लगभग 2900 साल पहले, राजा यहोशापात और इस्राएल देश ने जैसे आज हमारा देश सामना कर रहा है एक ऐसी ही स्थिति का सामना किया। एक विशाल सेना उन्हें जीतने के लिए उन की ओर आ रही थी, एक ऐसी सेना जिसके विरूद्ध वे कोई मुकाबला नहीं कर सकते थे। वास्तविक रूप से उन के पास ऐसा कुछ भी नहीं था जो वे उनसे लड़ने या उनके विरूद्ध खड़े होने के लिए कर सकते थे। डर भारी था और सब कुछ अस्त व्यस्त था। वैसा ही आज हम महसूस कर रहे हैं जब हम अपने आसपास, अपने ही घरों और परिवार में कई मामलों में विनाश को देखते हैं। हम क्या कर सकते हैं? हम स्थिति का सामना कैसे कर सकते हैं? हम इस वायरस के विरूद्ध कैसे खड़े हो सकते हैं? अस्पतालों में बिस्तर नहीं हैं, दवाओं और ऑक्सीजन की कमी है, हर जगह अराजकता है और भय व्याप्त है।
आइए, हम जानें कि किस तरह से यहोशापात और इस्राएल ने उन परिस्थितियों का सामना किया और हम उनसे क्या सीख सकते हैं और अपने वर्तमान परिदृश्य पर कैसे लागू कर सकते हैं
2 इतिहास अध्याय 20 में हम पढ़ते हैं:
“इसके बाद मोआबियों और अम्मोनियों ने और उनके साथ कई मूनियों ने युद्ध करने के लिए यहोशापात पर चढ़ाई की। तब लोगों ने आकर यहोशापात को बता दिया,
“ताल के पार से एदोम देश की ओर से एक बड़ी भीड़ तुझ पर चढ़ाई कर रही है; और देख, वह हसासोन्तामार तक जो एनगदी भी कहलाता है, पहुँच गई है।”
तब यहोशापात यहोवा के भवन में नये आँगन के सामने यहूदियों और यरूशलेमियों की मण्डली में खड़ा होकर यह कहने लगा,
“हे हमारे पितरों के परमेश्वर यहोवा! क्या तू स्वर्ग में परमेश्वर नहीं हैं? और क्या तू जाति जाति के सब राज्यों के ऊपर प्रभुता नहीं करता? और क्या तेरे हाथ में ऐसा बल और पराक्रम नहीं है कि तेरा सामना कोई नहीं कर सकता? हे हमारे परमेश्वर! क्या तू ने देश के निवासियों को अपनी प्रजा इस्राएल के सामने से निकालकर इन्हें अपने मित्र अब्राहम के वंश को सदा के लिए नहीं ले दिया? वे इसमें बस गए और इस में तेरे नाम का एक पवित्रस्थान बनाकर कहा, ‘यदि तलवार या मरी अथवा अकाल या और कोई विपत्ति हम पर पड़े, तौभी हम इसी भवन के सामने और तेरे सामने (तेरा नाम तो अस भवन में बसा है) खड़े होकर, अपने क्लेश के कारण तेरी दोहाई देंगे और तू सुनकर बचाएगा।’ और अब अम्मोनी और मोआबी और सेईर के पहाड़ी देश के लोग जिन पर तू ने इस्राएल को मिस्त्र देश से आते समय चढ़ाई करने न दिया, और वे उनकी ओर से मुड़ गए और उनका विनाश न किया, देख वे ही लोग तेरे दिए हुए अधिकार के इस देश में से जिसका अधिकार तू ने हमें दिया है, हम को निकालकर कैसा बदला हमें दे रहे हैं। हे हमारे परमेश्वर, क्या तू उनका न्याय न करेगा? यह जो बड़ी भीड़ हम पर चढ़ाई कर रही है, उसके सामने हमारा तो बस नहीं चलता और हमें कुछ सूझता नहीं कि क्या करना चाहिए? परन्तु हमारी आँखे तेरी ओर लगी हैं।”
सब यहूदी अपने अपने बालबच्चों, स्त्रियों और पुत्रों समेत यहोवा के सम्मुख खड़े रहे। तब आसाप के वंश में से यहजीएल नामक एक लेवीय जो जकर्याह का पुत्र और बनायाह का पोता और मत्तन्याह के पुत्र यीएल का परपोता था, उसमें मण्डली के बीच यहोवा का आत्मा समाया। तब वह कहने लगा,
