइबल शिक्षक बिल क्राऊडर 1 कुरिन्थियों 13:4-8 के प्रेरित शब्दों पर नए सिरे से नज़र डालने में हमारी मदद करते हैं l जो लोग पवित्रशास्त्र में उनके भरोसे को साझा करते हैं, वे पाएंगे कि जिसे गीतकार बॉब लिंड ने “प्यार की चमकीली मायावी तितली” संबोधित किया है, वह आख़िरकार इतनी मायावी नहीं है l

मार्ट डीहान

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ब एक अमेरिकी गायिका’-गीतकार जैकी डीशैनन ने गाया, जब एक अमेरिकी गायिका’-गीतकार जैकी डीशैनन ने गाया, “संसार को अभी जो चाहिए वह प्यार है, मीठा प्यार,” एक पीढ़ी ने उसके साथ गाया l गीत के अनुसार, संसार को चढ़ने के लिए पहाड़ एवं पार करने के लिये नदियों की ज़रूरत नहीं है l हमें जो चाहिए वह प्रेम है, “केवल कुछ के लिए नहीं, बल्कि सभी के लिए l”

60 के दशक के इस प्रसिद्ध गीत का विषय एक ऐसे तार को छूता है जो हम सभी में गूंजता है l हम अपने जीवनसाथी से अपने प्यार का इजहार करने के लिए गुलाब और कैंडी खरीदते हैं l हम प्राकृतिक आपदाओं से तबाह हुए समुदायों के लिए राहत राशि जुटाते हैं l हम 75 वर्षीय रसेल प्लेसेंस जैसे लोगों के कार्यों की सराहना करते हैं, जिन्होंने एक परेशान परिवार की मदद करने की कोशिश की, जिसकी दुर्दशा का वर्णन उनके स्थानीय अखबार में किया गया था l रसेल एक स्थानीय मोटेल/होटल में पैसे, भोजन और खिलौने लाया, जहाँ परिवार रह रहा था l दुर्भाग्य से, कुछ दिनों बाद रसेल की दया का “बदला चुकाया गया” जब परिवार के पिता ने उस पर चाकू खींच लिया और उसका बटुआ और कार लेकर भाग गया l

रसेल का अनुभव यह समझाने में मदद करता है कि दुनिया को प्यार की सख्त ज़रूरत क्यों है l अगर पेश किया गया प्यार हमेशा लौटाया जाता, तो बाँटने के लिए काफी कुछ होता l लेकिन प्यार हमेशा वापस नहीं मिलता l और कभी-कभी जब प्यार वापस आता है, तो हम इसे अपने रुचियों के अनुसार फिर से परिभाषित करते हैं l प्यार का मतलब अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग हैं l

सामान्य बातचीत में भी हम प्यार शब्द का उपयोग कई तरह की चीजों के लिए करते हैं l उदाहरण के लिए, मैं कह सकता हूँ कि :

“मुझे गोल्फ के खेल से प्रेम करता हूँ l”
“मैं अपने कंप्यूटर से प्यार करता हूँ l”
“मैं अपनी पत्नी और बच्चों से प्यार करता हूँ l”
“मुझे चेन्नई सुपर किंग्स से प्यार है l”

जब एक शब्द का अर्थ कई अलग चींजें हो सकती हैं, तो इसका अर्थ कुछ नहीं भी हो सकता है!

हालाँकि, बाइबल का ज्ञान प्रेम की अपनी परिभाषा में स्पष्ट है l क्रोध और संघर्ष से पीड़ित लोगों को लिखते हए प्रेरित पौलुस ने कहा :

यदि मैं मनुष्यों और स्वर्गदूतों की बोलियाँ बोलूँ और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झनझनाती हुयी झांझ हूँ l और यदि मैं भविष्यवाणी कर सकूँ, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूँ, और मुझे यहाँ तक पूरा विश्वास हो कि मैं पहाड़ों को हटा दूँ, परंतु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं l यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूँ, या अपनी देह जलाने के लिए दे दूँ, और प्रेम न रखूँ, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं (1 कुरिन्थियों 13:1-3) l

ये शाश्वत शब्द उन लोगों के लिए लिखे गए थे जो व्यक्तिगत् प्रतिबद्धता और त्याग के महत्व को जानते थे l

रसल का अनुभव यह समझाने में मदद करता है कि संसार को प्यार की इतनी आवश्यकता क्यों है l अगर पेश किया गया प्यार हमेशा लौटाया जाता, तो बाँटने के लिए काफी कुछ होता l

कुरिन्थुस के पाठकों ने पौलुस के पत्र के विश्वास, ज्ञान, आध्यात्मिक वरदान, मजबूत अगुओं और प्रेरक संदेशों के मूल्य को समझा l

लेकिन अपने स्वयं के हितों की देखभाल करने की कोशिश में, कुरिन्थुस के मसीही-अनुयायियों ने अपने विश्वास और ज्ञान के लक्ष्य को खो दिया l वे भूल गए कि शास्त्रों का अध्ययन करना संभव है और इसके बावजूद परमेश्वर के दिल और दिमाग से बहक जाना l तृप्ति की चाहत में वे भूल गए थे कि उनकी सबसे बड़ी ज़रूरत क्या थी l

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ह विरोधाभासी लग सकता है कि संसार में अब तक ज्ञात प्रेम के सबसे सुन्दर विवरणों में से एक कुरिन्थुस जैसे शहर से जुड़ा है l पतनशील और हृदयहीन, इसके निवासी अपने आत्म-केन्द्रित संबंधों के लिए जाने जाते थे l जीवन का नियमित रूप से उपयोग और विनाश किया गया l हालाँकि, करीब से देखने पर, सेटिंग/विन्यास अत्यधिक उपयुक्त है l यदि कभी लोगों को अपने जीवन को बदलने के लिए सच्चे प्रेम के सिद्धांतों की ज़रूरत थी, तो वह कुरिन्थुस की कलीसिया थी l

आज के मानकों के अनुसार भी, कुरिन्थुस के मसीहियों को बहुत कुछ पर विजय पाना था l शहर का प्राथमिक धर्म प्रेम की ग्रीक/यूनानी देवी एफ्रोडाइट की पूजा थी, जिसके मंदिर में 1,000 देवदासियों को नियुक्त किया गया था l

धन ने एक और चुनौती पेश की थी l उत्तरी और दक्षिण ग्रीस/यूनान को जोड़ने वाले कुरिन्थुस के स्थलडमरूमध्य/संयोग भूमि/isthmus पर शहर का प्रमुख स्थान एक व्यवसायिक समृद्धि प्रदान करता था जिसने इसके नैतिक पतन को बढ़ावा दिया l यौन उन्मुख धर्म के साथ मिश्रित भौतिकवाद के इस घातक संगत ने व्यक्तिगत आनंद पर आधारित संस्कृति को जन्म दिया l

जैसा कि अक्सर होता है, कुरिन्थुस की कलीसिया ने अपने पर्यावरण की स्थिति प्रतिबिंबित करना आरम्भ कर दिया l पौलुस ने इस होनहार लेकिन परेशान कलीसिया को इस पहली पत्री में कई तरह की समस्याओं का हल दिया :

