पिछले कुछ वर्ष चर्च के लिए कठिन रहे हैं। बाहरी खतरे के कारण नहीं, बल्कि हमारे रैंकों के भीतर व्यापक नैतिक और आध्यात्मिक दोष के कारण। जो लोग व्याकुलता, मोहभंग या निराशा में पड़ गए हैं, उन्हें उठाने का इससे बेहतर समय कभी नहीं रहा। अच्छी तरह से खत्म करने के महत्वपूर्ण लक्ष्य की याद दिलाने के लिए इससे बेहतर समय कभी नहीं रहा।

मार्टिन आर. डी हान II

पने जीवन की पुस्तक के अंतिम अध्याय को अच्छी प्रकार से समाप्त करने की तैयारी करना ही एक मसीही के लिए सही मार्ग है। यह हमारे विश्वास की वास्तविकता की गवाही है। यह पीछे रह जाने वालों के लिए एक प्रोत्साहित करने वाली यादें छोड़ जाता है।

लोग ऐसे विश्वासी के जीवन को देखकर बहुत प्रभावित होते हैं जब वह अपने जीवन को शांति, मर्यादा और अनुग्रह के साथ पूर्ण करता है। मुझे याद है हम में से कितने ही श्रीमती रिचर्ड नेस की बातों से प्रभावित हुए थे जब उन्हें पता चला कि उनके जीवन के कुछ ही सप्ताह शेष हैं। उन्होने अपने मित्रों और रिशतेदारों के लिए अपने घर को खोल दिया, जहां उन्होने हम सबको खुशी खुशी अंतिम नमस्कार कहा और प्रसन्नतापूर्वक कहा कि वह यीशु के पास जाने की राह देख रही है। उन्होने अपना जीवन बहुत अच्छी तरह पूर्ण किया।

अच्छी तरह से पूर्ण करने का विचार केवल व्यस्कों तक ही सीमित नहीं है। यह जोश तो ज्ञानी लोगों में बहुत समय से अंतिम नमस्कार कहने से पहले से ही चल रहा है। कोई भी समझदार व्यक्ति इस संसार को एक बुरे नोट के साथ छोड़ना नहीं चाहता है। कोई भी अपने को एक ऐसे मूर्ख के रूप में याद रखा जाना नहीं चाहता है, जिसने अपने भविष्य की चिंता के विषय में न सोचकर जीवन गंवा दिया हो।

हमें यह समझना होगा कि अच्छी तरह से जीवन पूर्ण करना आज के चुनावों पर ही निर्भर है। हमें प्रति दिन इस प्रकार से जीना है जैसे कि यह अंतिम दिन है — क्योंकि ऐसा हो भी सकता है। अभी हाल ही में मैंने दो जवानो की अंतिम संस्कार की सेवा दी, जिनकी केवल 30 घंटों के अंतराल पर ही मृत्यु हुई थी। जैक वेन डाइक, एक 39 वर्ष का पति, तीन बच्चों के पिता, की एक मोटल के कमरे में अपनी पत्नी और बच्चों की उपस्थिती में हृदयघात से मृत्यु हो गई। हम जो उसे जानते थे उसके प्रति बहुत आभारी थे जब उसे परमेश्वर ने अपने पास बुलाया। वह एक प्रेम करने वाला एक दयालु पति, एक ईमानदार मसीही, एक आदरनीय योग्य कार्यकर्ता, और एक प्रसन्नचित्त मित्र था।

केविन रोटमेन, एक 19 वर्षीय नौजवान की एक उदद्योग दुर्घटना में मृत्यु हो गई। वह एक विश्वासी, सुशील पुत्र और पोता, एक दयालु बड़ा भाई और उस लड़की का मित्र जिससे उसने विवाह की योजना बनाई थी, जब वह मृत्यु को प्राप्त हुआ। दोनों ही नौजवानों ने अपना जीवन अच्छे से पूर्ण किया, क्योंकि वे अच्छा जीवन जी रहे थे।

अच्छी तरह से पूर्ण करना, जवान और वृद्धों दोनों ही के लिए आवश्यक है। जीवन का अंत असामयिक हो सकता है। बचपन से, जो प्रभु यीशु मसीह में विश्वास करते हैं उनकी आंतरिक इच्छा होती है कि वे एक अच्छे इंसान के रूप में याद किए जाएँ। और इस बात को निश्चित करने के लिए आवश्यक है कि हम एक अच्छा जीवन जीएं, तभी हम याद किए जाएंगें।

अच्छी तरह से पूर्ण करना, जवान और वृद्धों दोनों ही के लिए आवश्यक है। जीवन का अंत असामयिक हो सकता है। बचपन से, जो प्रभु यीशु मसीह में विश्वास करते हैं उनकी आंतरिक इच्छा होती है कि वे एक अच्छे इंसान के रूप में याद किए जाएँ। और इस बात को निश्चित करने के लिए आवश्यक है कि हम एक अच्छा जीवन जीएं, तभी हम याद किए जाएंगें।

यह बहुत ही अच्छा होगा कि प्रत्येक मसीही इस प्रकार का जीवन जीए, पर ऐसा होता नहीं है। कुछ अनैतिकता में घिर जाते हैं। कुछ का तलाक हो जाता है। कुछ नशे की आदत के शिकार हो जाते हैं, कुछ समलेंगिकता की ओर आकर्षित होते हैं और सदा जीतते नहीं हैं। ऐसे लोगों का क्या होगा? क्या उन्हें उसका यह निष्कर्ष निकालना होगा कि वे चूक गए हैं? उनकी पुरानी असफलताओं को क्या कोई नहीं मिटा सकता है? क्या वे अच्छे से पूर्ण नहीं कर सकते हैं? ऐसा बिलकुल भी नहीं है! बाइबल और अनुभव बताते हैं कि लोग असफलताओं के बाद भी अच्छे से जीवन पूर्ण कर सकते हैं।

मनश्शे के विषय में सोचें (2 राजा 21; 2 इतिहास 33)। वह अपने पिता हिजकिय्याह के स्थान पर यहूदा का राजा बना, वह जादू टोने में लिप्त था, उसने उन लोगों की हत्या करी जिन्हें वह पसंद नहीं करता था, और उसने बच्चों को मोलेक की मूर्ति के आगे बलिदान चढ़ाया ! पर उसने अपने 55 वर्ष के राज्य के अंत में पश्चाताप किया। उसने वह किया जो वह अपने गलत कामों को सुधारने के लिए कर सकता था और शांति से परमेश्वर में सो गया। उसने अच्छे से पूर्ण किया !

मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूँ जिसने अपनी नैतिकता को खोने के बाद भी अच्छे से पूर्ण किया। कई वर्षों तक एक बहुत अच्छा मसीही जीवन जीने के बाद, जब वह पचास वर्ष के लगभग था, उसका एक अन्य स्त्री के साथ संबंध हो गया। उसने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया, और उस छोटी आयु की स्त्री से विवाह कर लिया। उसने कई लोगों का दिल तोड़ा, उसके बच्चों को शर्म का सामना करना पड़ा, और पोते पोतियों को उससे निराशा मिली। उसे अपने नए जीवन से आशा के अनुरूप आनन्द नहीं मिला। आखिरकार उसने प्रायश्चित किया। वह अपनी पहली पत्नी से वापिस विवाह नहीं कर सकता था, पर समय रहते उसने मरने से पहले अपने परिवार और मित्रों से पहले जैसा आदर प्राप्त किया।

चक कोलसन, जो रस्टी वूमर्स के साथ मृत्यु दंड के लिए कारावास में था, अंतिम दिनों के एक संवाद के विषय में बताते हैं। अत्यंत ग्लानि और पछतावे के साथ वह उन लोगों के रिशतेदारों से मिला जिनकी उसने हत्या करी थी। उसने दु:ख प्रकट किया और क्षमा मांगी। उसने अपने प्रिय जनों से दिल को छू जाने वाला अंतिम अभिवादन किया और विदद्युतीय कुर्सी (इलैक्ट्रिक चेयर) पर गरिमा से गया।

यद्यपि न तो मनश्शे, न वह पिता, न रस्टी ने ऐसी विरासत छोड़ी जो उन लोगों के समान थी जो कभी भी पाप में नहीं पड़े थे। तीनों ने ही अपने अंतिम दिन परमेश्वर की सहभागिता में व्यतीत किए और शांति से मृत्यु को प्राप्त हुए। कभी भी सुधार और प्रायश्चित के लिए देर नहीं होती है।

इसको एक ऐसे आमंत्रण के रूप में न लें और असावधानी से रहें। मसीही जो यह सोचते हैं कि वह बाद में प्रायश्चित कर लेंगे, उनके पास यह गारंटी नहीं है कि उन्हें वह विलासिता मिलेगी। इसके अतिरिक्त, वे परमेश्वर के साथ चलने का आनन्द खो देंगे। वे ऐसी यादें छोड़ कर जाएंगे जो दूसरों को प्रेरित नहीं करेंगी और उन्हें परमेश्वर के न्याय का सामना करना पड़ेगा।

कोई बात नहीं कि आप अभी अपने जीवन की यात्रा में कहाँ पर हैं, अभी समय है अच्छे से रहने का ताकि आप अच्छे से पूर्ण कर सकें।

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अपने जीवन को इस पृथ्वी पर कैसे पूरा करते हैं यह सबसे अधिक इस बात पर निर्भर करता है की हम अपने जीवन के अपरिहार्य परिवर्तनों को कैसे संभाल पाते हैं।

