पढ़ें: मत्ती 6:25-34

इसलिये मैं तुम से कहता हूँ कि अपने प्राण के लिये यह चिन्ता न करना कि हम क्या खाएँगे और क्या पीएँगे; और न अपने शरीर के लिये कि क्या पहिनेंगे (पद 25)।

एक बच्चे के रूप में, मुझे स्कूल में दोस्त बनाने की चिंता रहती थी। एक कॉलेज छात्र के रूप में, मुझे ग्रेजुएशन के बाद काम पाने की चिंता थी। आज, मेरी चिंता मेरे माता-पिता के स्वास्थ्य और मेरी किताबों की बिक्री की है।आप किस बात की चिन्ता करते हो? एक क्षण रुकें और एक मानसिक सूची बनाएं। आपकी कुछ चिंताएँ मेरी तरह ही हो सकती हैं।

यीशु ने हमसे कहा कि “हर दिन के जीवन के बारे में चिंता न करें” (मत्ती 6:25) और कहा कि इसके पीछे दो अच्छे कारण हैं। एक कारण व्यावहारिक है: जब हम चिंता करते हैं, तो हम उस चीज़ पर शक्ति बर्बाद करते हैं जो कभी नहीं हो सकती। ध्यान दें कि आपकी कितनी चिंताएँ भविष्य से संबंधित हैं – कि आप बेरोजगार होंगे, कभी शादी नहीं होगी, या आपका प्रोजेक्ट विफल हो जाएगा। सच तो यह है कि जिन चीज़ों के बारे में हम चिंता करते हैं उनमें से अधिकांश सफल नहीं होंगी और जो सफल होंगी उनमें चिंता करने से रत्ती भर भी फ़र्क नहीं पड़ेगा। “तुम में कौन है, जो चिन्ता करके अपनी अवस्था में एक घड़ी भी बढ़ा सकता है?” यीशु ने पूछा (पद 27)। वे नहीं कर सकते। “कल की चिन्ता न करो” उन्होंने कहा। “आज के लिये आज ही का दु:ख बहुत है” (पद 34)।

दूसरा कारण आध्यात्मविद्या संबंधी है: चिंता इस बात से इनकार करती है कि परमेश्वर अपनी सामर्थ और भलाई के द्वारा हमारी जरूरतों को पूरा करेगा। यीशु ने कहा कि उसका पिता हमारे समेत सारी सृष्टि की “बहुत चिंता करता है”! (पद 30)। और वह “हमारी सभी जरूरतों को जानता है” और हमें “वह सब कुछ देगा जो हमें चाहिए” (पद 32-33)।

अपनी बात स्पष्ट करने के लिए, यीशु ने प्राकृतिक संसार पर एक निर्देशित विचार प्रदान किया। “पक्षियों को देखो,” उन्होंने कहा। देखो परमेश्वर उन्हें कैसे “खिलाते” हैं (पद 26)। उन्होंने आगे कहा, “जंगली सोसनों पर ध्यान करो”, उन्होंने कितने सुंदर वस्त्र पहने हैं (पद 28-29)। परमेश्वर अभी भी सृष्टि के लिए प्रदान कर रहे हैं। यदि वह पक्षियों और फूलों की देखभाल करता है, तो क्या वह आपकी, अपने बच्चे की देखभाल नहीं करेगा? क्या हम आज की ज़रूरतों और चुनौतियों के लिए परमेश्वर पर भरोसा रख सकते हैं। क्योंकि वह वास्तविक है और वह वहाँ है, और हमारी काल्पनिक चिंताओं से कहीं अधिक महान है।

—शेरिडन वोयसे

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फिलिप्पियों 4:6 पढ़ें और विचार करें कि पौलुस हमें हमारी चिंताओं के साथ क्या करने का निर्देश देता है।

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आपकी कितनी चिंताएँ भविष्य को लेकर संबंधित हैं? जब आप इस बात की चिंता करने के बजाय कि क्या हो सकता है, उस पर भरोसा करना चाहते हैं तो परमेश्वर की शक्ति और उपस्थिति क्या प्रदान करती है?