धन

कोई मनुष्य दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता, क्योंकि वह एक से बैर ओर दूसरे से प्रेम रखेगा, वा एक से मिला रहेगा और दूसरे को तुच्छ जानेगा; “तुम परमेश्वर और धन दोनो की सेवा नहीं कर सकते”। —मत्ती 6:24

अपनी नौकरी के प्रारंभिक दिनों में मैंने नौकरी को एक मिशन के रूप में लिया जबकि अन्य कंपनियां मुझे प्रधान पद उपलब्ध करा रही थी हमारा परिवार किसी अन्य नौकरी की तलाश में न था क्योंकि मुझे अपनी नौकरी में तात्कालिक स्थान से संतुष्टि थी।

परंतु पैसा…

तब मैंने अपने पिता को फोन किया जो कि इस समय 70 वर्ष के थे और उन्हें प्रस्थिती से अवगत कराया। उनके दिए उत्तर छोटे और स्पष्ट थे। उन्होंने कहा पैसे के बारे में तो सोचना भी नहीं, कि तुम क्या करोगे?” मैंने तुरंत अपनी सोच को पहचान लिया कि “ मैं मात्र पैसे के ही कारण अपनी उस नौकरी को छोड़ रहा हूं जिससे मैं प्रेम करता हूं!” पिताजी का धन्यवाद।

यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश में एक बड़े भाग में धन के विषय चर्चा की। उन्होंने हमें धन बटोरने के लिए नहीं बल्कि अपनी प्रतिदिन की रोटी के लिए प्रार्थना करना सिखाया (मत्ती 6:11) उसने पृथ्वी पर धन जमा करने के विरुद्ध चेतावनी दी (पद 19) पहिले उसके राज्य और धर्म की खोज करो यीशु ने कहा (पद 33)

पैसा मायने रखता है लेकिन पैसे को हमारा निर्णय लेने की प्रक्रिया पर हावी नहीं होना चाहिए।

-टिम गुस्ताफन

 

 

banner image