हम शैशव काल से बचपन की ओर, फिर किशोर अवस्था से व्यस्कता की ओर बढ़ते हैं। वयस्क होने पर कई परिवर्तन होते हैं, जैसे कि अकेले से विवाह की ओर, माता पिता बनना, फिर दादा दादी, नाना नानी बनते हैं। काम की ओर बढ़ते हैं, ऊंचाइयों को छूते हैं, फिर सीढ़ी से नीचे आने लगते हैं। हमारे संबंध बदल जाते हैं। माता पिता, चाचा चाची, और परिवार के अन्य सदस्य वृद्ध हो जाते हैं और उनकी मृत्यु हो जाती है। हमारे बच्चे बड़े हो जाते हैं और बाहर चले जाते हैं। हमारी पीढ़ी के लोग धीरे धीरे छोड़ कर चले जाते हैं। हम जानते हैं कि हमारी मृत्यु भी दूर नहीं है।

भजन गीतकार हेनरी एफ लाइट ने बहुत व्यावहारिकता से इस गीत को लिखा, “आस पास सब कुछ मुरझाता है साक्षात — तू जो न बदलता, रह मेरे साथ।” अच्छे से पूर्ण करने के लिए, हमें इन परिवर्तनों को विश्वास और गरिमा से अपनाना होगा। निम्नलिखित पृष्ठों में, हम आठ क्षेत्रों को देखेंगे जब हमें मानसिक और आत्मिक समायोजन जीवन के उस मार्ग पर करने होंगे जब हम जीवन के मार्ग पर बढ़ेंगे।

1. शारीरिक रूप से कमजोर होने पर व्यवहार
2. व्यावसायिक निराशा का सामना करना
3. पारिवारिक परिवर्तन के साथ ताल-मेल बिठाना
4. सेवानिवृति को अपनाना
5. अपने साथी की मृत्यु के लिए तैयारी करना
6. अपनी स्वतन्त्रता खो देना
7. अपनी विरासत की योजना बनाना
8. अपने प्रदर्शन का मूल्यांकन करना

शारीरिक रूप से कमजोर या निर्बल होने पर व्यवहार

जब मैंने और मेरी पत्नी ने अपने विवाह की 50वीं वर्षगांठ मनाई, कई लोगों ने जो वहाँ पर निमंत्रित थे कहा, “अरे, तुम दोनों अभी तक बिलकुल नहीं बदले।” हमें यह सुनकर बहुत आनंद आया, पर हम जानते थे कि यह सच नहीं है। हमारे विवाह के चित्र मेँ मेरे घुंघराले बाल थे और मेरा वज़न 138 पाउंड था। आज नहीं! जब वर्ष 1950 के दशक मेँ यह चित्र लिए गए तब भी हम काफी जवान लगते थे। पर उतने नहीं जितने कि 1941 मेँ। वर्षों मेँ बहुत कुछ बदल गया था। पर ऐसा केवल हमारे साथ ही नहीं था। हमने इस बात पर ध्यान दिया कि जिन लोगों को हम अपनी युवा अवस्था से जानते थे वे भी वृद्ध लग रहे थे।

प्राय: मैंने लोगों को 70 और 80 वर्ष की आयु मेँ यह कहते हुए सुना है, “मैं स्वयं को वृद्ध नहीं समझता हूँ।” मैंने भी ऐसा कहा है। पर हम धीरे धीरे शारीरिक रूप से निर्बल होते जा रहे हैं इस बात को झुटलाया नहीं जा सकता है — हम मेँ से उनके लिए भी जो स्वस्थ है। इसमें आश्चर्य नहीं है कि सॉफ्ट बॉल के खेल मेँ बॉल को मार कर कितना भी तेज़ भागूँ, मुझे पहले पड़ाव (बेस) तक पंहुचने मेँ अधिक समय लगता है। मैं गेंद को अपनी पूरी ताकत के साथ फेंक सकता हूँ, पर वह एक धनुष के आकार मेँ ही घूमती हुई जाती है। इस सुबह बहुत अधिक थका देने वाली गतिविधि करने के बाद, मैं दवाई के केबिनेट के पास एस्परीन लेने पंहुचा। और मैंने अपने आप को आशीषित समझा कि अभी तक मैं काम कर सकता हूँ। मेरे कई मित्र जो मेरी आयु के हैं इस प्रकार के काम करने मेँ अपने को असमर्थ पाते हैं।

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि 30 वर्ष की आयु से ही हममे शारीरिक रूप से ह्रास होने लगता है। मेरे पास तीन बाइबल के सुझाव हैं जो मुझे शारीरिक रूप से ह्रास या कमी होने पर उसके साथ कैसे व्यवहार किया जाए यह सिखाते हैं। (1) धन्यवाद और दायित्व के साथ स्वीकार करो। (2) एक समय में एक दिन के लिए जियो। (3) अपने आप को सक्रिय रखो।

1. शारीरिक ह्रास को धन्यवाद और दायित्व के साथ स्वीकार करो: वृद्धावस्था शर्मनाक नहीं है। न ही वृद्ध दिखना अपमानजनक होना चाहिए। सीमा में रहने का अर्थ शर्म से नहीं लगाया जाना चाहिए। बाइबल के अनुसार एक लंबी आयु तक पंहुचना आशीष का कारण होता है। 175 वर्ष की आयु में अब्राहम के लिए कहा गया, “और इब्राहीम का दीर्घायु होने के कारण अर्थात् पूरे बुढ़ापे की अवस्था में प्राण छूट गया। और वह अपने लोगों में जा मिला।” (उत्पत्ति 25:8) यारोबाम, जो इस्राएल का राजा था, उसने बहुत बड़ा गुनाह किया जब उसने बूढ़ों की सम्मति नहीं मानी। (1 राजा.12) वृद्ध लोग इस्राएल में “जयेष्ठ सदस्य” कहलाते थे। (यहोशू 24:31) उनका आदर करना होता था। (लैव्यव्यवस्था 19:32) और उन्हें बुद्धिमान के रूप में देखा जाता था। (अय्यूब 12:12) बूढ़ों की शोभा उनके पके बाल हैं। (नीतिवचन 20:29) इसलिए, हमें अपने जीवन के प्रत्येक वर्ष को परमेश्वर की ओर से दिया गया उपहार समझना चाहिए और यह धन्यवाद का कारण होना चाहिए।

हमारे जीवन के बढ़ते वर्ष, उसके साथ और अधिक दायित्व भी लाते हैं। हमार शारीरिक ह्रास या दुर्बलता हमारी परमेश्वर के प्रति सेवा को कम नहीं करती है। पौलुस ने अपने जवान मित्र तीतुस को लिखा कि वह वृद्ध पुरुष और स्त्री को शिक्षा दे कि वे जवान लोगों के लिए एक आत्मिक सहायता बने रहें। (तीतुस 2:1-4)

वृद्ध या ज्येष्ठ व्यक्ति को (1) संयमी — स्पष्ट नेतृत्व वाले, संतुलित, विचारों, बोलने और काम में समझदार हों। (2) आदर के योग्य — उच्च आचरण और आत्मिक बातों को गंभीरता से लें; (3) आत्म- संयमी — अपने को, अपनी अभिलाषाओ को और दुर्बलताओं को संयम में रखें। (4) स्वस्थ मन — उन्हें जवानों के लिए आत्मिक स्वास्थ्य का प्रतिरूप और विश्वास, प्रेम तथा सहनशीलता का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।

वृद्ध स्त्रियॉं का उत्तरदायित्व इस प्रकार से है: “इसी प्रकार बूढ़ी स्त्रियॉं का चाल चलन पवित्र लोगों सा हो, दोष लगाने वाली और पियक्कड़ नहीं; पर अच्छी बातें सीखने वाली हों। ताकि वे जवान स्त्रियों को चितौनी देती रहें, कि अपने पतियों और बच्चों से प्रीति रखें।” तीतुस 2:34

वृद्ध स्त्रियॉं को : (1) श्रद्धापूर्ण — उन्हें परमेश्वर के प्रति इस प्रकार की सच्ची श्रद्धा और आत्मिक सच्चाई होनी चाहिए कि वे कभी भी मदिरा और गप शप की आदि न हों। (2) अच्छी बातों की शिक्षा दें — जवान स्त्रियों को प्रशिक्षित करें कि अपने पतियों और बच्चों से प्रेम करे जो परम आवश्यक या अपरिहार्य है।

वृद्धावस्था परमेश्वर की ओर से आशीष है। अधिकतर लोग जवानी में ही मरने की अपेक्षा वृद्ध होना चाहते हैं। पर हम बिना चिड़चिड़ेपन के, अपने ही सुध में , और बिना अप्रियता के वृद्ध होना चाहते हैं। एक विश्वासी होने के कारण, हमें ऐसा होना चाहिए जिसका वर्णन पौलुस ने इन पदों में किया है जो ऊपर वर्णित हैं। आत्मिक उन्नति का समय आरंभ हुआ है। जब आप में शारीरिक रूप से कमी आने लगती है, आप आत्मिक रूप से विपरीत दिशा में जा सकते हैं, और तीतुस 2:1-4 की चुनौतियों का सामना कर सकते हैं, जब आप उस स्तर पर पंहुच जाते हैं जहां आप पर “वृद्ध” लागू होता है।