“हे सब यहूदियों, हे यरूशलेम के रहनेवालो, हे राजा यहोशापात, तुम सब ध्यान दो; यहोवा तुम से यों कहता है, ‘तुम इस बड़ी भीड़ से मत डरो और तुम्हारा मन कच्चा न हो; क्योंकि युद्ध तुम्हारा नहीं, परमेश्वर का है। कल उनका सामना करने को जाना। देखो वे सीस की चढ़ाई पर चढ़े आते हैं और यरूएल नामक जँगल के सामने नाले के सिरे पर तुम्हें मिलेंगे। इस लड़ाई में तुम्हें लड़ना न होगा; हे यहूदा, और हे यरूशलेम, ठहरे रहना, और खड़े रहकर यहोवा की ओर से अपना बचाव देखना। मत डरो, और तुम्हारा मन कच्चा न हो; कल उनका सामना करने को चलना और यहोवा तुम्हारे साथ रहेगा।”
और यहोशापात भूमि की ओर मुँह करके झुका और सब यहूदियों और यरूशलेम के निवासीयों ने यहोवा के सामने गिरके यहोवा को दण्डवत् किया। कहातियों और कोरहियों में से कुछ लेवीय खड़े होकर इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की स्तुति अत्यन्त ऊँचे स्वर से करने लगे। वे सबेरे उठकर तकोआ के जँगल की ओर निकल गए;
और चलते समय यहोशापात ने खड़े होकर कहा,
“हे यहूदियो, हे यरूशलेम के निवासियों, मेरी सुनो, अपने परमेश्वर यहोवा पर विश्वास रखो, तब तुम स्थिर रहोगे; उसके नबियों की प्रतीति करो, तब तुम कृतार्थ हो जाओगे।”
तब उसने प्रजा के साथ सम्मति करके कितनों को ठहराया, जो कि पवित्रता से शोभायमान होकर हथियारबन्दों के आगे आगे चलते हुए यहोवा के गीत गाएँ, और यह कहते हुए उसकी स्तुति करें,
“यहोवा का धन्यवाद करो,
क्योंकी उसकी करूणा सदा की है।”
जिस समय वे गाकर स्तुति करने लगे, उसी समय यहोवा ने अम्मोनियों, मोआबियों और सेईर के पहाड़ी देश के लोगों पर जो यहूदा के विरूद्ध आ रहे थे, घातकों को बैठा दिया और वे मारे गए। क्योंकि अम्मोनियों और मोआबियों ने सेईर के पहाड़ी देश के निवासियों को डराने और सत्यानाश करने के लिए उन पर चढ़ाई की, और जब वे सेईर के पहाड़ी देश के निवासियों का अन्त कर चुके, तब उन सभों ने एक दूसरे का नाश करने में हाथ लगाया। जब यहूदियों ने जंगल की चौकी पर पहुँचकर उस भीड़ की ओर दृष्टि की, तब क्या देखा कि वे भूमि पर पड़े हुए शव हैं; और कोई नहीं बचा। जब यहोशापात और उसकी प्रजा लूट लेने को गए और शवों के बीच बहुत-सी सम्पत्ति और मनभावने गहने मिले; उन्होंने इतने गहने उतार लिये कि उनको न ले जा सके, वरन् लूट इतनी मिली कि बटोरते बटोरते तीन दिन बीत गए। चौथे दिन वे बराका नामक तराई में इकट्ठा हुए और वहाँ यहोवा का धन्यवाद किया; इस कारण उस स्थान का नाम बराका की तराई पड़ा, जो आज तक है। तब वे, अर्थात यहूदा और यरूशलेम नगर के सब पुरूष और उनके आगे आगे यहोशापात, आनन्द के साथ यरूशलेम लौटे क्योंकि यहोवा ने उन्हें शत्रुओं पर आनन्दित किया था। अतः वे सारंगियाँ, वीणाएँ और तुरहियाँ बजाते हुए यरूशलेम में यहोवा के भवन को आए। जब देश देश के सब राज्यों के लोगों ने सुना कि इस्राएल के शत्रुओं से यहोवा लड़ा, तब उनके मन में परमेश्वर का डर समा गया। इस प्रकार यहोशापात के राज्य को चैन मिला, क्योंकि उसके परमेश्वर ने उसे चारों ओर से विश्राम दिया।”
निश्चित रूप से, परमेश्वर कल, आज और हमेशा के लिए एक सा है। निश्चित रूप से वह सच्चा है इसी प्रकार से उसके वादे भी सच हैं। आओ जो काम उस ने क्रूस पर समाप्त किया है उस पर विश्वास करें। आइए भजन 91 में की गई प्रतिज्ञाओं पर हम विश्वास करें क्योंकि हमने उससे अपना प्रेम दर्शाया है, इसलिए वह हमारा उद्धार करेगा। जब हम उसे बुलाएंगे वह हमें जवाब देगा और वह मुसीबत में हमारे साथ होगा। वह हमें छुड़ायेगा और हमें सम्मान देगा और लंबे जीवन के साथ, वह हमें संतुष्ट करेगा और हमें अपना उद्धार दिखाएगा!