बोलने से पहले विचार करें

 

यहोवा, मेरे मुख पर पहरा बैठा, मेरे होठों के द्वार की रखवाली कर! भजन 141:3

 

चुअंग अपनी पत्नी से नाराज़ हो गया क्योंकि वह उस रेस्टोरेंट का मार्ग भूल गयी थी जिसमें वे भोजन करना चाहते थे l घर लौटने के लिए हवाई जहाज पकड़ने से पूर्व वे परिवार के रूप में अपनी छुट्टियों का समापन जापान में एक शानदार भोजन पार्टी के साथ करना चाहते थे l अब देर हो रही थी और भोजन करना मुश्किल लग रहा था l निराश होकर, चुअंग ने ख़राब आयोजन के लिए अपनी पत्नी की आलोचना की l

 

बाद में अपने शब्दों के लिए पछताया l वह बहुत अधिक कठोर हो गया था, और उसने यह भी महसूस किया कि वह खुद ही होटल का पता लगा सकता था और दूसरे सात दिनों के अच्छे आयोजन के लिए पत्नी को धन्यवाद देना भूल गया l

 

हममें से बहुत लोग चुअंग के समान हो सकते हैं l हम क्रोधित होकर अपने शब्दों को अनियंत्रित होने देते हैं l हमारे लिए भजनकार के साथ प्रार्थना करना कितना ज़रूरी है : “हे यहोवा, मेरे मुख पर पहरा बैठा, मेरे होठों के द्वार की रखवाली कर!” (भजन 141:3 ) l

 

किन्तु हम ऐसा कैसे करें? यहाँ एक लाभदायक सलाह है : बोलने से पहले विचार करें l क्या आपके शब्द उत्तम, लाभदायक, अनुग्रह से परिपूर्ण और दयालु हैं? (इफि.4:29-32) l

 

अपने मुँह पर पहरा बैठाने के लिए हमें क्रोध आने पर अपना मुँह बंद रखना होगा और कि हमें सही सुर में सही शब्द बोलने के लिए प्रभु से सहायता मांगनी होगी अथवा, शायद चुप रहना होगा l अपनी बोली नियंत्रित रखना जीवन भर का कार्य है l धन्यवाद हो, परमेश्वर हममें कार्य कर रहा है ताकि हम “उसकी आज्ञा [मानें] और उसकी इच्छा पर चल सकें” (फ़िलि. 2:13)

 

मनभावने वचन मधु भरे छत्ते के समान प्राणों को मीठे लगते है, और हड्डियों को हरी-भरी करते है l नीतिवचन 16:24