2. एक समय में एक दिन जीओ: वृद्धावस्था में जब शारीरिक दुर्बलताएँ आती हैं तब जो दूसरी बात समझने की है, कि एक समय में एक ही दिन जीना चाहिए। सच है कि यीशु मसीह ने यह सब के लिए कहा, पर यह विशेषकर हमारे लिए महत्वपूर्ण है जो धीरे धीरे शारीरिक रूप से निर्बल होते जा रहे हैं। यीशु ने कहा कि कल की चिंता मत करो और अपनी बात को इस प्रकार समाप्त किया, “सो कल के लिए चिंता न करो, क्योंकि कल का दिन अपनी चिंता आप कर लेगा: आज के लिए आज ही का दुख बहुत है।” (मत्ती 6:34) कुछ लोग इस बात को जवानी में ही समझ जाते हैं। मैं एक ऐसी नर्स को जानता हूँ जिसे मल्टीपल स्क्लेरोसिस का गंभीर रोग है। उसे पता है कि धीरे धीरे यह रोग उसके शरीर को बिलकुल क्षीण कर देगा, तब भी वह खुश है। एक दिन उसने मुझ से कहा, “इस बीमारी के साथ यह परेशानी है कि इससे व्यक्ति को मरने में बहुत अधिक समय लगता है। । मैं अभी जाने के लिए तैयार हूँ। पर मैं प्रति दिन के आनंद को भरपूर जीना चाहती हूँ, अर्थात् आनंद को निचोड़ लेना चाहती हूँ।” यद्यपि उसे व्हील चेयर पर घूमना पड़ता है और बोलने और गटकने में कठिनाई होती है, तब भी उसका रवैया अच्छा है और वह एक समय में एक दिन के लिए जीती है।

एक अन्य स्त्री जो एक गंभीर रोग मल्टीपल मायलोमा से 12 वर्ष से लड़ रही थी। उन दिनों में जब दर्द सहने योग्य होता था वह बहुत उत्साहित और सौम्य हो जाती थी। वह दर्द की चिंता या मृत्यु के विषय में सोच सकती थी, पर उसने ऐसा नहीं किया। उसने परमेश्वर पर विश्वास करके एक समय में एक दिन को जीआ और जब उसका अंत आया वह खूबसूरती से शांत हो गई।

यह बातें वास्तविक चिंताजनक हैं। पर वे सब अप्रिय परिस्थितियां जो आगे आने वाली हैं, हमें उनके प्रति परेशान नहीं होना है, बल्कि हमें परमेश्वर को आज के लिए धन्यवाद देना है और अभी के लिए उसका आनंद उठाना है, भविष्य की चिंता उसके हाथ में छोड़ देनी है। बाइबल हमें इस बात का विश्वास दिलाती है कि, परमेश्वर के आज्ञानुसार, वह हमे वह देता है जिसकी हमें आवश्यकता है। “तुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़े, जो मनुष्य के सहने से बाहर है, और परमेश्वर सच्चा है, वह तुम्हें सामर्थ से बाहर परीक्षा में पड़ने नहीं देगा, वरन परीक्षा के साथ निकास भी करेगा, कि तुम सह सको।” (1 कुरिन्थियों 10:13) यीशु ने हमसे यह भी प्रतिज्ञा करी है कि वह जगत के अंत तक सदैव हमारे संग है। (मत्ती 28:20) जब हम यीशु मसीह की आज्ञाओं को मानते हैं, कि एक समय में एक दिन जीओ और कल की चिंता छोड़ दो, तो हम उसका आदर करते हैं, एक अच्छी गवाही देते हैं, और अपने अंतिम दिनों मे हमें आनंद की प्राप्ति होती है।

3. स्वयं को सक्रीय रखें: तीसरा व्यावहारिक सुझाव बुढ़ापे में जो ह्रास होता है उसे संभालने के लिए अपने को सक्रीय रखना। जैसे जैसे हम वृद्ध होते जाते हैं हम उस मार्ग को अधिक सरल समझते हैं जहां हमें प्रतिरोध का कम सामना करना पड़े और हम बस यूंही बैठ जाते हैं। यह एक गंभीर गलती है, लेकिन इसका एक विपरीत पहलू भी है। कुछ लोग वृद्धावस्था के प्रभावों से लड़ने या सामना करने के लिए इतने दृढ़ निश्चयी होते है कि वे बहुत अधिक मात्रा में विटामिन, टॉनिक, बहुत अधिक व्यायाम, और अपने को जवान बनाए रखने के लिए बहुत अधिक धन खर्च करते हैं। वे सोचते हैं कि ऐसा करने से वे वृद्ध होने की प्रक्रिया को रोक सकते हैं।

पौलुस ने तीमुथियुस से कहा कि “देह की साधना से कम लाभ होता है।” (1 तीमुथियुस 4:8) पर उसने इस बात को सपष्ट किया और ज़ोर दिया कि भक्ति सब बातों के लिए लाभदायक है, क्योंकि इस समय के और आने वाले जीवन की भी प्रतिज्ञा इसी के लिए है। व्यायाम और स्वयं को अनुशासन में रखना सराहनीय है। इससे हमें अच्छा लगता है और यह हमारे पृथ्वी पर जीवन को और बढ़ा सकते हैं, बस यही सब है। अपने आप को क्रियाशील रखो, पर अधिक ध्यान अपनी आध्यात्मिक तैयारी पर लगाओ।

व्यावसायिक निराशा का सामना करना

हम सब अपनी प्रशंसा चाहते हैं, और हमें अपने व्यवसाय में व्यस्त रहने में बहुत संतुष्टि होती है। हमें जब कंपनी प्रोत्साहन राशि के साथ नौकरी में तरक्की देती है उससे भी हम प्रसन्न होते हैं। पर आज की इस जटिल और बदलती तकनीकी समाज में वह समय बहुत जल्द आ जाता है, जब कई लोगों की तरक्की या उन्नति रुक जाती है। एक व्यक्ति पाता है कि वह अपनी नौकरी में सदा की तरह ही निपुण या कुशल है, चाहे उसकी आयु लगभग 40 वर्ष की ही हो, पर फिर वह देखता है कि उससे भी कम आयु के नए प्रशिक्षित कार्यकर्ता उससे आगे निकल रहे हैं। इससे भी बुरा, उसे नौकरी छोड़नी पड़ी और उसका प्रशिक्षण भी उसके नौकरी ढूँढने में कोई काम न आए।

यह मेरे एक भतीजे के साथ हुआ, जो कि 50 वर्ष के लगभग था। अभी सेवानिवृति के लिए कोई भी परिस्थिति उसके अनुकूल नहीं थी। उसके पास और कोई भी विकल्प नहीं था सिवाय इसके कि वह कोई नौकरी के प्रशिक्षण के लिए अपना नामांकन करवाए और अन्य स्थान पर फिर से आरंभ करे।

जब जीवन में आधी शताब्दी का समय समीप आता है, बहुत से लोग जिनकी बहुत प्रतिष्ठित नौकरी होती है, और अपने परिवारों के लिए बहुत कुछ कर पाते हैं, वे अपने आप को असफल समझने लगते हैं। “मैंने अब तक किया क्या भी है, बस कारें बेचना! जब मेरे काम के दिन पूरे हो जाएंगे, मैंने वास्तव में क्या पाया?”

वे लोग जो अपने जीवन को कुछ सीमा तक गंभीरता से सोचते हैं — चाहे वे अकुशल श्रमिक हों, कुशल तकनीज्ञ हों, पेशेवर या प्रबन्धक हों – एक ऐसे बिन्दु पर पंहुचते हैं जहां पर आकर्षण सुंदरता, आदर्शवाद और जवानी की आशा का स्थान गंभीर आत्म-मूल्यांकन ले लेता है। इसलिए एक 52 वर्ष के कुशल शल्य चिकित्सक ने एक टेलीविज़न के साक्षात्कार (इंटरव्यू) में कहा कि वह अभी जीवन का आनंद उठाना चाहता है क्योंकि उसे अपने काम से बहुत थोड़ी संतुष्टि या पूर्णता मिलती है। उसने जो करा वह इसलिए कि वह परिवर्तन को थोड़ी देर रोकना चाहता था।

एक व्यक्ति जो कि तीन बड़ी कंपनियों में उच्च पदों पर पंहुच चुका था, उसने मुझ से कहा कि सफलता उसे अधिक आनंद नहीं दे रही है। दूसरी ओर वे अधेड़ और वयस्क हैं जो सोचते हैं कि उन्होने बहुत अधिक धन नहीं कमाया और उन्होने मानवीय मानकों के अनुसार कुछ भी महान् नहीं किया।

“सफल परंतु असंतुष्ट” और “असफल और निराश” लोगों को जानने की आवश्यकता है कि हमारी कीमत यह नहीं है कि हमने कितना जमा किया न इसमें है कि हमने कितना पूरा किया। जवान स्त्री और पुरुष को दो खतरनाक “ड्रेगन” से सावधान रहना होगा — सक्रियतावाद और भौतिकवाद। सक्रियतावाद कहता है, “आप वह हैं जो आपने पूरा किया है।” भौतिकवाद कहता है, “आप वह हैं जो आपने कमाया है और एकत्र किया है।” दोनों ही जीवन में दुख उत्पन्न करते हैं और जीवन नष्ट करते हैं।

बाइबल बताती है कि परमेश्वर की नज़र में इस बात की कोई कीमत नहीं है कि हम संसार के मानक के हिसाब से कितने सफल है या हमने कितना एकत्र किया है। हमारी कीमत तो इस बात में है कि परमेश्वर ने हमें अपनी छवि में बनाया और धरती पर उसके प्रतिनिधि बना कर सृष्टि पर राज करने का अधिकार दिया। (उत्पत्ति 1:27-30, भजन संहिता 8) इसलिए हम सबके पास पृथ्वी पर एक अद्वितीय गौरव और अधिकार है।

पाप ने हमें उन सब से दूर कर दिया जो परमेश्वर ने हमारे लिए रचा था, पर उसने हमें छोड़ा नहीं उसने निश्चय किया कि वह सही समय पर त्रिएत्व (ट्रिनिटी) से दूसरे व्यक्ति को भेजेगा जो कि मानव प्रजाति का सदस्य बनेगा, बिना पाप के रहेगा, हमारे पापों की सज़ा के लिए क्रूस की मृत्यु सहेगा। (यूहन्ना 3:16; 2 कुरिन्थियों 5:21) और मृत्यु से जी उठेगा (1 कुरिन्थियों 15:25-58)। प्रत्येक विश्वासी को परमेश्वर ने चुना है ताकि उन्हें क्षमा मिले और वे अनंत जीवन के भागी हों। (इफिसियों 1:3-6) परमेश्वर की दृष्टि में हमारी यही सबसे अधिक कीमत है।