  • परमेश्वर के परिवार में विभाजन (अध्याय 1-3)
  • अहंकार और आध्यात्मिक अभिमान (अध्याय 4)
  • यौन संक्रीनता/घालमेल (अध्याय 5)
  • विश्वासियों के बीच मुकदमें (अध्याय 6)
  • विश्वासियों के बीच मुकदमें (अध्याय 6)
  • आध्यात्मिक स्वतंत्रता का दुरुपयोग (अध्याय 8-10)
  • प्रभु की मेज का दुरुपयोग (अध्याय 11)
  • आध्यात्मिक वरदानों का दुरुपयोग (अध्याय 12,14)
  • सैद्धांतिक बुनियादी बातों की उपेक्षा (अध्याय 15)

पौलुस के पाठकों को यह समझने की ज़रूरत थी कि मसीह का अनुसरण करने के लिए ज्ञान, बुद्धि और शक्ति/सामर्थ्य की खोज से कहीं अधिक कुछ है l उनके सभी वाक्पुट तर्क, सही सिद्धांत, विश्वास की अभिव्यक्तियाँ, और बलिदान देना वास्तव में दूसरों को दूर कर देगा यदि उन्होंने प्रेम के वास्तविक अर्थ को फिर से नहीं खोजा l 13:1-3 में विरोधाभासों की एक श्रृंखला के साथ, पौलुस ने दिखाया कि वास्तव में क्या होता है जब हमारे कार्य, यहाँ तक कि अच्छे कार्य भी, प्रेम से नहीं किये जाते हैं l

 

कुरिन्थुस अपने भ्रष्टाचार के लिए इतना प्रसिद्ध हो गया कि यूनानी/ग्रीक संसार में जो लोग घोर के दोषी थे और शराबी व्यभिचारी थे, उन्हें कुरिन्थियों की तरह व्यवहार करना संबोधित किया गया था l

 

कुरिन्थियों को जिस अंतर्दृष्टि की ज़रूरत थी, वह हम सब के लिए अत्यावश्यक है l यह संभव है कि हमने भी परमेश्वर के हृदय को समझे बिना परमेश्वर से और उसके बारे में जानकारी के पहाड़ जमा कर लिए हों l यह संभव है कि आत्मा के हमारे अन्दर रहने के बावजूद, हम वास्तव में अपने जीवन में लोगों की परवाह नहीं करते हैं l यह संभव है कि हम यह देखें बिना कैसे और कब दूसरे गलत हैं कि हम स्वयं गलत हैं l

उनके सभी वाक्पुट तर्क, सही सिद्धांत, विश्वास की अभिव्यक्तियाँ, और बलिदान
देना वास्तव में दूसरों को दूर कर देगा यदि वास्तविक प्रेम के बिना किये जाते हैं l

ऐसी अंतर्दृष्टि हमारी निंदा करने के लिए नहीं है l हमें गिराने के लिए पहला कुरिन्थियों 13 नहीं है l जब हम अपना रास्ता भूल जाते हैं तो इसका उद्देश्य प्रकाश चमकाना होता है l यह हमें यह महसूस करने में मदद करता है कि हम अपने रिश्तों और व्यवहार में असफलताओं को हमें बर्बाद नहीं करने दे सकते l हम अपने स्वयं के हितों पर तर्कों को हमारे प्रभु की विश्वसनीयता पर खराब असर नहीं पड़ने दे सकते l

हम जो जानते हैं उसके बारे में लोग तब तक ज्यादा परवाह नहीं करेंगे जब तक वे यह नहीं देखेंगे कि हम कितना ध्यान रखते हैं l दूसरों को हमारी मान्यताओं को विश्वसनीय नहीं लगने की संभावना है जब तक कि वे यह नहीं देखते कि हम उनके बारे में उतना ही चिंतिति हैं जितना कि हम अपने बारे में हैं l जब तक मसीह का प्रेम हमें विवश नहीं करता, सुसमाचार प्रचार आलोचनात्मक हो जाता है l सैद्धांतिक शुद्धता पाखण्ड हो जाती है l व्यक्तिगत प्रतिबद्धता खुद्पसंद हो जाती है l उपासना दस्तूर एवं बुद्धिहीनता बन जाती है l

परमेश्वर हमें केवल उच्च भूमि/higher ground पर नहीं बुलाता है l वह हमें अन्दर से बाहर बदलने की पेशकश करता है l वह न केवल उच्च जीवन स्तर प्रस्तुत करता है l वह हमें हमारे स्वाभाविक तरीके से ऊपर उठाना चाहता है और हममें कुछ ऐसा करना चाहता है जो हम अपने लिए कभी नहीं कर सकते l

फरीसी यीशु के जीवनकाल में यहूदियों के बीच तीन महत्वपूर्ण धार्मिक समूहों में से एक थे l वे पुराने नियम के क़ानून के अपने सख्त पालन और धार्मिक पवित्रता के लिए मजबूत प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते थे l

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क साहसिक नए रूप और ध्वनि के साथ, अंग्रेजी रॉक बैंड बीटल्स ने पूरी पीढ़ी को “ओंल यू नीड इज़ लव(all you need is love)” गाने के लिए प्रेरित किया l एक बहुप्रचारित स्टूडियो रियूनियन में, बीटल्स ने फिर से प्यार का गीत गया l लेकिन जॉन लेनन के गीत “रियल लव(Real Love)” के बोल ने दुःख व्यक्त किया l जीवन में वास्तविक प्रेम को अपने लक्ष्य के रूप में वर्णित करते हुए, गीत इस शोकाकुल विचार के साथ समाप्त होता है कि उसके “केवल अकेले रहने के लिए” नियत किया गया था l

लेनन के गीत न केवल उनकी पीढ़ी बल्कि हमारी पीढ़ी के भी अनुभव का वर्णन करते हैं l हम प्यार की तलाश करते हैं, सोचते हैं कि हमने इसे पा लिया है, लेकिन जब भावनाएं लुप्त हो जाती हैं तो मोहभंग हो जाता है l

प्रेम क्या है और यह इतना मायावी क्यों लगता है? यदि हम प्रेरित पौलुस के दिनों में रहते, तो यूनानी भाषा ने हमें उस “प्रेम” को स्पष्ट करने में मदद की होती जिसकी हम तलाश कर रहे हैं l

यूनानी शब्द इरोस(eros) एक ऐसा शब्द था जिसका इस्तेमाल रोमांटिक प्रेम का वर्णन करने के लिए किया जाता था l स्तोरजे(storge) ने एक मजबूत प्रेम का वर्णन किया है जो रक्षा करता है और सुरक्षित करता है l फिलियो(philio) ने परिवार या मित्रता के भाईचारे के प्यार का प्रतिनिधित्व किया l

और फिर अगापे/agape (अक्सर परमेश्वर के प्रेम के बारे में बात करने के लिए उपयोग किया जानेवाला) जिसने प्रेम को उसके सबसे गहन और शुद्ध रूप में वर्णित किया l

चूँकि पौलुस ने 1 कुरिन्थियों 13 में प्रेम के वर्णन के लिए अगापे शब्द को चुना, ऐसा प्रतीत होता है कि वह चाहता था कि हम यह देखें कि यह सर्वोच्च प्रकार का दिव्य प्रेम है जो प्रेम के अन्य सभी भावों को स्थायी अर्थ देता है। हमारे सृष्टिकर्ता के दृष्टिकोण से इस प्रेम का वर्णन करने के लिए अगापे का उपयोग करते हुए, प्रेरित ने लिखा:

