“हे परमेश्वर तू कब तक? क्या सदैव मुझे भूला रहेगा? .. परन्तु मैं ने तो तेरी करूणा पर भरोसा रखा है; मेरा हृदय तेरे उद्धार से मगन होगा। मैं परमेश्वर के नाम का भजन गाऊंगा, क्योंकि उस ने मेरी भलाई की है।” —भजन संहिता 13:1, 5-6

जब मैं और मेरे पति एवरेस्ट बेस कैंप गए, जो माउंट एवरेस्ट का सबसे नज़दीकी नज़ारे देखने की जगह है है, मुझे कुछ शानदार नज़ारे देखने की उम्मीद थी। फिर भी दो दिन तक पहाड़ बादलों से घिरा रहा। इसलिए तस्वीरें लेने के बजाय, मैंने पोस्टकार्ड खरीदे।

हमारी छुट्टियों ने मेरे आसपास के लोगों के सामने अपने विश्वास को दर्शाने के तरीके पर सवाल उठाया। क्या मैं मसीहियत का ‘पोस्टकार्ड’ दृश्य प्रस्तुत करती हूँ? क्या मैं यह ग़लत धारणा रखती हूँ कि मेरा जीवन हमेशा हँसमुख ( खुशहाल) है – कि परमेश्वर के बारे में मेरा दृष्टिकोण हमेशा स्पष्ट है?

दाउद ने ऐसा नहीं किया। भजन संहिता 13 की भावपूर्ण कविता में, उन्होंने स्वीकार किया कि वह परमेश्वर को नहीं देख सकते थे और समझ नहीं पाए कि वह क्या कर रहे थे (पद 1)। फिर भी अपनी प्रार्थना के अंत तक वह निश्चित था कि मैंने तो तेरी करुणा पर भरोसा रखा है; मेरा हृदय तेरे उद्धार से मगन होगा। मैं परमेश्वर के नाम का भजन गाऊँगा क्योंकि उसने मेरी भलाई की है॥ (पद 5-6)। मसीही लोग माउंट एवरेस्ट की तलहटी में रहने वाले लोगों की तरह हैं। उन्होंने पहाड़ को पहले देखा है, इसलिए वे जानते हैं कि यह अस्तित्व में है, तब भी जब कि बादल इसे ढक रहे हों।

जब पीड़ा या भ्रम परमेश्वर के बारे में हमारे दृष्टिकोण को अस्पष्ट कर देता है, तो हम अपने संदेहों के बारे में दूसरों के प्रति ईमानदार हो सकते हैं। फिर भी हम उस समय को याद करके अपना विश्वास व्यक्त कर सकते हैं कि प्रभु अभी भी वहाँ हैं, जब हमने उनकी महिमा और अच्छाई देखी थी। यह ‘पोस्टकार्ड मसीहियत’ से बेहतर है।

– जूली एकरमैन लिंक