विश्वासी होने के कारण हम एक दिन स्वर्गदूतों के सामने होंगे और सब बुद्धिजीवियों के बीच परमेश्वर के प्रेम और अनुग्रह के प्रतीक। (इफिसियों 2:6-7; 3:10-11), हमे आश्वस्त होना चाहिए कि हम सब महत्वपूर्ण हैं — चाहे जीवन हो या मृत्यु।

भजन संहिता 116:15 में इस विचार का सुंदरता से वर्णन किया गया है, “यहोवा के भक्तों की मृत्यु, उसकी दृष्टि में अनमोल है।” इब्रानी शब्द “अनमोल” का अनुवाद कभी कभी “मूल्यवान” के रूप में भी जाना जाता है। (“अनमोल पत्थर” 2 शमूएल 12:30 में हीरे जवाहरात मणि थे। पर उसका अर्थ “कीमती” से है — जिसका मूल्य दुख दर्द हो, जैसा की नीतिवचन 12:27 में लिखा है। जब कि भजनकार परमेश्वर को मृत्यु से छुड़ाने के लिए प्रशंसा कर रहा है, इस संदर्भ में “कीमती” शब्द सही है। एक अटूट विश्वासी की मृत्यु परमेश्वर के लिए कीमती है, क्योंकि वह एक ऐसे व्यक्ति को खो देता है जिसको उसने पृथ्वी पर सेवा के लिए अनंतकाल से चुना था, क्षमा किया अपने पुत्र की मृत्यु के द्वारा, उसे नए जीवन द्वारा परिवर्तित किया और आत्मिक रूप से परिपूर्ण किया। इसलिए परमेश्वर आसानी से अपने बच्चों को मरने नहीं देता है।

मैंने यह जब सोचा जब मैं 32 वर्ष की सिंडी को समझा रहा था, जो एक पत्नी और माँ थी। वह लुकेमिया के कारण मृत्यु के नजदीक थी। मुझे उसकी स्थिति से बहुत दुख हुआ। मुझे लगा कि परमेश्वर को भी इसकी बहुत चिंता है। जिसके लिए एक चिड़िया का भी गिरना बहुत महत्वपूर्ण है (मत्ती 10 :29-31) उसने सिंडी और उसके सब प्रिय जन जो उसके साथ थे उस दर्द को साझा किया। उसने सिंडी को बहुत मूल्यवान समझा। वह आपको, हम सबको मूल्यवान समझता है। और वह यह नहीं देखता है कि हम कितने अमीर या प्रसिद्ध हैं।

परिवर्तन के साथ पारिवारिक ताल मेल बिठाना

परिवर्तन का एक अन्य क्षेत्र है परिवार, जिसके साथ हमें समायोजन करना है या ताल मेल बिठाना है। एक परंपरागत घर में एक बच्चे के लिए परिवार का अर्थ माँ, पिता, भाई-बहिन, या एक पालतू भी हो सकता है। जीवन के इस स्तर पर बच्चे केवल उन्हीं के विषय में विचार करते हैं जो उनके साथ अभी रह रहे हैं। एक चित्र जिसमें माँ, पिता और बच्चे एक मेज़ के चारों ओर बैठे हों यह हमारे भावों को छू जाता है।

पर सबसे अच्छे घरों में भी रिश्ते बदलते रहते हैं। बच्चे धीरे धीरे आत्मनिर्भर और स्वतंत्र हो जाते हैं। और अभिभावकों को उन्हें और स्वतन्त्रता देना सीखना पड़ता है। कुछ समय बाद बच्चे अपने माता पिता को छोड़ कर अपने परिवार आरंभ कर लेते हैं। माता पिता, दादा दादी बन जाते हैं। इससे पहले वे कुछ सोचें, वे अपने आप को मध्य अवस्था में पाते हैं, वे फिर से दोनों अकेले रह जाते हैं। उनकी मिश्रित भावनाएं होती हैं। एक तरफ वे खुश हैं कि उन्होने बच्चो के पालन पोषण के सब दुख और परीक्षाएँ पार कर ली हैं। दूसरी तरफ, वे अपने बच्चों के उत्साह और उनकी क्रियाओं को याद करते हैं, जब वे घर में थे। यह दुख का विषय है कि कई बार ऐसे समय पर ही विवाह में मतभेद आ जाते हैं और माता-पिता और बच्चों के संबंध टूट जाते हैं। बुद्धिमत्ता इसमें है कि ऐसा समय आने से पहले ही उसकी तैयारी कर लें।

वैवाहिक संबंध: एक पति और पत्नी, यहाँ तक कि जब उनके बच्चे छोटे होते हैं, वे एक दूसरे के प्रति अपने उत्तरदायित्व को प्राथमिकता देते हैं। अपने विवाह के द्वारा वे “एक शरीर” के बंधन में बंध गए हैं, जिसे परमेश्वर ने उनके जीवन भर के लिए ठहराया है। बच्चे भी वही करेंगे जो सवयं उन्होने किया है – अपने माता पिता को छोड़ कर एक नया घर बनाना। उन्हें अपने बच्चों को एक दूसरे के संबंध को क्षति पंहुचने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।

आत्म-बलिदानी प्रेम और एक दूसरे के प्रति समर्पण इफिसियों 5:22-33 में बताया है। जो कि कम आयु के माता पिता के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। एक पादरी होने के कारण मैंने ऐसे बहुत से जोड़े देखे हैं जो आपस में एक दूसरे की समीपता को खो देते है जब एक साथी सोचता है कि मुझे बच्चों के बाद दूसरा स्थान दिया गया है। कई बार माएँ अपने बच्चों से प्यार पाने के लिए इतनी उत्तेजित हो जाती हैं कि वे अपने पति का अनादर करने लगती हैं। कई बार पिता अपने बेटों से अच्छे संबंध बनाने कि उत्तेजना में अपने मध्य में “हम” विरुद्ध “उनके” (माता और बहिन के झगड़े) की दीवार खींच लेते हैं। इस प्रकार की परिस्थितियों में, जब बच्चे घर छोड़ देते हैं, विवाह में समस्या आने लगती है।

कुछ समय पहले, मैं और मेरी पत्नी बहुत सारे जवान जोड़ों को उनके छोटे बच्चों के साथ ख़रीदारी करते देख बहुत खुश हो गए। चारों ओर जवान पति और पत्नियाँ एक साथ मिलकर अपने बच्चों को संभाल रहे थे। मेरी पत्नी ने कहा, “ये लोग हमारी आयु तक पंहुचने के बाद भी एक दूसरे से ऐसे ही प्रेम करते रहेंगे।”

विवाह में बीतते वर्षों के साथ परिवर्तन आते रहते हैं। यौन संबंध भी पहले जैसे नहीं रहते हैं। पर यह एक सामान्य बात है और उसे स्वीकार करना चाहिए। अप्राकृतिक साधनो को यौन इच्छा के लिए प्रयोग नहीं करना चाहिए। इस तथ्य को स्वीकार करना चाहिए कि समय के साथ यह परिवर्तन होता है। यौन इच्छा में कमी आ जाती है। जब पति पत्नी आपस में बातचीत करते हैं, एक दूसरे के प्रति नम्रता का व्यवहार करते हैं, एक जैसी रुचियों को जगाते हैं और एक साथ प्रार्थना करते हैं, उनके जीवन में उनके यौन संबंध सदैव अच्छे रहेंगे — चाहे वे अधिक आयु के भी हो जाएं।

अभिभावक और संतान के संबंध: कई वाहनों के पीछे लगे स्टिकरो के द्वारा वृद्ध लोगों और उनके वंशज के विषय में विभिन्न संदेश मिलते हैं। कुछ कहते हैं, “मुझे दादा दादी बनना अच्छा लगता है” या “खुशी का अर्थ है दादा दादी बनना”। कुछ कहते हैं, “मैं अपने बच्चों की विरासत को खर्च कर रहा हूँ”। कई वृद्ध व्यक्ति अपने बड़े बच्चो और पोते पोतियो के साथ इतना आनंद मनाते हैं कि वे कहते हैं यह जवान माता पिता होने से अधिक अच्छा है। जब मैंने मज़ाक में एक 65 वर्षीय आकर्षक स्त्री से पूछा कि मैं उसके लिए पति ढूंढ दूंगा, वह गंभीर हो गई और उसने कहा, “धन्यवाद, पर मैं अपने लिए पति नहीं ढूंढ रही हूँ, मेरे बच्चो और मेरे पोते पोतियों के साथ इतने अच्छे संबंध हैं, मैं उन्हे खोने का जोखिम नहीं उठा सकती हूँ।” पर एक 80 वर्ष के वृद्ध ने मुझे कड़वाहट के साथ कहा, “मेरे बच्चे मेरी बिलकुल परवाह नहीं करते हैं। वो तो मेरी मृत्यु की राह देख रहे हैं ताकि उन्हें मेरा धन मिल जाए।”

मसीहियों में, यह संबंध बहुत अच्छे होने चाहिए। युवा बेटे और बेटियाँ जो माता पिता की आज्ञा मानने का आदर करते हैं वे सदा अपने माता पिता के साथ संबंध रखेंगे। बुद्धिमान अभिभावक अपनी दखलंदाजी हर चीज़ में न लाएँ और बच्चो पर बहुत अधिकार न जताएँ तो बच्चे अवश्य उनसे प्रेम करेंगे। वो अपने पोते पोतियों से प्रेम करेंगे, पर माता पिता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करेंगे।