प्रेम का यह गुण [लम्बे समय तक सहन] एक व्यक्ति को वह करने में सक्षम बनता है जो दूसरे कहते हैं कि वे कभी नहीं कर सकते l

प्रेम धीराज्वंत है, और कृपालु है; प्रेम डाह नहीं करता, प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं, वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुँलझुलाता नहीं, बुरा नहीं मानता l कुकर्म से आनंदित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनंदित होता है l वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है (1 कुरिन्थियों 13:4-7) l

जब हम इस उत्कृष्ट प्रेम के विभिन्न तत्वों पर विचार करते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि क्यों अगापे प्रेम वास्तविक प्रेम है—वह प्रेम जिसे हम सभी चाहते हैं और जिसकी हमें आवश्यकता है l

नया नियम में केवल अगापे और फिलियो का उपयोग किया गया है l

प्रेम “धीरजवन्त है”

यह धैर्यवान है l यूनानी शब्द का अर्थ है “सौम्य/जिसको विलम्ब से क्रोध आता है l” वाइन एक्सपॉसिटरी डिक्शनरी ऑफ़ न्यू टेस्टामेंट वर्ड्स(Vine’s Expository Dictionary Of New Testament Words) कहती है कि मकरोथुमिया (makrothumia) “उत्तेजना के सामने आत्म-संयम की गुणवत्ता का वर्णन करता है जो जल्दबाजी में प्रतिशोध या तुरन दण्डित नहीं करता है l” एक अन्य टीकाकार ने इसे “क्रोधित होने में धीमा” के रूप में परिभाषित करता है l

सच्चा प्यार बदला नहीं लेता या बदला लेने की कोशिश नहीं करता है l यह कड़वाहट को गले नहीं लगाता बल्कि धैर्यपूर्वक सहन करता है l यह प्रतिक्रिया में बदला लेने वाला बने बिना अपने दिल के दर्द को पहचानता है और उससे निपटता है l प्यार का यह गुण [सहना] एक व्यक्ति को वह करने में सक्षम बनाता है जो दूसरे कहते हैं कि वे कभी नहीं कर सकते l

वही जोन(Joan) का मामला था l उनके पति का एक लम्बा प्रेम सम्बन्ध(affair) चल रहा था, आखिरकार उन्होंने अपने परिवार को छोड़ दिया l शादी तलाक में समाप्त हो गया l फिर भी, जोन ने जो भी चोटें और दर्द सहे, वह कभी नहीं भूली कि वह अपने पति से प्यार क्यों करती है l

महीनों के दुःख के बाद और अकेले अपने जीवन का पुनर्निर्माण करने के बाद, उसे यह पता चला कि उसके पूर्व पति चार्ल्स काम पर घायल हो गए थे और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था l परमेश्वर ने उस दुर्घटना की पीड़ा को भटके हुए व्यक्ति का ध्यान अपनी और आकर्षित करने के लिए उपयोग किया l

एक दिन चार्ल्स ने जोन से संपर्क किया और पूछा कि क्या उसके टूटे हुए विवाह के बहाल होने की कोई उम्मीद है l कितना बड़ा सवाल था! और आगे की चोट और दुःख के लिए कितना खुला द्वार! इसी तरह की स्थिति में एक अन्य महिला ने शायद मना कर दिया होता l लेकिन जोन की चिंताओं के बावजूद, वह चार्ल्स के साथ महीनों तक बाइबल आधारित परामर्श देने के लिए तैयार थी l दो साल के बाद जोन को सबसे गंभीर दर्द और नुक्सान से निपटने के लिए विवश किया, जो एक महिला जान सकती है, उसने चार्ल्स से दोबारा शादी की l

नाराज होने का विरोध करने की इच्छा का मतलब यह नहीं है कि पिछले पाप आसानी से या बिना दर्द के भुला दिए जाते हैं l लेकिन सच्चा प्यार कड़वी नाराजगी को रास्ता नहीं देता l यह “लम्बे समय तक सहन करता है l”

प्रेम जो “लम्बे समय तक सहन करता है” को उन लोगों की आवश्यकता नहीं है जो हानिकारक परिस्थितियों में बने रहने या फिर से प्रवेश करने के लिए चोटिल हो गए हैं l वास्तविक प्रेम के लिए आवश्यक है कि हमारे कार्य सही दृष्टिकोण द्वारा विकसित हों l

वास्तविक प्रेम “कृपालु है l”

यूनानी विद्वान ए. टी. रोबर्टसन के अनुसार, “कृपा” अनुवादित यूनानी शब्द का अर्थ “उपयोगी या विनीत” भी हो सकता है l यदि हम इस बात को ध्यान में रखते हैं कि वास्तविक प्रेम का उद्देश्य अपने प्रिय का ध्यान करना है, तो हम देखते हैं कि क्यों वास्विक प्रेम को केवल धैर्यवान ही नहीं बल्कि दयालु होना चाहिए l

कठोरता नहीं, दया, दूसरे व्यक्ति में अच्छाई को प्रोत्साहित करने के लिए अधिक उपयुक्त है l जैसे नीतिवचन कहता है कि “कोमल उत्तर सुनने से गुस्सा ठंडा हो जाता है” (15:1), वैसे ही जो व्यवहारिक और उपयोगी होता है वह अपने प्रिय की उत्तमता को सामने लाता है l

कोमल और “अनुग्रह से परिपूर्ण” होना मसीह जैसा एक गुण है (यूहन्ना 1:14) l देखें कि किस प्रकार यीशु ने स्वयं को उन लोगों के लिए वर्णित किया जिन्हें उसकी सहायता की ज़रूरत है : “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा l मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो, और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूँ : और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे” (मत्ती 11:28-29) l

विश्वासी के जीवन में प्रेम की प्रकृति और कार्य की पूरी समझ प्रस्तुत करने के लिए पौलुस सकारात्मक और नकारात्मक दोनों उदाहरणों का उपयोग करता है l

 

यहाँ सबसे शक्तिशाली और सबसे प्रेम करने वाले व्यक्ति का विवरण किया गया है जिसे दुनिया ने कभी जाना है—सृष्टि को बनाने के लिए प्रर्याप्त मजबूत और अपने समय के सबसे शक्तिशाली लोगों के पाखण्ड और आत्म-केन्द्रित्ता(self-centeredness) के विरुद्ध खड़े होने के लिए प्रयाप्त बुद्धिमान l फिर भी सत्य और अनुग्रह दोनों से परिपूर्ण होते हुए उसने ऐसा किया l

यीशु हमें याद दिलाता है कि जब प्रेम सत्य की मांग करता है, तब दया के बिना व्यक्त किया गया सत्य प्रेमपूर्ण नहीं होता l वह हमें स्मरण दिलाता है कि जबकि प्रेम धैर्य की मांग करता है, दया के बिना धैर्य भी प्रेम नहीं है l

प्रेम “डाह नहीं करता l”

