नयी आशा का चुनाव
“… मैंने जीवन और मरण, आशीष और शाप को तुम्हारे आगे रखा है; इसलिए तू जीवन ही को अपना ले, कि तू और तेरा वंश दोनों जीवित रहें l” ~ व्यवस्थाविवरण 30:19
जब लॉकडाउन पहली बार घोषित किया गया था तो सब कुछ असंगत लग रहा था l जीवन के ठहर जाने के कारण सांसारिक दिनचर्या बाधित हो गयी l हालाँकि, दो महीने और लॉकडाउन के चार विस्तारों के बाद, हम अब एक नया ‘सामान्य,’ एक नयी जीवन शैली के लिए अनुकूलित हो गए हैं l मसीही के रूप में, हमने इस समय के दौरान परमेश्वर के वचन से भरोसा हासिल करने की कोशिश की है l हमनें बाइबल से कई उत्साहवर्धक प्रतिज्ञाओं का दावा किया है विशेष रूप से बाइबल के ऐसे पद जो हमें विश्वास दिलाते हैं कि परमेश्वर हमारा आश्रय, हमारा शरणस्थान, हमारा प्रदाता, हमारा दिलासा देने वाला, आदि है … l जबकि कुछ लोगों के लिए परमेश्वर पर भरोसा करने की यह यात्रा आसान है, उनकी अच्छी नौकरियों और बड़े बैंक बैलेंस के लिए धन्यवाद, वहीं एक समय के भोजन के लिए संघर्ष कर रहे अन्य लोगों को सम्पूर्ण प्रोत्साहन की आवश्यक है जो उन्हें चाहिये l
जब परमेश्वर के शक्तिशाली हाथ से इस्राएलियों को मिस्र से बाहर लाया गया तो वे भी एक नए मार्ग पर संघर्ष किये – एक नयी यात्रा, जिस पर वे अज्ञात की ओर जा रहे थे l खोजकर्ताओं के रूप में उनके पास कोई पूर्व अनुभव नहीं थे, वे युद्ध के लिए प्रशिक्षित नहीं थे, उनके दमन के वर्षों ने उनके भीतर अनिश्चित्तता, भय, संदेह और संघर्ष की भावना पैदा की थी l इसके अतिरिक्त, उजाड़ भूमि में जीवन की कठियाइयों ने अब उन्हें अभिभूत किया l उनका अगला भोजन कहा से आएगा की अप्रत्याशितता उनके विश्वास के लिए एक चुनौती थी l मिस्र में विपत्तियों से उनका संकीर्ण बचाव भी उनकी मदद नहीं किया, और परमेश्वर पर भरोसा करना मुशिकल था l प्रत्येक समूह ने संदेह, हताशा और भय के शब्द आपस में फुसफुसाए जो अवसाद लेकर आया l क्या वे इस मूसा पर भरोसा कर सकते थे जो उनका नेतृत्व कर रहा था? क्या उनके पूर्वजों का परमेश्वर 400 साल बाद वास्तव में उनके बचाव में आया था? क्या भविष्य के लिए भी कोई योजना थी? क्या किसी को पता था कि वे इस मरुभूमि में कहाँ जा रहे थे?
उनकी तात्कालिक चिंताओं ने उन्हें अपनी नयी स्वतंत्रता का आनंद लेने से रोक दिया l मिस्र में उनका निर्मम शोषण किया गया था, उनके बच्चों को नील नदी में मार दिया गया था और वे बिना वेतन के दासत्व में थे, लेकिन अब इस्राएली इस नयी यात्रा को लेकर बहुत चिंतित थे, उनकी चिंता ने उन्हें अपने परिवारों के साथ आराम के इस समय का अननद लेने से रोक दिया l उन्होंने अपने दिन परमेश्वर और उसके अगुवा के खिलाफ बुड़बुड़ाने और जल्दबाजी से भरे भाषणों से भरे थे l दासत्व में उन्होंने प्रभु को उस प्रतिज्ञा को पूरी करने की दोहाई दी जो उसने अब्राहम के साथ की थी l उन्हें विश्वास था कि वह उन्हें उस देश में ले आएगा जिसमें दूध और शहद की धाराएँ बहती हैं, लेकिन अब, प्रतिज्ञा के इस देश के मार्ग में वे चिंतित थे l हम कहाँ रहेंगे? क्या हम देश को जीत सकते हैं? परमेश्वर को उनके भविष्य को सँभालने देने में और अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने की तुलना में मिस्र की क्रूरता अचानक अधिक आरामदायक लग रही थी l वे मिस्र में के आँसू जल्द भूल गए थे, घास दूसरी तरफ अधिक हरी लग रही थी l
वर्तमान में हमारा अपना अनुभव इस्राएलियों से बहुत अलग नहीं है l हम भी इस तालाबंदी के दौरान अपने ही तरह के मरुभूमि के अनुभव से गुजर रहे हैं l शब्द और दृश्य भिन्न हो सकते हैं, लेकिन फिर भी इनमें बहुत अधिक समानताएँ हैं l हमनें भी कभी-कभी अपने हृदयों में और अन्य समय में ऊंचे स्वर में शिकायतें की हैं, हमारे पास भी अनिश्चितताएं हैं और डर है जो भविष्य के बारे में हमारे विचारों में भर जाती हैं l अब हम घर से काम करने और अपने परिवारों के साथ समय बिताने की जिस आजादी का आनंद उठाते हैं अचानक बोझ सा महसूस होता है, जबकि कुछ महीने पहले तक काम पर जाना घर का काम महसूस होता था l लेकिन इस महान आश्वासन के लिए परमेश्वर का धन्यवाद, जिस परमेश्वर ने इस्राएलियों को कनान तक पहुँचाया, वह हमें भी आगे ले जाता है l वह हमारा सँभालने वाला है, और उसने जीवन के इस पथ पर हमारे साथ यात्रा करने का वादा किया है l इसलिए, इस विश्वास के साथ हम इस स्थिति के लिए अपने दृष्टिकोण में इस्राएलियों से अलग हों l
हम बद्बदाने और शिकायत करने के बजाय उसकी प्रशंसा करने का चयन करें,
जब चीजें समझ में नहीं आए, तब भी हम उसे धन्यवाद देने का चुनाव करें,
आइये हम आशा फैलाने का चुनाव करें जो किसी की ज़रूरत है,
और जब तक समय हैं उसकी उपस्थिति में प्रतीक्षा करें l
आज जिस व्यक्ति को ज़रूरत है, उसके लिए मसीह के प्रोत्साहन का साधन बनें l आशा को लाएँ, आनंद स्थापित करें, और जीवन को चुने l
– -जॉन दुरईस्वामी