मैंने देखा है कि बहुत सारी विधवाओं को उनके बच्चों द्वारा अनादर या उपेक्षा की जाती है, विशेषकर जब वे रिटायरमेंट होम में रहती हैं। शायद बच्चों को उस घर मे जाना जहां पर उनके माता पिता दादा दादी के साथ रहते हैं अधिक अच्छा लगता होगा। यही एक कारण होगा कि उनकी माँ के पास बहुत साथी और सखियाँ होंगी जहां पर वे रहती हैं। कोई भी कारण हो, यह गलत है। माँ और दादी अपने बच्चो के पास रहना चाहती हैं। उनकी उपेक्षा करना धर्मपुस्तक की अवहेलना करना है। यही नमूना फिर आगे की पीढ़ियों तक भी चलता रहेगा। बच्चे जो अपने माता पिता को दादा दादी के साथ प्रेम और आदर का व्यवहार करते देखते हैं, उनके बच्चे भी उनके साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे।

परमेश्वर की आशीष उन परिवारों पर रहती हैं जो आपस में एक दूसरे के प्रति समर्पण, प्रेम और आदर के साथ रहते हैं। पौलुस ने यह इफिसियों 5:22-6:3 में पारिवारिक सम्बन्धों के विषय में बताया है, निर्गमन 20:12 की आज्ञा को दोहराया, और पहले पति और पत्नि के विषय में, फिर बच्चों के लिए कहा कि प्रभु में अपने माता पिता के आज्ञाकारी बनो ।

घनिष्ठ पारिवारिक संबंध वृद्धावस्था के आनंद का सबसे बड़ा कारण है। कुछ भी उसकी बराबरी नहीं कर सकता है। एक वृद्ध दंपत्ति ने, जो कि सर्दी की ऋतु को आराम से गरम मौसम में बिता सकते थे, कहा कि वे अब एक होम में जा रहे हैं क्योंकि उन्हें अपने बच्चों और पोते पोतियों के नजदीक रहना आनंद देता है। एक विधवा जो रिटायरमेंट होम में रहती है, उसने मुझे और मेरी पत्नी को बताया यद्यपि वह अपने पति को और उस घर को जिसमें वे रहते थे बहुत याद करती है। पर वह पूर्णत: संतुष्ट है क्योंकि उसके पास परमेश्वर, उसके बच्चे, पोते पोतियाँ और कई मित्र हैं।

मैं एक नबी नहीं हूँ, न ही एक नबी का बेटा, पर मैं सोचता हूँ कि ऐसे लोगों के बच्चे जो घनिष्ठ पारिवारिक संबंध बना कर रखते हैं, उन्हें भी वही प्रेम मिलेगा जब वे वृद्ध होंगे। अभी पारिवारिक सम्बन्धों को बनाए रखने से भविष्य में बहुत लाभ मिलेगा।

सेवानिवृत्ति को अपनाना

एक व्यक्ति को सेवानिवृति के बाद उस अतिरिक्त समय के साथ समायोजन करना होगा जो सेवानिवृति के साथ आता है। जब हम अपने कामों में व्यस्त थे हम रिटायर्ड लोगों को ईर्ष्या की दृष्टि से देखते थे। वे किसी भी समय गोल्फ या मछ्ली पकड़ने जा सकते हैं। वे सुबह देर तक सो सकते हैं। क्या जीवन है! पर वास्तविकता यह है कि सेवानिवृतक (रिटायर्ड) बहुत देर तक बिस्तर पर सुबह नहीं सो पाते हैं जैसे कि काम करने के समय सो पाते थे। वे सोचते हैं कि गोल्फ खेलना और मछ्ली पकड़ना एक काम करने वाले व्यक्ति के लिए बहुत ही मनोरंजक है। यह ऐसी चीज़ नहीं है जिसका वे कई घंटे आनंद उठा सकते हैं। परिणाम होता है कि वे बोर हो जाते और अपने मित्रों के साथ भी उन्हें अच्छा नहीं लगता है। और वे बैठ कर मृत्यु का इंतज़ार करते हैं।

दूसरी ओर, कुछ सेवानिवृत (रिटायरी) इतने खुश रहते हैं कि वे कहते हैं हम रिटायरमेंट को जीविका बना सकते हैं। उन्हें प्रतिदिन मनन के लिए अधिक समय मिलता है। वे अपने घर के कामों में व्यस्त रहते हैं। वे आसपास देखते हैं कि किस प्रकार दूसरों की मदद कर सकते हैं। वे चर्च के कार्यक्रमों में व्यस्त रहते हैं। उनके पास बच्चों और पोते पोतियों के लिए समय होता है। वे बाइबल अध्ययन (स्टडी) में भाग लेते हैं। उन्हें आश्चर्य होता है कि किस प्रकार से उन्हें अपने जीवन की कमाई के लिए समय मिला।

निम्नलिखित तत्व सुखदायक सेवानिवृति के मुख्य कारक है:
(1) अर्थपूर्ण मनन
(2) मनोरंजक क्रियाएँ
(3) दूसरों की सहायता के लिए सेवाएँ
(4) एक क्रियात्मक सीखने वाला मस्तिष्क

1. अर्थपूर्ण मनन: अपने आत्मिक भोजन के लिए प्रार्थना का समय निकालें, अपने साथी के साथ और अकेले भी। प्रत्येक व्यक्ति समय, अवधि और तरीका निश्चित कर सकता है। हजारो रिटायर्ड “हमारे प्रतिदिन की रोटी” (आवर डेली ब्रेड) का उपयोग संयुक्त रूप से मनन के लिए करते हैं। अधिक पढ़ने के लिए अकेले समय निकालते हैं। कुछ प्रार्थनाओं की सूची बनाते हैं और क्रमबद्ध तरीके से प्रार्थना करते हैं। मध्यस्थता की प्रार्थना में कुछ अपनी स्मरण शक्ति पर और कुछ पवित्र आत्मा की अगुवाई पर निर्भर करते हैं।

एक धार्मिक व्यक्ति वह होता है जो “वह तो यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता है” (भजन संहिता 1:2)। वह प्रार्थना करता है, “हे यहोवा, भोर को मेरी वाणी तुझे सुनाई देगी” (भजन संहिता 5:3)। दानिय्येल, जब बड़ी आयु का था, उसे अपने लोगों से दूर निकाल दिया गया था, अपने ऊपर के कमरे में प्रतिदिन तीन बार प्रार्थना के लिए जाता था। खिड़कियों को यरूश्लेम की तरफ खोलता था, घुटनों के बल बैठ कर “प्रार्थना कर परमेश्वर को धन्यवाद” देता था” (दानिय्येल 6:10)। यीशु ने हमसे कहा कि प्रार्थना में “मांगो”, “ढूंढो”, और “खटखटाओ”। (मत्ती 7:7) पौलुस ने कई बार हमें प्रार्थना के लिए चेताया (रोमियों 12:12; इफिसियों 6:17-18; फिलिप्पियों 4:6; कुलुस्सियों 4:2; 1 थिस्सलुनीकियों 5:17; 1 तीमुथियुस 2:1)। एक आध्यात्मिक जीवन के लिए बाइबल पढ़ना और प्रार्थना करना — यह एक सेवानिवृत मसीही व्यक्ति के लिए अत्यावश्यक है।

2. मनोरंजक क्रियाएँ: एक सेवानिवृत को मनोरंजक क्रियाओं में भाग लेना चाहिए। बाइबल यह नहीं कहती है, पर इस बात की पहचान कराती है कि मनुष्य की मनोरंजन की आवश्यकता कुछ क्रियाओं द्वारा पूरी की जा सकती है। जो सक्रीय रहते हैं वे ही आराम का आनंद उठा सकते हैं। परमेश्वर ने इस्राएल को सब्त का दिन दिया ताकि सब ही, अमीर और गरीब, पुरुष और स्त्री, अपने प्रतिदिन के परिश्रम से आराम पा सकें। पर काम के बाद आराम, निष्क्रीय या आलसी से बिलकुल भिन्न है।

नीतिवचन के लेखक ने बार बार आलसी को चेतावनी दी है (6:6-9) और सुस्त को (12:24)। पौलुस ने बेकार या आलसी को चेतावनी दी है (1 थिस्स 4:11; 1 तीमु 5:13)। मनोरंजन अच्छा है; आलसी होना बुरा है। भले प्रकार के मनोरंजन का अर्थ है कि अच्छे काम या क्रियाओं को खोजें। कुछ लोग घर को सुधारने के कामों में व्यस्त हो जाते हैं। एक सेवानिवृत बताते हैं कि वे तब बहुत खुश होते हैं जब उनकी पत्नी उन्हें बहते हुए फ़ौसेट को ठीक करने को कहती है। कुछ लोग रुचियों को चुनते हैं। कुछ को गोल्फ खेलने, मछली पकड़ने या खेल प्रतिस्पर्धा देखने में आनंद आता है। कुछ ऐसी भी रुचियाँ हैं जो लोग घर में रह कर भी पूरी कर सकते हैं। ऐसी चीज़ ढूंडें जो आपको आनंद देती है और उसे करने में कुछ समय व्यतीत करो। नीतिवचन 17:22 में लिखा है “मन का आनंद अच्छी औषधि है, परंतु मन के टूटने से हड्डियाँ सूख जाती हैं”।

3. दूसरों के लिए सहायता सेवाएँ: तीसरा सबसे मुख्य तत्व है कि सेवानिवृति के बाद अपने समय का सदुपयोग करना, यानि दूसरे लोगों तक पंहुचना। मसीहियों के लिए यह गवाही का एक उत्तम तरीका है।