प्रेम के बारे में अपने वर्णन को जारी रखते हुए, पौलुस ने कहा कि वास्तविक प्रेम दूसरे के आशीर्वाद, सफलताओं, या भलाई के लिए नाराज नहीं होता है l प्यार यह नहीं कहता है, “अगर मुझे वह नहीं मिल सकता है जो मैं चाहता हूँ, तो मैं नहीं चाहता कि आपके पास भी हो l” इसके बजाय, सच्चा प्यार कहता है, “मैं तुम्हारे लिए खुश हो सकता हूँ, भले मैं कभी भी उन उपलब्धियों, पहचान, या सुख-सुविधाओं को प्राप्त न कर सकूं जिनका तुम आनंद ले रहे हो l जबकि मैं अपने लिए अधिक इच्छा कर सकता हूँ, मैं आपके लिए कम की इच्छा नहीं कर सकता l

वास्तविक प्रेम की यह “कोई ईर्ष्या नहीं” प्रकृति शायद इसका सबसे अधिक बार सामना किया जाने वाला पहलू है l कितनी बार हमने दूसरे लोगों को समृद्ध होते देखा है जबकि हम अपना गुजारा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं? यहाँ तक कि यीशु के अपने शिष्यों ने आपस में इस बात पर बहस की कि आदर के सबसे महत्वपूर्ण स्थान किसे दिए जाने चाहिए l

शास्त्र यह नहीं कहता है कि हमें निराशा के बिना नौकरी या दर्द के बिना सम्बन्ध खोने में सक्षम होना चाहिए l पौलुस यह नहीं कहता है कि अगर हमारे पास प्रेम है तो हमें व्यक्तिगत नुक्सान या दुःख की भावना नहीं होगी l लेकिन वह कहता है कि अगर हमारे पास सच्चा प्यार है तो हम ईर्ष्या नहीं करेंगे l हमारा अपना दर्द उन लोगों के लिए दुर्भावना महसूस करने का बहाना नहीं होगा जो हमसे बेहतर अवसर पा रहे हैं l

हम इतनी कृपा से कैसे प्यार कर सकते हैं? केवल मसीह की आत्मा की सक्षमता के साथ l निराशा में सद्भावना का रहस्य एक प्रदाता ईश्वर में गहरा विश्वास है जो हमारा चरवाहा और पिता भी है l निराशा हाथ लगेगी l अनुचित परिस्थितियाँ हमारे विश्वास के साथ-साथ हमारे प्रेम की भी परीक्षा लेंगी l फिर भी, हम अपने लिए निराश हो सकते हैं और फिर भी दूसरों से प्रेम दिखा सकते हैं—यदि हमने परमेश्वर पर भरोसा करना सीख लिया है l

प्रेम “अपनी बड़ाई ने करता l”

आत्म-सुधार की पुस्तकें हमें बताती हैं कि आगे बढ़ने के लिए हमें सफलता की सूरत धारण करनी होगी, अपनी उपलब्धियों की चर्चा करना होगा और अपने प्रतिभा को निखारना होगा l लेकिन सच्चा प्रेम अपनी उपलब्धियों के बारे में डींग नहीं मारता l यह स्व-प्रदर्शन(self-display) के लिए नही दिया गया है l यह अवधारणा बाइबल में प्राचीन जड़ें पाती हैं l राजा सुलैमान ने इसे अच्छी तरह से कहा जब उसने लिखा, “तेरी प्रशंसा और लोग करें तो करें, परन्तु तू आप न करना” (नीतिवचन 27:2) l सीधे शब्दों में करें तो असली प्यार खुद को prakash बिंदु/spotlight में नहीं धकेलता है l

घमण्ड सबसे पहले स्वयं शैतान द्वारा किये गए पाप में था जब उसने कहा, “मैं मेघों से भी ऊँचे ऊँचे स्थानों के ऊपर चढूँगा, मैं परमप्रधान के तुल्य हो जाऊँगा” (यशायाह 14:14) l

 

सद्भावना का ये रहस्य एक प्रदाता ईश्वर में गहरा विश्वास है जो हमारा चरवाहा और पिता भी है l

प्रेम का यह चौथा वर्णन उस प्रेम के सक्के का दूसरा पहलू है जो द्वेषी या ईर्ष्यालु नहीं है l ईर्ष्या वह चाहती है जो किसी और के पास है; शेखी बघारना हमारे पास जो कुछ है उससे दूसरों को ईर्ष्या करने की कोशिश करता है l ईर्ष्या दूसरों को नीचा दिखाती है; डींग मारना स्वयं का बढ़ना है l

सच्चा प्यार, हालाँकि, न केवल दूसरे की सफलताओं की सराहना करता है, बल्कि यह जानता है कि अनुग्रह और विनम्रता के साथ अपने स्वयं की जीत को कैसे संभालना है l

प्रेम “फूलता नहीं [है] l”

यहाँ पौलुस जिस यूनानी शब्द का प्रयोग करता है उसका अर्थ है “अपने आप को धौकनी की तरह फूलाना l” वास्तविक प्रेम क्या नहीं है इसका वर्णन करने में, उसने एक शब्द को चुना जो उसने पहले उपयोग किया था जब उसने कुरिन्थुस में प्रेमहीन मसीहियों को प्रोत्साहित किया था कि वे “एक के पक्ष में और दूसरे के विरोध में गर्व न [करें] (1 कुरिन्थियों 4:6) l

पहले के खंड में, पौलुस ने कुरिन्थियों को खुद से इतना भरा हुए बताया कि उनके पास दूसरों के दर्द को महसूस करने के लिए कोई जगह नहीं थी l यहाँ अध्याय 13 में उसने इसी शब्द चित्र का(word picture) उपयोग यह दिखाने के लिए किया कि अहंकार जो हमें दूसरों की सहायता प्राप्त करने के लिए अनिच्छुक बनता है, हमें उन लोगों के प्रति बनाता है, हमें उन लोगों के प्रति असंवेदनशील भी बनाता है l

एक स्थान पर हम देख सकते हैं कि क्या हमें अपनी अहमियत का अहसास है या नहीं, वह हमारी प्रार्थना है l क्या हम केवल अपने और अपने हितों के लिए प्रार्थना करते हैं, या क्या हम बच्चों, जीवनसाथी और दूसरों की चिंता के लिए भी प्रार्थना करते हैं?

 

अहंकार से भरे लोग, अपने आप को अपने महत्व की असाधारण भावना से भरे हुए मानते हैं कि केवल उनकी ख़ुशी, राय और भावनाएं ही मायने रखती हैं l अहंकार से भरे लोगों को दूसरों की ज़रूरतों और भावनाओं को खारिज करना सरल लगता है l

सच्चे प्रेम के बारे में नया नियम का दृष्टिकोण हमें अपनी स्वयं की ज़रूरतों की उपेक्षा करना नहीं सिखाता है l यह केवल हमें यह याद रखने का निर्देश देता है कि हमारे हित दूसरों के हितों से अधिक महत्वपूर्ण नहीं हैं l

वास्तविक प्रेम “अनरीति नहीं चलता l”

