और हन्नाह मन्दिर को नहीं छोड़ती थी, पर उपवास और प्रार्थना कर करके रात— दिन उपासना किया करती थी। लूका 2:37
जब भी मैं व्यस्त सड़क के कोने पर अलिंग मैता से मिलने जाती हूं, जहां वह तले हुए केले बेचती हैं, तो उसका झुर्रीदार चेहरा प्यार भरी रोशनी से चमकता रहा होता है (फिलीपींस में अलिंग बड़ी उम्र की महिलाओं के लिए सम्मान की एक उपाधि है)। वह हमेशा मुझसे पूछती है कि मैं कैसी हूँ, हमेशा की तरह याद दिलाती है: “हमेशा प्रार्थना करो! हमेशा परमेश्वर पर भरोसा रखो” अब अस्सी साल की उम्र में, मनीला की चिलचिलाती गर्मी में, अपना माल बेचते हुये वह अपना दिन अपनी जेब में रखी बाइबल पढ़ने में बिताती है। चांदी जैसे रंग वाले बालों वाला उसका झूका हुआ सिर, और खुरदुरे हाथों से बड़े प्रेम से फटे पन्नों को पकड़े हुए उसे देखना मुझे याद दिलाता है कि यीशु के प्रति समर्पण का क्या अर्थ है।
अलिंग मैता मुझे भविष्यवक्ता अन्ना, एक बुजुर्ग विधवा, की भी याद दिलाती है, जिसने यीशु को मसीहा के रूप में मान्यता दी थी, जब उसके माता–.पिता उसे मंदिर में लाए थे। परमेश्वर के प्रति अन्ना की भक्ति उसके जीवन की विशेषता थी। “वह मन्दिर को नहीं छोड़ती थी पर उपवास और प्रार्थना करके रात दिन उपासना किया करती थी।” लूका 2:37। प्राचीन यहूदी समाज की पिताप्रधान परंपराओं ने विधवाओं को उपेक्षा और शोषण का शिकार बना दिया था लेकिन अन्ना ने कभी अपने आप को इससे उपेक्षित किये जाने की अनुमति नहीं दी। इसके बजाय, उसने परमेश्वर की भक्ति को अपने और अपने दिनों को परिभाषित करने देना चुना। जब वह चौरासी वर्ष की हुई, तो परमेश्वर ने उसे मसीहा को देखने की अनुमति देकर उसके विश्वास को पुरस्कृत किया।
अन्ना के विपरीत, जिसे यीशु को देखने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ी, हम आसानी से उनकी उपस्थिति का आनंद ले सकते हैं। अलिंग मैता की तरह, हम अपने दिलों को झुकाकर और अपने हाथों को यीशु की स्तुति में उठाकर, केवल वही जो हमारी भक्ति के योग्य हैं, अपना जीवन जी सकते हैं । — करेन हुआंग
आपके लिए भक्ति शब्द का क्या अर्थ है ? आपकी भक्ति का उद्देश्य कौन या क्या है ?
प्रिय परमेश्वर मेरे जीवन के प्रत्येक दिन और मैं जो कुछ भी करता हूं, वह आपकी भक्ति से परिभाषित हो।
लूका 2: 36–38
“36 और आशेर के गोत्र में से हन्नाह नाम फनूएल की बेटी एक भविष्यद्वक्तिन थी, वह बहुत बूढ़ी थी, और ब्याह होने के बाद सात वर्ष अपने पति के साथ रह पाई थी। 37 वह चौरासी वर्ष से विधवा थी, और मन्दिर को नहीं छोड़ती थी पर उपवास और प्रार्थना कर करके रात–दिन उपासना किया करती थी। 38 और वह उस घड़ी वहां आकर प्रभु का धन्यवाद करने लगी, और उन सभों से, जो यरूशलेम के छुटकारे की बाट जोहते थे, उसके विषय में बातें करने लगी।”