मैं एक ऐसी बड़ी आयु की महिला को जानता हूँ जो बहुत अच्छा खाना बनाती है। वह ऐसे अवसर ढूंढती है जहां पर वह ऐसे परिवारों को भोजन ला कर दे सके जहां पर माँ बीमार है या अस्पताल में भर्ती है। जब यह स्थिति लंबे समय तक रहती है तो वह इस काम में कई अन्य महिलाओं को भी शामिल कर लेती है। एक सेवानिवृत, जिसे चीजों को सुधारने का शौक है, वह भी नि:शुल्क अपनी सेवाएं वृद्ध व्यक्तियों को देता है जो छोटे छोटे बढ़ई या प्लांबिंग के काम नहीं कर सकते हैं। एक सेवानिवृत व्यक्ति स्थानीय अखबार में श्रद्धांजली के कॉलम को पढ़कर उस परिवार को पत्र लिखता है, अपनी संवेदना प्रकट करता है और नि:शुल्क सलाह देने का प्रस्ताव रखता है। एक 80 वर्ष की महिला, जवान बच्चों को उनके स्नातन के समय पर, एकांतप्रियों को, दुखी को, और अस्पताल में भर्ती लोगों को प्रोत्साहन के लिए लघु-पत्र भेजती है। एक और वृद्ध महिला उन लोगों को फोन करती है जिन्हें वह जानती है कि वे अकेले हैं।

हम अपने समय का सदुपयोग इस प्रकार कर सकते हैं कि हम सहायक और उपयोगी सिद्ध हों। भजनकार इसको इस प्रकार बताते हैं कि वे वृद्ध आशीषित और फलदायी हैं जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं:

“धर्मी लोग खजूर की नई फ़ूले फलेंगे, और लबनोन के देवदार की नाई बढ़ते रहेंगे। वे यहोवा के भवन में रोपे जाकर, हमारे परमेश्वर के आंगनों में फ़ूले फलेंगे। वे पुराने होने पर भी फलते रहेंगे, और रस भरे और लहलहाते रहेंगे”। (भजन संहिता 92:12-14)

4. एक क्रियात्मक या सक्रीय मस्तिष्क: चौथा मुख्य तत्व अपनी सेवानिवृति के समय का सदुपयोग करने के लिए अपने मस्तिष्क को सक्रीय रखना है। कुछ लोग अल्ज़ाइमर्स रोग के कारण यादाश्त खोने लगते हैं, तब भी अधिकांश लोग याद कर सकते हैं। बाइबल बहुत सारे ऐसे लोगों के विषय में बताती है जो कि वृद्धावस्था में भी बहुत स्पष्ट और फुर्तीले थे।

याक़ूब अपनी मृत्यु के समय लगभग 150 वर्ष का था, उसने अपने बच्चों को अपने पास बुलाया, प्रोत्साहित करने वाली भविष्यवाणियां बतायीं कि आगे के दिनों में उन पर क्या बीतेगा। (उत्पत्ति 48-49)। मूसा का मस्तिष्क भी 120 वर्ष की आयु में सक्रीय था, बिलकुल स्पष्ट था, कि वह उस पहाड़ पर चढ़ा, जहाँ पर उसकी मृत्यु होनी थी (व्यवस्थविवरण 34)। कालेब को 85 वर्ष की आयु में हेब्रोन नामक पहाड़ी पर विजय प्राप्त करने के लिए सेना की अगुवाई का अवसर मिला (यहोशू 14)। दानिय्येल 90 वर्ष का था जब अद्भुत रीति से शेर (सिंह) की माँद से बचा लिया गया। और फारसी शासक दारा और कुस्रू के राज्य के दिनों में भाग्यवान रहा (दानिय्येल 6:28)। यीशु के जन्म के समय, वृद्ध शमौन और 84 वर्ष की विधवा हन्नाह, यीशु मसीह के विषय में महत्वपूर्ण बातें बताते थे। (लूका 2:25-38)।

यह विचार कि वृद्ध बुढ़ापे के कारण सठिया जाते हैं, बाइबल इस बात का समर्थन नहीं करती है, न ही पिछले 30 वर्षों से ऐसे कोई तथ्य एकत्र किए गए हैं। कई वृद्ध व्यक्तियों को ऐसे स्थानो पर नियुक्त किया गया जहां पर उनसे किसी चीज़ की आशा नहीं की जाती है। बहुत सारी ऐतिहासिक घटनाओं को देखने के बाद, सुप्रसिद्ध डॉ विलयम गेसर ने निष्कर्ष निकाला कि “सठिया” लोग ठीक हुए जब उन्होने दिये गए दायित्वों को स्वीकार किया और उन्हें कुछ रचनात्मक सोचने का अवसर दिया गया।

मस्तिष्क की प्रक्रिया वृद्धावस्था के साथ धीरे धीरे कम होने लगती है। वृद्ध भूल जाते हैं कि उन्होने सामान कहाँ पर रखा था। वो बहुत जल्दी याद भी नहीं कर पाते हैं। यह इसलिए भी हो सकता है क्योंकि वो उस पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते हैं जो उन्होने देखा है। ऐसा भी हो सकता है कि जब वे याद करने का प्रयत्न कर रहे हों, उनके दिमाग में चिंताएँ हों और अपने देखभाल के विषय में सोचते हों, और याद नहीं कर पाते हों। और जवानों को यह निष्कर्ष नहीं निकाल लेना चाहिए कि माता और पिता सठिया गए हैं या अल्ज़ाइमर्स रोग का आरंभ हो गया है।

वृद्ध लोग जो सीखना जारी रखते हैं और यह विश्वास करते हैं कि वे याद कर सकते हैं और याद रख भी सकते हैं, वो मानसिक रूप से उत्सुक रहते हैं। जो बाइबल अध्ययन और प्रार्थना को अपने जीवन का हिस्सा बनाते हैं, वे आत्मिक रूप से उन्नति करेंगे। पुरानी और नई चीजों का समायोजन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उन्हें समृद्ध बनाएगा। वे साधारण मनोरंजन का भी आनंद उठा पाएंगे: दृश्य, ध्वनि, और सुगंध, छोटे बच्चो की चुलबुली बातें और हँसी, अपने प्रिय जनों और मित्रों का साथ। यह विश्वासी वृद्धों को सक्षम करता है — उनको भी जिनको दुख दर्द हैं — वे अपने अंतिम दिनों में आनंद उठा सकें। सेवानिवृति के वर्ष समृद्ध और उपयोगी और परमेश्वर को आनंद देने वाले हो सकते हैं।

अपने जीवन साथी की मृत्यु के लिए तैयारी करना

जीवन का सबसे बड़ा सदमा तब पंहुचता है जब जीवन साथी की मृत्यु हो जाती है। यह जवानी में भी हो सकता है, पर वृद्धावस्था में इसकी संभावना अधिक रहती है। हम इस बात को दो प्रकार से देख सकते हैं: मृत्यु होने से पहले, और बाद में।

मृत्यु से पहले: दंपत्ति को इस बात का सामना करना होगा कि यह वास्तविकता है कि एक की मृत्यु पहले होगी। दोनों को बैठकर व्यावहारिक समस्याओं के विषय में विचार विमर्श करना होगा कि जो बाद में बचेगा वह कैसे सब समस्याओं का समाधान करेगा। उसे इलाज के विषय और जीवन–सहायक तरीकों पर विचार करना होगा, यदि वे जीवन-सहायक-उपकरण मृत्यु की प्रक्रिया को और बढ़ाते हैं। जो साथी बचेगा उसे निर्णय करना होगा, या तो वह रिटायरमेंट होम में चल जाए या उसी घर में रहता रहे जिसमें वे दोनों रहते थे। ऐसा करने से बचे हुए साथी को कम गलती का एहसास होगा। इन सब बातों के विषय में स्पष्टता से बात कर लेने से बचे हुए जीवनसाथी को अकेले रहने में थोड़ी सरलता होगी।

यह वास्तविकता, साथ ही बाइबल अध्ययन और मसीहियों की संगति से प्राप्त आत्मिक शक्ति भी हमें इस परिवर्तन के लिए तैयार करती है। जब हम आत्मिक रूप से परिपक़्व हो जाते हैं तो हम अपने अनुभव से जान सकते हैं, “आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है, कि हम परमेश्वर की संतान हैं” (रोमियों 8:16)। परमेश्वर से मिली शक्ति से हम अपने प्रिय जन के खोने को स्वीकार कर लेंगे।

मृत्यु के बाद: जब एक जीवनसाथी की मृत्यु हो जाती है, बचने वाला कुछ हद तक सुन्न हो जाता है। रिश्तेदार और मित्र प्राय: बहुत सहायक होते हैं। पीड़ा तो कुछ सप्ताह बाद पता चलती है, जब वास्तविकता से सामना होता है। बचने वाला सोचता है कि जीवन में जीने का कोई अर्थ नहीं है। यह वह समय नहीं है जब आपको महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने हैं।

कई लोग इस समय आवेग में आकर बहुत भारी गलतियाँ कर देते हैं। एक मेरे पुराने मित्र ने अपना मोबाइल घर बेच दिया अपने बच्चों के पास जाने के लिए। यह बात उसकी पत्नी की मृत्यु के पहले माह की है। 6 माह बाद उसे बगीचे में उन लोगों की याद आने लगी जहां पर वह रहता था। पर बगीचा लोगों से भरा हुआ था और कोई बिकाऊ घर भी बचा हुआ नहीं था। वह एक रिटाएरमेंट होम में चला गया, जो उसे अच्छा लगा। पर उसने कहा उसे अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद इतनी जल्दी निर्णय नहीं लेना चाहिए था।