इस अभिव्यक्ति की अन्य एकमात्र नये नियम की घटना 1 कुरिन्थियों 7:36 में पायी जाती है, जो एक अविवाहित जोड़े के बीच सम्बन्ध का वर्णन करती है l विभिन्न अनुवाद इसे “अनुचित, अप्रयुक्त, असभ्य, अशिष्ट, या अशोभनीय व्यवहार नहीं करने” के रूप में प्रस्तुत करते हैं l परमेश्वर के प्रति समर्पण की सर्वोच्च प्राथमिकता पर बल देते हुए, प्रेरित ने आगे कहा कि यदि एक पुरुष और एक स्त्री को यौन प्रलोभन का सामना करना पड़ता है, तो उन्हें “अनुचित व्यवहार” करने के बजाय विवाह करना चाहिए l

1 कुरिन्थियों 13 में उल्लिखित वास्तविक प्रेम के सिद्धांत से “अनुचित व्यवहार” कैसे सम्बंधित है? यह हमें याद दिलाता है कि वास्तविक प्रेम का सम्मानीय स्वभाव कभी भी दूसरों से अनुचित मांग नहीं करेगा l सच्चा प्यार कभी किसी अविवाहित व्यक्ति को यह कहने के लिए प्रेरित नहीं करेगा, “यदि आप मुझसे प्यार करते हैं, तो आप खुद को मुझे देकर साबित कर देंगे l” जो लोग प्यार करते हैं वे कभी दूसरों से झूठ बोलकर, धोखा देकर या चोरी करके अपनी वफादारी साबित करने के लिए नहीं कहेंगे l

सच्चा प्यार मित्रता का उपयोग किसी पर दबाव डालने के लिए नहीं करता कि वह अंतरात्मा या विश्वास के सिद्धांतों, ईश्वर के नैतिक सिद्धांतों के विपरीत कुछ करे l यौन तुष्टि के सबसे बुरे कार्य, गुप्त रखने का प्रयास/cover-up सबसे घृणित कार्य, परिवार, गिरोह, समूह या दोस्ती के सबसे भ्रष्ट रहस्य प्यार के दुरुपयोग के नाम पर रखे गए हैं l प्यार कभी भी जबरदस्ती का हथियार नहीं होता l

वास्तविक प्रेम “अपनी भलाई नहीं चाहता l”

निस्वार्थता का वर्णन करने के लिए यह पौलुस की पसंदीदा अभिव्यक्ति है l यह उस व्यक्ति की बात करता है जिसका ध्यान बाहरी है l फिलिप्पियों 2 में, पौलुस ने सच्चे प्रेम की सिद्धांत को इस तरह व्यक्त किया : “विरोध या झूठी बड़ाई के लिए कुछ न करो, पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो l हर एक अपने ही हित की नहीं, वरन् दूसरों के हित की भी चिंता करे” (पद. 3-4) l

जिन लोगों ने मसीह का नाम लिया हैं उनके लिए पौलुस की बड़ी लगन यह है कि वे एक हों, एक मन के हों l फिर भी यह एकता चर्च, विवाह या किसी अन्य सम्बन्ध में तब तक वास्तविकता नहीं होगी जब तक हम दूसरों के हितों की परवाह नहीं करते l उतनी ही सावधानी और मेहनत से जितनी हम अपनों की तलाश करते हैं l पौलुस ने यहाँ तक कहा कि सच्चा प्रेम दूसरों की ज़रूरतों को अपनी ज़रूरतों से आगे रखता है l

यह आत्म-बलिदान हमारे मानवीय स्वभाव के सामने उड़ जाता है, फिर भी यह मसीह के मन को अभिव्यक्त करता है (फिलिप्पियों 2:5) l उसने अपने स्वर्गिक पिता को छोड़ने के लिए, एक भौतिक शरीर की सीमाओं में रहने के लिए, गरीबी में पृथ्वी पर चलने के लिए, उन लोगों का सेवक बनने के लिए, जो उन्हें अस्वीकार कर देंगे, उन शिष्यों के पैर धोने के लिए जो उसे त्याग देने वाले थे, उन लोगों के पापों के लिए क्रूस पर मरने के लिए जो उसके योग्य नहीं थे, उसने स्वयं को दीन किया l यीशु का पूरा जीवन दूसरों को स्वयं से आगे रखने का एक नमूना था l

वास्तविक प्रेम “झुलझुलाता नहीं l”

पौलुस ने वास्तविक प्रेम की अपनी परिभाषा में जो अगला शब्द उपयोग किया है, वह एक ऐसे हृदय का वर्णन करता है जो सरलता से जलन या “आत्मा की तीक्ष्णता” (ए.टी. रोबर्टसन) के लिए प्रेरित नहीं होता है l दूसरे शब्दों में, सच्चे प्रेम में कोई छोटा फ्यूज/जोड़ नहीं होता है l यह स्पर्श या चिड़चिड़ा नहीं है l यह प्रेम की पहली विशेषता का दूसरा पहलू है—यह कहने का एक नकारात्मक तरिका है कि प्रेम लम्बे समय तक सहता रहता है l

वास्तविक प्रेम के इस महत्वपूर्ण गुण को हम कितनी आसानी से भूल जाते हैं l वर्षों की आपसी निराशा के बाद, पति और पत्नी सरलता से एक-दूसरे से चिढ़ जाते हैं l क्रोधित माता-पिता अपने बच्चों को दयाहीन शब्द बोलते हैं l जब कोई नियोक्ता या सह-कर्मचारी बुनियादी विचार देने में असफल रहता है, तो कर्मचारी शीघ्र क्रोध दिखाते हैं l

हम क्यों उत्तेजित होते हैं? कभी-कभी हम अन्दर उबलते हैं और क्रोध की अवस्था में बने रहते हैं क्योंकि हम जो चाहते हैं वह चाहते हैं—और कुछ भी हमें विश्वास नहीं दिला सकता है कि हमारे लिए यह आवश्यक नहीं है l कभी-कभी हमारा क्रोध हमारे अपने स्वार्थ का सबूत देता है l

हम क्यों उत्तेजित होते हैं? कभी-कभी हम अन्दर उबलते हैं और क्रोध की अवस्था में बने रहते हैं क्योंकि हम जो चाहते हैं वह चाहते हैं—और कुछ भी हमें विश्वास नहीं दिला सकता है कि हमारे लिए यह आवश्यक नहीं है l कभी-कभी हमारा क्रोध हमारे अपने स्वार्थ का सबूत देता है l

जबकि स्वार्थी कारणों से प्रेम सरलता से उत्तेजित नहीं होता है, भावनात्मक रूप से परेशान और होने का समय होता है l

इस उदाहरण में, पौलुस का उकसाया जाना अधिकृत था लेकिन यह प्यार भर था l जब वह प्रतीक्षा कर रहा था, तब वह धीमी गति से उत्तेजित हुआ l जितना अधिक उसने नगर की मूर्तिपूजा के बारे में सोचा, उतना ही वह उन लोगों के लिए चिंतित और व्याकुल हो गया जो झूठे धर्म से आहात और बहकाए जा रहे थे l

जब यीशु ने मंदिर के साहूकारों की मेजें उलट दीं, तो वह भी बहुत क्रोधित हुआ था l वह बहुत अधिक प्रेम से भरकर ही अपने पिता के प्रार्थना भवन में अन्यजातियों के दरबार को बाधित करने वाले व्यवसायिकता से नाराज हुआ था l उसने उन लोगों की परवाह की जिन्होंने प्रार्थना करने के लिए एक शांत स्थान खो दिया था (मत्ती 21:12-13) l

