और मनों को जांचने वाला जानता है,कि आत्मा की मनसा क्या है क्योंकि वह पवित्र लोगों के लिए परमेश्वर की इच्छा के अनुसार बिनती करता हैI रोमियो 8:27
मैंने अस्पताल में दम तोड़ रहे युवक से पूछा कि उसके पास कोई प्रार्थना की विनती है,नामों और चिंताओं की एक औपचारिक प्रार्थना को जल्दी-जल्दी दोहराने के बाद उसने झेंपते हुए मेरी और देख कर कहा कि “मुझे सिखाया गया था की मैं अपने लिये प्रार्थना न करूँI”
वह मर रहा थाI वह दर्द की दवा ले रहा था जो उसे उसके अंतिम दिनों में राहत पहुंचा सकें, फिर भी उसे यह विश्वास नहीं था कि अपने लिए प्रार्थना करना उचित हैI मैंने उसे याद दिलाया कि अगर वह अपनी विनती को शब्दों में नहीं ढाल सकता तो परमेश्वर का आत्मा उसके लिए विनती कर सकता हैI
परमेश्वर हमारे ह्रदय और मनों को जानता हैI वह जानता है कि हमें किस चीज़ की आव्यशकता है और वादा करता है कि वह “परमेश्वर की इच्छा” के अनुसार हमें देगा (रोमियो 8:27) कभी-कभी जीवन शब्दों को प्रार्थना में बयान करना या कहना इतना कठिन बना देता है कि हम प्रार्थना को शब्दों में बयान नहीं कर पाते हैं कि हमें परमेश्वर से क्या चाहिए और समझ नहीं पाते है कि कैसे प्रार्थना की जायेI शायद हम सिर्फ “आहें ही भर पाते है जो बयान से बाहर हैI”(वचन-26) परंतु पौलुस के शब्द हमें दिलासा और आश्वासन देते है कि हमारे पास एक महान मध्यस्थ के रूप में पवित्र आत्मा हैI आत्मा वास्तव में हमारी तरफ़ से हमारे लिए परमेश्वर से बातें करता है (वचन-26) परमेश्वर जानता हैI परमेश्वर सुनता हैI परमेश्वर की इच्छा –उसकी सिद्ध योजना– उसकी इच्छा पूरी होI
इस आश्वासन में विश्राम करें जैसे आप परमेश्वर से अपनी विन्तियों के उत्तर की प्रतीक्षा करते है—जो भी आपकी विनती रही हो चाहे वह आपने बोल कर कही हो या सिर्फ आप के ह्रदय या मन में ही होI
आपके जीवन में कौन सी प्रार्थनाएं है जिनका उत्तर आपको बिना बोले ही मिल गया हो? आप परमेश्वर को अपनी तरफ़ से विनती करने के लिए कैसे धन्वाद दे सकते है?
स्वर्गीय पिता, धन्यवाद आपकी आत्मा के लिए जो मेरी तरफ़ से विनती करता है तब भी जब अनिश्चित रहता हूं कि मैं क्या और कैसे प्रार्थना करूँ?
रोमियो 8:26-30
26 पवित्र आत्मा भी हमारी दुर्बलता में हमारी सहायता करता है। हम यह नहीं जानते कि हमें कैसे प्रार्थना करना चाहिए, किन्तु आत्मा स्वयं आहें भरकर—जो शब्दों द्वारा प्रकट नहीं की जा सकती हैं—हमारे लिए विनती करता है। 27 परमेश्वर हमारे हृदय का रहस्य जानता है। वह समझता है कि आत्मा का अभिप्राय क्या है,क्योंकि आत्मा परमेश्वर की इच्छानुसार सन्तों के लिए विनती करता है।28 हम जानते हैं कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम करते हैं और उसके उद्देश्य के अनुसार बुलाये गये हैं, परमेश्वर उनके कल्याण के लिए सभी बातों में उनकी सहायता करता है; 29 क्योंकि परमेश्वर ने निश्चित किया कि जिन्हें उसने पहले से अपना समझा, वे उसके पुत्र के प्रतिरूप बनाये जायेंगे, जिससे उसका पुत्र इस प्रकार बहुत-से भाई-बहिनों में पहिलौठा हो। 30 उसने जिन्हें पहले से निश्चित किया, उन्हें बुलाया भी है : जिन्हें बुलाया, उन्हें धार्मिक भी ठहराया है और जिन्हें धार्मिक ठहराया है, उन्हें महिमान्वित भी किया है।