इस समायोजन के समय में लोग सोचते हैं कि वे कभी भी आनंदित नहीं हो पाँएगे। वास्तव में यह सच नहीं है। भजन 30 में लेखक परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से धन्यवाद कह रहा है, प्रशंसा कर रहा है, क्योंकि परमेश्वर ने परेशानी में उसकी प्रार्थना सुनी। वह इस आशा के साथ आनंद मना रहा है कि परमेश्वर के मुख के शब्द उसके आज्ञाकारी बच्चों के लिए खुशी के आँसू होंगे। अंत में प्रशंसा के गीत स्वर्ग में उद्धार पाए लोग गाएँगे। पर यहाँ पृथ्वी पर, “कदाचित् रात को रोना पड़े, परंतु सवेरे आनंद पंहुचेगा (भजन संहिता 30:5)।

केरोलीन को ज्ञात था कि उसका जीवन शीघ्र समाप्त होने वाला है, पर उसने अपने दुखी परिवार को आश्वस्त किया कि वे “फिर हँसेंगे”। उसका पति यूजीन जो बहुत ही संवेदनशील और नम्र व्यक्ति है, उसे उसकी इतनी याद आती है, जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। पर उसने मुझ से कहा कि उसे फिर से जीवन आनंदमयी लगने लगा है। उसने अपनी पत्नी को नहीं “खोया” है। उसे पता है कि वह कहाँ पर है और उसे अपनी पत्नी को दोबारा देखने की आशा है।

अपनी स्वतन्त्रता खो देना

दूसरों पर निर्भरता भी एक अन्य समायोजन हो सकता है। यदि हम वृद्ध होते हैं, तो हम दूसरों पर अधिक निर्भर हो जाते हैं। यह निर्भरता बदलती जाती है। कुछ लोग अंतिम समय तक भी आत्मनिर्भर रहते हैं, जबकि कुछ लोग वर्षों तक असहाय रहते हैं। हम इस बात का पूर्वानुमान नहीं लगा सकते हैं कि हम कितने निर्भर होंगे, और यह अच्छा है कि हम नहीं जानते हैं। परमेश्वर चाहता है कि हम उस पर विश्वास करें। इससे हमें परमेश्वर की चेतावनी याद आती है कि हम चिंता करने से अपने आप को रोकें, क्योंकि ऐसा करने से हम अपने स्वर्गीय पिता पर विश्वास की कमी को दर्शाते हैं। यीशु मसीह ने कहा, “सो कल के लिए चिंता न करो, क्योंकि कल का दिन अपनी चिंता आप कर लेगा, आज के लिए आज ही का दुख बहुत है” (मत्ती 6:34)।

कभी कभी लोग मानसिक रूप से जानते हैं कि उन्हें वास्तविकता से जल्द ही अलग होना पड़ेगा। एक 52 वर्षीय पादरी, उन्होने इस्तीफा दे दिया, क्योंकि वे अल्जाइमर रोग की प्रारम्भिक अवस्था में थे। उन्होने कहा कि चाहे उनका मस्तिष्क उलझन में है, पर उनकी अंतरात्मा अभी भी परमेश्वर से जुड़ी हुई है। उन्होने कहा कि उन्हें अपने से अधिक बुरा अपनी पत्नी और परिवार के लिए लगता है। पर उन्हें अपने इस विश्वास से अद्भुत शांति मिलती है कि एक दिन वह स्वर्ग में होंगे, जहां पर वह उत्तमता से रहेंगे।

हमारा घमंड हमारा सबसे बड़ा दुशमन होता है जब हमें किसी की सहायता की आवश्यकता होती है

हमारा घमंड हमारा सबसे बड़ा दुशमन होता है जब हमें किसी की सहायता की आवश्यकता होती है। इसलिए हमें अपनी अक्षमता को इस रूप में देखना चाहिए कि यह हमें और नम्र यानि मसीह की छवि में बनाए। हमें इस बात को भी समझना होगा कि कुछ लोगों को दूसरो की सेवा करने में बहुत आनंद आता है। मारग्रेट, एक मसीही मित्र जो एक नर्सिंग होम में बहुत कम पगार में काम करती है, मुझसे कहा कि वह इसलिए करती है, क्योंकि इससे उसे प्रतिफल मिलता है। कई वृद्ध स्त्रियाँ जो अपने बीमार वृद्ध पतियों की सेवा करती हैं वो अपने इस प्रेम के परिश्रम में बहुत आनंद पाती हैं।

शायद इसलिए ही यीशु ने कहा “मैं प्यासा हूँ” क्योंकि वह किसी को यह अवसर प्रेम दिखाने के लिए देना चाहते थे। वह व्यक्ति जिसने स्पंज को सिरके में डुबोया और उद्धारकर्ता को दिया, उसे ऐसा करने में आनंद मिला होगा कि उसे यह छोटी सेवा का अवसर मिला। (देखें यूहन्ना 19:28-30)

अपनी विरासत की योजना बनाना

एक और परिवर्तन होगा जब हम मृत्यु को प्राप्त करेंगे। हम अपने नए घर में होंगे, जहां पर हमसे बातचीत करने के लिए हमारे प्रिय जन और मित्र नहीं होंगे। हम अपने पीछे धरती पर सब धन दौलत छोड़ जाएंगे और वह प्रतिष्ठा भी जिसे पाने के लिए हमने परिश्रम किया था। जब हम जवान थे, तब हम नहीं सोचते थे कि हमारे प्रिय किस प्रकार हमारी संपत्ति को बाँटेंगे। पर मृत्यु सबके लिए है, चाहे जवान या वृद्ध। उन्हें एक वसीयत बनानी चाहिए या कोई ट्रस्ट जो उनकी संपत्ति की देखभाल करेगा। पीछे छूटा जीवन साथी और बच्चों को यह संरक्षण मिलना चाहिए। यह हमारे वृद्ध होने पर दोहरे प्रकार से महत्वपूर्ण है।

पृथ्वी पर एकत्र की गई संपत्ति का मूल्य उतना नहीं है जितना कि वह आध्यात्मिक प्रभाव जो हमने अपने जीवित रहते हुए इस धरती पर छोड़ा है। यह बात सबको निश्चित रूप से अपने जवानी के दिनों में सोचनी चाहिए। मैं ऐसे माता पिता को जानता हूँ जिनके पास अपने बेटे बेटियों की मृत्यु के बाद की सुंदर यादे हैं। यह सत्य है कि हम जीवन में किस प्रकार के व्यक्ति हैं यह उस “सुगंध” से मालूम होता है जो हम मृत्यु के बाद अपने पीछे छोड़ जाते हैं। पौलुस ने इस सुगंध का रूपक वाक्पटु वर्णन किया है:

परंतु परमेश्वर का धन्यवाद हो, जो मसीह में सदा हमको जय के उत्सव में लिए फिरता है, और अपने ज्ञान का सुगंध हमारे द्वारा हर जगह फैलाता है। क्योंकि हम परमेश्वर के निकट उद्धार पानेवालों, और नाश होने वालों, दोनों के लिए मसीह के सुगंध हैं। कितनों के लिए तो मरने के निमित्त मृत्यु की गंध, और कितनों के लिए जीवन के निमित्त जीवन की सुगंध, और इन बातों के योग्य कौन है? (2 कुरिन्थियों 2:14-16)

आपकी “सुगंध” इस धरती पर आपके जाने के बाद बहुत समय तक रह सकती है। आपके जीवन की सुगंध का प्रभाव सदा रहेगा। पृथ्वी पर रहते हुए आपका प्रभाव और स्वर्ग में जाने के लिए इस परिवर्तन की आपको तैयारी करनी होगी।

अपने प्रदर्शन का मूल्यांकन करना

पृथ्वी पर हमारे प्रदर्शन का मूल्यांकन हमारे साथी करते हैं। पर जब हम स्वर्ग में पंहुचेंगे हमारा मूल्यांकन यीशु मसीह करेंगे। “क्योंकि अवश्य है कि हम सब का हाल मसीह के न्याय आसन के साम्हने खुल जाए, कि हर एक व्यक्ति अपने भले बुरे कामों का बदला जो उसने देह के द्वारा किए हो पाए।” (2 कुरिन्थियों 5:10)

हम विश्वास के द्वारा अनुग्रह से बचाए गए हैं, परमेश्वर ने यह कभी नहीं चाहा कि विश्वास अकेला हो

हमें इस न्याय से डरना नहीं है, आश्चर्य नहीं करना है कि दोषी पाये जाएंगे या नहीं। हमारा उद्धार तो तभी निश्चित हो गया जब हमने यीशु पर विश्वास किया। न्याय के सिंहासन के साम्हने, हमारा मूल्यांकन होगा। हमने परमेश्वर के द्वारा दी गई प्रतिभाओं या योग्यताओं का कैसे प्रयोग किया? हमने अपने समय का कैसे प्रयोग किया? कितने विश्वास से हमने अवसरों का उपयोग किया? हम विश्वास के द्वारा अनुग्रह से बचाए गए हैं, परमेश्वर ने यह कभी नहीं चाहा कि विश्वास अकेला हो। वह चाहता है कि हमारा विश्वास प्रेम और आज्ञाकारिता को प्रदर्शित करे। हमें प्रशंसा मिलेगी यदि हम ने अच्छा किया होगा। प्रशंसा नहीं मिलने पर हम बहुत नुकसान में रहेंगे।

1 कुरिन्थियों 3:10-15 में पौलुस ने मसीही जीवन को बताया है कि उसकी नींव सोने, चाँदी या बहुमूल्य पत्थरों की,” या “लकड़ी, भूसे और घास की होगी”। जो भी हम नींव में डालते हैं उसकी परीक्षा आग से होगी। मसीह पर विश्वास करने के बाद यदि हम समर्पित और आज्ञाकारी जीवन व्यतीत करते हैं, हमें पुरुस्कार मिलेगा — सोना, चाँदी और बहुमूल्य पत्थर आग में जलने से बच जाएंगे। हमें उसकी प्रशंसा और पुरुस्कार मिलेगा। अन्यथा, यीशु मसीह को ग्रहण करने के बाद भी यदि हम अनाज्ञाकारिता का जीवन जीते हैं, तो हमें उसकी प्रशंसा नहीं मिलेगी।