यीशु उस प्रकार की संवेदनशीलता और चिड़चिड़ापन व्यक्त नहीं कर रहा था जो प्रेम की कमी का संकेत देता है l जब परिस्थितियों ने उसे उकसाया तो उसने सोच-समझकर और प्यार से उन लोगों के खिलाफ कार्यवाई की, जिनसे वह प्यार करता था l

Pएथेंस में पौलुस का अनुभव और मंदिर में यीशु के कार्य हमें याद दिलाते हैं कि क्रोधित होने का समय आ गया है l लेकिन यह क्रोध प्रेम और पाप के बिना व्यक्त किया जाना चाहिए (इफिसियों 4:26) l

वास्तविक प्रेम “बुरा नहीं मानता l”

पौलुस तीन काल्पनिक बंदरों की भावना में नहीं लिख रहा है जो “बुरा नहीं देखते हैं, बुरा नहीं सुनते हैं, और बुरा नहीं बोलते हैं l” जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “बुरा न सोचो” के लिए किया गया है, वह लेखांकन(accounting) शब्द है l इसका अर्थ है “गिनना, खाता बही या नोटबुक में रखना l” जिन “बुराइयों” का उल्लेख किया गया है, वे दूसरों के द्वारा प्राप्त की गयी गलतियाँ या चोटें है l

एक प्यार जो “बुराई नहीं सोचता” वह भी बदला लेने के इरादे से निर्दयता का रिकॉर्ड नहीं रखेगा l सच्चा प्यार कड़वाहट नहीं रखेगा या दूसरों के खिलाफ लम्बे समय तक नाराजगी नहीं होने देगा l

जब हम दूसरों को भुगतान करने के इरादे से गलतियों पर नज़र रखते हैं, तो हो सकता है कि हम स्वयं अपनी क्षमता से अधिक भुगतान कर दें l एक प्रतिद्वंदी के साथ “स्कोर(score) रखना” खेल के लिए बहुत अच्छा है, लेकिन यह प्रेम के काम से सम्बंधित नहीं है l वास्तविक प्रेम गलतियों का लेखाजोखा नहीं रखता, क्योंकि वह परमेश्वर की उपस्थिति और व्यवस्था में अपनी सुरक्षा पाता है l हमें गलतियों का रिकॉर्ड रखने की ज़रूरत नहीं है जब हम जानते हैं कि परिणाम स्वयं परमेश्वर के नियंत्रण में है l वह हमारी ज़रूरतों को देख रहा है l

वास्तविक प्रेम “कुकर्म से आनंदित नहीं होता l”

पौलुस सारांश में कहता है, “प्रेम किस भी चीज़ में प्रसन्न नहीं होता जिसे परमेश्वर गलत संबोधित करता है l” न ही प्रेम दूसरों की नैतिक असफलताओं में गुप्त संतोष लेता है l प्यार किसी और की असफलता के “रसदार निवाला” के साथ सिर्फ इसलिए नहीं आगे बढ़ाता है क्योंकि इसका स्वाद अच्छा होता है l प्यार जानकार दिखने के लिए, या किसी और की शर्म की खबर प्रकाशित करके खुद के बारे में बेहतर महसूस करने के लिए बकवाद नहीं करता l

हालाँकि, सच्चा प्यार पाप के दीर्घकालिक नुक्सान की परवाह नहीं करता है l जब प्रेम हमें पाप को उजागर करने के लिए मजबूर करता है, तो यह केवल दूसरों की भलाई के लिए होने चाहिए, कोई अन्य कारण प्रेम से प्रेरणा का दावा नहीं कर सकता l

अच्छा सिद्धांत परमेश्वर, स्वयं और दूसरों के बारे में सही सोच है l सही सोच, बदले में, हमें एक दूसरे से सच्चा और गहरा प्रेम करने की अनुमति देती है l

सच्चा प्रेम जानता है कि आनंद के विचारहीन क्षणों में रोपी गयी बुराई पछतावे की गहरी चेतना पैदा करेगी l प्रेम जानता है मुर्खता के बीज के रूप में बोए गए पाप एक दिन विभाजन, अलगाव और अकेलेपन का कड़वा फल देंगे l

सच्चा प्रेम पाप में आनंदित नहीं हो सकता क्योंकि यह न केवल आज की परवाह करता है बल्कि कल की भी चिंता करता है l प्रेम बुराई को बिना परिणाम के एक विकल्प के रूप में नहीं देख सकता l

वास्तविक प्रेम “सत्य से आनंदित होता है l”

पौलुस ने अभी कहा है कि प्रेम अधर्म से आनंदित नहीं होता है l अब हम पढ़ते हैं कि प्रेम किससे आनंदित होता है—सत्य से l उसने “सत्य” क्यों कहा? उसने क्यों नहीं कहा, “प्रेम धार्मिकता से आनंदित होता?”

पौलुस के शब्दों के चुनाव का एक कारण शायद धार्मिकता और सच्चाई के बीच अन्तर्निहित सम्बन्ध है l थिस्सलुनीकियों को लिखे अपने दूसरे पत्र में, पौलुस ने उन लोगों के बारे में बात की जिनका न्याय किया जाएगा क्योंकि उन्होंने “सत्य की प्रतीति नहीं [की], वरन् अधर्म से प्रसन्न [हुए]” (2 थिस्सलुनीकियों 2:12) l

थिस्सलुनीकियों के लिए पौलुस के शब्द हमें एक संकेत देते हैं कि उसने क्यों कहा “प्रेम सत्य से आनंदित होता है l” वह चाहता है कि हम जो विश्वास करते हैं और जो हम करते हैं, उसके बीच गहरे सम्बन्ध के बारे में सोचें l एक ओर, हम जो विश्वास करते हैं वह निर्धारित करता है कि हम क्या करते हैं l दूसरी ओर, हम क्या करना चाहते हैं यह निर्धारित करता है कि हम क्या विश्वास करने को तैयार हैं l

शास्त्र आमतौर पर यह मानता है कि कार्य विश्वासों का पालन करती है l जितने लोगों में गहरा आत्मविश्वास और दृढ़ विश्वास है कि सच बोलना धोखे से बेहतर है, वे उस व्यक्ति की तुलना में सच बोलने के लिए अधिक उपयुक्त हैं जो इस बात से आश्वस्त नहीं हैं कि सच यह श्रेष्ठता है l

 

यही कारण है कि बाइबल सही विश्वासों पर इतना जोर देती है l अच्छा सिद्धांत ईश्वर, स्वयं और दूसरों के बारे में सही सोच है l सही सोच, बदले में, हमें एक दूसरे से सच्चा और गहरा प्रेम करने की अनुमति देती है l

अधार्मिकता सत्य को नकारता है l गलत व्यवहार वास्तविकता के प्रति अविश्वास में निहित है l अनैतिकता आत्म-धोखे की एक प्रक्रिया में निहित है जो कहती है, “मैं ईश्वर से बेहतर जानता हूँ कि मुझे अपने हितों और दूसरों के हितों को कैसे आगे बढ़ाना है l”

पौलुस के पास यह कहने का अच्छा कारण था कि प्रेम “अधर्म से आनंदित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनंदित होता है l” अधर्म(अधार्मिकता) के विपरीत केवल धार्मिकता नहीं है, यह सत्य है l यह ईश्वर और दूसरों के बारे में और खुद के बारे में सच्चाई पर विश्वास करना है जो हमें जीवन का आनंद लेने में सक्षम बना सकता है l हम एक दूसरे की गलतियों की खोज से प्यार करने के बजाय अनुग्रह और सच्चाई से प्यार करना सीखते हैं l अपने आत्म-विनाशकारी अविश्वासों को दूर करने से हमें आनंदित होने में सक्षम बनाया जा सकता है, जब हम नैतिक साहस, ईमानदारी, धैर्य और विश्वासयोग्यता पाते हैं, जहाँ भी हम इसे पाते हैं l यही सच्चा प्यार है l

धार्मिकता और सच्चाई की इस बुनियाद पर, पौलुस अपने प्रेम के चित्र को अंतिम रूप देने की तैयारी करता है l .

