क्रोधित प्रार्थना
मुर्ख अपने सारे मन की बात खोल देता है, परन्तु बुद्धिमान अपने मन को …. शांत कर देता है l – नीतिवचन 29 : 11
सर्दियों में एक दिन पड़ोसी खिडकियों से मुझे देखकर विचारहीन थे l मैं बेलचा पकड़े, क्रोध में चिल्लाते हुए नाले से बर्फ का बड़ा टुकड़ा हटा रहा था l प्रत्येक चोट के साथ, मैं एक ही बात हेतु कई तरह से विनती कर रहा था : “मैं अक्षम हूँ, असमर्थ हूँ l” जिम्मेदारियां बहुत हैं, एक सहायक होकर, मुझे यह बर्फ भी हटाना था, जो असहनीय था l
मेरा क्रोध ढेरों झूठ में लिपटा था : “मुझे इससे बेहतर चाहिए l” “परमेश्वर आखिरकार अपर्याप्त है l” “कोई चिंता नहीं करता l” किन्तु हम अपने क्रोध से बन्धकर कड़वाहट में उलझकर आगे नहीं बढ़ पाते l और क्रोध का एकमात्र हल सच्चाई है l
सच्चाई यह है कि परमेश्वर हमारे लायक अनुसार नहीं देता; बल्कि अनुग्रह देता है l “हे प्रभु, तू भला और क्षमा करनेवाला है, और जितने तुझे पुकारते हैं उन सभों के लिए तू अति करुणामय है”(भजन 86:5) l हमारे देखने से परे परमेश्वर पर्याप्त से अधिक है l उसकी सामर्थ्य पर्याप्त है (2 कुरिं.12:9) l फिर भी ऐसा आश्वासन प्राप्त करने से पूर्व, हमें पीछे हटकर अपने प्रयास का बेलचा रखकर यीशु का हाथ थाम लेना है जिसने अपनी करुणा और अनुग्रह दिया है l
परमेश्वर हमारे क्रोध का प्रतिउत्तर देने हेतु बहुत बड़ा और अपने समय में आगे का मार्ग दिखने हेतु बहुत प्रेमी है l