आजकल प्राय: मसीही न्याय-सिंहासन को हल्के में लेते हैं। आज के प्रभावशाली समाज में विश्वासी संसार की दोनों उत्तम बातों को चाहते हैं। वह अपने आप को इस बहकावे में रखते हैं कि पुरुस्कार या प्रतिफल कम या अधिक हों, इसका बहुत महत्व नहीं है। पर प्रेरित पौलूस ने न्याय सिंहासन को इस दृष्टिकोण से नहीं देखा है। वह 2 कुरिन्थियों 5:11 में कहता है, “सो प्रभु का भय मान कर हम लोगों को समझाते हैं और परमेश्वर पर हमारा हाल प्रगट है; और मेरी आशा यह है, कि तुम्हारे विवेक पर भी परखा हुआ होगा”। पौलुस इस भय से कि उसके स्वामी को दुख पंहुचेगा, वह ढोंगी या पाखंडी नहीं बनना चाहता था।

नीतिवचन 16:6, “यहोवा के भय मानने के द्वारा मनुष्य बुराई करने से बच जाते हैं”। एक सही प्रकार का न्याय का भय वह है जब भय का प्रक्षालन (सफाई) होता है। हम बड़ी गलती करते हैं जब हम परमेश्वर के न्याय सिंहासन के साम्हने खड़े होने के समय को हल्के में लेते हैं।

यीशु को देखना और उसके शब्दों ”धन्य है” को सुनना यह ही हमारे अस्तित्व का समापन होगा।

यीशु को देखना और उसके शब्दों ”धन्य है” को सुनना यह ही हमारे अस्तित्व का समापन होगा।

परमेश्वर के न्याय को हल्के में नहीं लेना है, उसकी बेसब्री से प्रतीक्षा करनी होगी। आज्ञाकारी के लिए, यह मुकुट पाने का दिन होगा, जब हम उद्धारकर्त्ता के साम्हने खड़ा होंगे जिससे हमने प्रेम किया और जिसकी हमने प्रशंसा करी। प्रेरित पौलूस इस अवसर को एक उत्सव के रूप में देखते हैं जिसे “धार्मिकता का मुकुट” उन सब के लिए रखा हुआ है, “जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं” (2 तीमुथियुस 4:8)।

वह जो हमारे किए क्रूस पर गया वह ही हमारा न्यायकर्ता होगा, जिसने मृत्यु की शक्ति को हमारे लिए तोड़ा। वह जो हमारे एक समझदार मित्र और मध्यस्थ के रूप में स्वर्ग में रहता है। उसे देखना और उसके शब्द “धन्य है” सुनना हमारे अस्तित्व का समापन होगा।

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सराएल इसराएल का राजा दाऊद ने आरंभ अच्छा किया था (1 शमूएल 16 से 1 राजा 2:10; 1 इतिहास 1-29)। जब वह बालक था, बहुत बहादुर था और परमेश्वर पर विश्वास के कारण गोलियत को मार गिराया। वह एक बहुत प्रतिभाशाली कवि, संगीतज्ञ, और लेखक था। नबी शमूएल ने उसे “यहोवा के मन के अनुसार” कह कर संबोधित किया (1 शमूएल 13:14)। वह बहुत महान् राजा था तब भी उसने मूर्तिपूजा जैसे काम किए, उसके कई पत्नियाँ थीं। जब वह 50 वर्ष का ही था, उसने बेत्शेबा के साथ व्यभियाचार किया और उसके पति की मृत्यु की योजना बनाई।

दाऊद के अंतिम वर्ष बताते हैं कि उसने अच्छे से तैयारी नहीं करी। जब दाऊद ने सुना कि उसके बेटे अम्नोन ने उसकी बेटी तमार का बलात्कार किया है। दाऊद बहुत क्रोधित हुआ पर कुछ किया नहीं। बाद में जब उसके पुत्र अबशालोम ने अम्मोन को मरवा दिया, उसने दुख मनाया और अबशालोम से बात करनी चाही, पर फिर उससे मिलने का कोई प्रयास नहीं किया (2 शमूएल 13-14)। कुछ वर्षों बाद दाऊद ने जनगणना कारवाई ताकि अपनी सेना की शक्ति मालूम कर सके, यद्यपि उसे मालूम था कि परमेश्वर ने उसके लोगों को बताया है कि उन्हें घोड़ों रथों और सेना मे विश्वास नहीं करना है केवल परमेश्वर पर करना है (व्यवस्थाविवरण 17:15-16)। यहाँ तक कि अपनी मृत्यु शैय्या पर भी, दाऊद ने परमेश्वर की आज्ञा, कि शत्रुओं से प्रेम करो के विपरीत किया जब उसने सुलैमान को योआब और शिमी को मारने की आज्ञा दी। शायद उसका इन दोनों व्यक्तियों पर क्रोधित होना ठीक था, परंतु बेहतर होता उस समय अपने लिखे भजनो को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करता, और बदले की भावना से दूर रहता।

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पौलुस एक पढ़ा लिखा फरीसी और एक उत्साही यहूदी था (प्रेरितों के काम 9:28)। क्योंकि वह मूसा के नियमों के प्रति बहुत वफादार था, उसकी अपनी समझ के अनुसार, उन सुसमाचारों से घृणा करता था जो उस समय मसीहियों द्वारा प्रचार किए जा रहे थे। स्तिफनुस को पत्थरवाह करने में रजामंदी उसकी थी, पर उसका यीशु मसीह के साथ अद्भुत वार्तालाप हुआ जब वह उसके साम्हने प्रकट हुआ। उस क्षण उसने कहा, “हे प्रभु, तू कौन है, और मुझसे क्या चाहता है?” (प्रेरितों के काम 9:6)। यही उसके जीवन का जुनून बन गया।

पौलूस ने परमेश्वर की बिना थके, रुके 30 वर्ष तक सेवा करी, अकल्पनीय कठिनाइयों का सामना करा (2 कुरिन्थियों 11:23-33)। वह कभी डगमगाया नहीं, यहाँ तक कि उसके साथी विश्वासियों ने उसको गलत समझा और बदनाम किया (फिलिप्पियों 1:14-18).

अंत में पौलुस पकड़ा गया और उसको काल कोठरी में बंद किया और मृत्यु की सज़ा सुनाई गई, शायद सिर कलम कर। यह जान कर कि उसका अंत निकट है, उसने लिखा:

“मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूँ मैंने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैंने विश्वास की रखवाली की है। भविष्य में मेरे लिए धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है, जिसे प्रभु, जो धर्मी, और न्यायी है, मुझे उस दिन देगा और मुझे ही नहीं, वरन् उन सबको भी, जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं”। (2 तिमु 4:7-8)

जब पौलूस ने प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास किया, तब पहले दिन से ही उसने एक अनुकरणीय जीवन जीआ। इसमे कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि उसने अपने जीवन का अंत विजय (जीत) के साथ किया! प्रेरित पौलुस के विषय में हम निश्चय रूप से कह सकते हैं, “उसने अच्छे से समाप्त किया”।

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मिशिगन क़ॉन्ग्रेसमेन पॉल हेनरी जो कि कैंसर से जूझने के कारण बिस्तर पर थे, उनने अपनी स्थिति के विषय में संक्षेप में बताया, “मेरी परमेश्वर के साथ यात्रा जारी है।” कुछ समय बाद उनकी कैन्सर के कारण दर्दनाक मृत्यु हुई। यह आसान मौत नहीं थी, पर हेनरी के विषय में यह कहा जा सकता है कि उनने अच्छे से समाप्त किया। वह अपने पीछे जीवंत विश्वास और परिवर्तित जीवन की सुगंध छोड़ गए। .

आप भी अच्छे से समाप्त कर सकते हैं। ऐसा करने के लिए आपको यह निश्चय करना होगा कि आप परमेश्वर के परिवार के सदस्य हैं। यदि आपने ऐसा नहीं करा है, तो आप अपने पाप को स्वीकार कर परमेश्वर को क्षमा की आवश्यकता बता सकते हैं। इस बात पर विश्वास करें कि बाइबल यीशु की मृत्यु, जो आपके लिए हुई, और आप उसको उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार कर लें (देखें रोमियों 3:23; 6:23; 10:9-10,13)। यह आपको सही मार्ग पर ले जाएगी, पर यह मात्र आपकी यात्रा का आरंभ है।

यदि आप “जीना और मरना खुशी से” चाहते हैं,” जैसे कि जब में लड़का था, एक पुराने प्रवचन के दौरान कहा गया, तुम्हें अपने जीवन का लक्ष्य “परमेश्वर के प्रति आभार” प्रगट करना होना चाहिए। तुम्हें आत्मिक रूप से उसकी संगति में बढ़ना होगा, अपने पापों की क्षमा मांगते हुए (1 यूहन्ना 1:8-9), यहाँ तक कि अपने शत्रुओं से प्रेम करना (मत्ती 5:44), और पवित्र आत्मा को अपने जीवन को नियंत्रण में लेने दो ताकि तुम उससे “भरे” रहो (इफिसियों 5:18-21)।

यदि आप इस मार्ग का अनुकरण करेंगे, परमेश्वर के प्रति आभार प्रकट कर के, तो आप अच्छा समाप्त करेंगे। इससे अधिक कोई और क्या चाहेगा?

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