वास्तविक प्रेम “सब बातें सह लेता है l”

सह लेना शब्द यूनानी शब्द से आया है जिसका अर्थ है “छत l” चित्र अपनी सादगी में भव्य है l प्रेम ढकता है और सुरक्षा देता है जैसे छत एक घर को ढकता है और तूफानों से बचाता है l प्रेम परिस्थितियों की परवाह किए बिना दूसरों की भलाई के लिए काम करना जारी रखता है l

प्रेम निराशा की आंधी, असफता की वर्षा और समय और परिस्थिति की हवाओं को सह लेता है l प्रेम अत्यधिक कड़ाके की सर्दी और तपती गर्मी से बचाता है l प्रेम आश्रय की एक जगह प्रदान करता है जो कल्पना की जा सकने वाली सबसे खराब साथियों का सामना कर सकता है l

प्रेम निराशा के तूफानों को, असफलताओं के झंझावातों को, और समय और परिस्थितियों की हवाओं को सहता है l प्रेम आश्रय की एक जगह प्रदान करता है जो कल्पना की जाने वाली सबसे खराब स्थितियों का सामना कर सकता है l

प्रेम दूसरों को टूटे हुए संसार में रहने की कठोर सच्चाइयों से अलग नहीं करता l न ही यह दूसरों को उनकी अपनी पसंद के परिणामों से बचा सकता है l लेकिन प्यार टूटे हुए, चोटिल लोगों को किसी ऐसे व्यक्ति को खोजने के लिए जगह देता है जो उनकी भलाई की परवाह करता है l प्रेम अपश्चातापी लोगों को भी एक वकील और मध्यस्थ-देता है जो उनके परम कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं l प्रेम सबसे बुरे पापियों को उनके पश्चातापी हृदयों को लाने के लिए एक स्थान प्रदान करता है l

“सब कुछ सह लेने” का अर्थ यह नहीं है कि प्रेम निष्क्रिय रूप से पाप को इस तरह स्वीकार करता है जिस तरह एक डोरमैट अपने उपयोगकर्ताओं के पैर स्वीकार कर लेता है l इसका मतलब है कि प्रेम कभी भी देखभाल करना बंद नहीं करता है और कभी क्षमा की पेशकश करना बंद नहीं करता है l प्रेम उस बिंदु तक नहीं पहुँचता जहाँ वह दूसरे से घृणा करना, तुच्छ जानना या उसकी निंदा करना आरम्भ कर देता है l प्रार्थना करते रहने, दूसरों के पापों को धैर्यपूर्वक सहने, ज़रूरत पड़ने पर सामना करने और क्षमा करने के लिए प्रेम पर्याप्त परवाह करता है l

यहीं पर एक छत की छवि सीमित होती है l ऐसा बिना शर्त प्रेम एक निष्क्रिय रक्षक नहीं है, बल्कि एक गतिशील प्रेम है जो दूसरे व्यक्ति की पसंद के अनुसार उपयुक्त तरीके से प्रतिक्रिया करता है l जबकि प्रेम का चरित्र कभी नहीं बदलता है, इसकी रणनीतियां और युक्तियाँ लगातार “सभी चीजों में” दूसरे व्यक्ति की भलाई के लिए अनुकूल होती हैं l

वास्तविक प्रेम “सब बातों की प्रतीति करता है l”

पहली नज़र में, प्रेम की यह अगली विशेषता यह धारणा छोड़ सकती है कि जो लोग दूसरों की परवाह करते हैं वे भोला या सीधा-सादा होना चाहिए l वह पौलुस की बात नहीं थी l न ही वह यह कह रहा था कि प्रेम हमेशा दूसरों को संदेह का लाभ देता है l कभी-कभी किसी मामले के हृदय तक पहुँचने के लिए एक प्रेमी मित्र को अविश्वास करना चाहिए l

यहाँ पौलुस विश्वास और प्रेम के बीच मूलभूत सम्बन्ध जा जश्न मनाता है l पहला कुरिन्थियों 13 हमें स्मरण दिलाता है कि सच्चा प्रेम परमेश्वर में हमारे विश्वास से प्रेरित होता है l सच्चा प्रेम बढ़ता है और विश्वास से कायम रहता है क्योंकि हम “सभी चीजों” पर विश्वास करते हैं, परमेश्वर हमें अपने बारे में, हमारे बारे में और एक दूसरे के बारे में बताता है l

यीशु ने धीरज की ज़रूरत के विषय में कहा जब उसने कहा, “मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे, पर जो अंत तक धीरज धरे रहेगा उसी का उद्धार होगा” (मत्ती 10:22)

 

यदि हम शक करते हैं कि परमेश्वर हमारे लिए अपनी प्रेम के बारे में क्या कहता है, तो हम एक दूसरे से प्रेम करने की प्रबल प्रेरणा खो देंगे l यदि हम परमेश्वर के आश्वासन पर सन्देश करते हैं कि वह हमारे लिए धैर्यवान और दयालु है, तो हम एक दूसरे के प्रति धैर्य और दया नहीं दिखाएंगे l अगर हमें संदेह है कि परमेश्वर हमारी ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम है, तो हम उदारता की ओर नहीं झुकेंगे l

सच्चाई यह है कि “प्रेम सब बातों की प्रतीति करता है” मसीह के समान प्रेम की हमारी समझ का केंद्र है l वास्तविक प्रेम विश्वास में निहित और जड़वत है l बदले में, विश्वास, जो कुछ परमेश्वर ने अपने वचन में कहा है, उसमें जड़ जमाए हुए और दृढ़ है l

जब तक हम “सभी बातों की प्रतीति” नहीं करते हैं, तब तक ईश्वर ने कहा है, हमारा प्रेम जीवन की निराशाओं, अस्विकृतियों और अपमानों से नहीं बचेगा l जब तक हम अपने प्रेम को दृढ़ता से परमेश्वर के वचन पर निर्मित नहीं करते, तब तक प्रेम हार मान लेगा l ईश्वर में विश्वास से ही प्रेम मजबूत रह सकता है l

Rवास्तविक प्रेम “सब बातों में आशा रखता है l”

यह पिछले कथन से प्रवाहित होता है l यदि हम परमेश्वर के वचनों और संप्रभु योजना में एक भरोसे के साथ जी रहे हैं, तो हमारे पास “सब बातों की आशा” करने का कारण भी होगा l ईश्वर की कृपा में हमारे विश्वास का अर्थ है कि हम विश्वास कर सकते हैं कि मानवीय असफलताएं अंतिम नहीं हैं l एक व्यक्ति के जीवन में परमेश्वर जो कुछ कर सकता है उसके कारण वास्तविक प्रेम आशा कर सकता है l

यह सोचने का कोई अर्थ नहीं होगा कि पौलुस हमें अंधाधुन्द रूप से आशा करने के लिए कह रहा था, जितना वह हमसे बिना विवेक के विश्वास करने के लिए कह सकता है l लेकिन सभी लोगों में से केवल वे लोग जो बाइबल के परमेश्वर पर भरोसा करते हैं, उनके पास इस वर्तमान संसार में प्रेमी और आशावान होने का ठोस आधार है l

भजनकार ने परमेश्वर के बारे में कहा, “मेरी आशा तुझ पर है” (भजन 39:7) l पौलुस ने लिखा, “आशा निराश नहीं करती” (रोमियों 5:5) l और पतरस ने यह भी कहा, “हमारे प्रभु और यीशु मसीह के परमेश्वर और पिता का धन्यवाद हो, जिसने यीशु मसीह के मरे हुओं में से जी उठने के द्वारा. . . हमें जीवित आशा के लिए नया जन्म दिया” (1 पतरस 1:3) l

यह प्रेम की शक्ति है l यह कभी न बदलने वाली भावनात्मक या शारीरिक अवस्था से नहीं, बल्कि उन लोगों को जो उस पर भरोसा करते हैं, परमेश्वर द्वारा दिए गए गहरे विश्वासों और आशाओं से पोषित और पोषित होता है l वास्तविक प्रेम में “मसीह जो महिमा की आशा है” (कुलुस्सियों 1:27) के कारण जीवन को देखने और उसे जीने की क्षमता है—एक ताजगी भरे आशावाद के साथ l

वास्तविक प्रेम “धीरज धरता है l”

पौलुस ने प्रेम के अपने विवरण को पद 4 में समाप्त किया जहाँ यह पद 4 में शुरु हुआ : “प्रेम धीरजवन्त है l” उस पहले प्रयोग और इस प्रयोग के बीच का अंतर उन शब्दों में पाया जाता है जिन्हें पौलुस ने वास्तविक प्रेम के इस अद्भुत तत्व का वर्णन करने के लिए चुना था l इस अंतर्दृष्टि के साथ कि सच्चे प्रेम का रहस्य सही विश्वासों और आशाओं में निहित है, पौलुस ने हमें यह कहने का आधार दिया है कि प्रेम “सब बातों में धीरज धरता है l”

पद 4 में, यूनानी शब्द ने क्रोधित हुए बिना अन्य लोगों के हाथों दुर्व्यवहार का सामना करते हुए “लम्बे समय तक पीड़ा सहने” पर ध्यान केन्द्रित किया l यहाँ ज़ोर इस बात पर है कि हम सामान्य रूप से जीवन के प्रति कैसी प्रतिक्रिया देते हैं l प्रेम हार नहीं मानता l यह छोड़ता नहीं है l यह दूर नहीं चला जाता है l यह दर्द के सामने दृढ़ रहता है, यह जानकर कि लक्ष्य इसके लायक है l

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लिलियोनेल रिची और डायना रॉस ने विवाह में जुड़ने वाले हर एक युवा जोड़े की आशाओं के बारे में उत्साहपूर्वक गाया : अंतहीन प्यार(Endless Love) l”

1 कुरिन्थियों 13 में वर्णित प्रेम के बिना यह संभव नहीं है l इन सभी विचारों को पद 8 में प्रबल किया गया जब उसने अपने तर्क को समाप्त किया : “प्रेम कभी टलता नहीं l” क्योंकि यह परमेश्वर में अपना श्रोत और जीवन पाता है, सच्चा प्रेम कुछ भी सहन कर सकता है l

पौलुस ने स्पष्ट किया कि अन्य चीजें अस्थायी, अधूरी और भरोसेमंद नहीं हैं l लेकिन प्रेम नहीं l ईश्वर की शक्ति और कृपा से यह किसी भी चीज़ का सामना कर सकता है l सच्चा प्रेम विश्वासघात और अविश्वास से बच सकता है l यह निराशा और नैतिक विफलता से बच सकता है l यह उन लोगों के अपमान और ईर्ष्या से ऊपर उठ सकता है जो हमें अपना दुश्मन मानते हैं l यह आपराधिक मुक़दमे और कारावास से बच सकता है l

यहाँ तक की जब दुर्भाग्यपूर्ण मानवीय विकल्पों के कारण हमारे संबंधों की प्रकृति बदल जाती है, तब भी परमेश्वर का प्रेम हमें प्रार्थना करने और जहाँ संभव हो, दूसरे व्यक्ति के पक्ष में कार्य करने के लिए प्रेरित कर सकता है l

यह वह प्रेम है जो मसीह के हृदय को प्रतिबिंबित करता है और उस अद्भुत परिवर्तन को प्रकट करता है जो केवल वही एक जीवन में कर सकता है—वास्तविक प्रेम l

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गर आपके हृदय का सवाल है, “मुझे यह सच्चा प्रेम कहाँ मिल सकता है? मुझे आपके साथ कुछ अच्छी खबर साझा करने दें l आप पहले से ही प्रिय हैं l बाइबल के सबसे परिचित पद में हमें बताया गया है : “क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे वह नष्ट न हो, परन्तु अनंत जीवन पाए” (यूहन्ना 3:16) l

विश्वास करने वालों के लिए, यीशु ने परमेश्वर के प्रेम के दायरे का वर्णन किया l यीशु ने अपने चेलों से कहा, “इसलिए तुम चिंता करके यह न कहना कि हम क्या खाएंगे, या क्या पिएंगे, या क्या पेहेंगे l क्योंकि अन्यजातीय इन सब वस्तुओं की खोज में रहते हैं, पर तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है कि तुम्हें इन सब वस्तुओं की आवश्यकता है l इसलिए पहले तुम परमेश्वर के राज्य और उसके धर्म की खोज करो तो यह सब वस्तुएँ भी तुम्हें मिल जाएंगी” (मत्ती 6:31-33) l

यह केवल तभी होता है जब हम मानते हैं कि हमें इस तरह से प्यार किया जाता है कि हमारे पास वह सुरक्षा है जिससे हमें दूसरों को प्यार करने का जोखिम उठाने की ज़रूरत है l

क्या आपने मसीह के व्यक्तित्व और कार्यों में प्रेम पाने का पहला कदम उठाया है? क्या आपने उस पर भरोसा किया है? क्या आपने बाइबल पर विश्वास किया है जब वह कहती है कि मसीह आपके पापों के लिए मरा?

वह आरंभिक बिंदु है l

आपने पाप और मसीह की अपनी ज़रूरत को स्वीकार करें, कि “जो खो गया था उसे ढूढ़ने और उनका उद्धार करने” आया था (लूका 19:10) l यह मसीह में है कि हम परमेश्वर के प्रेम को पाते हैं, और यह उसी में है कि हम देखते हैं कि पौलुस द्वारा बताए गए प्रेम में जीने का क्या अर्थ है l

वह वो है जो हमें न केवल एक उच्च स्तर पर बुलाता है बल्कि वह हमारे द्वारा उसका जीवन जीने देता है l

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